आपका इस्मे गिरामी मुस्लिम बिन हज्जाज और कुनिय्यत अबुल हसन थी। आपकी विलादत वा सआदत सन २०४ हिजरी में अरब के मशहूर कबीला बनू कुशौर में हुई, इब्तेदाई तालीम अपने वतन नीसापूर में हासिल की जब कुछ बड़े हुए तो इल्म के लिये दूसरे ममालिक मक्का, कूफ़ा, इराक, मिस्र वगैरा का सफ़र शुरू किया और वहाँ जाकर बड़े बड़े मुहद्दिसीन की मजलिसों में शिर्कत की और अपनी इल्मी प्यास बुझाने लगे, यहाँ तक के लोग आपको वक़्त की चंद जलीलुल कद्र हस्तियों में शुमार करने लगे।
आपने अलग अलग फ़न में कई किताबें लिखी है, जिनमें से हदीस शरीफ़ की एक किताब “सही मुस्लिम” है, जिस को शुरू दिन से वह मकाम व मर्तबा और कुबूलियत हासिल हुई के इस का शुमार कुतुबे सित्ता की सही तरीन किताबों में होने लगा, रहती दुनिया तक के तमाम इन्सानों बिलखुसूस मुसलमानों के लिये यह किताब अजीमुश्शान तोहफ़ा है, जो अपनी हुस्ने तरतीब में बे मिसाल और सेहत में ला जवाब है।
इस में तकरीबन चार हजार हदीसें हैं, जिस को इमाम मुस्लिम ने तीन लाख हदीसों में से छान कर लिखा है, आपने २५ रजबुल मुरज्जब इतवार के दिन सन २६१ हिजरी में अपने वतन नीसापूर में इन्तेकाल फर्माया।
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