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Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 36
सैयदु शुहदा हज़रत अमीर हमजा की लाश
जब मुसलमान दुश्मनों के घेरे में आ गये थे और कुफ्फार ने उन्हें हर तरफ़ से घेर लिया था, हर जगह निहायत खंरेज लड़ाई हो रही थी, उस वक्त कुफ्फारे करैश की औरतें मुसलमान शहीदों के नाक-कान काटती फिर रही थीं, गोया इस तरह वे अपनी नफ़रत का इजहार कर के बदला ले रही थीं।
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हिंदा, अबू सुफ़ियान की बीवी को वहशी ने बता दिया था कि उसने अपने हरबे से हज़रत अमीर हमजा को शहीद कर दिया है। हिंदा ने अपने तमाम जेवर उतार कर उस के हवाले कर दिये और उस के साथ सैयदु शुहदा हज़रत अमीर हमजा की लाश पर पहुंची।
उस ने बदले के जोश में हजरत हमजा के नाक और कान काट कर लाश का मुस्ला कर दिया और सीना चीर कर जिंगर निकाला। अपनी क़सम पूरी करने के लिए जिगर मुंह में रखकर चबाने लगी मगर चबा न सकी, उगल दिया।
जब मुसलमान उहद की पहाड़ी पर चढ़ गये और अबू सुफ़ियान अगले साल बद्र में लड़ने का वायदा कर के अपने लश्कर के वापस चला गया, तो हुजूर (ﷺ) ने शहीदों को एक जगह जमा करने का हुक्म दे दिया।
मुसलमानों की तमाम फ़ौज पहाड़ी से उतर कर शहीदों को उठा उठा कर जमा करने में लग गयी। बहुत से मुसलमानों की लाशें पारा पारा कर दी गयीं और हजरत हमजा की लाश के तो इतने कर दिये गये थे, कि बड़ी मुश्किल से जमा किये जा सके।
अभी मुसलमान शहीदों को ढूंढ-ढूंढ़कर जमा ही कर रहे थे कि मदीना की तरफ़ से कुछ मुसलमान और उन के साथ एक ओरत आती नज़र आयी। चूंकि मदीना यहां से सिर्फ़ तीन-चार मील ही दूर था, इसलिए लड़ाई के मैदान की पूरी-पूरी खबरें उन्हें पहुंच चुकी थीं। यह सभी हालात मालूम करने के लिए चल पड़े थे।
यों तो सब अपने-अपने रिश्तेदारों के बारे में मालूम करने के लिए आ रहे थे, मगर इन क़रीब आ गये लोगों को सब से ज्यादा हुजूर (ﷺ) की खैरियत मालूम करने की चिंता खा रही थी।
हजरत सफ़िया (र.अ) शेरे इस्लाम की बेहन
सब से पहले जो औरत लड़ाई के मैदान में पहुंची, वह हजरत हमजा की सगी बहन और हजरत जुबैर की मां हजरत सफ़िया थीं। उन की आंखों में आंसू थे और चेहरा पीला पड़ रहा था। उन्हें हजरत हमजा (र.अ) की शहादत की खबर पहुंच गयी थी। वह अपने भाई की लाश देखने आयी थीं।
हुजूर (ﷺ) हज़रत हमजा (र.अ) की लाश के पास हजरत जुबेर (र.अ) को बुला कर कहा, अपनी मां को रोको। उन्हें हजरत हमजा की लाश के पास न जाने दो।
हजरत जुबैर ने बढ़ कर अपनी मां से कहा, अम्मी जान ! लड़ाई के मैदान में क्यों चली आयीं ? हज़रत सफ़िया के चेहरे से गम व आलम जाहिर हो रहा था। उन्हों ने फ़रमाया-
बेटा ! मैं अपने भाई की लाश देखने आयी हूं।
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हजरत जुबैर ने कहा, मगर रसूले खुदा चाहते हैं कि तुमे उन की लाश न देखो।
हजरत सफ़िया ने ठंडी आह भरते हुए कहा, आह, मुझे मालूम है कि मेरे शेर दिल भाई की लाश के टुकड़े कर दिये गये हैं, आंखें निकाल ली गयी हैं, नाक और कान काट डाले गये हैं और सीना चीर कर जिगर निकाला गया है।
