Islamic Stories in Hindi – Ummate Nabi ﷺ https://ummat-e-nabi.com Quran Hadees Quotes Mon, 19 Feb 2024 16:48:33 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.3 https://ummat-e-nabi.com/wp-content/uploads/2023/09/favicon-96x96.png Islamic Stories in Hindi – Ummate Nabi ﷺ https://ummat-e-nabi.com 32 32 179279570 99 इल्म की बातें | कुरआन व हदीस की रौशनी में | Quran Quotes in Hindi https://ummat-e-nabi.com/99-qeemti-baatein/ https://ummat-e-nabi.com/99-qeemti-baatein/#respond Mon, 19 Feb 2024 15:45:57 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=26838 99 Qeemti Baatein Quran aur Hadees ki roshni mein99 इल्म की बातें | कुरआन व हदीस की रौशनी में | Quran Quotes in Hindi # 99 इल्म की बातें 1. अल्लाह की याद से अपने दिल को ताज़ा […]

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99 इल्म की बातें | कुरआन व हदीस की रौशनी में | Quran Quotes in Hindi

#99 इल्म की बातें
1.अल्लाह की याद से अपने दिल को ताज़ा दम रखा कीजिए।
इस लिए के खुदा की याद क़ुलूब के लिए इत्मिनान का जरिया है। (सूरह राअद 28)
2.अल्लाह की ज़ात आली पर मुकम्मल भरोसा कीजिये।
इस लिए के अल्लाह त’अला तवक़्क़ल करने वालों को मेहबूब रखता हैं। (सूरह निसा)
3.शिर्क व असबाबे शिर्क से बचा कीजिये।
इसलिये के मुश्रिक की मग़फ़िरत बिलकुल नहीं है। (सूरह निसा, 116)
4.सब्र और नमाज़ के ज़रिये मदद तलब किया कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह की (मदद) साबेरीन के साथ है। (सूरह बक़रा, 153)
5.अपनी ज़िन्दगी के तमाम शोबों में सुन्नत-ऐ-रसूल का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के उस्वाए रसूल (स.) ही में कामियाबी है। (सूरह अहज़ाब, 21)
6.सच्चों की सोहबत इख्तियार किया कीजिये।
इसलिये के सच्चों की सोहबत आदमी को तक़वा के मर्तबे कमाल तक पहुंचा देती है। (सूरह तौबा, 119)
7.शैतान की पैरवी से बचा कीजिए।
इसलिये के वो (इंसान) के लिए खुला हुआ दुश्मन है। (सूरह बक़रा, 208)
8.हक़ को बातिल के साथ मिलाकर पेश करने से बचा कीजिये।
इसलिये के इस अमल पर अल्लाह की सख्त डांट है। (सूरह बक़रा, 42)
9.अहले इल्म और बे-इल्म के दरमियान इम्तियाज़ क़ायम कीजिये।
इसलिये के अहले इल्म और बे इल्म कभी भी बराबर नहीं हो सकते। (सूरह जुमर, 9)
10.नेको कारी का हुक्म देने के साथ इस पर अमल भी किया कीजिये।
इसलिये के लोगों को हुक्म देकर खुद इस पर अमल से गाफिल रेहना यहूदियों की सिफ़त है। (सूरह बक़रा, 44)

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11.सुबह व शाम सदके व ख़ैरात का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के ये अहले ईमान की एहम सिफ़त है। (मफ़हूम अल क़ुरान)
12.अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तमाम ने’मतों की शुक्रगुज़ारी में रहा कीजिये।
इसलिये के नेमतों पर शुकर गुज़ारी इज़ाफ़े का सबब है। (सूरह इब्राहीम,8)
13.इसराफ़ (फ़िज़ूलखर्ची) से बचने की मुकम्मल कोशिश कीजिये।
इसलिये के इसराफ़ करने वालों को अल्लाह पसंद नहीं करता। (सूरह अनाम, 141)
14.फितना साज़ी से बचने की मुकम्मल कोशिश कीजिये।
वो इसलिये के फितना (का गुनाह) क़त्ल से भी बढ़ कर है। (सूरह बक़रा, 191)
15.अपनी पसंदीदा चीज़ को अल्लाह की रज़ा के लिए दिया कीजिये।
इसलिये के पसंदीदा चीज़ को देकर ही कामिल नेकी का अजर पा सकते हो। (सूरह अल इमरान, 92)
16.रिश्वत लेने और देने के गुनाह से बचा कीजिये।
इसलिये के रिश्वत लेने वाला और देने वाला दोनों जहन्नुमी हैं। (तिर्मिज़ी)
17.हज़रत नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर बकसरत दरूद पढ़ने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिए कि आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर एक दफा दरूद पढ़ने से अल्लाह की 10 रेहमतें उतरती हैं। (मुस्लिम)
18.बदगुमानी के गुनाह से बचा कीजिये।
इसलिये के बदगुमानी सब से बड़ा झूठ है। (बुखारी, 5829)
19.हमेशा सच बोलने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के झूट बोलना मुनाफ़िक़ की अलामत है। (मुस्लिम: 211)
20.अपने ख़ालिक़ से हुस्न-ऐ-जन रखा कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह के फैसले बन्दे के गुमांन के मुताबिक़ होते हैं। (मुस्लिम, 4829)

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21.अल्लाह तआला से माँगने की सिफ़त को न भुला कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह से माँगना ही तमाम इबादतों का खुलासा है। (तिर्मिज़ी, 3371)
22.क़ुरआन मजीद सीखने और सीखाने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के सब से बेहतर शख्स वो है जो कुरआन मजीद सीखे और सिखाए। (बुखारी, 4836)
23.नमाज़ में सफों के दरुस्त रखने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के सफों का दरुस्त न होना आपसी इख़्तेलाफ़ का सबब है। (बुखारी)
24.नेक काम करें या इसकी तरफ़ रहनुमाई की कोशिश कीजिये।
इसलिये के नेक काम की रहबरी भी इसको अंजाम देने की तरह है। (अल तरग़ीब: 120)
25.धोका धड़ी से अपने आप को बचाया कीजिये।
इसलिये के जो धोका दे वो हम (मुसलमानो) में से नहीं है। (मुस्लिम, 284)
26.अमानत में खियानत करने से बचा कीजिये।
इसलिये के अमानत में खियानत करना ये मोमिन की अलामत नहीं है। (मुस्लिम, 211)
27.इल्मे दीन को रज़ा-ऐ-इलाही के लिए खालिस किया कीजिये।
इसलिये के दिगर फ़ासिद नियतों (इज़्ज़त, शोहरत, रियाकारी) से हासिल करना जहन्नुम में दाखिल होने का सबब है। (तिर्मिज़ी, 2655)
28.वज़ू को मुकम्मल सुन्नतों के एहतेमाम के साथ किया कीजिये।
इसलिये के वो वज़ू जो कामिल सुन्नतों के साथ होगा वो अगले पिछले गुनाहों के मिटाने का जरिया होगा। (मजमूआ अल जुवेद, 542)
29.वालिद की दुआएं हमेशा लिया कीजिये।
इसलिये के वालिद की दुआ औलाद के हक़ में कबूल होती है। (अबू दाऊद, 15386)
30.अहले ईमान पर लान तान करने से बचा कीजिये।
इसलिये के मोमीनों पर लानत करना इनको क़तल करने के मानिंद है। (मुस्लिम, 303)

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31.खुद को सलाम करने में आगे रखा कीजिये।
इसलिये के सलाम में पहल करने वाला तकब्बुर से बरी होगा। (बैहेकि शोएब उल ईमान,433)
32.लायानी (फ़ुज़ूल, बेकार) चीज़ों से बचने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के मुसलमान की खूबी ये है के वो लयानी चीज़ों से बचता है। (तिर्मिज़ी, 2317)
33.दूसरों से सिर्फ अल्लाह ही के लिए मोहब्बत किया कीजिये।
इसलिए कि वो सब से अफज़ल काम है। (अबू दाऊद, 4599)
34.दूसरों से सिर्फ अल्लाह ही के लिए बूग्ज़ किया कीजिये।
इसलिए कि वो सब से ऊंचा अमल है। (अइज़न)
35.तकब्बुर जैसे हलाक करने वाले मर्ज़ से बचा कीजिये।
इसलिये के जिस शख्स के दिल में जर्रा बराबर तकब्बुर होगा वो जन्नत में न जायेगा। (मुस्लिम, 267)
36.ला इलाहा इल्लल लाहु के विर्द का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के ला इलाहा इल्लल लाहु ईमान की आला शाख है। (मुस्लिम, 153)
37.रास्तों से तकलीफ़देह चीज़ों का हटाया कीजिये।
इसलिये के ये हुसूल-ऐ-ईमान का आसान जरिया है। (मुस्लिम)
38.दामन-ऐ-हया को दागदार होने से बचाया कीजिये।
इसलिये के हया ईमान का एहम शोबा है। (मुस्लिम)
39.दूसरों के लिए नफ़ा बनने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के बेहतरीन शख्स वो है जो दूसरों को नफा पहुंचाये। (दर कुतनी, 661\2)
40.ज़ालिम बनने या मज़लूम होने से बचने की दुआ कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन दोनों चीज़ों से पनाह मांगी है। (अबू दाऊद, 5094)

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41.गुमराह होने या गुमराह कुन शै से बचने की दुआ कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन दोनों बातों से पनाह मांगी है (अबू दाऊद, 5094)
42.मख्लूक़ की इताअत में ख़ालिक़ की नाफरमानी से बचा कीजिये।
इसलिये के मख्लूक़ की इताअत में ख़ालिक़ की नाफरमानी जायज़ नहीं। (अहमद)
43.गुनाहों से तौबा व अस्तग़फ़ार का एहतेमाम कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह तौबा करने वालों को पसंद करता हैं। (सूरह बक़रा, 222)
44.नर्म मिजाजी को अपना शेवा बनाया कीजिये।
इसलिये के जो नर्म मिजाजी से महरूम रहा वो सारी भलाई से महरूम रहा। (मुस्लिम, 6598)
45.उलमा-ऐ-दींन की ताजीम व तवकीर किया कीजिये।
इसलिये के जो उलमा की क़दर न करे वो उम्मत-ऐ-मुस्लिमा में से नहीं। (मजमूआ अल-ज़ूवाइद, 338)
46.छोटों के साथ शफ़क़त का मुआमला कीजिये।
इसलिये के जो छोटों पर शफ़क़त न करे वो उम्मत-ऐ-मुस्लिमा में से नहीं। (मजमूआ अल-ज़ूवाइद)
47.बड़ों की भरपूर ताज़ीम किया कीजिये।
इसलिये के जो बड़ों की ताज़ीम न करे वो उम्मत-ऐ-मुस्लिमा में से नहीं। (मजमूआ अल-ज़ूवाइद)
48.अपनी औलाद की दीनी तरबीयत की फ़िक्र कीजिये।
इसलिये के वालिद की तरफ से इस की औलाद के लिए दीनी तरबीयत से बढ़ कर कोई तोहफा नहीं। (तिर्मिज़ी,1952)
49.अपने मुसलमान भाई से तीन दिन से ज़्यादा क़ता-ऐ-ता’लुक न कीजिये।
इसलिये के तीन दिन से ज़्यादा क़ता-ऐ-ता’लुक करने वाला जहन्नुमी है। (अबू दाऊद, 4914)
50अपने आप को पाक दामन रखा कीजिये।
इसलिये के मर्दों की पाक दामनी खुद उन की औरतों की पाक दामनी का जरिया है। (मजमूआ अल-ज़ूवाइद)

