एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) किसी की नमाजे नजाजा पढ़ कर वापस आ रहे थे, रास्ते में एक आदमी एक औरत की तरफ से खाने की दावत देने आया, तो हजर (र.अ) ने दावत कुबूल फ़रमा ली और रसूलुल्लाह (ﷺ) अपने सहाबा के साथ उस औरत के घर तशरीफ ले गए।
जब खाना सामने रखा गया, तो सब से पहले हुजूर (ﷺ) ने लुकमा उठाया और फिर सहाबा ने खाना शुरू कर दिया, लेकिन वह लुकमा हजर (ﷺ) के गले से नीचे नहीं उतर रहा था, तो आप (ﷺ) ने फरमाया : मुझे लगता है के यह बकरी मालिक की इजाजत के बगैर जबह की गई है।
चुनान्चे खुद उस औरत ने बतलाया: या रसूलल्लाह (ﷺ) ! मैं ने एक आदमी को मक़ामे वकीअ भेजा था (जहाँ मंडी लगती थी) लेकिन बकरी नहीं मिली तो मैंने अपने पडोसी आदमी के पास भेजा, मगर वह आदमी घर पर न था तो फिर मैंने उसकी औरत के पास भेजा, तो उस ने वह बकरी (अपने शौहर की इजाजत के बगैर) दे दी, हजर (ﷺ) ने फरमाया: यह खाना कैदियों को खिला दो।