इस्लाम की सबसे पहली जो आस्था है तौहिद इसको हम आपके सामने रखते है जो मानवता को बताने के लिए इश्वर (अल्लाह) ने हर समय, हर समुदाय, हर जाती के अंदर प्रेषित (नबी, इश्दुत) भेजे ताकि मानवों को बता दे और उनका रिश्ता श्रुष्टि के रचियेता एक इश्वर से जोड़ दे।
*तो तौहिद का अर्थ होता है के – “अल्लाह को एक सत्य इश्वर माने , उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करे और उसी की आराधना, उपासना और पूजा करे,.. क्युंकी वो निराकार एक सत्य इश्वर अल्लाह ही है जिसने सारे जगत का निर्माण किया, वही उसका रचियेता , मालिक और उसका रब है…”
– और क्यूंकि उसने इन सबकी रचना की तो ये जरुरी है हम पर के उसी इश्वर की आराधना उपासना और पूजा करे जिसने ये सब मानवों के लिए बनाया है।
*और इसी सन्देश को लेकर इशदूत आये और यही बात एक सत्य इश्वर अल्लाह की बड़े-बड़े ऋषियों ने मुनियों ने, ज्ञानियों ने और जो कोई धर्म का ज्ञान रखता है वो इसके बारे में आपको बताएँगे के इस आस्था की क्या अहमियत है और ऐसे कई प्रेषित आये जिन्होंने ये बाते लोगों को बताई !! और इश्वर के अंतिम प्रेषित मोहम्मद (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) इनकी पूरी ज़िन्दगी का सन्देश भी तौहीद (एकेश्वरवाद) ही था।
एक बार प्रेषित मोहम्मद (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) के पास कुछ लोग आये और कहा के –
“हे प्रेषित ! तुम जिस अल्लाह की तरफ लोगों को बुलाते हो; हमे थोडा बताओ तो सही वो कैसा है ?” तो प्रेषित मोहम्मद(स०) अपने दिल से कोई बात ना कहते उनपर एक इशवाणी(श्लोक/Verse) आई और वो यह थी जो के कुरआन का अध्याय ११२ और उसके श्लोक १ से ४ अवतरण हुए और उसमे कहा:
२. वो निरपेक्ष है (उसने पुरे विश्व का निर्माण किया लेकिन उसे किसी भी चीज़ की गरज नहीं है) ,
३. उसको कोइ संतान नहीं है और ना ही वो किसी की संतान है,
४. और उस सत्य इश्वर अल्लाह जैसा दूसरा कोई नहीं है।
*यानी इस्लाम की पहली आस्था ये है के इश्वर को एक जानना और मानना, उसके साथ किसी को भी साझी नहीं ठहराना,..