Happy New Year in Islam?
नया साल खुशियां मनाने का नहीं,
पीछले गुजरे वक्त पर गौरो-फिक्र करने का वक्त है
अगर हम गौर करें तो हर नया साल हमारे लिए खुशियां नहीं बल्के कुछ पैगामात लेकर आता है हर गुज़रे हुए साल के साथ हम सबके बहुत ही अज़ीज़ इंसान किसी की माँ किसी का बाप किसी का भाई या किसी की बहन या कोई बहुत ही करीबी रिश्तेदार या दोस्त इस दुनिया से हमेशा के लिये रुख़सत हो जाते हैं और जाते जाते हमे ये पैगाम दे जाते है कि हम सबके पास वक़्त बहुत कम है.
नये साल की खुशियां मनाने की जगह हम अपने गुज़रे हुए सालों का मुहासबा करें “तुम में से हर कोई देख ले कि उसने कल (आखिरत) के लिए क्या भेजा है” क़ुरआन
और सोचे की क्या हमारे अमल ऐसे रहे हैं कि हम पुराने साल को भूल कर नये साल का जश्न मनाते फिरे अगर नहीं है तो फिर शैतान के बहलावे में आकर अपनी आखिरत न बर्बाद करें शैतान तो है ही इंसान का खुला दुश्मन ( कुरान) और शैतान तो चाहता ही है कि ईमान वालों मे फहाशी को आम कर दे ( क़ुरआन )
किसी मुसलमान के लिए हकीकी खुशी का दिन उस दिन होगा, जब वह जहन्नुम से बच जाए और जन्नत में दाखिल कर दिया जाए.
इसी लिए हमको चाहिए कि शैतान के मक्र व फरेब से होशियार रहें और खुदा की इताअत और फरमाबरदारी में अपनी पूरी जिंदगी गुज़ारने की कोशिशे करें. अल्लाह हम सबको अमल की तौफीक अता
फरमाए.
➖ रफीक शेख, सुरत
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