ज़कात मुस्तहिक को देना ज़रूरी है

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया: 

“बेशक अल्लाह तआला ने ज़कात के मुस्तहिक को न किसी नबी की मर्जी पर छोड़ा है और न ही नबी के अलावा किसी और की मर्जी पर, बल्कि खुद ही फैसला फरमा दिया है और उस के आठ हिस्से मुतअय्यन कर दिये हैं।”

📕 अबू दाऊद: १६३०, अन जियाद बिन हारिस (र.अ) 

वजाहत: ज़कात का जो मुस्तहिक है, उसी को ज़कात देना ज़रुरी है और जो ज़कात का मुस्तहिक नहीं है, अगर उसको दे दिया तो ज़कात अदा नहीं होगी।




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