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Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 19
अरब के मशहूर जादूगर का ईमान ले आना
हुजूर (ﷺ) पर जिस अन्दाज की सख्तियां हुई थीं, वे अपनी नजीर आप हैं।
अगरचे उस वक्त तक बहुत से लोग मुसलमान हो चुके थे, लेकिन इन मुसलमानों में इतनी ताक़त न थी कि हुजूर (ﷺ) की हिफाजत कर सकते अल-बत्ता उन में ईमान की ताक़त इतनी भर उठी थी कि अगर हुजूर (ﷺ) उन्हें लड़ने की इजाजत दे देते, तो वे अपनी कमजोरी के बावजद मुकाबला सख्त करते और दूश्मनों के छक्के छुड़ा देते।
जब हुजूर (ﷺ) तायफ़ से तरीफ़ लाये तो दुश्मनों ने पहले से भी ज्यादा सख्तियां शुरू कर दीं। पहले गुण्डे-बदमाश धूल फेंकते, कीचड़ उछालते और पत्थर मारते थे, अब अपने को शरीफ़ कहने वाले भी यही हरकत करने लगे थे।
हुजूर (ﷺ) जहां जाते और जिस रास्ते से गुजरते और जिस जगह ठहरे होते, अबू लहब साये की तरह साथ लगा रहता। अगर हुजूर (ﷺ) किसी से बातें करते, तो अबू लहब पहले बातें शुरू कर देता।
अरब में बहुत सी जगहों पर मेले लगते। इन मेलों में दूर-दूर के कबीले आते, घोड़दौड़ होती, दंगल होते, शायरी में मुकाबला होता और हफ्तों मेले लगे रहते। हुजूर (ﷺ) इन मेलों में जा कर तब्लिगे इस्लाम करते।
उकाज़ अरबों का एक मशहूर इल्मी और कौमी दंगल था और शानदार मेला भी। सौ-सौ कोस से लोग आकर इस मेले में शरीक होते। अरब के मशहूर, पहलवान, लड़ाकू, शायर, काहिन व आराफ़ सभी आते थे। हर फ़न का मुकाबला जोरदार होता था।
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हजूर (ﷺ) भी इस मेले में तशरीफ़ ले गये। वहां कुरैश के तमाम बड़े लोग भी मौजूद थे।
एक दिन आप एक आम रास्ते पर खड़े हो गये और लोगों को जमा कर के तकरीर करने लगे। अगरचे हुज़र (ﷺ) जानते थे कि यह कुफ्फ़ार का मज्मा है। हर आदमी बाप-दादा के मजहब का दीवाना है और बुतों का शौदाई है। ऐसे मज्मे में बुतपरस्ती के खिलाफ़ कुछ कहना एक भारी खतरा मोल लेना है।
आप तकरीर कर रहे थे और लोग हैरत और शौक़ से मुन रहे थे।
अबू लहब पास ही खड़ा था। वह मज्मे के शौक़ को देख कर परेशान हुआ, सोचने लगा, कहीं मुहम्मद (ﷺ) के जादू में लोग आ न जाएं।
फ़ौरन बोल उठा ऐ अरब भाइयो! यह मेरा भतीजा है। अपने बाप-दादा के मजहब से फिर गया है। ख्याली खुदा की पूजा की बात करता है, झूठी बातें कहता है, इसलिए इस की बातें न सुनो। (नऊजुबिल्लाह)
अबू लहब को करीब-करीब तमाम लोग जानते थे। ठठ्ठा मार कर हंसने लगे और एक-एक कर खिसकने लगे।
अबू लहब भी अपने खेमे की तरफ़ बढ़ा, कुछ ही कदम चला था कि एक आदमी ने उस के कंधे पर हाथ मारा।
उस ने पलट कर देखा तो एक शान वाले आदमी को अपने सामने पाया। यह अधेड़ उम्र का अरब था। सर और दाढ़ी के बाल खिचड़ी हो रहे थे। पूरा अरबी लिबास पहने हुए था। मोटे-मोटे दानों की माला गले में पड़ी हुई थी। उस ने अबू लहब से खिताब करते हुए कहा, ऐ सरदार! आप शायद अपने भतीजे से बेजार हैं?
अबू लहब ने कहा, तुम सही कहते हो, मेरे भाई ! मेरे भतीजे मुहम्मद ने हमारे दीन में, हमारे कबीले और शहर में तफरका डाल रखा है और मेरी कौम इस से तंग आ गयी है।
अरब ने कहा, शायद आप ने मुझे नहीं पहचाना?