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51.चाहे दीनी काम हो या दुनियावी इस से पहले नमाज़ का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी भी अमर के पेश आने पर सबसे अव्वल नमाज़ पढ़ते थे। (अबू दाऊद, 1319)
52.फ़र्ज़ नमाज़ें बा जमात अदा कीजिये।
इसलिये के बाअज़मत नमाज़ इंफरादि नमाज़ से 27 दर्ज़े फ़ज़ीलत रखती है। (मुस्लिम, 1477)
53.तिजारत (व्यापार), सचाई और अमानतदारी के साथ किया कीजिये।
इसलिये के सचाई व अमानतदारी के साथ तिजारत करने वाला सिद्धिक़ीन और शुहदा के साथ होगा। (तिर्मिज़ी, 1209)
54.सलाम के बाद मुसाफह की कोशिश कीजिये।
इसलिये के मुसाफह सलाम की तकमील का जरिया है। (तिर्मिज़ी, 2730)
55.अपने भाइयों की (जायज़) ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के जो अपने भाई की ज़रुरत पूरा करेगा अल्लाह इसकी जायज़ ज़रूरतों को पूरा करेगा। (अबू दाऊद, 4893)
56.मेहमान की भरपूर ताज़ीम किया कीजिये।
इसलिये के ये मोमिन की शान है। (मुस्लिम, 50)
57.लूट मार डाका जानि से बचा कीजिये।
इसलिये के जो लूट मार करें वो हम में से नहीं। (तिर्मिज़ी, 1123)
58.बहम मुसाफह का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के मुसाफह से कीना ख़तम हो जाता है। (मौता मलिक, 706)
59.आपस में हदीया (तोहफे) देने का मामूल रखा कीजिये।
इसलिये के हदीया आपस में मोहब्बत बढ़ाने के साथ दुश्मनी को दूर करता है। (मौता मलिक, 706)
60.हसद जैसे हलाक करने वाले मर्ज़ से बचा कीजिये।
इसलिये के हसद ये दीन को बरबाद कर देता है। (अबू दाऊद, 4903)

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61.धोका बाज़ी करने से बचा कीजिये।
इसलिये के धोकेबाज़ जन्नत में दाख़िल न होगा। (तिर्मिज़ी, 1923)
62.सिफ़त-ऐ-बुख़ल से बचने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के बख़ील जन्नत में दाख़िल न होगा। (तिर्मिज़ी)
63.एहसान जताने की मज़मूम सिफ़त से बचा कीजिये।
इसलिये के एहसान जताने वाला जन्नत में दाख़िल न होगा। (तिर्मिज़ी)
64.फुकरा (गरीब) से मोहब्बत और इनके साथ हमनशिनी इख़्तियार कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन से मोहब्बत और हमनशिनी की तरग़ीब दी है। (अल-हकीम, 4/332)
65.अरबों से दिल से मोहब्बत किया कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसकी तरग़ीब दी है। (अल-हाकिम, 4/332)
66.मुअजनीन की बत्तमीज़ी करने से बचा कीजिये।
इसलिये के मुअजनीन क़यामत के दिन ज़्यादा लम्बी गर्दन वाले होंगे। (मुस्लिम, 852)
67.दींन-ऐ-क़ाइम को इस्लाम माना कीजिये।
इसलिये के वो हलावत ईमान के मिलने का सबब है। (मफ़हूम)
68.नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को सच्चा रसूल माना कीजिये।
इसलिए कि वो भी हलावत ईमान के हुसूल का वसीला है। (मफ़हूम)
69.क़त्ल ऐ मोमिनीन के जुर्म-ऐ-अज़ीम से बचा कीजिये।
इसलिये के क़त्ल ऐ मोमिनी अल्लाह के नज़दीक सारे दुनिया के ख़तम हो जाने से बढ़कर है। (निसाई, 3995)
70.बीमारों से दुआ की दरखवास्त किया कीजिये।
इसलिये के बीमारों की दुआ फरिश्तों की तरह क़ुबूल होती है। (इब्न माजा, 1441)

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71.किसी भी काम से पहले इंशा अल्लाह कहा कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह की मशीयत के बग़ैर कोई काम नहीं होता। (सूरह कहफ़, 23)
72.अच्छी बातों का हुक्म और बुरी बातों से रोका कीजिये।
इसलिये के ये उम्मत-ऐ-मुस्लिमा की इम्तियाज़ी खुसूसियत है। (सूरह अल- इमरान, 110)
73.अल्लाह के घरों को आबाद किया कीजिये।
इसलिये के मसाजिद को आबाद करना अहले ईमान की ज़िम्मेदारी है। (सूरह तौबा, 18)
74.अज़ान व अक़ामत के दरमियान दुआ का मामूल बनाया कीजिये।
इसलिये के अज़ान व अक़ामत के दरमियान की जाने वाली दुआ क़ुबूल होती है। (तिर्मिज़ी, 3594)
75.हुस्न-ऐ-खात्मे के लिए दुआ किया कीजिये।
इसलिये के (ज़िन्दगी) के तमाम आमाल का ऐतबार (उम्दह) खात्मा पर है। (बुखारी)
76.अपने आमाल में इखलास पैदा कीजिये।
इसलिये के इखलास ही क़ुबूलियत-ऐ-आमाल की रूह है। (निसाई, 3142)
77.पोशीदा तौर पर सदक़ा देने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के पोशीदा सदक़ा करना अल्लाह के गुस्से को ठंडा करता है। (मजमूआ अल-ज़वाइद, 3/293)
78.परहेज़गारी, मखलूख से बेनियाज़ी, गुमनामी (जैसी उम्दाह) सिफ़ात को इख्तियार किया कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह इन सिफ़ात के हामिल बन्दे को पसंद फ़रमाता हैं। (मुस्लिम, 7432)
79.नमाज़ मिस्वाक कर के पढ़ने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के मिस्वाक कर के पढ़ी जाने वाली नमाज़ बग़ैर मिस्वाक के अदा की जाने वाली 70 रकअतें पढने से अफ़ज़ल है। (मजमूआ अल-ज़वाइद: 2/ 263)
80.हर अच्छी बात को तीन दफा कहने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम इसका एहतेमाम फरमाते थे, ताके मुख़ातिबींन (सुनने वाले) बात को अच्छी तरह समझ जाएँ। (बुखारी, 95)

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81.कूत्मान-ऐ-इल्म के जुर्म से बचा कीजिये।
इसलिये के बा रोज़-े क़यामत कूत्माने-इल्म करने वाले के मुँह में आग लगा दी जाएगी। (अबू दाऊद, 3658)
82.गुनाह होते ही फौरी तौबा कर लिया कीजिये।
इसलिये के बेहतरीन शख्स वही है जो गुनाह के साथ ही तौबा कर लें। (तिर्मिज़ी, 2499)
83.अल्लाह के क़ादिर-ऐ-मुतलक़ होने का यक़ीन कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता हैं। (सूरह बक़रा, 20)
84.नेक कामों में नियत दरुस्त रखा कीजिये।
इसलिये के सारे आमाल नियत के मुताबिक़ क़ुबूल होते हैं। (बुखारी)
85.दूसरों पर रहम व करम का रवैया बर्ता कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह उस शख्स पर रहम नहीं करता जो लोगों पर रहम न करें। (तिर्मिज़ी, 14)
86.चुगलखोरी से खुद को बचाया कीजिये।
इसलिये के चुगल खोर जन्नत में दाख़िल न होगा। (बुखारी, 6056)
87.रिश्ता तोड़ने से बचा कीजिये।
इसलिये के रिश्ता तोड़ने वाला जन्नत में दाख़िल न होगा। (बुखारी, 5984)
88.ज़ुल्म करने से खुद को दूर रखा कीजिये।
इसलिये के ज़ुल्म रोज़-ऐ-क़यामत अंधेरों की सूरत में होगा। (बुखारी, 2384)
89.अमाल-ऐ-सालेहा मुख़्तसर ही हो मगर पाबन्दी से किया कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह के यहाँ पसंदीदा अमल वही है जो पाबन्दी से किया जाये अगरचे मिक़्दार में थोड़ा ही क्यों न हो। (मुस्लिम)
90.अपने अख़लाक़ को उम्दाह रखा कीजिये।
इसलिये के मोमिन अच्छे अख्लाक की वजह से रोज़ा रखने वाले और रात भर इबादत गुज़ार के मुकाम को पा लेता है। (अबू दाऊद, 479)

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91.हर सुनी हुई बात का ज़िक्र करने से बचा कीजिये।
इसलिये के आदमी के झूठा होने के लिए यही काफ़ी है के वो हर सुनी हुई बात को नक़ल कर दें। (सहिह मुस्लिम, हदीस 7)
92.पड़ोसियों को तकलीफ देने से बच्चा कीजिये।
इसलिये के पड़ोसियों को तकलीफ देने वाला जन्नत में दाख़िल न होगा। (मुस्लिम, 50)
93.पाक व साफ़ रहने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के पाक रेहना आधा ईमान है। (मुस्लिम)
94.रस्मे व बिदआत से अपनी अमली ज़िन्दगी को बचाया कीजिये।
इसलिये के हर बिद्दत गुमराही है। (मुस्लिम)
95.अपने गुस्से पर काबू रखा कीजिये।
इसलिये के पहलवान वो है जो गुस्से के वक़्त नफ़्स पर काबू पा ले। (बुखारी, 6114)
96.अपनी खुवाहिशात को शरीयत के ताबेय बनाया कीजिये।
इसलिये के क़ामिल-ऐ-ईमान के लिए ये अमल जरूरी है। (अल-बागवी, 213)
97.गुनाह-ऐ-ग़ीबत से बचने का भरपूर एहतेमाम किया कीजिये।
इसलिये के ग़ीबत (का गुनाह) बदकारी से भी बढ़कर है। (मिश्कात)
98.जुबां और शर्मगाह को मासियत के दलदल से बचाया कीजिये।
इसलिये के इन दोनों की हिफाज़त पर जन्नत की बशारत है। (बुखारी)
99.अल्लाह के (99) नाम याद करने का एहतेमाम किया कीजिये।
इसलिये के जो इन को अच्छी तरह याद कर लें वो जन्नत में दाखिल होगा। (तिर्मिज़ी)

नोट:

वाज़ेह रहे के मज़कूरा तमाम बातें कुरान व हदीस की रौशनी में है अलबत्ता हूबहू आयात व अहादीस का तर्जुमा नहीं बल्कि सिर्फ मफ़हूम दर्ज है। अहल-ऐ-इल्म हज़रात किसी किस्म की कमी महसूस करें तो ज़रूर हमारी इस्लाह फरमाये।

अल्लाह त’अला हम तमाम को इन बातों पर सिद्क़ दिल से अमल की तौफीक अता फरमाए।  अमीन या रब्ब-उल-आलमीन।

और भी देखे :

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Islam Dharm kitna purana hai | इस्लाम धर्म कितना पुराना है ? https://ummat-e-nabi.com/islam-dharm-kitna-purana-hai/ https://ummat-e-nabi.com/islam-dharm-kitna-purana-hai/#respond Thu, 01 Feb 2024 05:47:03 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=45408 इस्लाम धर्म कितना पुराना है | Islam Dharm kitna purana hai?islam dharm kitna purana hai | इस्लाम को आमतौर पर 1400 साल पुराना माना जाता है, यद्यपि यह धर्म मानव इतिहास से जितना पुराना है, उतना ही पुराना है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) इस्लाम के 'सस्थापक' के रूप में माना जाता है, जबकि हकीकत यह है कि वे धर्म के अंतिम प्रवक्ता थे। इस्लाम की वास्तविकता और इतिहास को समझने का मुख्य माध्यम इसका मूल ग्रंथ 'कुरान' है, जो इस्लाम की उत्पत्ति के बारे में वर्णन करता है।

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इस्लाम धर्म कितना पुराना है?

