अल्लाह तआला ने हम को ज़बान जैसी नेअमत अता फरमायी। उस के जरिये जहाँ मुख्तलिफ चीजों का जायका मालूम होता है वहीं यह दिल की तर्जमानी का फरीज़ा भी अन्जाम देती है।
जब दिल में कोई बात आती है, तो दिमाग उस पर गौर व फिक्र कर के अलफाज व कलिमात जमा करता है। फिर वह अलफाज़ व कलिमात खुदकार मशीन की तरह जबान से निकलने लगते हैं, गोया के सूनने वाले को इस का एहसास भी नहीं होता, अल्लाह तआला ने अपनी कुदरत से इन्सान के दिल व दिमाग़ और ज़बान में कैसी सलाहिय्यत पैदा की, बेशक यह अल्लाह ही की कारीगरी है।