अबू लहब ने कहा, आप को कौन नहीं जानता? आप अरब के मशहूर जादूगर यमन के बाशिंदे हैं, मशहूर क़बीले से ताल्लुक रखते हैं, आप का नाम जमाद है।
अरब ने कहा, आप ने खूब पहचाना, मेरा नाम जमाद अजदी है।
वाकई में अरब का जाना-पहचाना जादूगर हूं। तुम्हारे भतीजे पर किसी ने जादू कर दिया हैं। मैं जादू के जोर से उन्हें अच्छा कर सकता हूं।
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अबू लहब ने कहा, अगर तू मेरे भतीजे को अच्छा कर दे और वह नये मजहब की तब्लीग छोड़ दे, तो तुझे सौ ऊंट और सौ अशरफियां दूंगा।
जमाद ने हंस कर कहा, यह तो बहुत बड़ा इनाम है। लात व उज्जा की कसम ! मैं इन का इलाज करूंगा। जब इन्हें आराम हो जाएगा, आप को अपना वायदा पूरा करना होगा।
अबू लहब ने कहा, जरूर पूरा करूंगा। जमाद! मेरे अलावा अबू जहल, वलीद और अबू सुफियान, उत्बा और दूसरे लोग भी तुझे इनाम दंगे।
अच्छा ठहरो, जमाद ने कहा, मैं तुम को अपनी जादूगरी दिखाता हूं।
अबू लहब ने कहा, तन्हा मुझे दिखाने से कुछ फायदा नहीं। मेरे खेमे पर चलो। वही मैं कुरैश के सरदारों को बुलाऊंगा। सब के सामने दिखाना। .
जमाद राजी हो गया।
दोनों चल कर अबू लहब के खेमे पर पहुंचे। अबू लहब ने सब को बूलवा लिया और थोड़ी देर में सभी आ गये। खेमे के सामने सभी मैदान में बैठ गये।
चूंकि यह मैदान बाजार के सिरे पर था, इस लिए सैकड़ों आदमी भी इधर उधर से आ कर जमा होने लगे। जब खूब भीड़ हो गयी तब अबू लहब ने जमाद से कहा –
अब दिसाबो, तुम क्या दिखाना चाहते हो?
जमाद बीच में आ कर खड़ा हो गया।
उस ने चारों तरफ़ से लोगों को हटा कर बीच में एक अ दायरा खींचा और उस में खड़ा हो कर बोला –
ऐ अरब भाइयो ! तुम ने मेरा नाम जरूर सुना होगा। दुनिया मुझे अरब का जादूगर कहती है। तमाम आराफ और काहिन मुझे अपना उस्ताद मानते हैं। मैं यह भी बता दूँ कि मैं सिर्फ जादूगर नहीं है, बल्कि अरब का मशहूर शायर भी हूं। तुम ने मेरा नाम जरूर सुना होगा, लेकिन मेरे करतब न देखे होंगे। आज मैं आप को जादू के करिश्मे दिखाता हूं।
देखो, आसमान साफ़ है, सूरज चमक रहा है। हम सब धूप में बैठे गर्मी तेष पर रही है। उठ ऐ बारिश के बादल ! उठ ऐ काली घटा, उठ और इस मैदान में छा जा।
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लोग आसमान की ओर देखने लगे। आसमान साफ़ था, सुरज तेजी से चमक रहा था, हवा बन्द थी, गर्मी खुब पड़ रही थी। लोगों को अपने सरों पर एक काली बिन्दी नजर आयी। जमाद ऊपर देख रहा था। उसकी आँखे चमक रही थीं। मुंह में कफ भरा हुआ था। वह अपने हाथ की उँगलियों से इशारा कर रहा था।
लोग बिन्दी को देख रहे थे, बिन्दी बढ़ने लगी, यहां तक कि बढ़ते बढ़ते काली बदली का टुकड़ा बन कर रह गयी। हवा चलने लगी और लोगों ने हैरत से देखा कि बदली के टुकड़े ने बढ़ कर सारे मैदान को तक लिया। सूरज गायब हो गया।
जमाद ने कहा, बरस और खूब बरस इस तरह कि रेत पर पानी की बून्द न पड़े।
तुरन्त नन्हीं-नन्हीं बूदें पड़ने लगीं, इस तरह कि ऊपर से बुँदे पड़तीं, पर नीचे पानी का एक कतरा न गिरता था।
लोग जादू का यह करिष्मा देख कर हैरान रह गये।
जमाद ने कहा, गजर ऐ जिनों के लश्कर ! पूरी शान के साथ को हैरान करता हुआ चल ! जल्दी चल!
