Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- हज़रत ईसा (अ.स) के हालात
- 2. अल्लाह की कुदरत
- छूई मूई का पौधा (शर्मीली)
- 3. एक फर्ज के बारे में
- क़ज़ा नमाज़ों की अदाएगी
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- घर के काम में हाथ बटाना
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- अपनी गलती पर शर्मिन्दा होने की फ़ज़ीलत
- 6. एक गुनाह के बारे में
- लानत वाले गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- दुनिया के लालची के लिये हलाकत
- 8. आख़िरत के बारे में
- इन्सान जिन्नात पर काफिरों का गुस्सा
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- अंजीर से बवासीर और जोड़ों के दर्द का इलाज
- 10. क़ुरान की नसीहत
- अगर किसी बात पर तुम में इख़्तेलाफ़ हो जाए
5 Rabi-ul-Awal | Sirf Panch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
हज़रत ईसा (अ.स) के हालात
अगरचे हज़रत ईसा (अ.स) की गवाही से बनी इस्राईल के सामने हज़रत मरयम की पाक दामनी ज़ाहिर हो गई और उनकी बदगुमानी दूर हो गई और हज़रत ईसा (अ.स) की तरबियत व परवरिश माँ की शफकत में होती रही मगर फिर भी क़ौम के शरीर लोगों की तरफ से उन की पैदाइश पर बदगमानी और हज़रत ज़करिया (अ.स) की मज़लूमाना शहादत को हज़रत मरयम देख चुकी थीं। इसलिये वह क़ौम और “हेरूद” बादशाह के डर से अपने बेटे हज़रत ईसा (अ.स) को लेकर अपने रिश्तेदारों के यहाँ मिस्र चली गईं, और बारह साल वहाँ रहने के बाद फिर उन को ले कर बैतुलमक्दिस वापस आ गई।
इस तरह जब हज़रत ईसा (अ.स) की उम्र ३० साल हो गई, तो अल्लाह तआला ने क़ौम की हिदायत व
इस्लाह के लिये नुबुव्वत अता फ़र्मा कर आसमानी किताब “इनजील” नाज़िल फ़रमाई। उन्होंने कुफ्र व शिर्क के ख़िलाफ़ अपनी दावत व तौहीद का आग़ाज़ किया।
हज़रत ईसा (अ.स) की शक्ल व सूरत के बारे में रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इर्शाद फरमाया –
“मेराज के मौके पर मेरी मुलाक़ात दूसरे आसमान पर हज़रत ईसा (अ.स) से हुई, तो मैं ने उन को दर्मियानी क़द, सुर्ख रंग, साफ शफ्फाफ बदन और काँधे तक लटकी हुई जुल्फों की हालत में देखा।”
2. अल्लाह की कुदरत
छूई मूई का पौधा (शर्मीली)
अल्लाह तआला ने छूईमूई के इस छोटे से पौधे के अन्दर एहसास व शुऊर का माद्दा रखा है, अगर कोई आदमी इसे छूता है तो उस की पत्तियाँ सुकड़ जाती हैं, फिर थोड़ी देर बाद वह पत्तियाँ फिर से फैल कर तन जाती हैं।
आख़िर छूई मूई के इस पौदे में शर्म व हया का माद्दा किस ने पैदा किया है? यह ! अल्लाह ही की कुदरत है जिसने इस पौधे के अन्दर एहसास व शुऊर का माद्दा पैदा किया है।
3. एक फर्ज के बारे में
क़ज़ा नमाज़ों की अदाएगी
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जो कोई नमाज़ पढ़ना भूल गया या नमाज़ के वक्त सोता रह गया, तो (उस का कफ्फारा यह है के) जब याद आए उसी वक़्त पढ़ ले”
📕 तिर्मिज़ी: १७७. अन अबी कतादा (र.अ)
फायदा: अगर किसी शख्स की नमाज़ किसी उज्र की वजह से छूट जाए या सोने की हालत में नमाज़ का वक्त गुजर जाए, तो बाद में उसकी क़ज़ा पढ़ना फर्ज है।
4. एक सुन्नत के बारे में
घर के काम में हाथ बटाना
हज़रत आयशा (र.अ) से पूछा गया के घर में हुज़ूर क्या काम करते थे ?
हज़रत आयशा (र.अ) ने फ़रमाया –
“आप घर के काम में हाथ बटा दिया करते और जब नमाज़ का वक़्त हो जाता,
तो नमाज़ के लिए चले जाते।
📕 बुखारी : ६७६
5. एक अहेम अमल की फजीलत
अपनी गलती पर शर्मिन्दा होने की फ़ज़ीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“जिस शख़्स ने कोई गलती की या कोई गुनाह किया फिर उस पर (शर्मिन्दा) हुआ, तो यह शर्मिन्दगी उसके गुनाह का कफ्फारा है।”
📕 बैहकी की शोअबील ईमान : ६७०४
6. एक गुनाह के बारे में
लानत वाले गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने गोदने वाली और गुदवाने वाली औरत पर और सूद खाने वाले और सूद खिलाने वाले पर लानत फ़रमाई है और कुत्ते के खरीदने, बेचने और ज़िना की कमाई से मना फ़रमाया है और तस्वीर बनाने वालों पर लानत फ़रमाई है।
📕 बुखारी: ५३४७, अन अबी जुहफ़ा (र.अ)
नोट: बदन पर हमेशा रहने वाली पेंटिंग को गुदवाना (tattooing) कहते हैं।
7. दुनिया के बारे में
दुनिया के लालची के लिये हलाकत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“हलाक हो गया दिरहम व दीनार और सियाह और धारी दार (कीमती) कपड़े का (लालची) बन्दा
के अगर उस को मिल जाए तो राज़ी होता है और अगर न मिले तो राज़ी नहीं होता।”
📕 बुखारी:२८८६, अन अबी हुरैरह (र.अ)
8. आख़िरत के बारे में
इन्सान जिन्नात पर काफिरों का गुस्सा
क़ुरआन में अल्लाह तआला ने इर्शाद फ़रमाया है:
“(अज़ाब में गिरफ़्तार हो कर) काफिर लोग कहेंगे, ऐ हमारे परवरदिगार! हमें इन्सान व जिन्नात में से वह लोग दिखा दीजिये जिन्होंने हम को गुमराह किया था के हम उन को अपने पैरों तले रौंद डालें ताके वह खूब ज़लील हों।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
अंजीर से बवासीर और जोड़ों के दर्द का इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इर्शाद फ़रमाया :
“अंजीर खाओ, क्योंकि यह बवासीर को खत्म करता है और जोड़ों के दर्द में मुफीद है।”
📕 कंजुल उम्माल: २८२७६, अन अबी ज़र (र.अ)
10. क़ुरान की नसीहत
अगर किसी बात पर तुम में इख़्तेलाफ़ हो जाए
कुरआन में अल्लाह तआला फर्रमाता है :
“नेकी और परहेज़गारी के कामों में एक दूसरे की मदद किया करो, गुनाह और ज़ुल्म व ज़्यादती में किसी की मदद न करो और अल्लाह से डरते रहो, बेशक अल्लाह तआला का अज़ाब बहुत सख़्त है।”
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