Islam Dharm kitna purana hai?

दुनिआ में सबसे पहले कौन आया | Duniya me sabse pehle kaun aaya islam

आमतौर पर यह समझा जाता है कि इस्लाम 1400 वर्ष पुराना धर्म है, और इसके ‘प्रवर्तक’ (founder) पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) हैं। लेकिन वास्तव में इस्लाम 1400 वर्षों से भी काफ़ी पुराना धर्म है; उतना ही पुराना जितना धर्ती पर स्वयं मानवजाति का इतिहास और हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) इसके पहले प्रवर्तक (Founder) नहीं, बल्कि अंतिम पैगम्बर (ईश्दूत) हैं।

आपका काम उसी चिरकालीन (सनातन) धर्म की ओर, जो सत्यधर्म के रूप में आदिकाल से ‘एक’ ही रहा है, लोगों को बुलाने, आमंत्रित करने और स्वीकार करने के आह्वान का था। आपका मिशन, इसी मौलिक मानव धर्म को इसकी पूर्णता के साथ स्थापित कर देना था ताकि मानवता के समक्ष इसका व्यावहारिक रूप साक्षात् रूप में आ जाए।

इस्लाम का इतिहास जानने का अस्ल माध्यम स्वयं इस्लाम का मूल ग्रंथ ‘क़ुरआन’ है। और क़ुरआन, इस्लाम का आरंभ प्रथम मनुष्य ‘आदम’ से होने का ज़िक्र करता है। इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए क़ुरआन ने ‘मुस्लिम’ शब्द का प्रयोग हज़रत इब्राहिम (अलैहि॰) के लिए किया है जो लगभग 4000 वर्ष पूर्व एक महान पैग़म्बर (सन्देष्टा) हुए थे।

हज़रत आदम (अलैहि॰) से शुरू होकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) तक हज़ारों वर्षों पर फैले हुए इस्लामी इतिहास में असंख्य ईशसंदेष्टा ईश्वर के संदेश के साथ, ईश्वर द्वारा विभिन्न युगों और विभिन्न क़ौमों में नियुक्त किए जाते रहे। उनमें से 26 के नाम कु़रआन में आए हैं और बाक़ी के नामों का वर्णन नहीं किया गया है।

Hazrat Ibrahim ki Qabr
हज़रत इब्राहिम की क़ब्र, जो जेरूसलेम स्थित है, ३,००० साल पुरानी।
Courtesy: Valerio Berdini

देखे: क़सस उल अम्बिया : नबियों के किस्से।

इस अतिदीर्घ श्रृंखला में हर ईशसंदेष्टा ने जिस सत्यधर्म का आह्वान दिया वह ‘इस्लाम’ ही था; भले ही उसके नाम विभिन्न भाषाओं में विभिन्न रहे हों। बोलियों और भाषाओं के विकास का इतिहास चूंकि क़ुरआन ने बयान नहीं किया है इसलिए ‘इस्लाम’ के नाम विभिन्न युगों में क्या-क्या थे, यह ज्ञात नहीं है।

इस्लाम धर्म कितना पुराना है | Islam Dharm kitna purana hai?

Islam Dharm kitna purana hai?

इस्लाम क्या है?

इस्लामी इतिहास के आदिकालीन होने की वास्तविकता समझने के लिए स्वयं ‘इस्लाम’ को समझ लेना आवश्यक है। इस्लाम क्या है, यह कुछ शैलियों में क़ुरआन के माध्यम से हमारे सामने आता है, जैसे:
इस्लाम, अवधारणा के स्तर पर ‘विशुद्ध एकेश्वरवाद’ का नाम है। यहां ‘विशुद्ध’ से अभिप्राय है: ईश्वर के व्यक्तित्व, उसकी सत्ता व प्रभुत्व, उसके अधिकारों (जैसे उपास्य व पूज्य होने के अधिकार आदि) में किसी अन्य का साझी न होना। विश्व का…बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड और अपार सृष्टि का यह महत्वपूर्ण व महानतम सत्य मानवजाति की उत्पत्ति से लेकर उसके हज़ारों वर्षों के इतिहास के दौरान अपरिवर्तनीय, स्थायी और शाश्वत रहा है।

इस्लाम शब्द का अर्थ ‘शान्ति व सुरक्षा’ और ‘समर्पण’ है। इस प्रकार इस्लामी परिभाषा में इस्लाम नाम है, ईश्वर के समक्ष, मनुष्यों का पूर्ण आत्मसमर्पण; और इस आत्मसमर्पण के द्वारा व्यक्ति, समाज तथा मानवजाति के द्वारा ‘शान्ति व सुरक्षा’ की उपलब्धि का। यह अवस्था आरंभ काल से तथा मानवता के इतिहास हज़ारों वर्ष लंबे सफ़र तक, हमेशा मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता रही है।

इस्लाम की वास्तविकता, एकेश्वरवाद की हक़ीक़त, इन्सानों से एकेश्वरवाद के तक़ाज़े, मनुष्य और ईश्वर के बीच अपेक्षित संबंध, इस जीवन के पश्चात (मरणोपरांत) जीवन की वास्तविकता आदि जानना एक शान्तिमय, सफल तथा समस्याओं, विडम्बनाओं व त्रासदियों से रहित जीवन बिताने के लिए हर युग में अनिवार्य रहा है; अतः ईश्वर ने हर युग में अपने सन्देष्टा (ईशदूत, नबी, रसूल, पैग़म्बर) नियुक्त करने (और उनमें से कुछ पर अपना ‘ईशग्रंथ’ अवतरित करने) का प्रावधान किया है। इस प्रक्रम का इतिहास, मानवजाति के पूरे इतिहास पर फैला हुआ है।

शब्द ‘धर्म’ (Religion) को, इस्लाम के लिए क़ुरआन ने शब्द ‘दीन’ से अभिव्यक्त किया है। क़ुरआन में कुछ ईशसन्देष्टाओं के हवाले से कहा गया है (42:13) कि ईश्वर ने उन्हें आदेश दिया कि वे ‘दीन’ को स्थापित (क़ायम) करें और इसमें भेद पैदा न करें, इसे (अनेकानेक धर्मों के रूप में) टुकड़े-टुकड़े न करें।

इससे सिद्ध हुआ कि इस्लाम ‘दीन’ हमेशा से ही रहा है।

उपरोक्त संदेष्टाओं में हज़रत नूह (Noah) का उल्लेख भी हुआ है और हज़रत नूह (अलैहि॰) मानवजाति के इतिहास के आरंभिक काल के ईशसन्देष्टा हैं। क़ुरआन की उपरोक्त आयत (42:13) से यह तथ्य सामने आता है कि अस्ल ‘दीन’ (इस्लाम) में भेद, अन्तर, विभाजन, फ़र्क़ आदि करना सत्य-विरोधी है-जैसा कि बाद के ज़मानों में ईशसन्देष्टाओं का आह्वान व शिक्षाएं भुलाकर, या उनमें फेरबदल, कमी-बेशी, परिवर्तन-संशोधन करके इन्सानों ने अनेक विचारधाराओं व मान्यताओं के अन्तर्गत ‘बहुत से धर्म’ बना लिए।

मानव प्रकृति प्रथम दिवस से आज तक एक ही रही है। उसकी मूल प्रवृत्तियों में तथा उसकी मौलिक आध्यात्मिक, नैतिक, भौतिक आवश्यकताओं में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है। अतः मानव का मूल धर्म भी मानवजाति के पूरे इतिहास में उसकी प्रकृति व प्रवृत्ति के ठीक अनुकूल ही होना चाहिए। इस्लाम इस कसौटी पर पूरा और खरा उतरता है। इसकी मूल धारणाएं, शिक्षाएं, आदेश, नियम…सबके सब मनुष्य की प्रवृत्ति व प्रकृति के अनुकूल हैं।
अतः यही मानवजाति का आदिकालीन तथा शाश्वत धर्म है।


हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) इस्लाम के संस्थापक नहीं, अंतिम ईश्दूत है।

क़ुरआन ने कहीं भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को ‘इस्लाम धर्म का प्रवर्तक’ नहीं कहा है। क़ुरआन में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का परिचय नबी (ईश्वरीय ज्ञान की ख़बर देने वाला), रसूल (मानवजाति की ओर भेजा गया), रहमतुल्-लिल-आलमीन (सारे संसारों के लिए रहमत व साक्षात् अनुकंपा, दया), हादी (सत्यपथ-प्रदर्शक) आदि शब्दों से कराया है।

स्वयं पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ने इस्लाम धर्म के ‘प्रवर्तक’ होने का दावा कभी न किया, न इस रूप में अपना परिचय कराया। आप (सल्ल॰) के एक कथन के अनुसार ‘इस्लाम के भव्य भवन में एक ईंट की कमी रह गई थी, मेरे (ईशदूतत्व) द्वारा वह कमी पूरी हो गई और इस्लाम अपने अन्तिम रूप में सम्पूर्ण हो गया’ (आपके कथन का भावार्थ।) इससे सिद्ध हुआ कि आप (सल्ल॰) इस्लाम धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। (इसका प्रवर्तक स्वयं अल्लाह है, न कि कोई भी पैग़म्बर, रसूल, नबी आदि)। और आप (सल्ल॰) ने उसी इस्लाम का आह्वान किया जिसका, इतिहास के हर चरण में दूसरे रसूलों ने किया था। इस प्रकार इस्लाम का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना मानवजाति और उसके बीच नियुक्त होने वाले असंख्य रसूलों के सिलसिले (श्रृंखला) का इतिहास।


ग़लतफहमी किसने फैलाई ?

