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- “मर्द औरतों पर क़व्वाम हैं इसलिए कि अल्लाह तआला नें उनमें से एक को दूसरे पर फज़ीलत दी और इसलिए कि मर्द अपना माल खर्च करते हैं ” [अल-क़ुरआन; 4:34]
- दहेज़ के नुकसानात :
- 1). ज़िना और बद्कारियां आम हो गईं –
- 2). हराम कमाई के लिये बाप मजबूर हो जाता है –
- 3). भाई का निकाह मुश्किल हो जाता है –
- 4). खुदकुशियां(Suicide) आम हो रही हैं–
- 5). बच्चियों को कोख में ही मार दिया जाता है (Abortion/Female Infanticide) –
- क्या ससुराल वाले तोहफे दे सकते हैं ?
- आज जरूरत है कि हमें उठ खड़ा होना है दहेज़ जैसी लानत के ख़िलाफ!
- और मैं उन तमाम वालिदैन से दरख्वास्त करना चाहता हूँ कि –
ये वो विषय है जिस पर अगर तफसील से लिखा जाए तो रुकना मुश्किल है। बहरहाल फिर भी हम इस पर दहेज़ के ताल्लुक से कुछ अहम बात करने की कोशिश करेंगे।
• सबसे पहली बात अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त नें क़ुरआन में फरमाया:
“मर्द औरतों पर क़व्वाम हैं इसलिए कि अल्लाह तआला नें उनमें से एक को दूसरे पर फज़ीलत दी और इसलिए कि मर्द अपना माल खर्च करते हैं ” [अल-क़ुरआन; 4:34]
*तो कमाने की जिम्मेदारी अल्लाह नें मर्द को दि है। लेकिन आज फिर भी देखा जाता है के बोहोत से मर्द अपनी मर्दानगी दांव पर लगाकर ससुराल वालों से दहेज की मांग करते हैं।
*ताज्जुब की बात है ऐसे लोगों को वो माँ-बाप अपनी बेटी कैसे दे देते हैं जो दहेज़ की मांग रखकर अपने भिखारी होने का ऐलान करते है ,..
– हो सकता है कि हमारी बात कड़वी लगे ,. लेकिन जब हम इसकी नुकासानात पर गौर करेंगे तो इंशा अल्लाह इस दहेज़ जैसी लानत से परहेज करेंगे ,..
दहेज़ के नुकसानात :
निकाह का सुन्नत तरीका ना अपनाने की वजह से आज समाज में निकाह बहुत मुश्किल हो गए हैं और इसके नुकसानात तो अनगिनत हैं, इतना मुमकिन नहीं कि तमाम का हम तज़किरा कर पाए्ं,. बस कुछ ही अहम नुक्सनात रखने की कोशिश करते है।
1). ज़िना और बद्कारियां आम हो गईं –
– गैरशरई रुसुमात की वजह से निकाह महंगे हो गए जिसकी वजह से गरीबों की बच्चियां घर बैठी हैं,.. सिर्फ इसलिए कि उनके माँ बाप के पास उतने पैसे नहीं कि वो रुसुमात करें और दहेज़ दें।
– नतीजतन अफेयर्स आम हो गए, ज़िना और बद्कारियां बिल्कुल आम हो गईं। जबकि शरीयत का हुक्म तो ये है कि “निकाह इतना आसान करो कि झीना(अनैतिक संभंध) मुश्किल हो जाए।”
– आज उम्मत की जितनी नौजवान बेटियां घर बैठी हैं, अफेयर्स कर रही हैं, वो कहीं ना कहीं इस दहेज़ के निज़ाम की शिकार हैं और इसमें वो लोग भी बराबरी के जिम्मेदार हैं जिन्होंने दहेज़ की लानत को शरीयते इस्लामिया का हिस्सा बना लिया, अल्लाह रहम करे।
2). हराम कमाई के लिये बाप मजबूर हो जाता है –
बाप अपनी बेटियों के निकाह के लिए ज़िंदगी भर मेहनत करता है, अपना ज़मीर दांव पर लगाकर अपने रब की नाफरमानी करता है। रिश्वतखोरी, हत्ता कि सूद पर कर्ज़ लेकर दहेज़ अदा करता है,. सिर्फ इसलिए क्योंकि उसे अपनी बेटी का निकाह करना है, अपने बेग़ैरत दामाद की झोली भरना है।
3). भाई का निकाह मुश्किल हो जाता है –
बेटी के निकाह की खातिर बाप अपनी सारी जमा-पूंजी लगा देता है। हत्ता कि कभी-कबार बेटे का निकाह करना मुश्किल हो जाता है और फिर मजबूरन वो बेटा अपने ससुराल वालों से दहेज़ तलब करता है।
4). खुदकुशियां(Suicide) आम हो रही हैं–
दहेज़ अदा ना करने की वजह से औरतो पर आए दिन ज़ुल्मो सितम की ख़बरें आम हो रहीं हैं, नतीजतन बात खुदकुशी (Suicide) तक भी जा रही है।
5). बच्चियों को कोख में ही मार दिया जाता है (Abortion/Female Infanticide) –
माँ की कोख में लड़का है या लड़की ये अक्सर लोग सोनोग्राफी के जरिये पता लगाकर उसे कोख में ही मार देते हैं, महज इसलिए कि बड़ी होने पर उसकी शादी और दहेज़ का खर्चा वो माँ-बाप नहीं बरदाश्त कर पाएंगे, लिहाजा दुनिया में आने से पहले ही उसका वजूद खत्म कर दो। (अल्लाह बचाए हमे इन खबाहत से)
जबकि हम भूल रहे हैं कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ऐसी बच्ची से रोज़े क़यामत सवाल करेगा कि – “बिअय्यी ज़म्बी क़ुतीलत” किस गुनाह पर मारी गई. – [अल-क़ुरआन 81:9]
यानी ऐसे माँ-बाप पर क़यामत के दींन अल्लाह तआला नज़र-ए-रहमत तो दूर उनसे बात करना भी पसंद नहीं करेगा।
# कितने अफसोस की बात है मेरे अज़ीज़ भाईयों! आखिर दहेज़ की ख्वाहिश करके क्या ऐलान करते हैं हम लोग कि– “मुझे अपने रब पर तवक्कुल नहीं, अपनी मर्दानगी पर यकीन नहीं कि मैं मेहनत करके अपनी बीवी बच्चों को खिला सकूँ! लिहाजा मुझे अपने ससुराल वालों से दहेज़ की शक्ल में भीख लेने की जरूरत पड़ी है।” (सुबहान अल्लाह !!!)
