औलिया अल्लाह
Aulia Allah (Allah ke Wali) ki Pehchan aur Sifat
बिस्मिल्लाहि र्रहमानि र्रहीम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और बहुत रहम वाला है। सब तअरीफें अल्लाह तआला के लिए हैं। हम उसी का शुक्र अदा करते हैं और उसी से मदद और माफी चाहते हैं। अल्लाह की ला तादाद सलामती, रहमतें और बरकतें नाजिल हो मुहम्मद सल्ल. पर, आप की आल व औलाद और असहाब रजि पर। व बअद!
वली का मतलब
वलायत अदावत की जिद है। वलायत मुहब्बत और कुर्ब को कहा जाता है और अदावत गुस्से और दूरी को। यानि वलायत के मआनी दोस्ती के हैं और वली का मतलब दोस्त होता है और औलिया वली की जमाअ (बहुवचन) है।
कोई जब उस बात का जो अल्लाह को पसन्द हो हुक्म दे और उस बात से जिसे अल्लाह ना पसन्द करता है मना करे तो ऐसा शख्स अल्लाह का वली कहलाता है और ऐसे शख्स का दुश्मन अल्लाह का दुश्मन होता है।
इर्शाद बारी तआला है।
“जिसने मेरे दोस्त से दुश्मनी की उसने मेरे खिलाफ ऐलाने जंग किया।” (मुम्तहिनः- आयत-01)
औलिया अल्लाह के औसाफ (खूबिया)
“याद रखो! जो अल्लाह के वली (दोस्त) हैं। कयामत के दिन न तो उन्हें डर होगा और न कोई गम । (ये वोह लोग है) जो ईमान लाए और परहेजगार (मुत्तकी) रहे।”
युनुस-आयत-62-63
अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया कि अल्लाह तआला फरमाता है :
“जिसने मेरे दोस्त से दुश्मनी की उसने मेरे साथ जंग का ऐलान किया। जब मेरा बन्दा वोह फराइज अदा करता है जो मैंने फर्ज (जरूरी) किया है और फिर नवाफिल के जरिये मेरी कुरबत हासिल करता जाए। यहां तक कि मेरे अन्दर उसके लिए मुहब्बत पैदा हो जाए तो मैं उसका कान बन जाता हूँ जिससे वह सुनता है, उसकी आंख बन जाता हूँ जिससे वह देखता है। उसका हाथ बन जाता हूँ जिससे वह पकड़ता है। उसका पांव बन जाता हूँ जिससे वह चलता है। वह बन्दा अब मुझसे जो मांगता है मैं उसे देता हूँ। मेरी पनाह चाहता है तो पनाह देता हूँ। मैं उस बन्दे को तक्लीफ देना पसन्द नहीं करता।”
बुखारी-6502
(कुल मिला कर यह कि) अल्लाह के औलिया वो होते है जो अल्लाह पर ईमान लाते है, उससे मुहब्बत करते हैं। उस बात को पसन्द करते हैं जिसे अल्लाह पसन्द करता है और जो बात अल्लाह को नापसन्द है वो भी उसे पसन्द नहीं करते।
जिस चीज से अल्लाह राजी होता है वो भी राजी होते हैं और जिससे अल्लाह नाराज होता है वो भी नाराज होते हैं।
जिस बात का अल्लाह हुक्म देता है वो भी उसी का हुक्म देते हैं और जिससे अल्लाह मना करता है वो भी मना करते हैं।
जैसा कि नबी सल्ल. का इर्शाद है :
“ईमान का सबसे मजबूत दस्ता यह है कि किसी से अल्लाह ही के लिए मुहब्बत की जाए और अल्लाह ही के लिए दुश्मनी की जाए।”
(मुसनद अहमद, तबरानीकबीर (हसन)
और “जिसने अल्लाह के लिए मुहब्बत की या नफरत की और अल्लाह ही के लिए दिया और उसी के लिए इन्कार किया तो उसने अपना ईमान मुकम्मल कर लिया।”
(अबुदाऊद-4681)
औलिया अल्लाह के दर्जात
औलिया अल्लाह के दो तबके हैं। “एक तो दाहिने हाथ वाले और दूसरे जो सामने आगे बढ़ाये गये। ये आगे ही बढ़ाने के काबिल हैं। ये दोनों तरह के लोग अल्लाह के करीबी है। इन्हें जन्नत के आराम देह बागों में जगह दी जायेगी। इस गिरोह में बहुत तो
अगले लोगों में से होंगे और थोड़े पिछलों में से भी।” (वाकिया-आयत-8 से 14)
यही बात अल्लाह ने सूरह निसा, फातिर और मुतफफिकीन मैं भी बयान की है।
1. अबरार:
यानि दाहिने हाथ वाले वो लोग हैं जो फराइज अदा करके अल्लाह का कुर्ब हासिल करते हैं। अल्लाह ने जो उन पर हराम किया है उससे बचते हैं। अपने-आप को नवाफिल का पाबन्द नहीं बनाते और न गैर जरूरी मुबाह चीजों से बाज रहते हैं।