यह ग़लतफ़हमी फैलने और फैलाने में, कि इस्लाम धर्म की उम्र कुल 1400 वर्ष है, दो-ढाई सौ वर्ष पहले लगभग पूरी दुनिया पर छा जाने वाले यूरोपीय (विशेषतः ब्रिटिश) साम्राज्य की बड़ी भूमिका है। ये साम्राज्यी, जिस ईश-सन्देष्टा (पैग़म्बर) को मानते थे ख़ुद उसे ही अपने धर्म का प्रवर्तक बना दिया और उस पैग़म्बर के अस्ल ईश्वरीय धर्म को बिगाड़ कर, एक नया धर्म उसी पैग़म्बर के नाम पर बना दिया। (ऐसा इसलिए किया कि पैग़म्बर के आह्वाहित अस्ल ईश्वरीय धर्म के नियमों, आदेशों, नैतिक शिक्षाओं और हलाल-हराम के क़ानूनों की पकड़ (Grip) से स्वतंत्र हो जाना चाहते थे, अतः वे ऐसे ही हो भी गए।)

यही दशा इस्लाम की भी हो जाए, इसके लिए उन्होंने इस्लाम को ‘मुहम्मडन-इज़्म (Muhammadanism)’ का और मुस्लिमों को ‘मुहम्मडन्स (Muhammadans)’ का नाम दिया जिससे यह मान्यता बन जाए कि मुहम्मद ‘इस्लाम के प्रवर्तक (Founder)’ थे और इस प्रकार इस्लाम का इतिहास केवल 1400 वर्ष पुराना है।

जबकि न क़ुरआन में, न हदीसों (पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल॰ के कथनों) में, न इस्लामी इतिहास-साहित्य में, न अन्य साहित्य में…कहीं भी इस्लाम के लिए ‘मुहम्मडन-इज़्म’ शब्द और इस्लाम के अनुयायियों के लिए ‘मुहम्मडन’ शब्द प्रयुक्त नहीं हुआ है, लेकिन साम्राज्यिों की सत्ता-शक्ति, शैक्षणिक तंत्र और मिशनरी-तंत्र के विशाल व व्यापक उपकरण द्वारा, उपरोक्त मिथ्या धारणा प्रचलित कर दी गई।

भारत के बाशिन्दों में इस दुष्प्रचार का कुछ प्रभाव भी पड़ा, और वे भी इस्लाम को ‘मुहम्मडन-इज़्म’ मान बैठे। ऐसा मानने में इस तथ्य का भी अपना योगदान रहा है कि यहां पहले से ही सिद्धार्थ गौतम बुद्ध जी, बौद्ध धर्म’’ के; और महावीर जैन जी ‘जैन धर्म के ‘प्रवर्तक’ के रूप में सर्वपरिचित थे। इन ‘धर्मों’ (वास्तव में ‘मतों’) का इतिहास लगभग पौने तीन हज़ार वर्ष पुराना है। इसी परिदृश्य में भारतवासियों में से कुछ ने पाश्चात्य साम्राज्यिों की बातों (मुहम्मडन-इज़्म, और इस्लाम का इतिहास मात्र 1400 वर्ष की ग़लत अवधारणा) पर विश्वास कर लिया।

Courtesy:
मोहमद दादासाहब पटेल की कलम से।
mediadetection.com

देखे : इस्लाम का इतिहास

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क़सस उल अंबिया | नबियों के किस्से और वाक़ियात हिंदी में | Qasas ul Anbiya in Hindi https://ummat-e-nabi.com/qasas-ul-ambiya-hindi/ https://ummat-e-nabi.com/qasas-ul-ambiya-hindi/#comments Fri, 15 Dec 2023 04:54:45 +0000 https://ummat-e-nabi.com/qasas-ul-ambiya-hindi/ क़सस उल अम्बिया | नबियों के किस्से और वाक़ियात हिंदी मेंअम्बिया अलैहि सलाम के वाक़ियात हिंदी में | आदम अलैहि सलाम से लेकर नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम तक तफ्सीली जानकारी। Qasas ul Anbiya in Hindi

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क़सस उल अम्बिया

अम्बिया अलैहि सलाम के वाक़ियात हिंदी में | आदम अलैहि सलाम से लेकर नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम तक तफ्सीली जानकारी। Qasas ul Anbiya in Hindi

हज़रत इलयास अलैहि सलाम

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हजरत ईसा अलैहि सलाम

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हजरत मुहम्मद ﷺ की मुबारक ज़िन्दगी सीरत उन नबी सीरीज की तरतीब में विलादत से लेकर फतह मक्का तक पढ़ने के लिए – देखे : सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज

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माँ की नाफरमानी की सजा! अल्लाह के वली का इबरतनाक वाकिआ | Story of Juraij (Rh.) and his Mother https://ummat-e-nabi.com/story-of-juraij-rh-and-his-mother/ https://ummat-e-nabi.com/story-of-juraij-rh-and-his-mother/#respond Wed, 15 Nov 2023 09:28:48 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=50327 Story of Juraij (Rh.) and his motherवालिदैन की इता’अत क्या दर्ज़ा रखती है और इनकी नाफ़रमानी का नातीज़ा क्या होता है चाहे इंसान कितना ही नेक हो। आइये इसके ताल्लुक से एक वाकिये पर गौर करते […]

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वालिदैन की इता’अत क्या दर्ज़ा रखती है और इनकी नाफ़रमानी का नातीज़ा क्या होता है चाहे इंसान कितना ही नेक हो। आइये इसके ताल्लुक से एक वाकिये पर गौर करते हैं।

माँ की नाफरमानी की सजा! अल्लाह के वली का इबरतनाक वाकिआ

रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फरमाते हैं के:
हमसे पिछली उम्मत में एक नेक शख़्स थे जो अल्लाह के वली थे, जिनका नाम जुरैज़ था। उन्होन एक गिरजा तामीर किया था और उसमें वो अल्लाह की इबादत किया करते थे, नमाज अदा करते थे।

एक मरतबा हुआ यूं कि जुरैज अपनी नमाज में थे तब उनकी वालिदा (माँ) आई और उन्हें आवाज दी के “ऐ जुरैज, ऐ जुरैज आओ मैं तुमसे मिलने आई हूं।”

जुरैज नमाज पढ़ रहे थे जो कि नफली नमाज थी, उन्होंने सोचा के नमाज मुकम्मिल कर के ही वालिदा से जा कर मिल लेता हूं। लेकिन नमाज़ ख़तम होने तक वालिदा नाराज़ होकर चली गई।

फ़िर दूसरी मरतबा यहीं हुआ। इस बार भी वालिदा ने आवाज़ दी “ऐ जुरैज़! ऐ जुरैज़! मैं मिलना चाहती हूँ तुमसे” जुरैज फिर अपनी नमाज में लगे हुए, सोचा के अपनी नमाज मुकम्मल कर लेता हूं और फिर जाकर मिल लूंगा।

तिसरी मरतबा भी यही हुआ। वालिदा फिर आई और जुरैज को आवाज दी, जुरैज इस वक्त भी अल्लाह की इबादत में थे, और मां नाराज हो गई फिर कहा के “ऐ जुरैज! तू तवायफ़ो का मुँह देखे” ऐसी बद-दुआ देकर वहा से चली गई।

आगे आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फरमाते हैं:
जुरैज की जो मकबूलियत थी, इनकी जो इबादत थी इस से लोग जलते थे और लोग वैसे ही जुरैज पर इल्जाम लगाना चाहते थे। लिहाजा कौम के शर्र पसंद लोगो ने एक मनसूबा किया, उन्होने एक बुरी (फाहेशा) औरत को तैयार किया जो लोगों से मुह काला करती थी।

उस औरत ने जुरैज के गिरजा के बाहार एक चरवाहा था उससे अपना मुंह काला करती रही, जिस से उसको हमल ठहर गया और उससे एक औलाद हुई जो ज़िना की थी। जब उसको एक औलाद हुई तो औरत ने लोगों से कहा के “ये औलाद जुरैज की है।”

जब बस्ती में ये बात चली तो लोगों ने आकार जुरैज़ को बेताहाशा मारना शुरू कर दिया, हत्ता के उसका गिरजा भी तोड़ दिया और मारते-मारते उसे बादशाह (वक्त के हाकीम) के पास ले गए।

जब वहा पूछा तो जुरैज ने कहा के “बताओ तो सही क्यों मारते हो?”

लोगों ने कहा के “तुम्हें एक औलाद है, तुमने मुंह काला किया है किसी औरत के साथ।”

तो जुरैज ने कहा के ‘उसे लाओ तो सही, वो औरत कौन है।’ (जुरैज़ की वालिदा की बद्दुआ हुई और जुरैज़ को बुरी औरत का मुंह देखना पड़ा।)

जुरैज ने कहा ठीक है मुझे नमाज पढ़ने दो, उन्होंने दो रकात नमाज पढ़ी और उसके बाद जुरैज ने उस लड़के से कहा “ऐ लड़के बता तेरा बाप कौन है।”

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उस लड़के को ज़ुबान दी और उसने कहा के “मेरा बाप! वो चरवाहा है।”

उस नन्हे बच्चे के बोल सुनकर लोगो को बड़ी नदामत हुई, उस चारवाहे को सज़ा दी गई और लोगो ने कहा के “ऐ जुरैज! चाहो तौ तुम्हारा गिरजा हम वापस बना देते हैं वो भी सोने का।”

जुरैज़ ने कहा के “नहीं! सोने का नहीं! मुझे जैसा था वैसा ही बनाकर दे दो।”

📕 सहिह अल-बुखारी 1206,
📕 सहिह अल-बुखारी 2483,
📕 सहीह मुस्लिम, 2550

सबक:

1) इस वाकिये में सबसे पहला सबक ये मिलता है के “एक वली के हक में भी माँ अगर बद्दुआ कर दे तो अल्लाह कबूल कर लेता है। इसलिए क्योंकि अल्लाह के पास इनका बहुत ऊंचा मुकाम है। ये दुआ दे तो क़बूल, बददुआ दे तो क़बूल, चाहे आपकी शख़्सियत कुछ भी रहे। सुभानअल्लाह!!!

2) दूसरा सबक ये पता चलता है ‘एक मामूली सी लरजिश जो जुरैज से हुई उसका इतना अज़ीम नुक्सान उन्हें हुआ के अल्लाह रब्बुल इज्जत ने इतनी बड़ी आजमाइश में डाल दिया जुरैज को।

ये उनकी बिल्कुल भी मामुली सी गलती थी, अल्लाह रहम करे ऐसी गलती तू आज हम में से कौन नहीं करता? हमारे वालिदैन हज़ार मरतबा आवाज़ देते हैं लेकिन फिर भी हम उन्हें नज़रअंदाज़ करते रहते हैं। अल्लाह मुअफ़ करे हमें।

3) इस वाकिये से तिसरा और अहम सबक जो हमें मिलता है वो ये है “नफील इबादत पर वालीदैन की खिदमत को तर्जी देना चाहिए।”

इन शा अल्लाह-उल-अज़ीज़! अल्लाह तआला हमें अपने वालीदीन का फरमाबरदार बनायें,
हमें कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाये. आमीन! अल्लाहुम्मा अमीन।

और भी देखे :

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 13) | Qasas ul Anbiya: Part 33 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-13/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-13/#respond Thu, 02 Nov 2023 14:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=36131 हजरत मूसा अलैहि सलाम » Part 15.13मूसा अलैहि सलाम (भाग: 13) | मूसा (अ.स.) के वाकिये से नसीहत, मुसीबतों में सब्र किया जाए, कामयाबी के लिए शर्त, मोहब्बते इलाही की ताक़त, अल्लाह की मदद, ईमानी लज्ज़त के असरात, सब्र का फल, गुलामी के असरात, जमीन की विरासत के लिए शर्ते ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 13)
Qasas ul Anbiya: Part 33

मूसा अलैहि सलाम के वाकिये से नसीहतें क्या मिली?

आईये मुख़्तसर में देखते है के हमे हज़रत मूसा (अ.स.) के वाकिये से नसीहत क्या मिली?

