Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 12
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हजरत उमर इस्लाम की पनाह में
हजरत उमर कुरैश की नस्ल से थे, जो आठवीं पीढ़ी में हुजूर सल्ल. से मिल जाता है। बड़े बहादुर और जोशीले थे। वह नवजवान थे, उन की उम्र २७ वर्ष की थी। गुस्सा भी उन्हें था। तमाम अरब में वह ‘अरब के शेर’ के नाम से मशहुर थे।
आप अच्छी तरह से लिखना-पढ़ना जानते थे। अरबी जुबान के माहिर थे। आप बहादुर भी थे और निडर भी। जब और जिस से उलझ जाते थे, वही दब जाए, तो जाए पर आप न दबते थे।
तमाम अरब जानता था कि उमर जब म्यान से तलवार निकाल लेते हैं, तो वह अपना काम कर के ही वापस म्यान में आती है। आपने तलवार म्यान से निकाल कर हुजूर सल्ल० को कत्ल करने का इरादा किया था, है इसलिए सब समझ रहे थे कि उमर की तलवार मुहम्मद (सल्ल.) का काम तमाम कर के ही म्यान में वापस जाएगी।
इस ख्याल से लोगों (कुफ़्फ़ारो) को बड़ी ख़ुशी हुई। कुछ ही लम्हे में मक्का में यह खबर बिजली की तरह फैल गयी कि उमर हुजूर (ﷺ) को कत्ल करने के लिए चल चुके हैं। उमर बड़ी शान से झूमते-झामते हाथ में नंगी तलवार लिए चले जा रहे थे।
जब वह बाजार के आखिरी सिरे पर पहुंचे, तो उन के सामने से हजरत साद बिन अबी वक्कास रजि० आते हुए मिले। हजरत साद मुसलमान हो चुके थे। उमर के हाथ में नंगी तलवार देख कर वह ठिठके। उमर को रोकते हुए कहा, खैर तो है ? हाथ में नंगी तलवार कहां लिए जा रहे हों ? . मुहम्मद को क़त्ल करने। उस ने कौम में बड़ा फ़ित्ना पैदा कर दिया है। आज उस का खात्मा कर के आऊंगा। उमर ने कहा।
हजरत साद रजि० यह सुन कर बड़े परेशान हुए, बोले, हुजूर सल्ल० को कत्ल कर के तुझे क्या मिलेगा?
उमर ने गुस्से में कहा, क्या तू भी मुसलमान हो गया है ?
हां, मैं भी मुसलमान हो गया हूं। साद ने कहा। फिर आगे फ़रमाया, पहले अपने घर की खबर लो, तो हुजूर (ﷺ) को बाद में कत्ल करना।
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उमर ने पूछा, घर की क्या खबर लू ?
तुम्हारी बहन फातमा बिन्ते खत्ताब और तुम्हारे बहनोई सईद बिन जैद भी मुसलमान हो चुके हैं।
यह सुन कर उमर का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने जोश भरी आवाज में कहा, अगर यह बात है, तो पहले इन दोनों का खात्मा कर आऊं।
इतना कह कर वह अपने बहनोई के मकान की तरफ पलटे।
हजरत साद रजि० भी यही चाहते थे कि किसी न किसी तरह उन्हें इतना मौका मिल जाये कि वह हुजूर (ﷺ) को इस की इत्तिला करा दें। उमर के पलटते ही वह पलटे और जल्दी से कदम उठा कर वह अरकम के मकान की तरफ चल पड़े। उस वक्त हुजूर (ﷺ) वह नहीं थे।
उमर जोश में भरे हुए हजरत सईद रजि० के मकान पर पहुंचे। दरवाजा बन्द था और किसी के पढ़ने की आवाज आ रही थी। आप दरवाजे से लग कर खड़े हो गये और कान लगाकर सुनने लगे। धीमी आवाज की वजह से पूरा न सुन सके, लेकिन इतना अन्दाजा हो गया कि शायद कोई कुरआन मजीद पढ़ रहा है।
उमर का गुस्सा बढ़ गया, दरवाजा जोर से खटखटाया। दरवाजा खुला और भापकी बहन फातमा बिन्ते खत्ताब दरवाजे पर खड़ी नजर आयीं।
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भाई जान ! आप हैं ? आ जाइए। हजरत फातमा बिन्ते खत्ताब ने कहा।
उमर गुस्से में भरे हुए मकान के अन्दर दाखिल हुए। सामने ही एक चटाई पर आप के बहनोई हजरत सईद रजि०बैठे थे। वह उमर का गुस्से से भरा चेहरा देख कर सहम गये। डरते-डरते अदब के तौर पर खड़े हो गये। उमर ने बढ़कर तलवार चटाई पर रख दी और हजरत सईद रजि० से पूछा बताओ तुम क्या पढ़ रहे थे ?
