(1). मदीना में हुजूर (ﷺ) का इन्तेज़ार, (2). हुजूर (ﷺ) की दुआ की बरकत, (3). बीवी को उस का महर देना, (4). अल्लाह से रेहम तलब करने की दुआ, (5). नमाज के लिये मस्जिद जाना, (6). इस्लाम की दावत को ठुकराना एक बड़ा जुल्म, (7). इन्सान की ख़सलत व मिजाज, (8). जन्नत का खेमा, (9). 99 बीमारियों की दवा, (10). आखरी रात में वित्र का मौका ना मिले तो शुरू में ही पढ़ ले।
28. रबी उल आखिर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा


Sirf 5 Minute Ka Madarsa (Hindi Book)
₹359 Only
1. इस्लामी तारीख
मदीना में हुजूर (ﷺ) का इन्तेज़ार
जब मदीना तय्यिबा के लोगों को यह मालूम हुआ के रसूलुल्लाह (ﷺ) मक्का से हिजरत कर के मदीना तशरीफ ला रहे हैं, तो उन की खुशी की इन्तेहा न रही, बच्चे बच्चियाँ अपने छतों पर बैठ कर हुजूर (ﷺ) के आने की खुशी में तराने गाती थीं, रोजाना जवान, बड़े बूढ़े शहर से बाहर निकल कर दोपहर तक आप (ﷺ) की तशरीफ आवरी का इन्तेज़ार करते थे, एक दिन वह इन्तेज़ार कर के वापस हो ही रहे थे के एक यहूदी की नज़र आप (ﷺ) पर पड़ी तो वह फौरन पुकार उठा “लोगो ! जिन का तुम को शिद्दत से इन्तेज़ार था वह आ गए!” बस फिर क्या था, इस आवाज़ को सुनते ही सारे शहर में खुशी की लहर दौड़ गई और पूरा शहर “अल्लाहु अकबर” के नारों से गूंज उठा और तमाम मुसलमान इस्तिकबाल के लिये निकल आए, अन्सार हर तरफ से जौक़ दर जौक आए और मुहब्बत व अकीदत के साथ सलाम अर्ज करते थे, खुश आमदीद कहते थे। तक़रीबन पांच सौ अन्सारियों ने हुजूर (ﷺ) का इस्तिकबाल किया।
To be Continued …
2. अल्लाह की कुदरत
हुजूर (ﷺ) की दुआ की बरकत
एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत अली (र.अ) को काज़ी बना कर यमन भेजा, तो हज़रत अली कहने लगे: या रसूलल्लाह! मैं तो एक नौजवान आदमी हूँ मैं उन के दर्मियान फैसला (कैसे) करूँगा? हालाँकि मैं ! तो यह भी नहीं जानता के फैसला क्या चीज है ?
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मेरे सीने पर अपना हाथ मुबारक मारा और फर्माया : ऐ अल्लाह ! इस के दिल को खोल दे और हक बात वाली जबान बना दे, हजरत अली फरमाते हैं के अल्लाह की कसम ! उस के बाद मुझे कभी भी दो आदमियों के दर्मियान फैसला करने में शक और तरहुद नहीं हुआ।
📕 बैहक़ी फी दलाइलिन्नुबुव्वह : २१३४, अन अली (र.अ)
3. एक फर्ज के बारे में
बीवी को उस का महर देना
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“तुम लोग अपनी बीवियों को उन का महर खुश दिली से दे दिया करो, अलबत्ता अगर वह अपने महर में से कुछ छोड़ दें, तो उसे लजीज़ और खुशगवार समझ कर व खाओ।”
4. एक सुन्नत के बारे में
अल्लाह से रेहम तलब करने की दुआ
अल्लाह तआला से रहम व मगफिरत इस तरह माँगे:
तर्जमा : ऐ परवरदिगार ! मेरी मग़फिरत फरमा और मुझपर रहम फरमा क्योंकि तू ही सब से ज्यादा रहम करने वाला हैं।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
नमाज के लिये मस्जिद जाना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जो शख्स सुबह व शाम मस्जिद जाता है अल्लाह तआला उस के लिये जन्नत में मेहमान नवाज़ी का इंतिज़ाम फ़रमातेहैं जितनी मर्तबा जाता है उतनी मर्तबा अल्लाह तआला उस के लिये मेहमान नवाज़ी का इंतिज़ाम फ़रमाते हैं।”
📕 बुखारी:662, अन अबी हुरैरह (र.अ)
6. एक गुनाह के बारे में
इस्लाम की दावत को ठुकराना एक बड़ा जुल्म
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“उस शख्स से बड़ा ज़ालिम कौन होगा, जो अल्लाह पर झूट बाँधे, जब के उसे इस्लाम की दावत दी जा रही हो और अल्लाह ऐसे जालिमों को हिदायत नहीं दिया करता।”
7. दुनिया के बारे में
इन्सान की ख़सलत व मिजाज
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“इन्सान को जब उस का परवरदिगार आजमाता है और उस को इज्जत व नेअमत देता है, तो कहता है के मेरे रब ने मुझ को इज़्ज़त दी और जब रोजी तंग कर के उस को आजमाता है तो कहता है: मेरे रब ने मुझे ज़लील कर दिया।”
खुलासा : इन्सान दुनिया की ज़ाहिरी आराम व आराइश को देख कर उसे इज्जत समझता है, इसी तरह दुनिया की जाहरी मुसीबत व परेशानी को देख कर जिल्लत व रुस्वाई समझता है। जब की असल कामियाबी आख़िरत के ऐतबार से है।
8. आख़िरत के बारे में
जन्नत का खेमा
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जन्नत में मोती का खोलदार खेमा होगा, जिस की चौड़ाई साठ मील ही होगी। उस के हर कोने में जन्नतियों की बीवियाँ होंगी, जो एक दूसरी को नहीं देख पाएँगी और उनके पास उनके शौहर आते जाते रहेंगे।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
99 बीमारियों की दवा (ला हौल वला कुव्वत इल्ला बिल्लाह)
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : जो शख्स “ला हौल वला कुव्वत इल्ला बिल्लाह” पढेगा, तो यह निनान्वे मर्ज की दवा है, जिस में सबसे छोटी बीमारी रंज व ग़म है।
10. नबी (ﷺ) की नसीहत
आखरी रात में वित्र का मौका ना मिले तो शुरू में ही पढ़ ले
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जिस को यह अन्देशा हो के वह आखरी रात में नहीं उठ सकेगा तो उस को रात के शुरू ही में वित्र पढ़ लेना चाहिये और जिसको आखरी रात में उठने की पूरी उम्मीद हो तो उसे आखरी रात में वित्र पढ़ना चाहिये।”