मुसीबतों में सब्र किया जाए

अगर इंसान को कोई मुसीबत और आज़माइश पेश आ जाए तो उसे यह ज़रूरी है कि सब्र व रज़ा के साथ उसे सहे। अगर ऐसा करेगा तो बेशक उसको बड़ा अज्र हासिल होगा और वह यक़ीनी तौर पर सफल और कामयाब होगा।

कामयाबी के लिए शर्त

जो आदमी अपने मामलों में अल्लाह पर भरोसा और एतमाद रखता है और उसी को दिल के खुलूस के साथ अपना हासिल समझता है, तो अल्लाह तआला ज़रूर उसकी मुश्किलों को आसान कर देते हैं और उसकी मुसीबतों को नजात और कामयाबी के साथ बदल देते हैं।

मोहब्बते इलाही की ताक़त

जिसका मामला हक़ के साथ इश्क तक पहुंच जाता है, उसके लिए बातिल की बड़ी से बड़ी ताक़त भी हेच और बे-वजूद होकर रह जाती है।

हर कि पैमां बा 'हुबल मौजूद बस्त'
गरदिनश अज़ बन्द हर माबूद हरस्त

अल्लाह की मदद

अगर कोई अल्लाह का बन्दा हक़ की मदद और हिमायत के लिए सरफ़रोशाना खड़ा हो जाता है, तो अल्लाह दुश्मनों और बातिल परस्तों ही में से उसका मददगार पैदा कर देता है।

ईमानी लज्ज़त के असरात

अगर एक बार भी कोई ईमानी लज्ज़त का लुत्फ़ उठा ले और सच्चे दिल से उसे मान ले, तो यह नशा उसको ऐसा मस्त बना देता है कि उसकी जान के हर रेशे से वही हक़ की आवाज़ निकलने लगती है। 

सब्र का फल

सब्र का फल हमेशा मीठा होता है, भले ही उसके फल हासिल होने में कितनी ही कड़वाहटें सहनी पड़ें, मगर जब भी वह फल लगेगा, मीठा ही होगा।

गुलामी के असरात

गुलामी और महकूमी की जिंदगी का सबसे बुरा असर यह होता है कि हिम्मत और इरादे की रूह पस्त होकर रह जाती है और इंसान इस नापाक ज़िंदगी के ज़िल्लत भरे अम्न व सुकून को नेमत समझने और हक़ीर रास्तों को सबसे बड़ी अज़्मत सोचने लगता है और जद्दोजहद की ज़िंदगी से परेशान व हैरान नज़र आता है।

जमीन की विरासत के लिए शर्ते

ज़मीन या मुल्क की विरासत उसी क़ौम का हिस्सा है जो बे-सर व सामानी से बेख़ौफ़ होकर और अज़्म व हिम्मत का सबूत देकर हर किस्म की मुश्किल और रुकावट का मुकाबला करती और ‘सब्र’ और अल्लाह की मदद पर भरोसा करते हुए जद्दोजहद के मैदान में साबित कदम रहती हैं।

बातिल की नाकामी

बातिल की ताक़त कितनी ही ज़बरदस्त और शान व शौकत से भरी हुई हो, अंजाम यह होगा कि उसे नामुरादी का मुंह देखना पड़ेगा और आख़िरी अंजाम में कामरानी व कामयाबी का सेहरा उन्हीं के लिए होता है जो नेक और हिम्मत वाले हैं।

ज़ालिम कौमों का अंजाम

यह ‘आदतुल्लाह’ है कि जाबिर व ज्ञालिम कौमें, जिन क़ौमों को ज़लील और हकीर समझती हैं, एक दिन आता है कि वही ज़ईफ़ और कमज़ोर कौमें अल्लाह की ज़मीन की वारिस बनती और हुकूमत व इक़्तिदार की मालिक हो जाती हैं और ज़ालिम क़ौमों का इक़्तिदार ख़ाक में मिल जाता है।

ताक़त का खुमार और उसका अंजाम

ताकत, हुकूमत और दौलत, सरवत में डूबी जमाअतों का हमेशा से यह शिआर रहा है कि सबसे पहले वही ‘हक़ की दावत’ के मुकाबले में सामने आ खड़ी होती है, मगर कौमों की तारीख यह भी बताती है के हमेशा हक़ के मुकाबले में उनको नाकामी, हार और नामुरादी का मुंह देखना पड़ा है।

सरकशी का अंजाम

जो हस्ती या जमाअत जानते बूझते और हक़ को हक़ जानते हुए भी सरकशी करे और अल्लाह की दी हुई निशानियों की इंकारी और नाफ़रमान बने तो उसके लिए अल्लाह का क़ानून यह है कि वह उनसे हक़ कुबूल करने की इस्तेदाद फ़ना कर देता है, क्योंकि यह उनकी लगातार सरकशी का कुदरती फल है।

यह बहुत बड़ी गुमराही है कि इंसान को जब हक़ की बदौलत कामयाबी हासिल हो जाए तो अल्लाह के शुक्र की जगह हक के मुख़ालिफ़ों की तरह ग़फ़लत व सरकशी में मुब्तला हो जाए।

दीन में इस्तिक़ामत (जमाव)

कोई हक़ को कुबूल करे या न करे, हक़ की दावत देने वाले का फ़र्क है कि हक़ की नसीहत करने से बाज़ न रहे।

किसी क़ौम पर ज़ाबिर व ज़ालिम हुक्मरां का मुसल्लत होना, उस हुक्मरां की अल्लाह के नज़दीक मक़बूल होने और सरबुलन्द व सरफ़राज़ होने की दलील नहीं, बल्कि वह अल्लाह का एक अज़ाब है जो महकूम कौम की बद-अमलियों के बदले की शक्ल में ज़ाहिर होता है, मगर महकूम क़ौम की ज़ेहनियत पर जाबिर ताकत का इस क़दर ग़लबा छा जाता है कि वह अपनी परेशानियों को ज़ालिम हुकूमत पर अल्लाह की रहमत समझने लगती है।

अल्लाह की बरदाश्त

जब कोई क़ौम या कोई जमाअत बदकिरदारी और सरकशी में मुब्तला होती है तो अल्लाह का क़ानून यह है कि उसको फ़ौरन ही पकड़ में नहीं लिया जाता, बल्कि एक तदरीज के साथ मोहलत मिलती रहती है कि अब बाज़ आ जाए, अब समझ जाए और इस्लाह हाल कर ले।

लेकिन जब वह इस्लाह पर तैयार नहीं होती और उनकी सरकशी और बदअमली एक ख़ास हद तक पहुंच जाती है तो फिर अल्लाह की पकड़ व पंजा उनको पकड़ लेता है और वे बे-यार व मददगार फ़ना के घाट उतर जाते हैं।

इंसानी इल्म की अहमियत

किसी हस्ती के लिए भी, वह नबी या रसूल ही क्यों न हो, यह मुनासिब नहीं कि वह यह दावा करे कि मुझसे बड़ा आलिम कायनात में कोई नहीं, बल्कि उसको अल्लाह के इल्म के सुपुर्द कर देना बेहतर है।

ग़ुलामी एक लानत है

मिल्लते इस्लामिया की पैरवी करने वालों के लिए ग़ुलामी’ बहुत बड़ी लानत है और अल्लाह का ग़ज़ब है और उस पर क़नाअत कर लेना गोया अल्लाह के अज़ाब और अल्लाह की लानत पर भरोसा कर लेने के बराबर है। फ़ातबिरू या उलिल अब्सार

To be continued …

इंशा अल्लाह उल अजीज! अगले पार्ट 34 में हज़रत यूशेअ बिन नून का ज़िक्र करेंगे।

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 12) | Qasas ul Anbiya: Part 32 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-12/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-12/#respond Wed, 01 Nov 2023 05:12:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=36124 हजरत मूसा अलैहि सलाम » Qasas ul Anbiya: Part 15.12मूसा अलैहि सलाम (भाग: 12), हज़रत मूसा (अ.स.) और बनी इसराईल का ईज़ा पहुंचाना, हज़रत मूसा की नुबूवत के ज़माने से मुताल्लिक दूसरे मामले, फ़िरऔन नई तहक़ीक़ की रोशनी में, मोरिस बकाईए (Maurice Bucaille) का फ़ैसला करने वाला कौल, जादू और मज़हब, मोजज़ा और जादू में फ़र्क, मरने के बाद की जिंदगी, मोजज़ों का ज़्यादा होना ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 12)
Qasas ul Anbiya: Part 32

हज़रत मूसा (अ.स.) और बनी इसराईल का ईज़ा पहुंचाना

पीछे के पार्ट्स में जिन वाक़ियों का ज़िक्र किया गया है उनसे यह बात साफ़ हो चुकी है कि बनी इसराईल ने हज़रत मूसा (अ.स.) को क़ौल और अमल दोनों तरीकों से बड़ी तक्लीफें पहुंचाईं, यहां तक कि बुहतान लगाने और तोहमत गढ़ने से भी बाज़ नहीं रहे, लेकिन क़ुरआन मजीद ने इन वाकियों के अलावा, जिनका ज़िक्र पीछे के पन्नों में हो चुका है, सूरः अहज़ाब और सूरः सफ़्फ़ में हज़रत मूसा (अ.स.) के साथ बनी इसराईल के तकलीफ पहुंचाने पर निंदा करते हुए कहा है।

ऐ ईमान वालो! तुम उन बनी इसराईल की तरह न बनो, जिन्होंने मूसा को तकलीफ़ पहुंचाई। अल-अहजाब 69
और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ कौम! तू किस लिए मुझको तकलीफ़ पहुंचाती है, जबकि तुझको मालूम है कि मैं तुम्हारी ओर अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूं। अस सफ्फ 61:5

इस बारे में बहस की गई है कि यहां जिस तकलीफ का ज़िक्र किया गया है, क्या उससे वही हालात मुराद हैं जो बनी इसराईल की सरकशी से मुताल्लिक हैं या उनके अलावा किसी ख़ास वाकिए की ओर इशारा है। 

इस बहस में सही मस्लक यह है कि जब कुरआन ने हज़रत मूसा अलै० से मुताल्लिक तकलीफ़ के वाकिए को मुज्मल बयान किया है तो हमारे लिए भी यही मुनासिब है कि उसको किसी वाकिए से मुताल्लिक़ न करें और जिस हिक्मत व मस्लहत की वजह से अल्लाह ने उसको मुज्मल रखना मुनासिब समझा, हम भी उसी को काफ़ी समझें।


हज़रत मूसा की नुबूवत के ज़माने से मुताल्लिक दूसरे मामले

फ़िरऔन नई तहक़ीक़ की रोशनी में

मिस्री दारुल आसार के चित्रकार (मुसव्विर) और असरी और हजरी (पत्थरों और खंडरात के) नामी आलिम अहमद यूसुफ़ आफंदी की खोज का ख़ुलासा यह है कि यूसुफ़ जब मिस्र में दाखिल हुए हैं तो यह फ़िरऔन के सोलहवें ख़ानदान का जमाना था और उस फ़िरऔन का नाम ‘अबाबिल अब्बल’ था और जिस फ़िरऔन ने बनी इसराईल को मुसीबतों में डाला वह रामीसीस सेकंड (Ramesses II) हो सकता है। 

यह मिस्र के हुक्मरानों का उन्तीसवां ख़ानदान था। हज़रत मूसा (अ.स.) उसके ज़माने में पैदा हुए और उनकी गोद में पले-बढ़े। रामीसीस सेकेंड ने इस डर से कि बनी इसराईल का यह शानदार कबीला, जो लाखों इंसानों पर मुश्तमिल था, अन्दरूनी बगावत पर उत्तर न आए, बनी इसराईल को मुसीबतों में मुब्तला करना ज़रूरी नहीं समझा, जिनका ज़िक्र तौरात और कुरआने हकीम में किया गया है।

रामसीस सेकेंड ने अपने बुढ़ापे के ज़माने में अपने बेटे मरनिफ़ताह (Marineflah) को हुकूमत में शरीक कर लिया था, इसलिए मरनिफ़ताह ही वह फ़िरऔन हो सकता है जो नदी में डूबा। इस नतीजे की ताईद इससे होती हैं कि मिस्री दस्तूर के मुताबिक़ मरनिफ़ताह का अलग से मनबरा नहीं, बल्कि वह अठारहवीं खानदान के फ़िरऔन के मक़बरे में दफ़न किया गया।

