रसूलल्लाह (सलाल्लाहू अलैही वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया:
“किसी मुसलमान के पास कोई भी चीज़ हो(यानी
किसी का लेना-देना या उस के ज़िम्मे माली हुकूक
हों) जिस की वसीयत करना हो तो उसके लिए यह
बात ठीक नहीं है कि दो रातें गुज़र जाएं और उसकी
वसीयत उसके पास लिखी हुयी न हो।”
(सहीह बुखारी)