उमर इस तरह खड़े थे, गोया हजरत सईद रजि० पर झपेटने वाले हैं।
उन की बहन फातमा बिन्ते खत्ताब यह देख कर समझ गयीं कि उमर को उन के मुसलमान होने का इल्म हो चुका है। चूंकि उमर बड़े जोशीले हैं, जरूर सईद रजि० को मारे-पीटेंगे, साथ ही उन को यह भी मालूम था कि हजरत लुबनिया, उन की बांदी मुसलमान हो गयी हैं और वह उन्हें इस कदर मारते हैं कि मारते-मारते थक जाते हैं, इस लिए वह डर गयीं और उन्होंने फ़रमाया: भाई जान ! तशरीफ़ रखिये । हम जो पढ़ रहे थे, आप को सुना देंगे।
उमर गुस्से में भरे हुए थे। उन्हों ने हजरत फातमा बिन्ते खत्ताब को झटका देकर अलग करा दिया और हजरत सईद रजि० का दामन पकड़ कर उन्हें झटक देते हुए कहा, ओ गुमराह ! तू क्या पढ़ रहा था ? हजरत सईद रजि० डरी हुई निगाहों से उन्हें देखने लगे। कुछ जवाब न दिया।
उमर को इतना गुस्सा आया कि उन्हों ने हजरत सईद रजि० को नीचे गिरा दिया। मारना शुरू किया, मारते जाते थे और कहते जाते थे कि कमबख्त! तुम. मुसलमान हो गये हो। अब मुसलमान होने का मजा चखो। इतना मारूंगा कि तुम मर जाओगे। हजरत सईद रजि० ने कोई जवाब न दिया। खामोश पड़े पिटते रहे।
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उमर ने कहा, जलील, कमीने, तुम ने इस्लाम कुबूल कर के हमारे खानदान को बट्टा लगा दिया है। बोल, क्या तू इस्लाम छोड़ेगा?
हजरत सईद ने कहा, नहीं, नहीं, मरते दम तक इस्लाम का दामन हाथ से न छोडूंगा।
यह जवाब सुन कर उमर पहले से भी ज्यादा गजबनाक हो कर बिफरे, आपे से बाहर हो गये। उन्हों ने और ज्यादा मारना शुरू कर दिया। अब हजरत फातमा बिन्ते खत्ताब से सब्र न हो सका।
उन्हों ने उमर का हाथ पकड़ते हुए कहा, भाईजान ! बस करो।
आखिर कब तक मारोगे?