समद्र से मिले फिरौन की लाश | रामसेस २
समद्र से मिले फिरौन की लाश | रामसेस २

मिश्री अजाइबघरों में एक लाश आज भी महफूज़ है और मुहम्मद अददी की किताब ‘दवातुर्रसूल इलल्लाही’ के मुताबीक इस लाश की नाक के सामने का हिस्सा नहीं है। ऐसा मालूम होता है कि शायद दरियाई मछली ने खराब किया है और फिर उसकी लाश अल्लाह के फैसले के मुताबिक किनारे पर फेंक दी गई, ताकि

वह मेरे बाद आने वालों के लिए (अल्लाह का) निशान रहे। सूरह यूनुस 10:92

मोरिस बकाईए (Maurice Bucaille) का फ़ैसला करने वाला कौल

फ़िरऔन के ग़र्क हो जाने का वाक़िया बहुत से पुराने और नए तहकीक़ करने वालों के लिए बहस का मौजू बना रहा और अब तक बना हुआ है, बहुत सी किताबें लिखी जा चुकी हैं और लिखी जा रही हैं लेकिन ये सब उस वाक़िये की तारीख़ी और जुगराफ़ियाई (ऐतिहासिक और भौगोलिक) हैसियत पर ज़ोर देती हैं। 

इस बारे में मोरिस बकाईए (Maurice Bucaille) मशहूर व मारूफ फ्रांसीसी मुसन्निफ़ (लेखक) ने अपनी किताब बाइबिल, कुरआन और सांइस (Bible, Quran and Science) में तफ्सीली बहस की है, जो देखने-पढ़ने वाले और ज़्यादा मालूमात के ख्वाहिशमंद हों, वे उस किताब से जिसका उर्दू तर्जुमा भी हो चुका है, रुजू कर सकते हैं। हम यहां सिर्फ कुछ बातें बयान करेंगे –

  • 1. हज़रत मूसा (अ.स.) रामीसिस सेकेंड के ज़माने में पैदा हुए और उसके यहां उन्होंने परवरिश पाई।
  • 2. रामीसिस सेकेंड का इंतिक़ाल हज़रत मूसा (अ.स.) के मदयन में ठहरने के ज़माने में हो गया।
  • 3. रामीसिस सेकेंड के बाद उसका बेटा मरनिफ़्ताह तख्त पर बैठा और लगभग बारह सौ साल कब्ल मसीह लाल सागर में डूबने वाला यही फ़िरऔन है। लाल सागर को किस जगह से पार किया गया, यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता।
  • 4. रामीसित सेकेंड और मरनिफ़्ताह दोनों की लाशें मिनी म्यूजियम में महफूज़ हैं। मोरिस बकाईए की बहस के खात्मे पर आखिरी लाइनें तवज्जोह के काबिल हैं।
  • 5. फ़ालके बह (समुद्र का फटना) का ज़माना अन्दाजा है कि बारह सौ साल क़ब्ल मसीह का है।

जादू और मज़हब

1. जादू की कोई हक़ीक़त भी है या वह सिर्फ नज़र का धोखा है और बे-हक़ीक़त कोई चीज है?

इसके बारे में अहले सुन्नत उलेमा की यह राय है कि जादू सच में एक हक़ीक़त है और नुक्सान पहुंचाने वाले असरात भी रखता है। अल्लाह तआला ने अपनी बड़ी हिक्मत को सामने रखकर उसमें इसी तरह नुक्सान पहुंचाने वाले असरात रख दिए हैं, जिस तरह ज़हर वगैरह में मगर यह नहीं है कि ‘जादू’ अल्लाह की कुदरत से बेनियाज़ होकर ‘अल्लाह की पनाह’ खुद बे नियाज़ है, खुद अपने आप असर रखने वाले चीज़ है, यह अक़ीदा ख़ालिस कुफ्र है।

2. इस्लामी फुकहा (विद्वानों) ने जादू के बारे में साफ़ किया है कि जादू के जिन आमाल में शैतान, गन्दी रूहें और गैरअल्लाह से मदद चाही जाए सौर उनको हाजत रवा करार देकर मंत्रों के ज़रिए उनको काबू में करने का काम किया जाए, तो वह शिर्क जैसा है और उस पर अमल करने वाला काफ़िर है। जिन अमलों में इनके अलावा दूसरे तरीके अख़्तियार किए जाएं और उनसे दूसरों को नुक्सान पहुंचाया जाए उनका करने वाला हराम और बड़े गुनाह का मुर्तकिब है।

मोजज़ा और जादू में फ़र्क –

नबी और रसूल का असल मोजज़ा उसकी वह तालीम होती है, जो वे राहे हक़ से हटी हुई और मटकी हुई कौमों की हिदायत के लिए नुस्खा-ए कीमिया और दीनी और दुन्यवी फलाह व कामरानी के लिए बेनजीर कानून की शक्ल में पेश करता है।

लेकिन आम इंसानी दुनिया की फ़ितरत इस पर कायम है कि वे सच्चाई और सदाक़त के लिए भी कुछ ऐसी चीजों के ख्वाहिशमन्द होते हैं जो लाने वाले के रूहानी करिश्मों से ताल्लुक रखती हों और जिनके मुकाबले से तमाम दुन्यवी ताक़तें आजिज़ हो जाती हों, क्योंकि उनके इल्म की पहुंच कैसी सच्चाई के लिए इसी को मेयार करार देती हैं।

इसलिए यह ‘अल्लाह की सुन्नत’ जारी रही है कि वे नबियों और रसूलों को दीने हक की तालीम व पैग़ाम के साथ  एक या कुछ निशानियों (मोजज़ों) को भी अता करता है और जब वे मुबूवत के दावे के साथ बग़ैर (सबब) ऐसा ‘निशान दिखाता है, जिसका मुक़ाबला दुनिया की कोई ताकत नहीं की सकती तो उसका नाम ‘मोजज़ा’ होता है।

मरने के बाद की जिंदगी –

कुरआन मजीद ने मरने के बाद की जिंदगी का आम कानून तो यह बताया है कि दुनिया की मौत के बाद फिर आखिरत की दुनिया ही के लिए दोबारा जिंदगी मिलेगी, लेकिन ख़ास “कानून’ यह है कि कभी कभी हिक्मत व मस्लहत के पेशेनज़र अल्लाह तआला इस दुनिया ही में मुर्दा को जिंदगी बख़्श दिया करता है और नबियों की मोजज़ो वाली जिंदगी में खुद कुरआनी गवाही के मुताबिक यह सच्चाई कई बार ज़ाहिर होकर सामने आ चुकी है।

हज़रत मूसा (अ.स.) की नुबूवत के ज़माने में बनी इसराईल के सत्तर सरदारों के दोबारा जी उठने के मौके पर यह सूरत सामने आई कि उनके नामाकूल और गुस्ताखी वाले इसरार पर ‘रजआ’ के अज़ाब ने उनको मौत के घाट उतार दिया और फिर हज़रत मूसा (अ.स.) की इज्ज वाली दुआ पर अल्लाह की रहमत की वुसअत ने तरस खाया और इन जान से तंग इंसानों को दोबारा जिंदगी बना दी।

इसी तरह गाय के ज़िब्ह करने के वाक़िए में मक्तूल को दोबारा जिंदगी बख्शी। इन वाकियों से मुताल्लिक हिक्मत व मस्लहत खुद अल्लाह ही बेहतर जानते हैं। इंसानी समझ तो इतना ही कह सकती है कि इसका मक़सद यह है कि मुतास्सिर होने वाले शुक्रगुज़ार हों और आगे इस किस्म की बेजा ज़िद को काम में न लाएं और अल्लाह के सच्चे फरमाबरदार बन्दे बनकर रहें। कुरआन के साफ़ और खुले बयान के बाद घटिया तावील गैर-जरूरी है।

मोजज़ों का ज़्यादा होना

हज़रत मूसा (अ.स.) के नबी होने के ज़माने में मोजज़ों का ज़्यादा होना नज़र आता है, जिनको दो हिस्सों में बांटा जाता है –

  • 1. कुलजुम के पार करने से पहले, और
  • 2. कुलजुम के पार करने के बाद, 

कुलजुम के पार करने से पहले 

  • 1. असा (डंडा) 
  • 2. यदे बैज़ा (हाथ की सफ़ेदी)
  • 3. सिनीन (अकाल)
  • 4. फलों का नुक़सान 
  • 5. तूफ़ान 
  • 6. जराद (टिड्डी दल) 
  • 7. कुम्मल 
  • 8. जफ़ादेअ (मेंढ़क)
  • 9. दम (खून) 
  • 10. फ़लक़े बह (कुलजुम नदी का फट कर दो हिस्सों में हो जाना) 

कुलजुम पार करने के बाद 

  • 11. मन्न व सलवा 
  • 12. ग़माम (बादलों का साया) 
  • 13. इन्फ़िजारे उयून (पत्थर से चश्मों का बह पड़ना) 
  • 14. नतक़े जबल (पहाड़ का उखड़ कर सरों पर आ जाना) और 
  • 15. तौरात का नाज़िल होना

ऊपर के ज़्यादा-से-ज़्यादा मोजज़ो के सिलसिले में यह भूलना नहीं चाहिए कि सदियों की गुलामी की जिंदगी बसर करने और छोटी खिदमतों में मश्गूल रहने की वजह से बनी इसराईल की नुमायां खूबियों को घुन लग गया था और मिस्रियों में रहकर मज़हर परस्ती और अस्नाम परस्ती ने उनकी अक़्ल और हवास को इस दर्जा मुअत्तल कर दिया था कि वे क़दम-कदम पर अल्लाह के एक होने और अल्लाह के हुक्मों में किसी करिश्मे का इन्तिज़ार करते रहते, इसके बगैर उनके दिल में यकीन व ईमान की कोई जगह न बनती थी। पस उनकी हिदायत के लिए दो ही शक्लें हो सकती थीं

एक यह कि उनको सिर्फ समझाने-बुझाने के मुख्तलिफ़ तरीकों ही से हक के कुबूल करने पर तैयार किया जाता और पिछले नबियों की उम्मतों की तरह किसी ख़ास और अहम मौके पर आयतुल्लाह (अल्लाह की निशानी यानी मोजज़े का मुज़ाहरा पेश आता और दूसरी शक्ल यह थी कि उनकी सदियों की तबाह हुई इस हालत की इस्लाह के लिए रूहानी ताकत का जल्द-जल्द मुज़ाहरा किया जाए और हक़ और सच्चाई की तालीम के साथ-साथ अल्लाह तआला के तक्वीनी निशान (मोजज़े) इनके कुबूल करने और तसल्ली करने की इस्तेदाद को बार-बार ताक़त पहुंचाएं। पस इस कौम की पस्त ज़ेहनियत और तबाह हाली के पेशेनज़र अल्लाह की मस्लहत ने उनकी इस्लाह व तबियत के लिए यही दूसरी शक्ल अख्तियार की। ‘वल्लाहु अलीमुन हकीम०’ (अल्लाह ही जानने वाला और हिक्मत वाला है।)

To be continued …

इंशा अल्लाह उल अजीज! अगले पार्ट 33 में हज़रत मूसा (अ.स.) और बनी इसराईल का ईज़ा पहुंचाने वाले वाकिये को तफ्सील में देखेंगे।

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 11) | Qasas ul Anbiya: Part 31 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-11/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-11/#respond Tue, 31 Oct 2023 14:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=35790 हजरत मूसा अलैहि सलाम » Qasas ul Anbiya: Part 15.11मूसा अलैहि सलाम (भाग: 11), हज़रत मूसा (अ.स.) और हज़रत ख़िज़्र (अ.स.), 1. ख़िज़्र नाम है या लकब?, 2. ख़िज़्र सिर्फ ‘नेक बन्दा’ हैं या वली हैं या नबी हैं या रसूल?, 3. उनको हमेशा की जिंदगी हासिल है या वफ़ात पा चुके?, 4. मज्मउल बहरैन (बहरैन की जगह) कहां है?, 5. हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) का मक़ाम व मर्तबा क्या है ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 11)
Qasas ul Anbiya: Part 31

हज़रत मूसा (अ.स.) और हज़रत ख़िज़्र (अ.स.)

