19. रबी उल आखिर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

19. रबी उल आखिर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

19 Rabi-ul-Akhir | Sirf Panch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

हज के मौसम में इस्लाम की दावत देना

जब रसूलुल्लाह (ﷺ) ने देखा के कुफ्फारे कुरैश इस्लाम कबूल करने के बजाए बराबर दुश्मनी पर तुले हुए हैं। तो हुजूर (ﷺ) हज के मौसम के इंतज़ार में रहने लगे और जब हज का मौसम आ जाता और लोग मुख्तलिफ इलाकों से मक्का आते, तो ऐसे मौके पर रसूलुल्लाह (ﷺ) बजाते खुद उन लोगों के पास तशरीफ ले जाते और लोगों को एक अल्लाह की इबादत करने, बुत परस्ती से तौबा करने और हराम कामों से बचने की दावत देते थे।

कुफ्फारे कुरैश तमाम लोगों के दिलों में हुजूर (ﷺ) और आपकी दावत के मुतअल्लिक नफरत डालने की खूब कोशिश करते थे। खुद आप (ﷺ) के चचा अबू लहब आपके पीछे पीछे यह कहता फिरता था के ऐ लोगो ! यह शख्स तुम को बुतों की पूजा से हटा कर एक नए दीन की तरफ बुलाता है। तुम हरगिज़ इस की बात न मानना। मगर रसूलुल्लाह (ﷺ) तमाम मुसीबतों और उन की मुखालफतों को बरदाश्त करते हुए इस्लाम की दावत लोगों तक पहुंचाते रहे और दीने हक की सच्चाई और शिर्क व बुत परस्ती की खराबी को वाजेह करते रहे।

बाज़ लोग तो नर्मी से जवाब देते, लेकिन बाज़ लोग बड़ी सख्ती से पेश आते और गुस्ताखाना बातें कहते थे। उसी हज के मौसम में एक मर्तबा क़बील-ए-औस व खजरज के कुछ लोग मदीने से आए हुए थे। जिन के पास तशरीफ ले जाकर आपने इस्लाम की दावत दी। उन लोगों ने इस्लाम कबूल कर लिया और आपकी मदद का वादा किया।

📕 इस्लामी तारीख


2. अल्लाह की कुदरत

बहरे मय्यित (Dead Sea)

मुल्के उरदुन (Jordan) में छोटा सा एक समुन्दर है जिस को “बहरे मय्यित” (Dead Sea) कहते हैं। अल्लाह तआला ने कौमे लूत की बस्तियों को पलट कर एक गहरे समुन्दर में तब्दील कर दिया जिसके पानी की सतह आम समुन्दरों के मुकाबिल १३०० फुट गहरी है, उस की बड़ी खुसूसियत यह है के न कोई जानदार उस में जिन्दा रहता है और न ही डूबता है, जबकि दूसरे समुन्दरों में जानदार चीजें भी हैं और जानदार व बेजान चीजें इस में गिर कर डूब भी जाती हैं।

तफ्सील में यहाँ पढ़े : History of “Dead Sea” by Holy Quraan[ Dead Sea History ]

📕 अल्लाह की कुदरत


3. एक फर्ज के बारे में

नमाज़ में इमाम की पैरवी करना

हज़रत अबू हुरैरह (र.अ) फ़र्माते हैं के रसूलुल्लाह (ﷺ) हमें सिखाते थे के

“(नमाज़ में) इमाम से पहले रुक्न अदा न किया करो।”

📕 मुस्लिम : १३२

फायदा : अगर इमाम के पीछे नमाज पढ़ रहा हो, तो तमाम अरकान को इमाम के पीछे अदा करना चाहिये,
इमाम से आगे बढ़ना जाइज नहीं है।


4. एक सुन्नत के बारे में

सज्दा करने का सुन्नत का तरीका

रसूलुल्लाह (ﷺ) जब सज्दा फरमाते तो –

“अपनी नाक और पेशानी को जमीन पर रखते और अपने बाजुओं को पहलू से अलग रखते और अपनी हथेलियों को कांधे के बराबर रखते।”

📕 तिर्मिज़ी : २७०


5. एक अहेम अमल की फजीलत

अज़ान के बाद दुआ पढ़ना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया: “जो बन्दा अजान सुनते वक़्त अल्लाह से यूँ दुआ करे:

Allahumma Rabba Hadhihi-D-Dawatit-Tammaa Was-Salatil Qaimah, Aati Muhammadan Al-Wasilata Wal-Fazilah, Wabaathhu Maqaman Mahmudan-Il-Ladhi Waadtah

तो वह बन्दा क़यामत के दिन मेरी शफाअत का हकदार हो गया।”

📕 बुखारी : ६१४


6. एक गुनाह के बारे में

ग़लत हदीस बयान करने की सज़ा

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :

“मेरी हदीस को बयान करने में एहतियात करो और वही बयान करो जिस का तुम्हें यक़ीनी इल्म हो, जो शख्स जान बूझ कर मेरी तरफ से कोई गलत बात बयान करे, वह अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।”

📕 तिर्मिज़ी: २९५१


7. दुनिया के बारे में

थोड़ी सी रोज़ी पर राज़ी रहना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:

“जो शख्स अल्लाह तआला से थोड़ी रोजी पर राजी रहे, तो अल्लाह तआला भी उसकी तरफ से थोड़े से अमल पर राजी हो जाता हैं।”

📕 बैहकी शोअबुल ईमान : ४४०९


8. आख़िरत के बारे में

जहन्नमियों का खाना

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:

“जहन्नम वालों का आज न कोई दोस्त होगा और न कोई खाने की चीज़ नसीब होगी, सिवाए जख्मों के धोवन के, जिस को बड़े गुनहगारों के सिवा कोई न खाएगा।”

📕 सूरह हाक्का : ३५ ता ३७


9. तिब्बे नबवी से इलाज

निमोनिया का इलाज

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने निमोनिया के लिये
वर्स, कुस्त और रोग़ने जैतून पिलाने को मुफीद बतलाया है।

📕 इब्ने माजा : ३४६७

फायदा : “वर्स” तिल के मानिंद एक किस्म की घास है, जिस से रंगाई का काम लिया जाता है और “कुस्त” एक खुशबूदार लकड़ी है जिस को ऊदे हिन्दी भी कहते हैं।


10. क़ुरान की नसीहत

अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म मानो

क़ुरान में अल्लाह तआला फ़र्माता है

“तुम अल्लाह तआला और उस के रसूल का हुक्म मानो और हुक्म की खिलाफ वरजी से बचते रहो, फिर अगर तुम मुँह मोड़ोगे (और नहीं मानोगे) तो यकीन जानो के हमारे रसूल के जिम्मे तो सिर्फ अहकाम को साफ साफ पहुँचा देना है।”

📕 सूरह मायदा ९२

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