जानमाज़ / मुसल्ले की तसव्विरे और दज्जाली फ़ितना

जानमाज़ और मुसल्लो पर बनी जानदार के तस्वीरों की हकीकत , फितनाइ ऐ दज्जाल की सोची समझी साजिश।

जानमाज़ / मुसल्ले की तसव्विरे और दज्जाली फ़ितना
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क्या कभी आपने मुसल्लो पर बने इन तसावीरों पर गौर किया है?

जी हाँ यह वही मुसल्ले है जिन्हे हम शौक से अपनी इबादतों में शुमार करते है बिना यह जाने के इसकी हक़ीकते क्या है।

जबकि यह कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं बल्कि सोची समझी साजिशे है जो मुसलमानो के अक़ीदे और जस्बात से खिलवाड़ के लिए बातिल ताकते दिन रात अपनी कोशिश में लगी रहती है।

आपको बता दे, मुसल्ले पर इस तरह के नकाशी वाले काम कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं बल्कि दज्जाली फ़ितने की सोची समझी साजिशे है।

कौन है इस साजिश के पीछे ?

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आज से तक़रीबन २०० साल पहले दज्जाल के मानने वाले गिरोह ने इल्लुमिनाति नाम से एक तंजीम की शक्ल ली।

इनका बुनियादी मकसद इंसानो में शयातीन का तारूफ आम करना है, यह लोग तरह तरह के सिम्बल्स से लोगों में दज्जाल का तारुफ़ आम करने में माहिर है।

फिर चाहे वो आँख का निशान हो, तरह तरह के माबूदों की तसावीर हो या और भी जानदार की शक्लो सूरत वाले डिज़ाइन हो। इनकी हर कोशिश लोगो का ध्यान भटका कर उन्हें अपने शैतानी निज़ाम का गुलाम बनाना होता है।

बहरहाल इस पोस्ट में हम सिर्फ इन्ही मुसल्लो पर बनी तसवीरो का जिक्र करेंगे जिनके जरिए मुसलमानो के अक़ीदे और जस्बातो से खिलवाड़ की साजिश की गयी है, उम्मीद है हमारी यह छोटीसी कोशिश आपको इन बड़े फ़ितनो से आगाह करने के काम आये।

सबसे पहली बात आपको बता दे, अल्लाह ताला ने जानदार की तस्वीर को नापसंद किया है, एक हदीस के मफ़हूम में आता है के क़यामत के रोज़ (जानदार की) तस्वीर बनाने वाले शदीद तरीन अज़ाब में होंगे, क़ुरआन के मफ़हूम से भी यह बात साबित होती है के सबसे पहला शिर्क इंसानो ने उसका सबब भी तस्वीर ही थी, शैतान मरदूदू ने लोगो को उनक बुजुर्गो की तस्वीर बना कर उन्हें याद करने का मश्वरा दिया और बाद के नस्लों ने उन तस्वीरों की इबादत शुरू कर दी।

तो जानदार की तस्वीर बनाना हराम है बशर्ते के अशद जरुरत न हो। जैसे आपके पासपोर्ट, वीसा पैनकार्ड और जरुरी कागजात के लिए लगने वाली तसावीर के लिए छूट है। बहरहाल यह एक अलग मौजू है, लेकिन इस पोस्ट में जिन तस्वीर की बात हम कर रहे है वो जिन्नात, शयातीन और गैर माबूदों की शक्लो सूरत वाली तस्वीरें है जो आम तौर पर हमारे मुसल्ले में हमें देखने को मिलती है।

मुसल्ले पर बनी जानदार की मुख्तलिफ तसावीर

३/10 आँख, मुहं और कान बने इस मुसल्ले वाली तस्वीर में आप आसानी से देख सकते है कैसी शख्सियत का तारुफ़ हो रहा है।

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4/11 जानमाज़ / मुसल्ले पर बनी जानदार की तस्वीर।

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5/11 जानमाज़ / मुसल्ले पर बनी जानदार की तस्वीर।

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6/11 जानमाज़ / मुसल्ले पर बनी जानदार की तस्वीर।

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7/11 जानमाज़ / मुसल्ले पर बनी जानदार की तस्वीर।

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8/11 जानमाज़ / मुसल्ले पर बनी जानदार की तस्वीर।

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9/11 जानमाज़ / मुसल्ले पर बनी जानदार की तस्वीर।

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10/11 जानमाज़ / मुसल्ले पर बनी जानदार की तस्वीर।

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11/11 जानमाज़ / मुसल्ले पर बनी जानदार की तस्वीर।

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इतनी सारी तस्वीरें देखने के बाद अब सवाल यह आता है के :

क्या बगैर मुसल्ले के नमाज़ नहीं होती ?

तो बहरहाल ऐसा बिलकुल भी नहीं है , याद रहे नमाज़ की शराइत में कही भी मुसल्ले का तज़किरा नहीं आता, नमाज़ के लिए जगह का पाक साफ़ होना जरुरी है। फिर चाहे आप जमींन पर ही क्यों न नमाज़ पढ़े।

तो बहरहाल कोशिश करे इन तमाम शैतानी फ़ितनो सें अपने इमांन व अक़ीदे की हिफाज़त करे और जितना हो सके ऐसी तसावीर वाली जानमाज़ /मुसल्ले से बचा जाये।

– अल्लाह ताला हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए।
– हमे तमाम किस्म के शैतानी कामो से अपनी पनाह आता फरमाए,
– जबतक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर जिन्दा रखे,..

वा आखिरी दावाना अलहम्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन।

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यह पोस्ट बड़ी मशक्कत से बनाया हैं, बराये खुलूस कोप्पी करनेवाले ब्लॉगर हज़रात Ummat-e-Nabi.com क्रेडिट के साथ इसे कॉपी करे। जज़कल्लाहु खैरन कसीरा।

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