मौत को कसरत से याद करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "दिलों में भी ज़ंग लगता है, जैसे के लोहे में जब पानी लग जाता है" तो पूछा गया (दिलों का ज़ंग) कैसे दूर होगा? रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया "मौत को खूब याद करने और क़ुरआन पाक की तिलावत से।" 📕 बैहेकी फी शोअबिलईमान: १९५८,अन इब्ने उमर रज़ि०
दो आदतें: दीनी मामले में अपने से बुलन्द शख्स को देखे ... रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "जो शख्स दीनी मामले में अपने से बुलन्द शख्स को देख कर उस की पैरवी करे और दुनियावी मामले में अपने से कमतर को देख कर अल्लाह तआला की अता करदा फजीलत पर उस की तारीफ करे, तो अल्लाह तआला उस को (इन दो आदतों की वजह से) सब्र करने वाला और शुक्र करने वाला लिख देता हैं। और जो शख्स दीनी मामले में अपने से कमतर को देखे और दूनीयावी मामले में अपने से ऊपर वाले को देख कर अफसोस करे, तो अल्लाह तआला उसको साबिर व शाकिर नहीं लिखता।" 📕 तिर्मिज़ी : २५१२
खुशी के वक्त सज्द-ए-शुक्र अदा करना रसूलुल्लाह (ﷺ) को जब खुशी का मौक़ा आता या कोई खुशखबरी सुनाई जाती, तो आप (ﷺ) सज्दा ए-शुक्र अदा करते। 📕 अबू दाऊद: २७७४, अन अबी बकरह रज़ि०
सूद खाने का अजाब रसूलुल्लाह (ﷺ) फ़रमाते हैं के : “मेराज की शब मेरा गुजर चंद ऐसे लोगों पर हुआ जिन के पेट धड़ों के मानिन्द बड़े बड़े थे, जिस में सांप थे, जो पेट के बाहर से नजर आते थे, मैं ने हज़रत जिब्रईल से पूछा: यह कौन लोग हैं? तो फ़रमाया: यह सूद खाने वाले हैं।” 📕 इब्ने माजाः २२७३
खाने में बरकत बीच में उतरती है रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "बरकत खाने के बीच में उतरती है, तुम किनारे से खाया करो, खाने के बीच से मत खाया करो।" 📕 तिर्मिजी: १८०५
किला फतह होना जंगे खैबर के दिन चन्द आदमी रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास आ कर भूक की शिकायत करने लगे और रसूलुल्लाह (ﷺ) से सवाल करने लगे, लेकिन हुजूर (ﷺ) के पास कोई चीज़ न थी, तो आप ने अल्लाह तआला से दुआ की : या अल्लाह ! तू इन की हालत से वाकिफ है, इन के पास खाने के लिये ही कुछ भी नहीं और न ही मेरे पास है के मैं इन को दूँ, या अल्लाह ! तू इन के लिये खैबर का ऐसा किला फतह करदे जो सब किलों में माल व दौलत के एतेबार से जियादा फरावानी रखता हो,…
मुंह में रतूबत (थूक) अल्लाह तआला ने मुंह में तरी को पोशीदा रखा है के खाना मुंह में रख कर चबाते वक्त वह तरी पैदा होती है और खाने के साथ मिल कर उसके हज्म होने में मदद करती है, आम हालात में वह तरी हल्की रहती है, जिससे हलकतर रहे और सूखने न पाए, वरना आदमी बात ही न कर सके, अगर तरी बिल्कुल न रहे और मुंह एक दम सूखा रहे तो दम धुटने लगे और इन्सान जिन्दा न रह सके, और अगर तरी खाने के अलावा भी मुंह में पैदा होती रहे तो बात करने में दुश्वारी हो और मुंह खोलना…
