ग़ज़्व-ए-खन्दक में मारिकीन ने दस हजार का लश्कर ले कर मदीने का मुहासरा कर दोनों तरफ से तीर अन्दाज़ी और संगबारी का तबादला होते हुए दो हफ्ते गुजर गए, तो कुरैश ने तमाम फौज को जमा कर के हमला करने का मन्सूबा बनाया, इत्तेफाक से एक मकाम पर खन्दक़ की चौडाई कम थी, तो अरब का मशहूर बहादुर अम्र बिन अब्देवुद्ध और उसके साथियों ने घोड़ों को एड लगाकर खन्दक को पार कर लिया और मुसलमानों को तीन मर्तबा मुकाबले के लिये ललकारा, तो हजरत अली (र.अ) मुकाबले के लिये आगे बढ़े, थोड़ी देर दोनों ने अपने अपने जौहर दिखाए, बिलआखिर हजरत अली (र.अ) ने उस को निमटा दिया, यह मन्जर देख कर मुश्रिकीन पर रोब तारी हो गया और मुकाबले की ताबनला कर भाग गए, हमले का यह बड़ा सख्त दिन था, कुफ्फार व मुश्रिकीन की तरफ से नेजों और पत्थरोंकी बारिश हो रही थी।
चुनान्चे एक माह के तवील मुहासरे के बाद अल्लाह तआला की गैबी मदद आई और ऐसी ठंडी व तेज हवा चली के उन के खेमे उखड़ गए, लश्करों में अफरा तफरी मच गई मौसम की सख्ती, खाने पीने की किल्लत की वजह से वह मजबूर हो कर भाग गए।
To be Continued …