हज़रत मूसा (अ.स.) की जिंदगी के वाक़ियों में एक अहम वाकिया उस मुलाक़ात का है जो उनके और एक साहिबे बातिन के दर्मियान हुई और हज़रत मूसा (अ.स.) ने उनसे तक्वीनी दुनिया के कुछ असरार व रुमूज़ मालूम किए। इस मुलाक़ात का ज़िक्र तफसील के साथ सूरः कहफ़ में किया गया है और बुख़ारी में इस वाकिए से मुताल्लिक कुछ और तफ़सील से ज़िक्र आया है।

बुख़ारी में सईद बिन जुबैर (र) से रिवायत है कि उन्होंने अब्दुल्लाह बिन अब्बास से अर्ज़ किया कि नौफ़ बकाली कहता है कि ख़िज़्र के मूसा (अ.स.), बनी इसराईल के मूसा (अ.स.) नहीं हैं, यह एक दूसरे मूसा (अ.स.) हैं। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने फ़रमाया, ख़ुदा का दुश्मन झूठ कहता है मुझसे उबई बिन काब ने हदीस बयान की है कि उन्होंने रसूले अकरम (ﷺ) से सुना है: इर्शाद फ़रमाते हैं कि,

‘एक दिन हज़रत मूसा (अ.स.) बनी इसराईल को खिताब कर रहे थे कि किसी आदमी ने मालूम किया कि इस ज़माने में सबसे बड़ा आलिम कौन है? हज़रत मूसा (अ.स.) ने फ़रमाया, मुझे अल्लाह ने सबसे ज़्यादा इल्म अता फ़रमाया है। अल्लाह तआला को यह बात पसन्द न आई और उन पर इताब हुआ कि तुम्हारा मंसब तो यह था कि उसको इसे इलाही के सुपुर्द करते और कहते, ‘वल्लाहु आलम और फिर वह्य नाजिल फरमाई कि जहां दो समुन्दर मिलते हैं (मजमाउल बहरैन) वहां हमारा एक बन्दा है जो कुछ मामलों में तुझसे भी ज़्यादा आलिम व दाना है।’

हजरत मूसा (अ.स.) ने अर्ज़ किया, परवरदिगार! तेरे इस बन्दे तक पहुंचने का क्या तरीक़ा है? अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि मछली को अपने तोशेदान में रख लो। पस जिस जगह वह मछली गुम हो जाए, उसी जगह वह आदमी मिलेगा।

हज़रत मूसा (अ.स.) ने मछली को तोशेदान में रखा और अपने ख़लीफ़ा यूशेअ बिन नून को साथ लेकर ‘मर्दे सालेह’ की तलाश में रवाना हो गए। जब चलते-चलते एक मक़ाम पर पहुंचे, तो दोनों एक पत्थर पर सर रखकर सो गए। मछली में ज़िंदगी पैदा हुई और वह जंबील से निकल कर समुन्दर में चली गई। मछली पानी के जिस हिस्से पर बहती गई और जहां तक गई, वहां पानी बर्फ की तह जम कर एक छोटी-सी पगडंडी की तरह हो गया, ऐसा मालूम होता था कि समुद्र में एक लकीर या खत खिंचा हुआ है।

यह वाक़िया यूशेअ बिन नून ने देख लिया था, क्योंकि वह हज़रत मूसा (अ.स.) से पहले बेदार हो गए थे मगर जब हज़रत मूसा (अ.स.) बेदार हुए तो उनसे ज़िक्र करना भूल गए और फिर दोनों ने अपना सफ़र शुरू कर दिया और उस दिन-रात आगे बढ़ते ही गए। जब दूसरा दिन हुआ तो हज़रत मूसा (अ.स.) ने फ़रमाया कि अब थकान ज़्यादा महसूस होने लगी, वह मछली लाओ, ताकि अपनी मूख मिटाएं। नबी अकरम (ﷺ) ने फ़रमाया, हज़रत मूसा (अ.स.) को अल्लाह तआला की बताई हुई मंजिले मसूद तक पहुंचने में कोई थकान न हुई थी, मगर मंजिल से आगे ग़लती से निकल गए तो अब थकान भी महसूस होने लगी।

यूशेअ बिन नून ने कहा, आपको मालूम रहे कि जब हम पत्थर की चट्टान पर थे तो वहीं मछली का ताज्जुब भरा वाकिया पेश आया कि उसमें हरकत पैदा हुई और वह मक्तल (जंबील) में से निकल कर समुन्दर में चली गई और उसकी रफ्तार पर समुद्र में रस्ता बनता चला गया। मैं आपसे यह वाकिया कहना भूल गया। यह भी शैतान का एक चरका था।

नबी अकरम (ﷺ) ने फरमाया कि समुन्दर का वह ‘ख़त’ मछली के लिए “सब्र” (रास्ता) था और मूसा (अ.स.) और यूशेअ के लिए ‘उज्व’ (ताज्जुब वाली बात)।

हज़रत मूसा (अ.स.) ने फ़रमाया कि जिस जगह की हमको तलाश है, वह वही जगह थी और यह कहकर दोनों फिर एक दूसरे से बात-चीत करते हुए उसी राह पर लौटे और उस सख़रा (पत्थर की चट्टान) तक जा पहुंचे।

वहां पहुंचे तो देखा कि उस जगह उम्दा कपड़ा पहने हुए एक आदमी बैठा है। हज़रत मूसा (अ.स.) ने उसको सलाम किया। उस आदमी ने कहा, तुम्हारी इस सरजमीन में ‘सलाम’ कहां? (यानी इस सरज़मीन में तो मुसलमान नहीं रहते) यह ख़िज़्र (अ.स.) थे। हज़रत मूसा (अ.स.) ने कहा, हां, मैं तुमसे वह इल्म हासिल करने आया हूं जो अल्लाह ने तुम ही को बख्शा है।

ख़िज़्र (अ.स.) ने कहा, तुम मेरे साथ रहकर उन मामलों पर सब्र न कर सकोगे? मूसा ! अल्लाह ने मुझको तक्वीनी असरार द रुमूज़ का वह इल्म अता किया है जो तुमको नहीं दिया गया और उसने तुमको (तशरीई इल्मों का) वह इल्म अता फरमाया है जो मुझको अता नहीं हुआ।

हज़रत मूसा (अ.स.) ने कहा, ‘इन्शाअल्लाह‘ आप मुझको सब्र व ज़ब्त करने वाला पाएंगे और मैं आपके इर्शाद की बिल्कुल खिलाफ़वर्ज़ी नहीं करूंगा। हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) ने कहा, तो फिर शर्त यह है कि जब आप मेरे साथ रहें तो किसी मामले के मुताल्लिक़ भी, जिसको आपकी निगाहें देख रही हों, मुझसे कोई सवाल न करें। मैं खुद उनकी हक़ीक़त आपको बता दूंगा। हज़रत मूसा (अ.स.) ने मंजूर कर लिया और दोनों एक तरफ़ को रवाना हो गए।

जब समुद्र के किनारे पहुंचे तो सामने से एक नाव नज़र आई। हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) ने मल्लाहों से किराया पूछा। वे ख़िज़्र (अ.स.) को पहचानते थे, इसलिए उन्होंने किराया लेने से इंकार कर दिया और इसरार करके दोनों को कश्ती पर सवार कर लिया और कशती रवाना हो गई। अभी चले हुए ज़्यादा देर न हुई थी कि हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) ने कश्ती के सामने वाले हिस्से का एक तख़्ता उखाड़ कर कश्ती में सूराख़ कर दिया। हज़रत मूसा (अ.स.)  से ज़ब्त न हो सका, ख़िज़्र (अ.स.) से कहने लगे, कश्ती वालों ने यह एहसान किया कि आपको और मुझको मुफ़्त सवार कर लिया और अपने उसका यह बदला दिया कि कश्ती में सूराख़ कर दिया कि सब कश्ती वाले कश्ती समेत डूब जाएं, यह तो बहुत नामुनासिब हरकत हुई?

हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) ने कहा कि मैंने तो पहले ही कहा था कि आप मेरी बातों पर सब्र न कर सकेंगे? आखिर वहीं हुआ। हज़रत मूसा (अ.स.) ने फ़रमाया, में वह बात बिल्कुल भूल गया, इसलिए आप भूल-चूक पर पकड़ें नहीं और मेरे मामले में सख़्ती न करें। यह पहला सवाल वाकई मूसा (अ.स.) की भूल की वजह से था। इसी बीच एक चिड़िया कश्ती के किनारे आकर बैठी और पानी में चोंच डालकर एक क़तरा पानी पी लिया। हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) ने कहा, बेशक तश्वीहे इल्म इलाही के मुकाबले में मेरा और तुम्हारा इल्म ऐसा ही बे-हकीकत है, जैसा कि समुद्र के सामने यह क़तरा।

कश्ती किनारे लगी और दोनों उतर कर एक ओर को रवाना हो गए। समन्दर के किनारे-किनारे जा रहे थे कि एक मैदान में कुछ बच्चे खेल रहे थे। हज़रत ख्रिज (अ.स.) आगे बढ़े और उनमें से एक बच्चे को क़त्ल कर दिया। हज़रत मूसा (अ.स.) फिर सब्र न कर सके, फ़रमाने लगे- ‘नाहक एक मासूम जान को आपने मार डाला, यह तो बहुत ही बुरा किया?’ हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) ने कहा, मैं तो शुरू ही में कह चुका था कि आप मेरे साथ रहकर सब्र व ज़ब्त से काम न ले सकेंगे।

नबी अकरम (ﷺ) ने फरमाया, चूंकि यह बात पहली बात से भी ज़्यादा सख्त थी, इसलिए हज़रत मूसा (अ.स.) फिर सब्र न कर सके। हज़रत मूसा (अ.स.) ने फ़रमाया, खैर इस बार और नजरअंदाज कर दीजिए इसके बाद भी अगर सब्र न हो सका, तो फिर उज़्र करने का कोई मौका न रहेगा और इसके बाद आप मुझसे अलग हो जाइएगा।

ग़रज फिर दोनों रवाना हो गए और चलते-चलते एक ऐसी बस्ती में पहुंचे, जहां के रहने वाले खुशहाल और मेहमानदारी के हर तरह काबिल थे, मगर दोनों की मुसाफिराना दरख्वास्त पर भी उनको मेहमान बनाने से इंकार कर दिया था। ये अभी बस्ती ही में से गुज़रे थे कि ख़िज़्र (अ.स.) एक ऐसे मकान की ओर बढ़े, जिसकी दीवार कुछ झुकी हुई थी और उसके गिर जाने का डर था। हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) ने उसको सहारा दिया और दीवार को सीधा कर दिया। हज़रत मूसा (अ.स.) ने फिर ख़िज़्र (अ.स.) को टोका और फ़रमाने लगे कि “हम इस बस्ती में मुसाफिर की हैसियत से दाखिल हुए मगर उसके बसने वालों ने न मेहमानदारी की और न टिकने को जगह दी। आपने यह क्या किया उसके एक बाशिंदे की दीवार को बगैर मुआवजे के दुरुस्त कर दिया। अगर करना ही तो भूख-प्यास को दूर करने के लिए कुछ उजरत ही तै कर लेते।

हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) ने फ़रमाया, अब मेरी और तेरी जुदाई का वक्त आ गया, “हाजा फ़िराकु व बैनक‘ और फिर उन्होंने हजरत मूसा को इन तीनों मामलों हक़ीक़तों को समझाया और बताया कि ये सब अल्लाह की तरफ़ से वे थीं, जिन पर आप सब्र न कर सके। 


हज़रत ख़िज़्र (अ.स.)  से मुताल्लिक अहम बातें

हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) से मुताल्लिक़ कुछ बातें ज़िक्र के क़ाबिल हैं –

1. ख़िज़्र नाम है या लकब? 