2. मुकर्रबीन:
ये वो लोग हैं जो फराइज अदा करने के बाद नवाफिल के जरिये अल्लाह के करीब होते हैं। वाजिबात और मुस्ताहिबात पर अमल करते हैं। हराम और मकरूहात से बचते हैं। अल्लाह की तमाम पसन्दीदा (प्यारी) बातों पर अमल करते हैं।
जब हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि ऐ अल्लाह हमें उन लोगों के रास्ते पर चला जिन पर तूने इनाम किया तो यहां इनाम पाये लोगों से मुराद नबी, सिद्दीक, शहीद और नेक (सालेह) लोग होते हैं।
इरशादे बारी तआला है-
“बेशक शुक्र गुजार यानि फरमाबरदार लोग ऐसी शराब पियेंगे जिसमें काफूर मिला होगा। जन्नत में जहां जायेंगे वहां उसे बहा ले जायेंगे ये वोह लोग है जो अपनी मन्नतें पूरी करते हैं कयामत के दिन से डरते है। अल्लाह की मुहब्बत में मोहताज, यतीम और केदी को खाना खिलाते हैं और उन्हें बता भी देते हैं कि हम तुम्हें अल्लाह की रजा के लिए खिलाते हैं। न तुम से कुछ बदला चाहिये और न शुक्र गुजारी।”
इन्सान-आयत-7 से 9
नबी सल्ल. ने फरमाया
“जिसने किसी मोमिन की दुनियावी तकलीफ दूर की अल्लाह उसकी उखरवी तकलीफ दूर करेगा। जिसने किसी गरीब की मदद की अल्लाह दुनिया और आखिरत मैं उस पर आसानी करेगा। जो किसी मुसलमान का ऐब छुपाएगा अल्लाह भी दुनिया और आखिरत में उसका ऐब छुपाएगा। अल्लाह उस वक्त तक बन्दे की मदद करता रहता है जब तक वह अपने भाई की मदद करता है। जो शख्स इल्म हासिल करने के लिए सफर करता है अल्लाह उसके लिए जन्नत का रास्ता आसान कर देता है और जब कभी लोग किसी जगह जमा होकर कुरआन की तिलावत करते और उसे सीखते-सिखाते है तो उन पर अल्लाह की रहमत छा जाती हैं. फरिश्ते उन्हें घेरे में ले लेते है और अल्लाह फरिश्तों में उनका जिक्रे खैर करता है।
मुस्लिम-7082 जिल्द-6 सफा-289
(3) अफज़ल तरीन औलिया अल्लाह
औलिया में सबसे ज्यादा फजीलत अम्बिया को हासिल है और अम्बिया में सबसे ज़्यादा फजीलत उन्हें हासिल है जो रसूल हैं। सब रसूलों में ज़्यादा फजीलत वाले नूह, इब्राहीम, मूसा, ईसा अलैहि. और मुहम्मद सल्ल. हैं। इनमें भी सबसे अफजल इमामुल अम्बिया मुहम्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम है। कयामत के दिन जब अम्बिया अलैहि. इकठे होंगे तो मुहम्मद सल्ल.ही उनके इमाम और खतीब होंगे और मकामें मेहमूद पर फाइज होंगे। आप सल्ल. ही हम्द का झन्डा उठाने वाले, हौजे कौसर के मालिक, कयामत के दिन लोगों की शफाअत करने वाले और साहिबे वसीला है।
आप सल्ल.की ही उम्मत को खिताब करके अल्लाह ने फरमाया “तुम एक बेहतरीन उम्मत हो जो लोगों के लिए निकाली गई है। इसलिए कि तुम भलाई का हुक्म देते हो और बुराईयों से रोकते हो।” (आले इमरान आयत-110)
अल्लाह के औलिया में बाद अम्बिया अलैहि. के सबसे अफजल हजरत अबुबकर सिद्दीक रजि. फिर उमर रजि. फिर उस्मान रजि. फिर अली रजि. फिर बकिया अशरा मुबश्शरा फिर अहले बदर फिर बैते रिजवान वाले और फिर बकिया सभी सहाबा किराम रजि है।
मगर अफसोस! आज हमारे जहनों में जब औलिया अल्लाह का तसव्वुर आता है या जुबानों पर उन का जिक्र आता है तो हमारी सोच अम्बिया तो क्या सहाबा किराम तक नहीं जा पाती। अगर जाती है तो उन कब्र वालों तक जिनकी कब्रो पर गुम्बद बने है। जहां उर्स होते है, कव्वालियां होती है। जहां अल्लाह को भूल कर उसकी मखलूक को दाता, मुश्किल कुशा और गरीब नवाज़ समझ कर पुकारा जाता है। तौहीद का मज़ाक
उड़ाया जाता है, ईमान की धज्जियां बिखेरी जाती है। और इस्लाम की तौहीन की जाती।
(4) औलिया को अम्बिया से अफजल समझना कैसा है ?