और वो वालिदैन क्या सोच कर दहेज़ देते हैं कि “मेरी बच्ची मुझपर बोझ है लिहाजा उसका घर बसाने के लिए मुझे रिश्वत देनी पड़ रही है..”
– अल्लाह रहम करे,.. किस दीन पर चल रहे हैं हम, क्यों हम शरीयत का पाक़ीज़ा हुक्म भूल गए कि इस्लाम में मेहर अदा करने का हुक्म है जो कि लड़की का हक़ है कि उसे मेहर मिले।
* * * * *
क्या ससुराल वाले तोहफे दे सकते हैं ?
अब सवाल ये आता है कि अगर ससुराल मालदार हो और वो अपने दामाद को कुछ तोहफा देना चाहते हो तो क्या लेना दुरुस्त है।
बहरहाल इसमें कोई हर्ज़ नहीं, लेकिन कोशिश करें कि ना ही ले, इसलिए कि ये दहेज़ का Alternate Solution बन जाएगा , एक कल्चर बन जाएगा और इतनी अक्ल तो हम सबमें है कि तोहफे मांग कर नहीं लिए जाते।
आज जरूरत है कि हमें उठ खड़ा होना है दहेज़ जैसी लानत के ख़िलाफ!
– इसलिए कि आज ये उम्मत में नासूर की तरह लग गई है। जिसकी वजह से निकाह मुश्किल हो गए और हमारे नौजवान बद्कारियों की तरफ रुजु कर गए,.. हत्ता कि माँ-बाप की इज़्जत भी दांव पर लगा ली।
*मेरे अज़ीज़ो! मकसद मेरा किसी की बुराई करना नहीं है। कोशिश है कि ये पोस्ट हमारे ग़ैरतमंद मर्दों के ज़मीर को झिंझोड़ दे और रब पर तवक्कुल मजबूत कर ले, निकाह को आसान करें।
फिर इंशा_अल्लाह ! अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ऐसे लोगों को रुसवा नहीं करेगा। जो ज़िन्दगी के तमाम मामलों में दीन-ओ-शरीयत की पाकीज़ा सुन्नतों को तरजीह देते हैं। आज अगर सिर्फ हमारे नौजवान मर्दों ने ठान ली कि कुछ भी हो जाए मैं दहेज़ नहीं लूंगा, तो इंशा_अल्लाह ! एक इन्कलाब आएगा।
और मैं उन तमाम वालिदैन से दरख्वास्त करना चाहता हूँ कि –
“वो अपनी बच्चियों को दीनी और दुनियावी तालीम से अरास्ता करें, उन्हें इतना दीनदार बनाए कि इंशा_अल्लाह ! मर्द हज़रात ज़्यादा से ज़्यादा मेहर अदा करके उनसे निकाह करना चाहें।
*तो बहरहाल हमे जरूरत है कि सुन्नत निकाह की एहमियत को समझें, इसे खूब आम करें और जितना हो सके दहेज़ जैसी लानत से अपने और अपने मुआशरे को बचाने की कोशिश करें।
» सुन्नत निकाह कैसा हो इसके ताल्लुक से तफ्सीली जाकारी के लिए ये बायान जरुर सूने
Sunnat Nikah – Shadi Ka Sunnat Tareeqa
♥ ईशाअलाह-उल-अज़ीज़ !!!
# अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे निकहो को आसान और सादगी से करने की तौफीक दे ,..
# हमे तमाम गैरशरायी रुसुमात से परहेज़ करने की तौफीक दे ,..
# जब तक हमे जिंदा रखे इस्लाम और ईमान पर जिन्दा रखे ,..
# खात्मा हमारा ईमान पर हो ,..
!!! वा’आखिरू दावा’ना अलाह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन !!!
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