जब कूफ्फारे कूरैश बादशाह नजाशी के दरबार से अपनी कोशिश में नाकाम हो कर निकले, तो अम्र बिन आस ने कहा के मैं कल बादशाह के सामने ऐसी बात कहूँगा, जिसकी वजह से वह मुसलमानों को बिलकुल ख़त्म कर डालेगा।
अगले रोज अम्र बिन आस ने नजाशी के पास आकर कहा के यह लोग हज़रत ईसा (अ.) की शान में बहुत ही सख्त बात कहते हैं। नजाशी बादशाह ईसाई था। उस ने सहाबा को बुलवाया और पूछा तुम लोग हजरत ईसा (अ.) के बारे में क्या कहते हो?
हज़रत जाफर (र.अ) ने फ़रमाया : हम वही कहते हैं जो हमारे नबी ने फ़रमाया है के हज़रत ईसा अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल थे और खुदा की खास रूह और खास कलिमा थे।
नजाशी ने ज़मीन से एक तिन्का उठा कर कहा : खुदा की कसम ! मुसलमानों ने जो कहा है, हज़रत ईसा एक तिन्के की मिक्दार भी जियादा नहीं थे और मुसलमानों से कहा के तुम अमन से रहो, मैं सोने का एक पहाड़ ले कर भी तूमको सताना पसन्द नहीं करूंगा और कुफ्फारे कुरैश के तमाम हदिये और तोहफे वापस कर देने का हुक्म दिया और कहा के खुदा ने मुझे रिशवत के बगैर हुकूमत व सल्तनत अता फर्माई है, लिहाजा मैं तुम से रिश्वत ले कर उन लोगों को हरगिज़ सुपुर्द नहीं करूंगा।
दरबार खत्म हुआ। मुसलमान बखुशी वापस हुए और कुरैश का वफ़्द जिल्लत व रुस्वाई के साथ नाकाम लौटा।