इतने में पूर्वी सिरे से काला सा परदा उठा। उस परदे में से मिटीमिटी सी शक्लें दिखायी दी। मैदान की तरफ बढ़ीं, जब बीच में आयीं, तो लोगों ने देखा, अजीब व गरीब होलनाक शक्लें और बहशतनाक सूरतें थीं। फिजा में तैरती हुई, हवा को चीरती हुई बदली से नीचे, जमीन से ऊपर लोगों को घूरती हुई चली जा रही थी और पच्छिमी किनारे पर पहुंच कर ग़ायब हो जाती थीं।
लोग हैरत के साथ आंखें फाड़-फाड़ कर देख रहे थे।
फिर बदली फटी, बादल उड़े और सूरज चमकने लगा। गर्मी बढ़ गयी।
जब लोगों को हैरत दूर हुई तो उन्हों ने जमाद को देखा। जमाद सर झुकाये, आखें बन्द किये खड़ा था।
लोग जमाद के इस करिश्मे को देखकर दंग थे। उन्हों ने आज ऐसा करिश्मा देखा, जिस ने उन्हें ताज्जुब से भर दिया था और वे बहुत ज्यादा खौफ़ में भी पड़ गये थे।
देहशत और खौफ भरी नजरों से जमाद को देख रहे थे।
जमाद ने धीरे-धीरे सर उठाया। लोगों को देखा, उस की आंखें लाल थी और चमक रही थीं, किसी को उसकी आंखों की तरफ देखने की हिम्मत न हुई।
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अबू लहब ने कहा, जमाद! तुम वाकई जादूगरों के उस्ताद हो। आज तुम ने वे करतब दिखाये जो कभी न देखे थे। अब हम सब को यह यकीन हो गया है कि तुम अपने जादू के जोर से मेरे भतीजे (मुहम्मद सल्ल.) को ठीक कर दोगे। हमें अफसोस है कि हम ने तुम को पहले ही क्यों न बुलाया? अगर तुम आ जाते, तो यह फ़ित्ना न बढ़ने पाता, मगर अब भी कुछ ज्यादा नहीं बिगड़ा है। मैं तुम से इल्तिजा करता हूं कि तुम मेरे भतीजे का इलाज करो।
जमाद ने कहा, अगर आप बुला सकते हैं, तो अपने भतीजे को बुला लें। देखिए, मैं किस तरह और कितनी जल्द उनका इलाज करता हूँ।
मैं बुलाता हूं, उम्मीद है कि वह आ जाएगा। यह कहते ही अबू लहब ने एक गुलाम को भेजा और उसे हिदायत कर दी कि यहां की कोई बात मुहम्मद से न कहे।
गुलाम चला गया, थोड़ी देर में वह हुजर (ﷺ) के साथ वापस आ गया।
अबू लहब ने कहा, मुहम्मद ! मैदान में जो आदमी खड़ा है, उसे आप जानते हैं ?
हजूर (ﷺ) उसे नहीं जानते थे, बोले, मैं नहीं जानता।
इस का नाम जमाद है, यमन का बाशिदा है, बड़ा जादूगर है। यह तुम्हारा इलाज करेगा, तुम पर किसी जिन्न का असर है। यह उस जिन्न को पकड़ेगा।
हुजूर (ﷺ) मुस्करा दिये, फ़रमाया चचा! मुझ पर किसी जिन्न का असर नहीं है। तुम धोखे में न पड़ो। मैं खुदा का बन्दा और उस का रसूल हूं।
अबू लहब ने बुरा-सा मुंह बना कर कहा, फिर वही झगड़े की बात शुरू कर दी। खुदा कोई नहीं है। खैर ! इस बहस को छोड़ो, जरा तुम जमाद के पास चलो। ! आप (ﷺ) जमाद के पास खड़े हुए।
जमाद ने आप को देखा, बड़े गौर से देखा। आप के चेहरे का जलाल देख कर उस के चेहरे पर कुछ घबराहट पैदा हुई।
हुजूर (ﷺ) ने बोलने में पहल की, जमाद! अरब के मशहूर जादूगर! बोलो, तुम मुझ से क्या कहना चाहते हो ?
