Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 32
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एक और लड़ाई – मुसलमान औरत को छेड़ने का अंजाम
एक दिन बनी कैनुकाअ की बस्ती में बाजार लगा हुआ था, दूकानें सज रही थीं, खरीद-फरोख्त का बाजार गर्म था। मर्द, औरते, बच्चे बाजार की सैर करते फिर रहे थे। उस वक्त तक परदे का हुक्म नहीं आया था, इस लिए औरतें बाजारों में बे-नकाब घुमा-फिरा करती थीं।
एक अंसार की नव जवान औरत दूध बेचने के लिए गयी। दूध बेच कर के वह एक यहूदी सुनार की दुकान पर कुछ खरीदने के लिए खड़ी हो गयी। औरत खूबसूरत थी। यहूदी ने उसे ललचायी नजरों से देखा।
नवजवान औरत ने एक चीज पसन्द कर के उस की कीमत पूछी।
ऐ खूबसूरत चांद ! अगर यह चीज तुम को पसन्द है, तो तुम्हारी नज्र है मेरी तरफ से तोहफ़ा कुबूल करो, यहूदी सुनार ने कहा।
औरत को उस की बात बहुत बुरी लगी।
उसने कहा, तोहफ़ा अजीजो या दोस्तों को दिया जाता है, मैं तुम्हारी न अजीज हूं न दोस्त।
सुनार ने बात काटते हुए कहा, ऐ हसीना ! तुमने मेरे जज्बात में हलचल मचा डाली है। तुम ने मेरे दिल को जख्मी कर दिया है। पस मेरी तरफ़ तवज्जोह करो, मैं तुम पर निसार होना चाहता हूं।
औरत ने उसे कोई जवाब न दिया। वह आगे बढ़ने लगी।
यहूदी ने लपक कर उस का आंचल पकड़ लिया, ऐ हुस्न व खूबसूरती की तस्वीर ! मेरा दिल चुरा कर, मेरे सीने पर खंजर चला कर तुम कहाँ जा रही हो?
देखो, मेरा आँचल छोड़ दो, नवजवान हसीना ने बिगड़ कर कहा।
छोड़ दूंगा, अगर मुझे मेरा दिल वापस कर दो, यहुदी ने कहा।
उसी वक्त एक गरजती हुई आवाज आयी, ऐ बद-बस्त शख्स ! हट जा।
यहूदी ने पलट कर देखा, एक अंसार तैश व गजब में भरे हुए नजर आए। उन्होंने कहा, औरतों को छेड़ना शराफ़त के खिलाफ है। यह कमीने लोगों का काम है।
इस हसीना ने मेरी चीजें चुरा ली हैं। मैं इसे नहीं छोड़ सकता, यहूदी ने कहा।
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यह झूठ बोलता है, औरत ने कहाँ।
इस बीच बहुत से यहूदी जमा हो गये।
बताओ, इस ने क्या चीजें चुरायी हैं? अंसार ने कहा।
इतने में एक यहूदी ने अंसार पर हमला कर दिया और बोला “तुम्हारी यह जुर्रात कि तुम हमारे मुहल्ले में, हमारी बस्ती में और हमारे बाजार में आ कर हमारी कौम के लोगों को धमका रहे हो?”
अंसारी ने भी जल्दी से तलवार खींच ली, लेकिन इस से पहले कि वह तलवार बुलंद करते, यहूदी की तलवार उन के सिर पर पड़ी। सिर से खून बहने लगा।
जिस तरह जख्मी शेर गजबनाक हो जाता है, वैसे ही अंसारी भी घायल हो कर ग़ज़बनाक हो गये। उन्हों ने जल्दी से हमला किया। यहूदी जहन्नम रसीद हो गया।
यहूदी के कत्ल होते ही यहूदी बौखला गये। बहुतों की तलवारें निकल आयीं और एक साथ सब ने उन अंसारी पर हमला कर दिया।
अंसारी सहाबी जख्मी हो कर गिरे और शहीद हो गये।
नवजवान हसीना बड़ी जोर से चिल्लायी, मुसलमानो ! आज तुम्हारी इज्जत खतरे में पड़ गयी है। यहूदी दौलत और ताकत के घमंड में तुम्हारी औरतों की आबरू लूट लेना चाहते हैं। क्या तुम इसे गवारा कर लोगे?
