हज़रत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 2) | Qasas ul Anbiya: Part 17

हजरत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 2)
Qasas ul Anbiya: Part 17

अज़ीज़े मिस्र की बीवी जुलेखा और यूसुफ (अ.) 

………. कुएं में डाले जाने और गुलामी के बाद अब हज़रत यूसुफ़ की एक और आज़माइश शुरू हुई, वह यह कि हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की जवानी का आलम था। हुस्न और खूबसूरती का कोई ऐसा पहलू न था जो उनके अन्दर मौजूद ना हो। अजीजे मिस्र की बीवी दिल पर काबू न रख सकी और यूसुफ़ अलैहि सलाम पर परवानावार निसार होने लगी, मगर नुबूवत के लिए मुंतखब आदमी से भला यह कैसे मुम्किन था कि अज़ीज़ की बीवी के नापाक इरादों को पूरा करे। कुरआन में पेश आने वाले वाकिए का ज़िक इस तरह से है –

और फुसलाया यूसुफ को उस औरत ने, जिसके घर में वह रहते थे, उसके नफ़्स के मामले में और दरवाजे बन्द कर दिए और कहने लगी, आ मेरे पास आ।' यूसुफ़ ने कहा, 'अल्लाह की पनाह।' यूसुफ़ 12:23

बहरहाल हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम दरवाजे की तरफ़ भागे तो अजीज की बीवी ने पीछा किया और दरवाज़ा किसी तरह खुल गया। सामने अजीजे मिस्र और औरत का चचेरा भाई खड़े थे। अज़ीजे मिस्र की बीवी बोली –

कहने लगी उस शख्स की सज़ा क्या है जो तेरे अहल के साथ बुराई का इरादा रखता हो, मगर यह कि कैद कर दिया जाए या दर्दनाक अजाब में मुब्तला किया जाए। यूसुफ़ ने कहा, इसी ने मुझको मेरे नफ़्स के बारे में फुसलाया था और फैसला किया औरत के ही घराने के एक बच्चे ने कि अगर यूसुफ़ का पैरहन सामने से चाक है तो औरत सच्ची है और यूसुफ़ झूठा है और अगर पीछे से चाक है तो औरत झूठी है और यूसुफ़ सच्चा है। पस जब उसकी कमीज़ को देखा गया तो पीछे से चाक था, कहा, बेशक ऐ औरत: यह तेरे मक्र व फरेब से है। बेशक तुम्हारा मक्र बहुत बड़ा है। यूसुफ़! तू इस मामले से दरगुजर कर और ऐ औरत! तू अपने गुनाह की माफ़ी मांग, तू बेशक खताकार है।' यूसूफ 12:25-29

अज़ीजे मिस्र ने अगरचे फ़ज़ीहत और रुस्वाई से बचने के लिए इस मामले को यहीं पर ख़त्म कर दिया, मगर बात छिपी न रह सकी। कुरआन मजीद में आता है –

और (जब इस मामले का चर्चा फैला) तो शहर की कुछ औरतें कहने लगीं, देखो अजीज की बीवी अपने गुलाम पर डोरे डालने लगी उसे रिझा ले, वह उसकी चाहत में दिल हार गई हमारे ख्याल में तो बदचलनी में पड़ गई। पस जब अजीज़ की बीवी ने इन औरतों की बातों को सुना, तो उनको बुलावा भेजा और उनके लिए मस्नदें तैयार की और (दस्तूर के मुताबिक) हर एक को एक-एक छुरी पेश कर दी, फिर यूसुफ़ से कहा, सबके सामने निकल आओ। जब यूसुफ़ को इन औरतों ने देखा तो बड़ाई की कायल हो गईं, उन्होंने अपने हाथ काट लिए और (बे-अलिया पुकार उठी, यह तो इंसान नहीं, ज़रूर एक फ़रिश्ता है, बड़े रुतबेवाला फ़रिश्ता। (अज़ीज की बीवी) बोली : तुमने देखा, यह है वह आदमी जिस के बारे में तुमने मुझे ताने दिए। यूसुफ़ 12:30-38

अज़ीज़ की बीवी ने यह भी कहा कि बेशक मैंने उसका दिल अपने काम में लेना चाहा था, मगर वह बे-काबू न हुआ, मगर मैं कहे देती हूं कि अगर इसने मेरा कहा न माना तो यह होकर रहेगा कि वह कैद किया जाए और बेइज्जती में पड़े।

हज़रत यूसुफ़ ने जब यह सुना और फिर अजीजे मिस्र की बीवी के अलावा और सब औरतों के चरित्र अपने बारे में देखे तो अल्लाह के हुजर हाथ फैलाकर दुआ की और कहने लगे –

यूसुफ़ ने कहा, ऐ मेरे पालनहार! जिस बात की तरफ़ ये मुझको बुलाती है, मुझे उसके मुकाबले में कैदखाने में रहना ज़्यादा पसन्द है. और अगर तूने उनके मक्र को मुझसे न हटा दिया और मेरी मदद न की, तो मैं कहीं उनकी ओर झुक न जाऊं और नादानों में से हो जाऊं। पस उसके रब ने उसकी दुआ कुबूल की और उससे उनका मक्र हटा दिया। बेशक वह सुन वाला, जानने वाला है। यूसुफ़ 12:33-35

