28 Ramzan | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

इस्लामी तारीख

इस्लाम में पहला हज

हज इस्लाम के पांच अरकान में से एक रुक्न है जो सन ९ हिजरी में फर्ज किया गया। लिहाजा इस फरीजे की अदायगी के लिए इसी साल रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (र.अ) को अमीरे हज बनाया और मुसलमानों को हज कराने की जिम्मेदारी सुपुर्द की।

हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (र.अ) के साथ मदीना से तीन सौ आदमियों का काफिला हज के लिए रवाना हुआ। इसके बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) के हुक्म से हज़रत अली (र.अ) भी रवाना हुए और कुर्बानी के रोज जब सब लोग मिना में जमा थे, ऐलान फरमाया : “जन्नत में कोई काफिर दाखिल नहीं होगा और इस साल के बाद कोई मुशरिक हज नही कर सकता और कोई शख्स (जाहिली रस्म के मुताबिक) नंगा हो कर तवाफ नहीं कर सकता।”

इस्लाम में यह पहला फर्ज हज था जिसके अमीर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) और खतीब हज़रत अली (र.अ) थे।

हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा

दरख्त का नबी (ﷺ) की गवाही देना

हजरत इब्ने उमर (र.अ) फर्माते हैं के हम एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ सफर में थे के –

एक देहाती आप (ﷺ) की खिदमत में आया, तो आप (ﷺ) ने फ़र्माया :
तुम गवाही दो, इस बात की के अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और उस का कोई शरीक नही और मुहम्मद उस के बन्दे और रसूल हैं, तो वह कहने लगा, तुम्हारी इस बात पर गवाह कौन है? रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया: यह सलम का दरख्त, वह दरख्त मैदान के किनारे पर था, जब रसूलुल्लाह (ﷺ) ने उस को बुलाया, तो वह जमीन को चीरता हुआ आप (ﷺ) के सामने खड़ा हो गया, रसूलुल्लाह (ﷺ) ने उस से तीन मर्तबा गवाही चाही, तो उस ने तीन मर्तबा गवाही दी के आप सच्चे रसूल हैं, फिर वह अपनी जगह चला गया।

📕 सुनने दार्मी:१६,अन इब्ने उमर (र.अ)

एक फर्ज के बारे में

बगैर किसी उज्र के नमाज़ क़ज़ा न करना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:

“जो शख्स दो नमाज़ों को बगैर किसी उज्र के एक वक्त में पढ़े
वह कबीरा गुनाहों के दरवाजों में से एक दरवाजे पर पहुँच गया”

📕 मुस्तदरक : १०२०, अन इब्ने अब्बास (र.अ)

एक सुन्नत के बारे में

फकीरी और कुफ्र से पनाह मांगने की दुआ

रसूलुल्लाह (ﷺ) इस दुआ को पढ़ कर कुफ्र और फक्र से पनाह मांगते:

तर्जमा : ऐ अल्लाह ! मैं कुफ्र,फक्र व फाका और कब्र के अज़ाब से तेरी पनाह चाहता हूँ।

📕 नसई:५४६७,अन मुस्लिम

एक गुनाह के बारे में

नमाज़ में सुस्ती करना कैसा ?

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“ऐसे नमाजियों के लिए बड़ी खराबी है, जो
अपनी नमाजों की तरफ़ से गफ़लत व सुस्ती
बरतते हैं, जो सिर्फ रियाकारी करते हैं।”

📕 सूरह माऊन :४-६

दुनिया के बारे में

माल व दौलत आज़माइश की चीजें हैं

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“(जब अल्लाह तआला) इन्सान को आजमाता है तो
उस को (जाहिरन माल व दौलत दे कर) उसका इकराम करता है
तो वह (बतौरे फन) कहने लगता है, के मेरे रबने मेरी कद्र बढ़ा दी ।
(हालांके यह उसकी तरफ से इसकी आज़माइश का ज़रिया है)।”

📕 सूरह फज्र : १५

आख़िरत के बारे में

कयामत में तीन किस्म के लोग

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“कयामत के दिन जहन्नम से एक गर्दन निकलेगी, जिस की
दो देखने वाली औंखें, दो सुनने वाले कान और एक बोलने वाली
जुबान होगी, वह कहेगी: तीन किस्म के लोग मेरे सुपुर्द किए गए हैं:
(१) हर मगरूर हक जान कर रुगरदानी करने वाला।
(२) अल्लाह के साथ किसी और को खुदा समझ कर पुकारने वाला।
(३) तस्वीर बनाने वाला।”

📕 शोअबुल ईमान: ६०८४. अन अबी हुरैरह (र.अ)

तिब्बे नब्बीसे इलाज

हर किस्म के दर्द का इलाज

उस्मान बिन अबी अल आस (र.अ.) से रिवायत है के,
उन्होंने रसूलअल्लाह (ﷺ) से दर्द की शिकायत की जिसे वो अपने जिस्म में
इस्लाम लाने के वक्त महसूस कर रहे थे,

आप (ﷺ) ने फ़रमाया “तुम अपना हाथ दर्द की जगह पर रखो
और कहो, बिस्मिल्लाह तीन बार, उसके बाद सात बार ये कहो.

“आऊजु बिल्लाहि वा क़ुदरतीही मीन शर्री मा अजिदु वा ऊहाझीरु”
(मैं अल्लाह की जात और कुदरत से हर उस चीज़ से पनाह मांगता
हु जिसे मैं महसूस करता हु और जिस से मैं खौफ करता हु)

📕 सहीह मुस्लिम २२०२, बुक ३९, हदीस ९१

नबी (ﷺ) की नसीहत

तीन काम में देर ना करो ( नमाज़, जनाज़ा और निकाह )

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“ऐ अली! तीन काम वह है जिनमें ताखीर न करो।
(१) नमाज़, जब उस का वक्त आ जाए।
(२) जनाज़ा, जब तैयार हो जाए।
(३) बेशोहर वाली औरत का निकाह,

जब उसके लिए कोई मुनासिब जोडा (रिश्ता) मिल जाए।”

📕 तिर्मिजी: १७१. अन अली बिन अबी तालिब (र.अ)

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