औरत के चिल्लाते ही कुछ मुसलमान वहां जमा हो गये। उन्हें पूरा वाकिया देख कर गुस्सा आ गया। अगरचे वे थोडे थे, बहुत ही थोड़े, आटे में नमक के बराबर, उनके पास हथियार भी बहुत थोड़े थे, सिर्फ एक-एक तलवार, एक-एक ढाल, लेकिन वे इतने जोश में थे कि उन्हों ने इस की परवाह न की, तलवारें निकाल ली और एक जगह जमा हो कर बोले –
बदबख्त यहूदियो ! आज तुम ने एक मुसलमान औरत को छेड़ कर और एक मुसलमान को शहीद कर के इस्लाम के शेरों को जगा दिया है और अपनी हलाकत व बर्बादी को दावत दी है, जो गुबार, कीना और हसद तूम्हारे दिलों में भरा हुआ है, तुम ने उसे निकालने का इरादा किया है।
तूम ने एलाने जंग कर दिया है। हम तुम्हारे एलान को कबूल करते हैं। आओ मुकाबले में, बुलाओ अपनी फौज को।
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यहुदी भी जैसे लड़ने-मरने को तैयार थे, उन्होंने अपनी फ़ौज बुला ली। यहुदी फ़ौज में सात सौ जवान थे और मुसलमान कुल पन्द्रह-बीस थे। लड़ाई शुरू हो गयी।
यहुदियों को अपनी ताक़त पर घमंड था। मुसलमानों को कम और बे-हथियार देख कर उन की जुर्रात, बढ़ी हुई थी, लेकिन मुसलमान जिस जोश व गजब में भरे हुए लड़ रहे थे, वह देखने का मंजर था। वे जिस जिरहपोश पर हमला करते, खूद से नीचे गरदन पर तलवार मारते, सिर कट कर दूर जा गिरता, हर जिरहपोश के मरने पर अल्लाहु अकबर का जोरदार नारा लगाते।
यहुदी और गुस्से में आ कर हमला करते। हर हमले पर उन्हें यकीन रहता कि वे इस बार जरूर किसी न किसी मुसलमान को शहीद करेंगे, लेकिन वार खाली जाता, तो वे और भड़कते और ग़जबनाक हो कर हमला करते।
मुसलमान पूरे सब्र और बहादुरी से लड़ रहे थे और यहूदियों को नुक्सान पहुंचा रहे थे।
आखिरकार इस लड़ाई की खबर मदीना पहुंची।
मुसलमानों को यहूदियों की इस हरकत पर ताज्जुब भी हुआ और अफ़सोस भी।
मुसलमान अपने भाइयों की मदद के लिए दौड़ पड़े।
वे कुल तीन सौ थे, हुजूर (ﷺ) भी साथ में थे, हजरत अबू बक्र रजि० झंडा लिए हुए थे। झंडा हवा में लहरा रहा था। बनी केनुकाम की यहुदी आबादी में लड़ाई अब भी चल रही थी। ये मुट्ठी भर मुसलमान उस भारी फ़ौज का मुकाबला करते-करते थकान महसूस करने लगे थे। यहुदियों ने इस कमजोरी को महसूस कर लिया था। उन्हों ने अपनी फ़ौज को जोश दिला कर एक जोरदार हमला करने पर उभारा।
मुसलमानों ने इस हमले को रोकने की कोशिश तो की, लेकिन वे रोक न सके। यहूदियों की तलवारों को अब मौका मिल गया और उन्हें जख्मी करना शुरू कर दिया। मुसलमानों के लिए लड़ाई हार में बदलने लगी,
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हर मुसलमान दस-दस, बीस-बीस यहूदियों के घेरे में आ गया, एक दूसरे से कट गये, फिर भी अभी डटे हुए थे और मुकाबला कर रहे थे, लेकिन कब तक?
