सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 17

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 17

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 17

पेज: 143

डरावा

यों तो जो कोई भी मुसलमान हो जाता, आप (ﷺ) का खादिम व जांनिसार बन जाता, मगर सब से ज्यादा हमदर्द और सब से बढ़ कर आप के हामी अबूतालिब और हजरत खदीजा (र.अ) थीं और इन दोनों की ही वफ़ात हो गयी। हुजूर (ﷺ) को इन दोनों की वफ़ात का बड़ा मलाल हुआ। 

कुफ्फ़ारे मक्का अबू तालिब और हजरत खदीजा (र.अ) का बड़ा ख्याल रखते थे, लेकिन इन दोनों के इंतिकाल के बाद अब कुफ्फारे मक्का को न किसी का ख्याल रहा, न डर उन्हों ने तय कर लिया कि जिस तरह भी हो सके, अब इस्लाम और मुसलमानों को मिटा देना चाहिए, चुनांचे वे मुसलमानों को सताने और परेशान करने और उन पर जुल्म व सितम के पहाड़ तोड़ने में बहुत ज्यादा गुस्ताख और सरकश हो गये। हुजूर (ﷺ) और मुसलमानों के साथ बड़ी बेरहमी से पेश आने लगे। 

एक ओर यह सब कुछ हो रहा था और दूसरी तरफ़ हुजूर (ﷺ) और आप के साथी इस्लाम की तब्लीग़ के काम में भी बराबर लगे रहे।

हुजूर (ﷺ) का हाल तो यह था कि जो भी आप के पास आता, उसे निहायत मुहब्बत से बिठाते, कुरआन की आयतें सुनाते। अरब के किसी इलाके से जब कोई कबीला गुजरता, तो वहां तशरीफ़ ले जाते और इस्लाम की तब्लीग करते। 


यसरब के छे लोगों का इमांन ले आना 

एक दिन आप (ﷺ) को मालूम हुआ कि यसरब (इस शहर का नाम बाद में मदीना पड़ गया) से कुछ लोग आये हैं। आप उन के पास तशरीफ़ ले गये। उन्हों ने हुजूर (ﷺ) का इस्तेकबाल किया। आप ने उन से पूछा, तुम कौन हो? कहां से आये हो? किस कबीले से ताल्लुक रखते हो?

उन में से एक ने कहा, हम यसरब से आए हैं, कबीला खजरज से ताल्लुक़ है हमारा।

शायद तुम्हारा कबीला ही औस कबीले से टकराता रहता है ? आप (ﷺ) ने पूछा।

जी हां, एक ने जवाब दिया, शायद तुम मक्का वालों के भरोसे पर आये हो? आप (ﷺ) ने फरमाया।

यही बात है, जवाब मिला।

तुम बेकार में किस की मदद लेने आ गये ? आप (ﷺ) ने फ़रमाया, खुदा से दुआ मांगो, उस खुदा से जो पालनहार है। जिस ने दुनिया जहान को पैदा किया है, जो मौत और जिंदगी पर कुदरत रखता है, जिसे चाहता है, इज्जत देता है और जिसे चाहता है, जलील करता है।

ये यसरब से आए हुए छ: आदमी थे।

ये बुतपरस्त थे, कभी खुदा का नाम न सुना था। अब खुदा का नाम सुन कर हैरत में पड़ गये, इस में हैरत की क्या बात है ? जरा गौर से सोचो कि पत्थर के बुत खुदा नहीं हो सकते। उन को तुम ने और तुम्हारे बुजगों ने अपने हाथों से बनाया। जिस जगह तुम उन्हें रख दोगे, रखे रहेंगे, हरगिज हरकत न कर सकेंगे। 

पेज: 144

खुदा तो वह है, जिस ने कायनात को पैदा किया है, दिन-रात बनाये है। हर चीज़ पर कुदरत रखता, उसकी इबादत करो, उस के सामने झुको और उसी को सज्दा करो। 

उन में से एक आदमी ने अपने साथी से खिताब करते हुए कहा, जाबीर! तुम ने सुना, यह वही नबी है, जिस का जिक्र यसरब के यहूदी करते रहते हैं। क्यों न हम इन का मजहब कबूल कर लें? 