उमर तो गुस्से में भरे ही थे। आप ने जोर से एक घूंसा मारा फातमा बिन्ते खत्ताब का सर दीवार से टकरा गया, फटा और खून बह कर चेहरे पर फैलने।
हजरत फातमा रजि० ने जोश में भर कर कहा, हाँ ऐ उमर ! हम मुसलमान हो चुके हैं, मुहम्मद सल्ल. के फरमाबरदार बन गये हैं, जो तुम से हो सके, करो।
उमर ने अपनी बेहन फातमा का खून में सना चेहरा देखा, तो आप का गुस्सा ठंडा पड़ गया। आप ने हजरत सईद रजि० को छोड़ दिया। उठे और बहन से बोले, मुझे वह कलाम लाकर दिखाओ या सुनाओ, जो तुम अभी-अभी पढ़ रहे थे। उमर ने यह बात संजीदगी से कही थी।
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हजरत फातमा ने चेहरे से ही भांप लिया था, इसलिए उन्होंने थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए कहा ऐ भाई ! हम कुरआन पढ़ रहे थे। कुरआन के बारे में अल्लाह ने फ़रमाया है कि इस को वही छू सकते हैं, जो पाक हैं। अगर आप नहा कर आए हैं, तो हम आप को पढ़ कर सुना सकते हैं, इस में शक नहीं कि यह खुदा का हुक्म है।
इस कहने का मक्सद यह था कि उमर नहा लें, ताकि उन्हें जो थोड़ा बहुत गुस्सा रह गया है, वह भी जाता रहे।
उमर को कुरआन मजीद सुनने का बहुत शौक़ था। उन्हों ने कहा, ‘अच्छा, मैं गुस्ल कर के आता हूं।’
यह कहते ही वह बाहर चले गये। एक अरब मकान के अन्दर छिपे हुए थे। यह खब्बाब बिन अरत्त रजि० थे। कुरआन मजीद की तालीम देने के लिए हजरत सईद रजि० के पास आते। उमर को देख कर छिप गये थे। उन्होंने हजरत फातमा बिन्ते खत्ताब रजि० को खिताब कर के कहा – फातमा! तुमने यह क्या ग़जब किया कि अपने भाई को कुरआनी आयतों के दिखाने का वायदा कर लिया।
हजरत फातमा ने कहा, इत्मीनान रखो खब्बाब ! मुझे यकीन है कि कलामे इलाही उमर के दिल पर असर किये बगैर न रहेगा।
खब्बाब ने कहा, खुदा ऐसा की करे।
अब हजरत सईद रजि० भी उठ कर खड़े हो गये थे। उन्हों ने कहा मेरा दिल गवाही देता है कि उमर मुसलमान हो जाएंगे।
हजरत खब्बाब रजि० ने कहा, खुदा करे, ऐसा ही हो। उमर के मुसलमान होने से इस्लाम और मुसलमानों को बड़ी ताकत मिलेगी।
हजरत फातमा रजि० के जख्म से खून अब तक जारी था।
हजरत.सईद ने कहा, तुम अपना सर और मुंह धो डालो। फातमा ने मुह-हाथ धोया, जख्म पर पट्टी बांधी। इस बीच उमर नहा-धोकर आ गये।
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उन्हों ने आते ही कहा, अब दिखाओ, तुम क्या पढ़ रहे थे ? उमर को आते हए देख कर खब्बाब फिर घर के अन्दर जा छिपे।
हजरत फातमा अन्दर से कुछ पन्ने लायीं। इन पर सूरः हदीद लिखी हुई थी।
उमर ने हजरत फातमा से वे पन्ने लेकर खुद ही पढ़ना शुरू कर दिया, लिखा था :
“जमीन व आसमान के रहने वाले खुदा की तस्बीह करते हैं और खुदा ही गालिब और हिक्मत वाला है। वह आसमानों और जमीन का बादशाह है। वही जिंदा करता है, मारता है और हर चीज़ पर कुदरत रखता है।”
उमर ने अभी इतना ही पढ़ा था कि बोल उठे, वाह! क्या मीठा कलाम है। ऐसा कलाम आज तक न मैं ने देखा, न सुना। इस का असर सीधे दिल पर होता है।
आप ने आगे पढ़ना शुरू किया। ज्यों-ज्यों आप पढ़ते जाते थे, दिल मुतास्सिर होता चला गया। जब आप ने यह आयत पढ़ी :
“खुदा और उस के रसूल पर ईमान ले आओ और खर्च करो उस चीज को, जिसे तुम्हें पहले लोगों का जानशीन कर के दिया गया है। पस जो लोग ईमान लाये, उनके लिए बड़ा सवाब है।”
इन आयतों का उमर पर बड़ा असर पड़ा और वह बे-अख्तियार पुकार उठे, यह कलाम बहत उम्दा है। मैं ईमानं लाया इस पर।