अब अजीजे मिस्र ने यूसुफ़ अलैहि सलाम की तमाम निशानियां देखने और समझने के बाद अपनी बीवी की फजीहत व रुसवाई होती देखकर यह तय कर ही लिया कि यूसुफ को एक मुद्दत के लिए कैदखाने में बन्द कर दिया जाए, ताकि यह मामला लोगों के दिलों से निकल जाए, ये चर्चे बन्द हो जाएं, इस तरह हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम को जेल जाना पड़ा।


यूसुफ़ अलैहि सलाम जेल में:

………. तौरात में है कि यूसुफ़ अलैहि सलाम के इल्मी और अमली जौहर कैदखाने में भी न छिप सके और कैदखाने का दारोगा उनके हलका-ए-इरादत में दाखिल हो गया और जेल का तमाम इन्तिजाम व इन्सिराम उनके सुपुर्द कर दिया और वह कैदखाने के बिल्कुल मुख्तार हो गए।


कैदखाने में दावत व तब्लीग:

………. एक अच्छा इत्तिफ़ाक देखिए कि हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम के साथ दो नवजवान और कैदखाने में दाखिल हुए। उनमें से एक शाही साकी था और दूसरा था शाही बावर्चीखाने का दारोगा। एक दिन दोनों नवजवान हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम की खिदमत में हाज़िर हुए और उनमें से साक़ी ने कहा कि मैंने यह ख्वाब देखा है कि मैं शराब बनाने के लिए अंगूर निचोड़ रहा हूं और दूसरे ने कहा, मैंने यह देखा है कि मेरे सर पर रोटियों का ख्यान है और परिंदे उसे खा रहे हैं।

यह सुनकर हज़रत यूसुफ़ ने फ़रमाया: बेशक अल्लाह तआला ने जो बातें मुझे तालीम फ़रमाई हैं, उनमें से एक इल्म यह भी अता फरमाया है। मैं इससे पहले कि तुम्हारा मुक़र्रर खाना तुम तक पहुंचे, तुम्हारे ख्वाबों की ताबीर बता दूंगा, मगर तुमसे एक बात कहता हूं, जरा इस पर भी गौर करो और समझो-बूझो।

ऐ मज्लिस के साथियो! (तुमने इस पर भी गौर किया कि) जुदा-जुदा माबूदों का होना बेहतर है या एक अल्लाह का जो अकेला और सब पर ग़ालिब है। तुम इसके सिवा जिन हस्तियों की बन्दगी करते हो, उनकी हकीकत इससे ज़्यादा क्या है कि सिर्फ कुछ नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं। हुकूमत तो अल्लाह ही के लिए है। उसका फरमान यह है कि सिर्फ़ उसकी बन्दगी करो और किसी की न करो, यही सीधा दीन है, मगर अक्सर आदमी ऐसे हैं जो नहीं जानते। यूसुफ 12:39-40

रुश्द व हिदायत के इस पैग़ाम के बाद हजरत यूसुफ़ उनके ख्वाबों की ताबीर की तरफ मुतवजह हुए और फ़रमाने लगे-
‘दोस्तो! जिसने देखा है कि वह अंगूर निचोड़ रहा है, वह फिर आजाद होकर बादशाह के साथी की ख़िदमत अंजाम देगा और जिसने रोटियों वाला ख्वाब देखा है, उसको सूली दी जाएगी और परिदै उसके सर को नोच-नोच कर खाएंगे।’

हज़रत यूसुफ़ जब ख्वाब की ताबीर से फ़ारिग हो गए तो साक्री से, यह समझकर कि वह नजात पा जाएगा, फ़रमाने लगे, ‘अपने बादशाह से मेरा जिक्र करना।’ साक्री को जब रिहा किया गया तो उसको अपनी मशगुलियतों में कुछ भी याद न रहा और कुछ साल तक और यूसुफ़ को जेल में रहना पड़ा।


अजीजे मिस्र का ख्वाब:

………. हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम अभी जेल ही में थे कि वक़्त के अजीजे मिस्र ने एक ख्वाब देखा कि सात मोटी गाएं हैं और सात दुबली गाँये, दुबली गाएं मोटी गायों को निगल गई और सात सरसब्ज व शादाब बालियां हैं और सात सूखी बालियों ने हरी बालियों को खा लिया। बादशाह सुबह उठा और फ़ौरन दरबार के मुशीरों से अपना ख्वाब कहा। दरबारी इस ख्वाब को सुनकर ताज्जुब में पड़ गए। इस बीच साक्री को अपना ख्वाब और हज़रत यूसुफ़ की दी हुई ताबीर का वाकिया याद आ गया। उसने बादशाह की खिदमत में अर्ज किया कि अगर कुछ मोहलत दीजिए तो मैं उसकी ताबीर ला सकता हूं। बादशाह की इजाजत से वह कैदखाना पहुंचा और हजरत यूसुफ़ को बादशाह का ख्वाब सुनाया और कहा कि आप इसको हल कीजिए।

हज़रत यूसुफ़ ने उसी वक्त ख्वाब की ताबीर दी और सही तदबीर भी बतला दी जैसा कि कुरआन में जिक्र किया गया है –

कहा, तुम खेती करोगे सात बरस जम कर, सो जो काटो उसको छोड़ दो उसकी बाली में, मगर थोड़ा-सा जो तुम खाओ, फिर आएंगे इसके बाद सात वर्ष सख्ती के खा जाएंगे जो रखा तुमने उसके वास्ते मगर थोड़ा तो रोक रखोगे बीज के वास्ते, फिर आएगा, एक वर्ष उसके पीछे उसमें वर्षा होगी लोगों पर और उसमें रस निचोड़ेंगे।' यूसुफ़ 12:47-49

To be continued …

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