जाबिर ने कहा, यह हमारी खुशकिस्मती है कि यह खुद हमारे पास आ गये। यसरबी लोगों से पहले हमें इस्लाम कबूल कर लेना चाहिए।

चुनाँचे छे के छे आदमी मुसलमान हो गये।

हुजूर (ﷺ) को इस वाकिए से बड़ी खुशी हुई। आप सब को साथ लेकर अपने मकान पर आए और जितना भी उस वक्त कुरआन नाजिल हुआ था, वह उन्हें बताते हुए कहा, तुम यसरब चले जाओ और वहां इस्लाम की तब्लीग करो।

बे सब के सब उसी दिन यसरब चले गये।

क्यूंकि यह वफ्द यसरब से मक्का वालों के पास मदद हासिल करने के इरादे से आया था और मक्का के सरदारों से मुलाकात किये बिना वापस आ गया, इस लिए मक्का वालों को बड़ा ताज्जुब हुआ। उन की समझ में न आया कि ऐसा क्यों हुवा? 

उन्हें यह मालूम न था कि वे मुसलमान हो कर चले गये, फिर भी उन्हें कुछ शक गुजरा। 

उस वक्त तक कुफ्फारे कुरैश की बेरहमी और जुल्म काफी बढ़ गया था। वे जब मौका पाते, हुजूर (ﷺ) को सताते, पर आप ये कि सब्र व शुक्र के साथ अपना काम करते रहे और मिशन को आगे बढ़ाते रहे। 


आप (ﷺ) को सताने वालो के लिए आपकी फ़िक्र 

एक दिन हुजूर (ﷺ) तश्रीफ़ ले जा रहे कि किसी जालिम ने पीछे से आकर मुबारक सिर पर खाक डाल दी और भाग गया। आप उसी हालत में घर तशरीफ़ लाये। आप (ﷺ) की साहबजादी हसरत फातमा (र.अ) ने देखा, तो पानी ले कर आयीं और आप का सर धुलाने लगी। 

वह सर धुलती जाती थीं और रोती जाती थीं।

हुजूर (ﷺ) की नज़र उठ गयी। आप ने हजरत फातमा को तसल्ली से और कहा, मेरे लख्ते जिगर! रोओ नहीं, खुदा तुम्हारे बाप को बचा लेगा। 

फातमा (र.अ) ने रोते हुए कहा, लेकिन ये कुफ्फार आप को सताते क्यों है ?

आप ने कहा, फातमा। उन की आँखे है, मगर देखते नहीं। यह नहीं 

पेज: 145

जानते कि मैं कौन हूं? जिस दिन ये समझ जाएंगे, उसी दिन जुल्म सितम छोड़ देंगे। मेरी बेटी! हमेशा हर दौर में हर नबी पर उसकी कौम सख्तियां करती रही है। तु रंज न किया कर, क्योंकि ये सख्तियां कुछ दिनों की हैं।

हजरत फातमा (र.अ) खामोश हो गयीं। इत्तिफाक से उसी दिन हजरत खम्बाब बिन अरत्त (र.अ) आ गये।

यह वही खम्बाब थे, जिन पर कुरैश ने बहुत सख्तियां की थीं। उन्हों हुजूर (ﷺ) को सलाम किया। आप (ﷺ) ने सलाम का जवाब दिया।

वह हजूर (ﷺ) के पास बैठ गये और पूछा कि हुजूर (ﷺ) ! मुबारक सर क्यों धोया जा रहा है? 

आप ने फ़रमाया, किसी ने मेरे सर पर खाक डा डाल दी है, इसलिए धो रहा हूं।

उन्हों ने फ़रमाया, आप से अर्ज किया, हे अल्लाह के रसूल (ﷺ) ! कुरैश सख्तियां करने में हद से आगे बढ़ गये। आप इन बद-बख्तों के लिए बद-दुआ क्यों नहीं करते ?

यह सुन कर आप का मुबारक चेहरा लाल हो गया। 

आप (ﷺ) ने फ़रमाया, खम्बाब! क्या अपनी ही कौम की सख्तोयों से तंग आकर बद-दुआ करूं कि अगले लोगों की तरह मेरी कौम भी बर्बाद हो जाये ? अल्लाह की कसम ! मैं हरगिज़ बद-दुआ न करूंगा। यह खुदा का काम है, खुद पूरा करेगा, यहां तक कि एक ऊंट सवार सुनआ से हजरे मौत तक निडर होकर सफ़र करेगा, उस को खुदा के अलावा किसी का डर न होगा। हज़रत खम्बाब (र.अ) चुप हो गये।

आप (ﷺ) ने मुबारक सर धो कर हजरत फातमा को गोद में ले लिया तसल्ली दी और थोड़ी देर बैठ कर चले गये।

