छटी सदी हिजरी में अब्दुर्रहमान बिन जौज़ी (रह.) एक बहुत बड़े मुहद्दिस, मोअरिंख, मुसन्निफ और खतीब गुजरे हैं।
सन ५०८ हिजरी में बगदाद में पैदा हुए, बचपन में बाप का साया सर से उठ गया और जब पढ़ने के काबिल हुए. तो माँ ने मशहूर मुहदिस इब्ने नासिर (रह.) के हवाले कर दिया और आप ने बड़ी मेहनत और शौक के साथ अपना तालीमी सफ़र शुरु किया।
वह खुद फ़र्माते हैं के मैं छे साल की उम्र में मकतब में दाखिल हुआ, बड़ी उम्र के तलबा मेरे हम सबक थे।
मुझे याद नहीं के मैं कभी रास्ते में बच्चों के साथ खेला हूँ या ज़ोर से हंसा हूँ। आपको मुताले का बड़ा गहरा शौक था, वह खुद बयान करते हैं के जब कोई नई किताब पर मेरी नज़र पड़ जाती तो ऐसा मालूम होता के कोई खज़ाना हाथ आ गया।
ग़ज़व-ए-उहुद में सहाबा-ए-किराम की बेमिसाल क़ुरबानी गजवा-ए-उहुद में हुजूर (ﷺ) के सहाबा ने जिस वालिहाना मुहब्बत व फिदाकारी का मुजाहरा किया उस का तसव्वुर भी रहती दुनिया तक आलमे इस्लाम को रूहानी जज़्बे से माला माल करता रहेगा। जब मुश्रिकीन ने आप (ﷺ) का घेराव कर लिया तो फ़रमाया : मुझ पर कौन जान कुरबान करता है ? जियाद बिन सकन (र.अ) चदं अन्सारियों के साथ आगे बढ़े और यके बाद दीगरे सातों ने आप (ﷺ) की हिफाजत में अपने आप को कुर्बान कर दिया। अब्दुल्लाह बिन कमीआ ने जब तलवार का वार किया तो उम्मे अम्मारा हुजूर (ﷺ) के सामने आ गईं और उस के…
मुसलमानों पर कुफ्फार का जुल्म व सितम कुफ्फार व मुशरिकीन मुसलमानों पर बहुत ज्यादा जुल्म व सितम ढाते थे और दीने हक कबूल करने की वजह से उन के साथ इन्तेहाई बे रहमाना सुलूक करते थे। चुनान्चे उमय्या बिन खल्फ अपने गुलाम हज़रत बिलाल हबशी (र.अ) को तपती हुई रेत पर कभी पीठ के बल लिटा कर तो कभी पेट के बल लिटा कर भारी पत्थर रख देता और उन्हें मारते हुए इस्लाम छोड़ने को कहता, मगर इस हालत में भी हज़रत बिलाल (र.अ) "अहद अहद" कहते रहते यानी एक ही ख़ुदा(अल्लाह) को पुकारते। इसी तरह हज़रत अम्मार बिन यासिर (र.अ) और उनके वालिदैन जब मुसलमान हए…
हज़रत मुआज बिन जबल (र.अ) हज़रत मुआज़ बिन जबल (र.अ) ने जवानी में हज़रत मुस्अब बिन उमैर (र.अ) के हाथ पर इस्लाम कबूल किया, जब हुजूर (ﷺ) मदीना मुनव्वरा पहुंचे,तो हज़रत मुआज़ (र.अ) हुजूर (ﷺ) की खिदमत में हर वक़्त रहते, आप उन छे सहाबा में से थे, जिन लोगों ने हुजूर (ﷺ) के ज़माने में पूरा कुरआन जमा कर लिया था। उन की इल्मी सलाहियत की वजह से हुजूर (ﷺ) ने फतहे मक्का के बाद मक्का में दीन सिखाने के लिए उन को मुअल्लिम मुकर्रर किया, इस तरह जब अहले यमन ईमान दाखिल हुए, तो उन की तालीम व तरबियत के लिए उन्हीं को रवाना…
हज़रत जुबैर बिन अव्वाम (र.अ) हज़रत जुबैर बिन अव्वाम (र.अ) भी उन खुशनसीब लोगों में हैं जिन को रसूलुल्लाह (ﷺ) ने दुनिया में ही है। जन्नत की खुशखबरी सुना दी थी। आप इस्लाम लाने वालों में चौथे या पाँचवे शख्स है। पंद्रह साल की उम्र में इस्लाम कबूल किया और हबशा और मदीना दोनो की हिजरत की। रसूलुल्लाह (ﷺ) ही के साथ तमाम गज़वात में शरीक रहे। गज़व-ए-खन्दक के मौके पर रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : कौन है जो दुशमन के लशकर की खबर लाए? हज़रत जुबैर (र.अ) ने अर्ज़ किया के मै खबर लाऊँगा। इस पर रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : हर नबी के…