यहूदियों ने यकीन कर लिया था कि अब वे बहुत जल्द लड़ रहे मुसलमानों को काबू में कर लेंगे। उन्हों ने हर तरफ़ से सिमट कर हमला किया, हर मुसलमान को यकीन हो गया कि अब वह शहीद ही होना चाहता है।
नवजवान हसीना मैदान में मौजूद थी।
वह जानती थी कि यह लड़ाई सिर्फ उसी की वजह से हो रही है। वह देख रही थी कि मुसलमान मौत के किनारे पहुंच रहे हैं। वह बेचन हो उठी , उसने खुलूसे दिल से दुआ मांगी –
ऐ रब ! मुसलमानों की मदद कर, कमजोर मुसलमानो को जालिम यहूदियों से बचा। ऐ अल्लाह ! इस्लाम का नाम बुलंद करने वालों की मदद कर।
अभी वह दुआ कर ही रही थी कि अल्लाहु अकबर के नारे से पूरी फ़िजा गूंज गयी।
मुसलमानों और यहूदियों ने पलट-पलट कर और उचक-उचक कर देखा। उन्होंने देखा कि मुसलमानों का नया लश्कर बड़ी तेजी से बढ़ा चला आ रहा है।
लड़ रहे मुसलमानों में नयी ताकत भर आयी। वे संभले, जोरदार हमला किया।
पीछे हट कर आने वाले मुसलमानों का मुकाबला करने के लिए दूर तक फैल गये। यह आने वाला लश्कर हुजूर (ﷺ) की क़ियादत में आ रहा था।
इस आने वाले लश्कर ने अल्लाहु अकबर का जोरदार नारा लगाया और हल्ला बोल दिया।
यह बड़ा जोरदार हमला था। अगरचे यहूदियों ने उनके हमले को रोकने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन वे मुसलमानों के हमले को न रोक सके, बहुत कुछ पीछे हटते चले गये।
मुसलमान उन्हें दबाते मारते-काटते उन के पीछे लगे चले गये।
जो मुसलमान पहले से लड़ रहे थे, उन्हों ने भी संभल कर जोरदार हमला किया कि वे भी दर्मियानी यहूदियों को काटते-छांटते आने वाले मुसलमानों से जा मिले।
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अब मुसलमान ग़ालिब हो रहे थे। यहूदी पीछे हटने लगे। जब मुसलमानों ने उन्हें और दबाया और उनके बहुत से आदमी मौत के घाट उतर गये तो वे पीठ पीछे भागे और निहायत बे-तरतीबी से भागे । मुसलमान उन का पीछा करते हुए दौड़े।
सामने ही बनी कैनुकाअ का किला था। तमाम यहदी सिमट कर किले के अन्दर दाखिल हो गये।
पहरे वालों ने फाटक बन्द कर लिया। मुसलमानों ने यहूदियों के साथ ही किले में दाखिल होने की कोशिश की, मगर वे कामियाब न हो सके।
यहूदी किले में घिर गये। मुसलमानों ने हर तरफ़ से किला घेर लिया।
यह घिराव पन्द्रह दिन तक चलता रहा। मुसलमानों ने इतनी सख्ती से निगरानी की कि किले के अन्दर चिड़िया पर तक न मार सके।
चूंकि यहूदियों को इतने लम्बे घिराव की उम्मीद न थी, इसलिए उन्हों ने रसद का सामान मुहैया न किया था। नतीजा यह हुआ कि रसद खत्म हो गयी और यहूदी फ़ाकों से मरने लगे। सोलहवें दिन उन्हों ने खुद ही फाटक खोल दिया और बगैर किसी शर्त के किला मुसलमानों के हवाले कर दिया।
मूसलमान किले में जीतने वाले की हैसियत से दाखिल हुए।
हुजूर (ﷺ) ने हुक्म दे दिया कि कोई यहुदी हथियार न बांधे, जो हथियार बन्द यहूदी मिले उसे फ़ौरन क़त्ल कर दिया जाए। इसलिए यहूदी रास्तों में सिर झुकाए ही खड़े मिले।
आज यहुदियों का घमंड चूर हो गया था। उनका किला मुसलमानों के कब्जे में पहुंच चुका था। वे निहत्थे खड़े थे, डर रहे थे और कांप रहे थे। मौत उनकी आंखों के सामने नाच रही थी।
वे जानते थे कि कैदियों को क़त्ल कर दिया जाता है, अरबों का यही कानुन है। उन्हें डर ही नहीं बल्कि यक़ीन था कि वे सब के सब कत्ल कर दिये जाएंगे। मौत के डर से उन के चेहरे पीले और भयानक हो रहे थे।
हुजूर (ﷺ) ने यहदियों को गिरफ्तार करने का हुक्म दे दिया। मुसलमानों ने एक सिरे से यहूदियों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया।
कई घंटे गिरफ्तारी में लगे। जब तमाम यहुदी गिरफ्तार हो गये, तो हुजूर (ﷺ) उन्हें अपने साथ ले कर मदीने की तरफ़ चले।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा …
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