एक दिन हुजूर खाना काबा तशरीफ़ ले गये। वहां बहत से मुशरिक कुफ्फ़ार बैठे थे। अबू जहल, उत्बा, अबू लहब और अबू सुफ़ियान भी मौजूद थे।

हुजूर (ﷺ) को देख कर अबू जहल ने मजाक उड़ाने की गरज से कहा, ऐ अब्दे मुनाफ़ ! ऐ हाशमियो ! देखो यह तुम्हारा नबी आ गया। 

उत्बा ने खिल्ली उड़ाने के लिए कहा, हमें क्या इंकार है कोई नबी बन बठे या कोई फ़रिश्ता बन जाए।

यह सुन कर तमाम मुश्रिक और काफ़िर ठट्ठा मार कर हंसने लगे। 

पेज: 146

हजूर (ﷺ) ने ये बातें सुन ली थीं। आप ने उत्बा को खिताब कर के कहा, उत्बा ! तू बड़ा सरकश हो गया है। तूने कभी खुदा और उसके रसूल (ﷺ) की हिमायत न की। हमेशा अपनी जिद पर अड़ा रहा मगर सुन ले कि तेरे हंसने का जमाना खत्म होने के करीब है।

इस के बाद आप (ﷺ) अबू जहल की तरफ़ मुखातब हुए। आप (ﷺ) ने फ़रमाया अबू जहल ! तेरे लिए वह वक्त आ रहा है कि हंसेगा कम और रोयेगा ज्यादा।

फिर आप (ﷺ) ने वलीद से फ़रमाया, वलीद ! तुझे अपनी बहादुरी पर नाज है, लेकिन शायद हजरत उमर और हजरत हमजा को भूल गया है। अल्लाह की कसम ! ये दोनों शेर हैं, मुझ से लड़ाई की इजाजत मांगते हैं। अगर मैं इजाजत दूं तो वह मक्का के कूचा वं बाजार को खून से रंगीन कर दें। तू जो बढ़-चढ़ कर बातें बनाता है, डर कर घर में जा घुसेगा, शुक्र कर कि मैं उन्हें लड़ने की इजाजत नहीं देता। 

इस के बाद आप तमाम मुश्रिकों से मुखातब हुए और फ़रमाया कि ऐ अरब ! आज तुम जिस दीन का मजाक उड़ाते हो, वह वक्त करीब आ गया है, तुम उसी दीन में दाखिल होंगे, जबरदस्ती नहीं, बल्कि अपनी खुशी से।

हज़र (ﷺ) का जलाल भरा चेहरा देख कर तमाम अरब रोब में आ गये, गोया किसी को कुछ कहने या जवाब देने की हिम्मत न हो सकी।

हुजूर (ﷺ) भी तवाफ़ कर के वापस तशरीफ़ ले गये।

आप के तशरीफ़ ले जाने के बाद अबू सुफ़ियान ने कहा, लोगो ! अब एहतियात करो, वाकई हमजा और उमर को बहादुरी में किसी को कलाम नहीं है। अगर मुहम्मद (ﷺ) ने इन दोनों को लड़ने की इजाजत दे दी, तो मक्का में खून की नदियां बह जाएंगी, सैकड़ों बच्चे यतीम और औरतें बेवा हो जाएंगी। 

वलीद ने कहा, बेशक तुम सच कहते हो। हम को आगे से एहतियात करना चाहिए। मुसलमान जब तक खामोश हैं, खैर है, जब तंग आ कर मरने-मारने पर तैयार हो जाएंगे, तो लड़ाई की आग भड़क उठेगी।

अबू जहल ने कुछ जोश में आ कर कहा, यह डरना बेकार की बात है। मुसलमान हमारा क्या कर सकते हैं। हमजा हों या उमर, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं।

अबू लहब ने कहा, यह बात नहीं है। मुसलमान जिस दिन लड़ाई के लिए उठ खड़े हुए तो गजब हो जाएगा। मुनासिब यही है कि उन पर

पेज: 147

सख्तियां न की जाएं, हां, जिस को पाओ, उसे खामोशी से मार गलो, ऐसी खामोशी से कि किसी को खबर न होने पाए। 

कुछ देर तक और बातें करने के बाद तमाम कुफ्फार उठे और खाना काबा से निकल कर चले।

To be continued …

इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और अपनी राय भी दे … 




WhatsApp Channel Join Now

Comment

Leave a Reply

© 2025 Ummat-e-Nabi.com

Design & Developed by www.WpSmartSolutions.com