वफ्दे नजरान की मदीने में आमद नजरान यमन के एक शहर का नाम है। यहाँ के लोग ईसाई थे। सन ९ हिजरी में रसूलुल्लाह (र.अ) ने अहले नजरान को इस्लाम की दावत दी। तो साठ अफराद पर मुश्तमिल एक वफ़्द आप की ख़िदमत में हाजिर हुआ। जिन में शुरहबील बिन वदाआ, अब्दुल्लाह, जब्बार बिन कैस जैसे बड़े बड़े पादरी थे। और काफले का अमीर अब्दुल मसीह आकिब था। उन्होंने हजरत ईसा (अ.स) के बारे में सवालात किये। जिनके जवाब में अल्लाह तआला ने सूर-ए-आले इमरान की इब्तेदाई अस्सी आयतें नाजिल फ़रमाई। इन आयात में अल्लाह तआला की तरफ से हज़रत ईसा (अ.स) की बगैर बाप की…
गजवा-ए-उहुद में मुसलमानों की आजमाइश जंग-ए-उहुद में मुसलमानों की आज़माइश ग़ज़वा-ए-उहुद में मुसलमानों ने बड़ी बहादुरी से मुशरिकीने मक्का का मुकाबला किया, जिस में पहले फतह हुई, मगर बाद में एक चूक की वजह से नाकामी का सामना करना पड़ा। जंग शुरू होने से पहले रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पचास तीरअन्दाजों की एक जमात को पहाड़ की घाटी पर जहाँ से दुश्मनों के हमले का खतरा था, मुकर्रर कर दिया और यह ताकीद फरमाई के "जंग में फतह हो या शिकश्त" तुम अपनी जगह से हरगिज न हटना। जब मुसलमानों को शुरू में फतह हुई, तो काफिरों को भागता हुआ देख कर यह लोग भी अपनी…
ग़ज़व-ए-खन्दक | खंदक की लड़ाई ग़ज़व-ए-खन्दक की वजह रसूलुल्लाह (ﷺ) ने यहूद की बद अहदी और साजिशों की वजह से मदीना से निकल जाने का हुक्म दिया, तो वह खैबर और वादियुलकुरा में जा बसे, मगर वहाँ पहुँच कर भी उन की अदावत और दुश्मनी की आग ठंडी नहीं हुई, उन्होंने मुसलमानों को सफह-ए-हस्ती से मिटाने के लिये बनू नज़ीर के २० सरदारों का एक वफ़्द कुरैशे मक्का के पास भेजा और उन्हें रसूलुल्लाह (ﷺ) से मुक़ाबले और जंग के लिये आमादा किया। किनाना बिन रबी ने बनू गितफान को खैबर की जमीन व बागात की आधी पैदावार देने का वादा कर के मुसलमानों के…
अल्लाह तआला ने कलम को पैदा किया Highlights • अल्लाह तआला की सृष्टि: अल्लाह ने सबसे पहले क़लम को पैदा किया और उसे पूरी काइनात की तक़दीर लिखने का हुक्म दिया। • तक़दीर की तहरीर: क़लम ने क़यामत तक होने वाली तमाम घटनाओं को अल्लाह के हुक्म से पहले ही लिख दिया। • अल्लाह की अजीम कुदरत: अल्लाह ने मख्लूक़ की तक़दीर को ज़मीन और आसमान की पैदाइश से 50,000 साल पहले तय किया। अल्लाह तआला हमेशा से है और हमेशा रहेगा, हर चीज़ को अल्लाह तआला ही ने पैदा किया और एक दिन उसी के हुक्म से सारी काइनात खतम हो जाएगी। कुरअने पाक में अल्लाह…
पहली बैते अक़बा अकबा, मिना के करीब एक घाटी का नाम है, जहाँ सन ११ नबवी में मदीना से 6 अफराद ने आकर दीने इस्लाम कबूल किया था, इस के दूसरे साल सन १२ नबवी में 12 अफ़राद रसूलुल्लाह (ﷺ) से मुलाकात करने और बैत होने के लिये आए और आप (ﷺ) के मुबारक हाथ पर चोरी, जिना और कल्ले औलाद से बचने, अच्छी बातों में आप (ﷺ) की इताअत व पैरवी करने और एक अल्लाह की इबादत करने पर बैत की। इस को "बैते अकबा-ए-ऊला" कहा जाता है। जब उन लोगों ने वापसी का इरादा किया, तो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मुसअब बिन…