अपने घरवालों पर खर्च करने की फ़ज़ीलत अपने घरवालों पर खर्च करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "एक वह दीनार जिसे तुमने अल्लाह के रास्ते में खर्च किया और एक वह दीनार जिसे तुमने किसी गुलाम के आज़ाद करने में खर्च किया और एक वह दीनार जो तुमने किसी ग़रीब को सदका किया और एक वह दीनार जो तुम ने अपने घर वालों पर खर्च किया तो इन में से उस दीनार का अज्र व सवाव सबसे ज़ियादा है, जो तुमने अपने अहल व अयाल पर खर्च किया।" 📕 मुस्लिम : २३११
मेहमान का इकराम करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जब कभी भी कोई मुसलमान अपने मुसलमान भाई से मुलाकात के लिये जाए और मेजबान मेहमान का एजाज व इकराम करने की गर्ज से मेहमान को तकिया पेश करे तो अल्लाह तआला उस मेजबान की मग़फिरत फरमा देगा।" 📕 तबरानी सगीर :७६२
खाना खिलाने की फ़ज़ीलत खाना खिलाने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "जिस ने किसी मोमिन को खाना खिलाया और उसको सैराब कर दीया तो अल्लाह तआला एक खास दरवाजे से उस को जन्नत में दाखिल फ़रमाएगा जिस में उस के जैसा अमल करने वाला ही दाखिल होगा।" 📕 तबरानी कबीर : १६५८९
अपने अख़्लाक़ दुरूस्त करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "कामयाब हो गया वह आदमी जिस ने अपने दिल को ईमान के लिये सफारिश कर दिया और उसे सही सालिम रखा और अपनी जबान को सच्चा बनाया, अपने नफ़्स को नफ्से मुतमइन्ना और अख़्लाक़ को दुरूस्त बनाया और कानों को हक़ बात सुनने का और आँखों को अच्छी चीजों को देखने का आदी बनाया।" 📕 मुस्नदे अहमद: २०८०३, अन अबी जर (र.अ)
खाने पीने की चीजों में गौर करने की दावत क़ुरान में अल्लाह तआला फ़रमाता है - "इन्सान को अपने खाने में गौर करना चाहिये के हम ने खूब पानी बरसाया, फिर हम ने अजीब तरीके से जमीन को फाड़ा, फिर हम ने उस ज़मीन में से ग़ल्ला, अंगूर, तरकारी, ज़ैतून और खजूर, घने बाग़, मेवे और चारा पैदा किया। यह सब तुम्हारे और तुम्हारे जानवरों के फायदे के लिये हैं।" 📕 सूरह अबस: २४ ता ३२
मोहब्बत पाने का तरीका एक शख्स ने रसूलुल्लाह (ﷺ) से अर्ज किया : ऐ अल्लाह के रसूल ! मुझे कोई ऐसा अमल बंता दीजिये जिसको मैं करूं ताके अल्लाह तआला और लोग मुझसे मुहब्बत करने लगें। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “दुनिया से मुँह मोड़ लो, तो अल्लाह तुम से मुहब्बत करने लगेगा और जो लोगों के पास है। (यानी माल व दौलत) उससे बेरूखी इख्तियार कर लो, तो लोग तुमसे मुहब्बत करने लगेंगे।” 📕 इब्ने माजा : ४१०२, अन सहल बिन सअद (र.अ)
बेवा और मिस्कीन की मदद करने की फजीलत रसलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया: "बेवा और मिस्कीन के कामों में जद्दो जहद करने वाला अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाले के बराबर है।" 📕 बुखारी : ५३५३ अन अबी हुरैरह (र.अ)
इंसाफ करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "थोड़ी देर का इन्साफ साठ साल की शब बेदारी और रोजा रखने की इबादत से बेहतर है। ऐ अबू हुरैरा (र.अ) ! किसी मामले में थोड़ी सी देर का जुल्म, अल्लाह के नजदीक साठ साल की नाफ़रमानी से जियादा सख्त और बड़ा गुनाह है।" 📕 तरघिब वा तरहीब: ३१२८