उमर की इस तब्दीली से हजरत सईद, फातमा दोनों बहुत खुश हुए। हजरत खब्बाब भी खुश हो कर बाहर निकल आए। उन्हों ने आते ही उन को सलाम किया।
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हजरत खब्बाब रजि० ने कहा, मैं आप के बहनोई और बहन को कुरआन मजीद की तालीम देने आया करता था। आप को देख कर छिप गया था। ऐ खत्ताब के बेटे ! मुबारक हो! मुहम्मद (ﷺ) की दुआ आप के हक में मकबूल हुई।
कैसी दुआ ! हजरत उमर ने पूछा।
हुजूर (ﷺ) ने कल दूवा फ़रमायी थी, इलाही! या उमर को मुसलमान कर दे या अबू जहल को। सो मालूम होता है कि तुम्हारे हक में दुआ मक्बूल हो गयी। हजरत उमर रजि० ने फ़रमाया, अब मुझे हुजूर (ﷺ) के पास ले चलो। मैं वहीं चल कर मुसलमान हूँगा।
चुनांचे हजरत सईद रजि० , हजरत फातमा बिन्ते खत्ताब रजि० , हजरत खब्बाब रजि० उन्हें साथ ले कर रवाना हुए।
हजरत उमर ने तलवार हाथ में ले ली। उधर हजरत साद बिन अबी वक्कास रजि० आप की खिदमत में हाजिर होकर हजरत उमर के आने की कैफियत बयान कर चुके थे। कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। लोगों ने दरवाजे से झांक कर देखा, हजरत उमर नंगी तलवार लिए खड़े नजर आए।
सहाबा रजि० ने हुजूर (ﷺ) से जिक्र किया। हुजूर (ﷺ) ने हुक्म दिया कि दरवाजा खोल दो।
हजरत अमीर हमजा रजि० भी मौजूद थे। उन्हों ने भी फ़रमाया, बेशक दरवाजा खोल दो। अगर उमर नेक इरादे से आया है, तो खैर, वरना इसी तलवार से उस का सर उड़ा दिया जाएगा। चुनांचे सहाबा किराम ने करीब जा कर दरवाजा खोला। हजरत उमर मकान के अन्दर दाखिल हुए। जब वह हुजर (ﷺ) के करीब पहुंचे तो आप उठ खड़े हुए। आप के साथ तमाम सहाबी भी उठ खड़े हुए।
जलाल भरी आवाज में हुजूर (ﷺ) ने पूछा, उमर ! किस इरादे से आए हो? इस रौबदार आवाज़ ने हजरत उमर को कपकपा दिया।
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उन्होंने कहा, ऐ खुदा के मोहतरम रसूल ! मैं मुसलमान होने आया हूं।
हुजूर सल्ल० ने खुशी में पूरी आवाज से अल्लाहु अक्बर का नारा बूलन्द किया। दारे अरक़म और मुहल्ले की तमाम पहाड़ियां गूंज उठीं।
हुजूर (ﷺ) उसी जगह बैठ गये। तमाम सहाबा रजि० आप के चारों ओर बैठ गये और हजरत उमर रजि० सामने बैठ गये। हुजूर (ﷺ) ने कलिमा पढ़ा कर हजरत उमर को मुसलमान किया। हजरत उमर ने इस्लाम कुबूल करने के बाद कहा, ऐ खुदा के हबीब ! मैं चाहता हूं कि आज खाना काबा मे चल कर नमाज अदा कीजिए।
हजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, अगर तुम्हारा यही इरादा है, तो चलो !
सब उठ खड़े हुए। दारे अरक्कम से बाहर आए और खाना काबा की तरफ रवाना हुए।
हजरत उमर सब से आगे नंगी तलवार लिए चल रहे थे। इधर (ﷺ) के सीधे हाथ पर हजरत अबू बक्र रजि० और उलटे हाथ पर हजरत हमज़ा रजि० और उन के बराबर हजरत अली रजि० चल रहे थे। बाकी सहाबा पीछे कुफ्फ़ारे मक्का ने जब इस शान से मुसलमानों को आते देखा, तो उन को बड़ी हैरत हुई।
रास्ते में अबू जल मिला, उसे देखते ही हजरत उमर रजि० ने कहा अबू जहल ! खुदा का शुक्र है कि मैं मुसलमान हो गया हूं। मुहम्मद सल्ल० को खुदा का रसूल मानता हूं। अबू जहल को कुछ कहने का हौसला न हुआ और मुसलमानों ने खाना काबा में नमाज पढ़ी, कुफ्फारे मक्का एक ओर खड़े रहे।
यह पहली नमाज़ थी, जो मुसलमानों ने एलानिया खाना काबा में पढ़ी। नमाज पढ़ कर लोग वापस आ गये। हजरत उमर की वजह से किसी काफ़िर को कुछ कहने की हिम्मत न हुई। यह वाकिआ जिलहिज्जा सन ०६ नबवी का है।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
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