मैं उन की लाश पर रोने या बैन करने नहीं आयी हूं, बल्कि दुआ-ए-मगफ़िरत मांगने आयी हूँ और देखने आयी हूं कि मेरे शेर दिल भाई ने कोई जख्म पीठ पर तो नहीं खाया।
अच्छा ठहरो, मैं हुजूर (ﷺ) से इजाजत तो ले लूँ। हज़रत जुबैर ने कहा।
तुम अपने साथ मुझे भी ले चलो, हजरत सफिया ने फ़रमाया , मैं खुद उनसे इजाजत ले लुंगी।
हज़रत जुबैर माँ हजरत सफ़िया को अपने साथ ले कर हुजूर (ﷺ) की खिदमत में पहुंचे।
हुजूर (ﷺ) ने देखा, हजरत सफिया ग़म से निढाल हो रही थीं और चलते हुए ठोकरें खा रही थीं । बराबर में अपने बेटे हजरत जुबैर का सहारा ले कर चल रही थीं।
हजरत हमजा हुजूर (ﷺ) के चचा थे। जब अबू जहल ने हुजूर (ﷺ) के पत्थर मार-मार कर आप को जख्मी कर दिया था और आप ने इस खबर को सुना था, तो गुस्से हो कर अबू जहल के सरपर अपनी कमान खींच ली थी और उसी दिन मुसलमान हो गये थे।
हुजूर (ﷺ) को उनसे बहुत ज्यादा मुहब्बत थी। आप को भी हजरत हमजा के शहीद हो जाने का बेहद ग़म था।
हजरत सफ़िया ने आप के पास पहुंच कर कहा –
अल्लाह के रसूल (ﷺ) ! मुझे मालूम है कि कुरैशी दरिंदों ने मेरे भाई की लाश पारा पारा कर दी है। मैं नौहा करने के इरादे से नहीं आयी बल्कि अपने शेर दिल भाई का आखिरी दीदार करने और दुआ-ए-मगफिरत मांगने आयी हूं। मुझे मेरे भाई की लाश देखने की इजाजत दे दीजिए।
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, फूफी ! तुम क्या देखोगी, जब देखने की चीज ही बाक़ी न रही ?
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हज़रत सफ़िया ने ठंडी सांस भर कर कहा।
मैं शेरे इस्लाम को देखूंगी, वह जिस हालत में भी हों। मैं सब्र करना जानती हूं।
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, अच्छा देख लो, लेकिन बैन न करना। हजरत सफ़िया वापस लौटीं। पहाड़ी के दामन में हज़रत हमजा की लाश पड़ी थी। लाश पर चादर डाल दी गयी थी।
हजरत सफ़िया लाश के क़रीब पहुंच गयीं।
हजरत जुबेर साथ थे। उन्हों ने लाश के ऊपर से चादर हटायी। हजरत सफ़िया ने सैयदुशुहदा की लाश को देखा।
हज़रत हमजा की लाश टुकड़े-टुकड़े थी। आप के कान न थे, आंखें निकली हुई थीं।
हजरत सफ़िया यह हालत देख कर तड़प गयीं।
अगरचे उन्हों ने सब्र व जब्स से काम लिया, लेकिन भाई की मुहब्बत जोश कर आयी, कलेजा टुकड़े-टुकड़े हो गया, दिल फट गया और बे-अख्तियार आंखों से आंसुओं की धार बह निकली।
उन्हों ने भर्राई हुई आवाज में कहा, आह भाई ! मेरे शेरदिल भाई ! तुम मुझ से पहले ही दुनिया से रुखसत हो गये। जालिमों ने तुम्हारी लाश के टुकड़े-टुकड़े कर दिया और तुम हमेशा-हमेशा के लिए आराम व सुकून की नींद सो गये।
हजरत सफ़िया रो रही हजरत जुबैर भी रो रहे थे फिर भी बोले, अम्मीजाने ! तुम बैन कर के हुजूर (ﷺ) के हुक्म की खिलाफवर्जी कर रहे हो।
उन्हों ने हुजूर (ﷺ) के हुक्म की खिलाफ़वर्जी को फ़ौरन महसूस किया और तौबा करने लगीं। फिर हाथ उठा कर दुआ-ए-मगफ़िरत की।