मस्जिदे कुबा की तामीर और पहला जुमा मदीना मुनव्वरा से तक़रीबन तीन मील के फासले पर एक छोटी सी बस्ती कुबा है, यहाँ अन्सार के बुहत से खानदान आबाद थे और कुलसूम बिन हदम उन के सरदार थे, हिजरत (migration) के दौरान आपने पहले कुबा में कयाम फर्माया और कुलसूम बिन हदम के घर मेहमान हुए, रसूलुल्लाह (ﷺ) ने यहाँ अपने मुबारक हाथों से एक मस्जिद की बुनियाद डाली, जिस का नाम मस्जिदे कुबा है, मस्जिद की तामीर में सहाबा के साथ साथ आप (ﷺ) खुद भी काम करते थे और भारी भारी पत्थरों को उठाते थे। यही वह मस्जिद है, जिस की शान में कुरआन मजीद…
अज़ान की इब्तेदा हजरत इब्ने उमर (र.अ) फ़र्माते हैं के हुजूर (ﷺ) ने जमात की नमाज के लिये जमा करने का मशवरा किया, तो सहाब-ए-किराम (र.अ) ने मुख़्तलिफ राएँ पेश की, किसी ने यहूद की तरह बूक (Beegle) बजाने और किसी ने ईसाइयों की तरह नाकूस (घंटी) बजाने का मशवरा दिया, लेकिन आप (ﷺ) ने पसंद नहीं फ़र्माया। बल्के सोचने का मौका दिया, उसी रात हज़रत उमर (र.अ) ने ख्वाब में अजान सुनी और एक सहाबी अब्दुल्लाह बिन जैद बिन अब्दे रब्दिही (र.अ) ने भी ख़्वाब में देखा, के एक शख्स अजान के कलिमात कह रहा है, उन्होंने उस को याद कर लिया…
हजरत कतादा (र.अ) की आँख का ठीक हो जाना जंगे बद्र के दिन हज़रत कतादा बिन नोअमान (र.अ) की आँख में तीर लग गया, जिस की वजह से खून रुखसार पर बहने लगा, तो सहाबा (र.अ) ने रसूलुल्लाह (ﷺ) से पूछा : क्या उन की आँख निकाल दें? तो आप (ﷺ) ने मना फ़रमाया : और हजरत कतादा को बूलाकर अपनी हथेली से उन की आँख की तरफ़ इशारा किया, तो वह इतनी अच्छी हो गई के पता नहीं चलता था के कौन सी आँख में तीर लगा था। 📕 बैहकी फी दलाइलिन्नुयुष्या : १११२
दूसरी बैते अक़बा मदीना मुनव्वरा में हजरत मुसअब बिन उमैर (र.अ) की दावत और मुसलमानों की कोशिश से हर घर में इस्लाम और पैगम्बरे इस्लाम का तजकेरा होने लगा था, लोग इस्लाम की खूबियों को देख कर ईमान में दाखिल होने लगे थे। सन १३ नबवी में मुसअब बिन उमैर (र.अ) ७० से ज़ियादा मुसलमानों पर मुश्तमिल एक जमात ले कर हज करने की गर्ज से मक्का आए, उस काफले में मुसलमानों के साथ क़बील-ए-औस व खज़रज के मुश्किीन भी थे। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अपने चचा हजरत अब्बास (र.अ) के साथ अक़बा नामी घाटी में आकर रात के वक़्त मुसलमानों से मुलाकात फर्माई।…
सिरत : उम्मुल मोमिनीन हज़रत खदीजा (र.अ) हजरत खदीजा बिन्ते खुवैलिद (र.अ) बड़ी बा कमाल और नेक सीरत खातून थीं, उनका तअल्लुक कुरैश के मुअज्जज खानदान से था, वह खुद भी बाअसर और कामयाब तिजारत की मालिक थीं। उनकी पहली शादी अबूहाला से हुई जिन से दो लड़के पैदा हुए उन के इन्तेकाल के बाद दूसरी शादी अतीक बिन आबिद मखजूमी से हुई उनसे एक लड़की पैदा हुई, कुछ दिनों के बाद अतीक की भी वफ़ात हो गई। हजरत खदीजा (र.अ) की शराफ़त व मालदारी की वजह से बहुत से सरदाराने कुरैश उन के साथ निकाह करने के ख्वाहिशमन्द थे, मगर उन्होंने सबसे इन्कार कर दिया। जब उन्होंने हुजूर (ﷺ) की…
मक्का में बुत परस्ती की इब्तिदा कुरैश का क़बीला हज़रत इब्राहीम (अ.स) के दीन पर बराबर क़ायम रहा और एक खुदा की इबादत ही करता रहा, यहाँ तक के हुज़ूर (ﷺ) से तीन सौ साल पहले अम्र बिन लुई खुजाई का दौर आया। अम्र मक्का का बड़ा दौलतमन्द शख्स था, उस के पास बीस हज़ार उँट थे, जो उस ज़माने में बड़े शर्फ की बात थी, एक दफा वह मक्का से मुल्के शाम गया, उसने वहां के लोगों को देखा, के बुतों को पूजते हैं, तो उनसे पूछा इन को क्यों पूजते हो? उन्होंने जवाब दिया "यह हमारे हाजत रवा है, हमारी ज़रूरतों को पूरी करते…