जमाद ने रुक-रुक कर बताया आप पर एक बड़े जिन्न का साया है। मैं आप को अपना मन्त्र सुनाता हूँ, आप सुन लें।
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आप (ﷺ) ने मुस्कराते हुए कहा,
जमाद! मुझ पर किसी जिन्न वगैरह का साया नहीं है। तू जादूगर है। जादूगरी से लोगों को हैरत में डाल देता है, लेकिन मैं खुदा का पैगम्बर हूँ। खुदा ने मेरी जुबान में यह असर दिया है कि जो मुझ से खुदा का कलाम सुन लेता है, उस के दिल पर असर किये बगैर नहीं रह सकता। तू अपना मंत्र सुनाने से पहले कुछ मुझ से सुन ले।
जमाद ने कहा, अच्छा आप ही फरमाइए। चुनांचे आप (ﷺ) ने पढ़ना शुरू किया।
तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, हम उस की तारीफ़ करते हैं और उसी से मदद चाहते हैं। जिसे अल्लाह हिदायत देता है, उसे कोई गुमराह करने वाला नहीं और जिसे वह गुमराह करता है, उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। मैं गवाही देता हूँ कि सिवाए अल्लाह के कोई माबूद नहीं। वह अकेला है, कोई उस का शरीकं नहीं। मैं यह भी गवाही देता हूं कि मुहम्मद (ﷺ) खुदा का बंदा और उस के रसूल हैं।
जमाद यह सुन कर कांपने लगा।
उस ने कहा, मेहरबानी कर के जरा फिर यही लफ़्ज़ दोबारा बयान फरमायें।
आप (ﷺ) ने फिर यही लफ्ज दोहरा दिये।
जमाद बड़े गौर से सुनता रहा।
जब हुजूर (ﷺ) चुप हुए, तो उस ने कहा, वाह! वाह ! कितनी मिठास है इस कलाम में। एक बार और सुनाइए।
आप (ﷺ) ने फिर वही लफ्ज दोहराए।
जमाद ने कहा, कसम है उन माबूदों की जिन को मैं आज तक पूजता रहा हूँ कि मैंने बहुत से काहिन, जादूगर और भाषा के माहिर देखे हैं, उनके कलाम सुने हैं लेकिन ऐसा कलाम, खूबियों से भरा कलाम मेंने कभी नहीं सुना। बेशक आप नबी हैं, रसूल हैं, पैग़म्बर हैं। मैं उस खुदा पर, जिसने आप को रसूल बना कर भेजा है और आप की रिसालत पर ईमान लाया। अपना मुबारक हाथ बढ़ाइए, मैं मुसलमान होता हूँ।
हुजूर (ﷺ) ने फौरन कलिमा पढ़ा कर मुसलमान कर लिया। आप (ﷺ) को उस के मुसलमान होने से बड़ी खुशी हुई।
जमाव ने मज्मे से खिताब करते हुए कहा, ऐ बातिल माबूद के पुजारियों सुनो और कान खोल कर सुनो। हजरत मुहम्मद सल्ल. पर किसी जिन्न व्वगैरह का साया नहीं है। यह खुदा के पैगम्बर हैं उस के बन्दों को हिदायत का रास्ता बताने के लिए भेजे गये हैं। मैं मुसलमान हो गया है, तुम सब भी मुसलमान हो जाओ। खुदा की क़सम ! मुसलमान बन कर इंसान बन जाओगे।
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अबू लहब और दूसरे अरब के सरदारों को उस की बातें बहुत नागवार गुजरी।
अबू लहब झल्ला कर खड़ा हो गया और बिगड़ते हुए बोला, झूठा है तू , फ़रेबी है तू। तूने हम को धोखा दिया। खुद ही कहा कि मैं तेरे भतीजे (मुहम्मद सल्ल.) का इलाज कर दूंगा। खुद ही मुसलमान होकर दूसरों को भी इस्लाम की दावत देने लगा। अगर मुझे आम खूरेजी का खतरा न होता, तो तुझे अभी पकड़ कर हलाक कर देता।
जमाद (र.अ) बोले,
ऐ सरकश जिद्दी इंसान ! तुझे इस्लाम और मुसलमानों से दुश्मनी है। तू मुसलमान होने से इस वजह से डरता है कि इस से तेरे मंसब को धक्का लगेगा, खानदानी मंसब हाथों से निकल जाएगा। तू दुनिया का तालिब है, दुनिया का कुत्ता है, अभी वक्त है, सोच ले, मुसलमान हो जा, वरना पछताएगा, खुदा की कसम ! रोयेगा।
अबू लहब गुस्से से कांपने लगा। बोला, ठहर गुस्ताख ! अभी तेरा खात्मा करता हूँ।
अबू लहब आगे बढ़ा।
जमाद (र.अ) ने चिल्ला कर कहा, कदम आगे न बढ़ाना, मैं जमाद हूं, यमन का मशहूर जादुगर।
अबू लहब डर गया, रुक गया और खड़ा हो कर गालियां देने लगा। धीरे-धीरे लोग एक-एक कर के अपने घरों की ओर खिसकने लगे।
आखिर में हुजूर (ﷺ) और जमाद (र.अ) भी चले गये।
इसी साल यानी १० नबवी में हजरत आइशा रजि० की शादी हुजूर (ﷺ) से हुई।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
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