शराब की हुरमत का हुक्म

Sharab ki Hurmat ka Hukm

शराब की हुरमत का हुक्म

अल्लाह तआला ने मुसलमानों को इस्लामी माहौल में जिन्दगी गुजारने और अहकामे इलाही पर अमल करने के लिये मदीने का साजगार माहौल अता किया, ताके जमान-ए-जाहिलियत की तमाम रस्मों और बुरी आदतों को खत्म कर के इस्लामी मुआशरे का अमली नमूना दुनिया के सामने आ जाए, उन की सब से बुरी आदत शराब नोशी थी, उस की मुहब्बत अरबों की घुट्टी में पड़ी हुई थी,

चुनान्चे शराब और जूए के बारे में पहला हुक्म सन ३ हिजरी में नाजिल हुआ के उस में भलाई के मुकाबले में बुराई और गुनाह जियादा है, हत्ता के अकल व होश तक को खत्म कर देती है, चुनान्चे बाज लोगों ने उसे छोड़ दिया,

फिर दूसरा हुक्म नाजिल हुआ के शराब और नशे की हालत में नमाज के करीब मत जाओ, चुनान्चे सहाब-ए-किराम ने उसको तर्क कर दिया के जब नशे की हालत में नमाज नहीं पढ़ सकते तो उस से बचना चाहिये,

फिर शराब के मुतअल्लिक सूर-ए-माइदा की तीसरी आयत नाजिल हुई, उस में क़तई तौर पर शराब को हराम करार दे दिया गया,

सहाब-ए-किराम के ईमानी जजबे का हाल यह था के हुक्म मिलते ही शराब के बरतन और मटके तोड़ डाले यहाँ तक के मदीना की गलियों और सडकों पर शराब बहती नजर आ रही थी।

To be Continued…

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