22. रबी उल आखिर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

22. रबी उल आखिर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

22 Rabi-ul-Akhir | Sirf Panch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

दूसरी बैते अक़बा

मदीना मुनव्वरा में हजरत मुसअब बिन उमैर (र.अ) की दावत और मुसलमानों की कोशिश से हर घर में इस्लाम और पैगम्बरे इस्लाम का तजकेरा होने लगा था, लोग इस्लाम की खूबियों को देख कर ईमान में दाखिल होने लगे थे। सन १३ नबवी में मुसअब बिन उमैर (र.अ) ७० से ज़ियादा मुसलमानों पर मुश्तमिल एक जमात ले कर हज करने की गर्ज से मक्का आए, उस काफले में मुसलमानों के साथ क़बील-ए-औस व खज़रज के मुश्किीन भी थे। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अपने चचा हजरत अब्बास (र.अ) के साथ अक़बा नामी घाटी में आकर रात के वक़्त मुसलमानों से मुलाकात फर्माई।

हज़रत अब्बास (र.अ) ने मुसलमानों की जमात से कहा: मुहम्मद (ﷺ) अपनी कौम में निहायत बाइज्जत हैं और हम उन की हिफाजत का ख़याल करते हैं। वह तुम्हारे यहाँ आना चाहते हैं। अगर तुम पूरी तरह हिफाज़त करने का वादा करो तो बेहतर है। वरना साफ जवाब दे दो।

अन्सार ने कहा : हम ने आप की बात सुन ली। अब हुजूर (ﷺ) भी कुछ फरमाए, आप (ﷺ) ने कुरआन की तिलावत फ़र्मा कर उन्हें इस्लाम लाने का शौक दिलाया फिर फ़र्माया : हम चाहते है के तुम लोग हमारे साथियों को ठिकाना दे कर उन की हिफाज़त करो और रंज व ग़म, राहत व आराम और तंगदस्ती व मालदारी हर हाल में मेरी पैरवी करो, इस नसीहत को सुन कर अंसार ने बख़ुशी मंज़ूर करते हुए आप (ﷺ) के हाथ पर बैत की, फिर इस्लाम की दावत व तब्लीग़ के लिये उन में से बारा अफराद को जिम्मेदार बनाया।

To be continued …

📕 इस्लामी तारीख


2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा

हज़रत जाबिर (र.अ) के बाग़ की खजूरो में बरकत

हजरत जाबिर (र.अ) फरमाते हैं के मेरे वालिद जंगे उहुद में शहीद हो गए, लेकिन अपने पीछे इतना कर्जा छोड़ गए के मेरे बाग़ की खजूरों से वह कर्जा अदा होना मुश्किल था और इधर खजूर काटने का वक्त आ पहुँचा तो मैं आप (ﷺ) के पास आया और सारी हालत आप (ﷺ) के सामने रखी, तो आपने फर्माया : अच्छा जाओ और खजूर काट कर अलग अलग ढेर कर लो, मैं गया और ऐसा ही किया, फिर हजूर (ﷺ) आए और सब से बड़े ढेर का तीन बार चक्कर लगाया और फिर उस के पास बैठ गए और फर्माया : अपने कर्ज ख्वाहों को देना शुरू करो !

मैं ने उस में से तौल कर देना शुरू किया, अल्लाह तआला ने मेरे वालिद का कुल क़र्जा अदा करा दिया लेकिन जितने ढेर थे सब बच गए और जिस पर हुजूर तशरीफ फ़र्मा थे कसम बखुदा! वह ऐसा ही रहा एक खजूर भी उसकी कम न हुई।

📕 बुखारी : २७८१, अन जाबिर बिन अब्दुल्लाह (र.अ)


3. एक फर्ज के बारे में

दीन-ऐ-इस्लाम में नमाज़ की अहमियत

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“दीन बगैर नमाज़ के नहीं है, नमाज़ दीन के लिये ऐसी है जैसा आदमी के बदन के लिये सर होता है।”

📕 तबरानी औसत: २३८३


4. एक सुन्नत के बारे में

जन्नत हासिल करने के लिये दुआ करना

जन्नत हासिल करने के लिये इस दुआ को कसरत से माँगे:

तर्जमा: (ऐ मेरे रब!) मुझ को जन्नत की नेअमतों का वारिस बना दे।

📕 सूरह शोअरा: ८५


5. एक अहेम अमल की फजीलत

हलाल कमाई से मस्जिद बनाना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:

“जिस ने हलाल कमाई से अल्लाह की इबादत के लिये घर बनाया, तो अल्लाह तआला उस के लिये जन्नत में कीमती मोती और याकूत का शानदार घर बनाएगा।”

📕 मोअजमुल औसत : ५२१६, अन अबी हुरैरह (र.अ)


6. एक गुनाह के बारे में

अच्छे और बुरे बराबर नहीं हो सकते

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:

“क्या वह लोग जो बुरे काम करते हैं, यह समझते हैं के हम उन्हें और उन लोगों को बराबर कर देंगे जो ईमान लाते हैं और नेक अमल करते हैं के उन का मरना और जीना बराबर हो जाए, उनका यह फैसला बहुत ही बुरा है।”

📕 सूरह जासिया : २१


7. दुनिया के बारे में

दुनिया आरजी और आखिरत मुस्तकिल है

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:

“दुनिया की ज़िन्दगी महज चंद रोज़ा है और अस्ल ठहरने की जगह तो आखिरत ही है।”

📕 सूरह मोमिन; ३९


8. आख़िरत के बारे में

हमेशा की जन्नत व जहन्नम

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :

“अल्लाह तआला जन्नतियों को जन्नत में दाखिल कर देगा और जहन्नमियों को जहन्नम में दाखिल कर देगा, फिर उन के दर्मियान एक एलान करने वाला कहेगा के ऐ जन्नतियों! अब मौत नहीं आएगी, ऐ जहन्नमियों! अब मौत नहीं आएगी (तुम में का जो जहाँ है हमेशा उस में रहेगा)”

📕 मुस्लिम: ७१८३, अन इब्ने उमर (र.अ)


9. तिब्बे नबवी से इलाज

खजूर से इलाज

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़ारमाया :

“जचगी की हालत में तुम अपनी औरतों को तर खजूर खिलाओ और अगर वह न मिलें तो सूखी खजूर खिलाओ।”

📕 मुस्नदे अबी याला; ४३४

खुलासा : बच्चे की पैदाइश के बाद खजूर खाने से औरत के जिस्म का फासिद खून निकल जाता है। और बदन की कमजोरी खत्म हो जाती है।


10. नबी की नसीहत

दीनदार औरत से निकाह करो

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:

“औरत से चार चीजों की वजह से निकाह किया जाता है। उसके माल, हसब नसब, खूबसूरती और दीनदारी की वजह से। तुम्हारा भला हो! तुम दीनदार औरत को पसन्द कर के कामयाब हो जाओ।”

📕 बुखारी : ५०९०, अन अबी हुरैरह (र.अ)

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