इस बीच मुसलमानों ने शहीदों की लाशें ला ला कर एक जगह जमा कर दी थी और उन्हें दफ़न करने के लिए गढ़े खोदने लगे थे।
जब गढे या क़ब्र तैयार हो गयीं, तो एक-एक क़ब्र में दो-दो लाशें दफ़न की जाने लगीं। तमाम शहीदों को दफ़न कर के सारे मुसलमान एक जगह जमा हो गये। सब ने शहीदों के लिए दुआ-ए-मगफिरत की।
अब हजूर (ﷺ) ने मुसलमानों को मदीने की तरफ़ कूच करने का हुक्म दे दिया।
इस्लाम के ये मुजाहिद इस्लामी झंडे के साए तले धीरे-धीरे रवाना हुए।
लड़ाई के मैदान की खबरें मदीना पहले ही पहुंच चुकी थीं और लोग झुंड के झुंड हाल मालूम करने के लिए घरों से निकल पड़े थे।
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मुसअब बिन उमेर (र.अ) की बीवी हमना (र.अ)
सब से पहले हजरत मुसअब बिन उमेर (र.अ) की बीवी मिलीं। हजरत मुसअब इस्लामी लश्कर के अलमबरदार थे और वह शहीद हो गये थे।
उन की बीवी का नाम हमना (र.अ) था।
हमना ने एक अरब से लड़ाई के हालात मालूम किये।
अरब ने बताया, हमना ! तुम्हारे मामू हजरत हमजा शहीद हो गये। अल्लाह उनकी मगफ़िरत करे, हमना ने सुन कर कहा।
तुम्हारे भाई अब्दुल्लाह बिन हब्शा भी शहीद हो गए , आरब ने बताया।
इन्नालिल्लाहि व इन्ना इलेहि राजिऊन, हमना ने कहा।
और तुम्हारे शौहर हजरत मुसअब भी शहीद हो गये, अरब ने बताया।
यह सुन कर हजरत हमना बेक़रार हो गयीं, बे-अख्तियार उन की आंखों से आंसू जारी हो गये।
हुजर (ﷺ) को जब यह बात मालूम हुई, तो आपने फ़रमाया –
हर शरीफ़ औरत को अपने शौहर से ज्यादा मुहब्बत होती है।
इस्लामी लश्कर धीरे-धीरें लौट रहा था। मदीना से आने वाले भी लश्कर में शामिल होते जाते थे।
एक अंसारी सहबिया की बेचैनी
कुछ दूर चल कर अन्सार की एक नवजवान औरत परेशान हाल आती हुई मिली। जब वह लश्कर के क़रीब आयी, तो एक आदमी ने उसे पहचान कर कहा, ऐ बहन ! अफ़सोस ! तुम्हारे बाप शहीद हो गये।
औरत ने पूछा, हुजूर (ﷺ) तो ख़ैरियत से हैं ?
उस ने कहा, अभी और सुनो, तुम्हारे भाई भी शहीद हो गये।
औरत के चेहरे पर अब भी कोई खास मलाल जाहिर न हुआ, हां जो बेचैनी पहले थी, वही अब भी रही, उस ने फिर पूछा, हुजूर (ﷺ) का हाल बताओ।
उस आदमी ने कहा, अब आखिरी दिल हिला देने वाली ख़बर सुन लो, यानी तुम्हारे शौहर भी शहीद हो गये।
यह खबर सुन कर औरत का चेहरा कुछ फीका पड़ गया, बदन में कंपकपी सी पैदा हुई, आवाज कांपने लगी। फिर भी उसने पूछा, ख़ुदा के लिए हुजूर (ﷺ) का हाल बताओ।
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इस बीच हुजूर (ﷺ) की सवारी क़रीब आ गयी।
अरब ने बताया, वह देखो, मुहम्मद (ﷺ) तशरीफ़ ला रहे हैं।
औरत ने हुजूर (ﷺ) को देखा, उस का चेहरा चमकने लगा। उस ने कहा, खुदा का शुक्र है, हजार-हजार शुक्र है कि मैं ने हुजूर (ﷺ) को देख लिया, जब आप सलामत हैं, तो तमाम मुसीबतें हेच हैं।
इसी तरह बहुत से मर्द औरतें, बच्चे पहले हुजूर (ﷺ) की खैरियत मालूम कर रहे थे और आप की खैरियत पा कर दिलों को तस्कीन दे रहे थे।
जल्द यह लश्कर मदीने में दाखिल हो गया।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा …
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