आज हम मुसलमान ख़त्म ऐ नुबुव्वत का मतलब सिर्फ यह समझते हैं कि अब कोई नबी कभी नहीं आएगा…
बेशक यह अकीदा सही है लेकिन यह पूरा अकीदा नहीं है …..
पूरी बात यह है कि अब कोई नबी नहीं आएगा अब मुसलमानों को ही अल्लाह का पैगामे हक उन लोगों तक पहुँचाना है जिन तक नहीं पहुंचा .
और इसकी वजाहत भी अल्लाह रब्बुल इज्ज़त कुरान में बयांन कर चूका है
» अल-कुरान: (ऐ मुसलमानो!) तुम सबसे बेहतर उम्मत हो,
इंसानों के फायदे के लिए तुम्हे निकला (पैदा किया) गया है
(तुम बेहतर इसीलिए हो क्यूंकि) तुम नेक कामो के लिए हुक्म (दावत) देते हो
और बुरे कामो पर ऐतराज़ करते हो, और अल्लाह पर ईमान रखते हो ..
– [सुरह अल-इमरान (३) : आयत (११०)]
♥ अब हमे गौर करना चाहिए के –
• क्या वाकय में हमने बेहतर उम्मती होने का फ़र्ज़ अदा किया ?
• क्या वाकय में हमारे अमाल इंसानियत के भलाई वाले है ?
• क्या लोगों को अच्छाई की दावत और बुराई से रोकने का काम हम कर रहे है ?
• और क्या वाकय में हम अल्लाह पर इस तरहा ईमान लाये है जिस तरहा हुक्म है ?
गौर किया जाए तो यह बहुत बड़ी जीम्मेदारी है…..
इसे निभाने के लिए हमे अपने अन्दर नबियों वाली सिफात पैदा करनी होंगी…..
वो हमदर्दी, वो तड़प, वो फ़िक्र अपने अन्दर महसूस करनी होंगी जो अंबिया किया करते थे,
तभी हम इस जीम्मेदारी की तरफ अपना पहला कदम बढ़ा सकते हैं….
वरना अल्लाह को हमारी कोई ज़रुरत नहीं,
और जिस चीज़ की ज़रूरत नहीं होती उसको कबाड़ी के हवाले कर दिया जाता है…
और यह बताने की ज़रूरत नहीं कि फिर कबाड़ी उसके साथ क्या करता है.
» इल्ला माशा अल्लाह !!!
आज भी दुनिया में ऐसे लोग है – जो
इखलास के साथ लोगों को दीन की दावत देते है ,
# अल्लाह उनकी जेद्दो-जेहद को कुबूल फरमाए..
# अल्लाह तआला हम तमाम को इखलास के साथ
लोगों को दिन-ऐ-हक की दावत देने की तौफिक अता फरमाए …
# तमाम किस्म की गुमराही से हमारे ईमान की सलामती अता फरमाए..
# जब तक हमे जिन्दा रखे , इस्लाम और ईमान पर जिन्दा रखे….
# खात्मा हमारा ईमान पर हो …
!! वा आखिरू दावाना अन’इलहम्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन !!
Amr Bil Maroof Wa Nahi Anil Munkar, Bhalayi, Neki, Dawat
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