यह सरासर गुमराही है, एक गुमराह जमाअत ने खातिमुल अम्बिया पर कयास करते हुए खातिमुल औलिया को तमाम औलिया से अफजल करार दिया। जबकि अम्बिया तो जमाने में औलिया से पहले आये हैं। और हर नबी अल्लाह का वली भी होता है फिर कैसे मुमकिन है कि उम्मती नबी से अफजल हो।
खुद आप सल्ल. ने फरमाया :
“मैं औलादे आदम का सरदार हूं और यह कहना बतौर फख्र के नहीं।” (मुस्लिम-6209 जिल्द 6 सफा 9, अबुदाऊद-4673, इब्ने माजा-4308)
रहे गैर नबी औलिया अल्लाह तो उनमे अफजल वह है जिसे रसूलअल्लाह सल्ल की लाई हई शरीयत का सबसे ज्यादा इल्म हो और जो आप. सल्ल. की इताअत (पैरवी) में सबसे आगे हो।
जैस सहाबा किराम रजि. जो दीन को समझने और उसकी पैरवी में सबसे आगे है और उनमें भी इल्मी और अमली ऐतबार से हज़रत अबुबकर सिद्धिक रजि. को सबसे ज्यादा कमाल हासिल है और हम जानते हैं कि अबू बकर रजि. जैसे वली अल्लाह को भी किसी भी नबी से अफजल समझना सही नहीं।
(5) वली अल्लाह सुन्नते रसूल सल्ल. का पाबन्द होता है
जिन लोगों तक मोहम्मद सल्ल. की रिसालत पहुंच चुकी हो वोह सिर्फ नबी सल्ल. की पैरवी करके ही अल्लाह के वली (दोस्त) बन सकते हैं। ऐसा शख्स बिना रसूल सल्ल. के तरीके पर चले अल्लाह का वली नहीं बन सकता।
जो यह दावा करे कि रिसालत पहुंचने के बाद भी उसके पास अल्लाह तक पहुंचने की ऐसी राह मौजूद है जिसमें वोह रसूल सल्ल. का मोहताज नहीं है तो ऐसा शख्स वली अल्लाह तो दूर काफिर और बे दीन है।
अगर अकीदा यह हो कि जाहिर इल्म में तो मुहम्मद सल्ल. की जरूरत है मगर बातीनी इल्म में नहीं या इल्मे शरीयत में आपकी जरूरत है इल्मे हकीकत में नहीं तो ऐसा शख्स यहूद व नसारा से भी बदतर है, गुमराह है।
(6) ईमान और तकवा वलायत की शर्त है
इस्लाम के इन्कारियों और मुनाफिकों में से कोई भी अल्लाह का वली नहीं हो सकता। ना ही ऐसा शख्स अल्लाह का वली हो सकता है जिसका ईमान और इबादत सहीं न हो।
कई काहिन, जादूगर, मुश्रिक, पुजारी और अहले किताब ऐसे शौबदे दिखाते है कि लोग दंग रह जाए। लेकिन उनके ये शौबदे या करामते उनके अल्लाह का वली होने की दलील नहीं बन सकते और अगर कोई शख्स इसी वजह से उन्हें अल्लाह का वली मानता है तो वह यहूद व नसारा से ज्यादा गुमराह है। क्योंकि दीन में असल ईमान है।
इसी तरह कोई शख्स अल्लाह का वली होने का दावा करे और हालत उसकी यह हो कि वह न गुनाहों से बचता हो, न फराईज (नमाज, रोजा वगैरह) की पाबन्दी से अदायगी करता हो बल्कि गुनाहो में घिरा रहता हो तो ऐसे शख्स को अल्लाह का वली (दोस्त) समझना जाईज नहीं है।
हां अल्लाह का दोस्त नैक काम करके और बुराईयों से बचकर ही बना जा सकता है।
इर्शाद बारी तआला है ।
(अल्लाह के दोस्त वोह है) “जो ईमान लाए और परहेजगार रहें।
युनुस-63
और लोगों! हमने तुम सबको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया। फिर तुम्हारी जाते (कबीले) और बिरादरियां ठहराई ताकि एक दूसरे को पहचान सको। (वरना) अल्लाह के नजदीक तुम में ज्यादा इज्जतदार वोह है जो मुत्तकी (परहेज़गार यानि अल्लाह से डरने वाला) है।
हुजुरात आयत-13
और हज्जतुलविदा के मौके पर आप सल्ल. ने फरमाया
“किसी अरबी को अज़मी (गैर अरबी) पर किसी अजमी को अरबी पर काले को गौरे पर और गौरे को काले पर कोई फजीलत हासिल नहीं है। अगर है तो सिर्फ तकवें कि बुनियाद पर तमाम लोग आदम (अलैहि) की नस्ल से है और आदम मिट्टी से बनाये गये।”
मुसनद अहमद-सही