कुरआन मजीद में न हज़रत ख़िज़्र का नाम ज़िक्र हुआ है औ लकब, बल्कि ‘अब्दम मिन इबादिना’ (हमारे बन्दों में से एक बन्दा) का ज़िक्र किया गया है। बुख़ारी व मुस्लिम की सही हदीसों में ख़िज़्र (अ.स.) कहकर’ हुआ है, इसलिए न यह कहा जा सकता है कि ख़िज़्र नाम है और न यह ख़िज़्र लकब है और इसका खोलना ज़रूरी भी नहीं।

2. ख़िज़्र सिर्फ ‘नेक बन्दा’ हैं या वली हैं या नबी हैं या रसूल? 

तर्जीह के काबिल यही है कि वह नबी थे। कुरआन मजीद ने अन्दाज़ में उनके शरफ़ का ज़िक्र किया है, वह नबी की पदवी के लिए ही उतरता है विलायत का मक़ाम तो उससे बहुत पीछे है।

3. उनको हमेशा की जिंदगी हासिल है या वफ़ात पा चुके? 

तहक़ीक़ करने वाले उलेमा की सही राय यह है कि वह वफ़ात पा चुके हैं, क्योंकि इस दुनिया में मौत एक हकीकत है।

और ऐ मुहम्मद! हमने तुझसे पहले भी किसी बशर को हयात अता नहीं की। अल-अंबिया 

4. मज्मउल बहरैन (बहरैन की जगह) कहां है? 

‘मजमउल बहरैन’ के बारे में हज़रत उस्ताद अल्लामा सैयद मु० अनवर शाह कद्द-स सिर्रहु फ़रमाते हैं ‘यह मकाम वह है जो आजकल अक़्बा के नाम से मशहूर है।’

5. हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) का मक़ाम व मर्तबा क्या है?

हज़रत ख्रिज (अ.स.) का मक़ाम-कुरआन मजीद ने इस वाकिए के शुरू में ख़िज़्र के ‘इल्म’ के मुताल्लिक कहा है ‘व अल्लमहू मिल्लदुन्नी इलमा

और हमने उसको अपने पास से इल्म अता किया। अल-कहफ़ 15

और क़िस्से के आखिर में ख़िज़्र का यह क़ौल नक़ल किया है- “वमा फ़-अत्तु हू अन अमरी’  

मैंने वाकियों के इस सिलसिले को अपनी ओर से नहीं किया। अल-कहफ़ 88

तो इन दोनों जुम्लों से मालूम होता है कि अल्लाह तआला ने ख़िज़्र (अ.स.) को कुछ चीजों की हक़ीक़तों का वह इल्म अता फ़रमाया था, जो तक्वीनी रुमूज़ व असरार और बातिनी हक़ीक़तों से मुताल्लिक़ है और यह एक ऐसा मुजाहरा था, जिसे अल्लाह तआला ने हक़ वालों पर वाज़ेह कर दिया। अगर इस दुनिया की तमाम हकीकतों पर से इसी तरह परदा उठा दिया जाए जिस तरह कुछ हक़ीक़तों को ख़िज़्र (अ.स.) के लिए बेनकाब कर दिया था,

तो इस दुनिया के तमाम हुक्म ही बदल जाएं और अमल की आजमाइशों का यह सारा कारखाना बिखर कर रह जाए, मगर दुनिया आमाल की आज़माइशगाह है, इसलिए ‘तक्वीनी हक़ीक़तों’ पर परदा पड़ा रहना ज़रूरी है, ताकि हक़ व बातिल की पहचान के लिए जो तराजू अल्लाह की कुदरत ने मुक़र्रर कर दिया है, वह बराबर अपना काम अंजाम देता रहे।

जहां तक हज़रत मूसा (अ.स.) का ताल्लुक है, तो नबूवत व रिसालत के मामलात के मज्मूए के एतबार से हज़रत मूसा (अ.स.) का मकाम हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) के मकाम से बहुत बुलन्द है, क्योंकि वे अल्लाह के नबी भी हैं और जलीलुलक़द्र रसूल भी, शरीअत वाले भी हैं और किताब वाले भी और रसूलों में अज़्म वाले रसूल हैं, पस हज़रत ख़िज़्र (अ.स.) का वह जुज़ई इल्म तक्वीन के असरार से ताल्लुक रखता था हज़रत मूसा (अ.स.) की शरीअत के जामे इल्म से आगे नहीं जा सकता।

To be continued …

इंशा अल्लाह उल अजीज! अगले पार्ट 32 में हज़रत मूसा (अ.स.) और बनी इसराईल का ईज़ा पहुंचाने वाले वाकिये को तफ्सील में देखेंगे।

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 10) | Qasas ul Anbiya: Part 30 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-10/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-10/#respond Mon, 30 Oct 2023 14:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=35785 गाय के ज़िब्ह का वाकिया, हजरत मूसा (अ.स.) और क़ारून , हजरत मूसा अलैहि सलाम Part 15.10हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 10), गाय के ज़िब्ह का वाकिया, हजरत मूसा (अ.स.) और क़ारून, क़ारून का वाक़िया कब पेश आया?

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 10)
Qasas ul Anbiya: Part 30

गाय के ज़िब्ह का वाकिया

एक बार ऐसा हुआ कि बनी इसराईल में एक कत्ल हो गया, मगर क़ातिल का पता न चला। आखिर शुबहा ने तोहमत की शक्ल अख्तियार की ली और आपसी इख्तिलाफ़ की ख़ौफ़नाक शक्ल पैदा हो गई। हज़रत मूसा (अ.स.) ने  अल्लाह तआला की तरफ़ रुजू किया और अर्ज़ किया इस वाक़िये ने क़ौम में सख्त इख़्तिलाफ़ रुनुमा कर दिया । तू खुद जानने वाला और हिक्मत वाला है. मेरी मदद फ़रमा।

अल्लाह तआला ने हजरत मूसा (अ.स.) से फ़रमाया कि इनसे कहो, पहले एक गाय ज़िब्ह करें और इसके बाद गाय के एक हिस्से को मक्तूल के जिस्म से मस करें। अगर वे ऐसा करेंगे तो हम उसको जिंदगी बख्श देंगे और यह मामला साफ़ हो जाएगा।

हज़रत मूसा (अ.स.) ने बनी इसराईल से जब ‘गाय के ज़िब्ह करने के बारे में फ़रमाया तो उन्होंने अपनी टेढ़ी बातों और बहानेबाजियों की आदत के मुताबिक़ बहस शुरू कर दी और कहने लगे, “मूसा ! तू हमसे मज़ाक करता है? यानी मक्तूल के वाक़िए से गाय ज़िब्ह करने के वाकिए से क्या ताल्लुक? अच्छा, अगर यह वाक़ई अल्लाह का हुक्म है तो यह गाय कैसी हो? उसका रंग कैसा हो? इसकी कुछ और तफ़सीली बातें मालूम होनी चाहिए।”

हज़रत मूसा (अ.स.) ने जब अल्लाह की वह्य की मारफ़त उनके तमाम सवालों के जवाब दे दिए और बहानेबाज़ी का उनके लिए कोई मौक़ा न रहा, तब वे हुक्म की तामील पर तैयार हुए और अल्लाह की वह्य के मुताबिक मामला पूरा किया।

अल्लाह तआला के हुक्म से वह मक्तूल जिंदा हो गया और उसने तमाम वाकिए, जैसे कि वे थे, बयान कर दिए। और इस तरह न सिर्फ यह कि क़ातिल का पता चल गया, बल्कि क़ातिल को भी इक़रार के बग़ैर चारा न रहा और आपस के इज़िलाफ़ दूर हो गए और इन मामलों का अच्छे ढंग से ख़ात्मा हुआ।

कुरआन ने इस वाक़िये से मुताल्लिक सिर्फ इसी क़दर बतलाया है और बेशक यह वाक़िया अल्लाह की उन मुसलसल निशानियों में से एक निशानी थी जो यहूदियों की सख़्त, तेज़ तबियत व आदत के मुकाबले में हक़ की ताईद के लिए अल्लाह की हिकमत के पेशेनज़र ज़ुहूर में आयी। 


हजरत मूसा (अ.स.) और क़ारून 

बनी इसराईल में एक बहुत बड़ा धनवान आदमी था। कुरआन ने उसका नाम क़ारून बताया है। उसके ख़ज़ाने ज़र व जवाहर से भरे हुए थे और बेइंतिहा मज़बूत मज़दूरों की जमाअत मुश्किल ही से उसके ख़ज़ाने की कुंजियां उठा सकती थी। इस खुशहाली और सरमायादारी ने उसको बेहद मगरूर (घमंडी) बना दिया था। क़ारून दौलत के नशे में इस क़दर चूर था कि वो अपने अजीज़ों, रिश्तेदारों और क़ौम के लोगों को हकीर और ज़लील समझता और उनसे हकारत के साथ पेश आता था।

हज़रत मूसा (अ.स.) और उनकी क़ौम ने एक बार उसको नसीहत की कि अल्लाह तआला ने तुझको बेपनाह दौलत और पूंजी दे रखी है और इज़्ज़त और हश्मत अता फरमाई है, इसलिए उसका शुक्र अदा कर और माली हक़ ‘ज़कात व सदाक़त‘ देकर ग़रीबों, फ़कीरों और मिस्कीनों की मदद कर, ‘अल्लाह को भूल जाना और उसके हुक्मों की खिलाफवर्ज़ी करना’ अख़्लाक़ व शराफ़त दोनों लिहाज से सख्त नाशुक्री और सरकशी है। उसकी दी हुई इज़्ज़त का बदला यह नहीं होना चाहिए कि तू कमज़ोरो और बूढ़ों को हक़ीर व ज़लील समझने लगे और घमंड और नफरत में चूर होकर ग़रीबों और अज़ीजों के साथ नफ़रत से पेश आए।

क़ारून के अपने बड़े होने के जज़्बे को हज़रत मूसा (अ.स.) की यह नसीहत पसन्द न आई और उसने गुरूर भरे अंदाज़ में कहा-मूसा ! मेरी यह दौलत व सरवत तेरे खुदा की दी हुई नहीं है, यह तो मेरे अक्ली तजुबों और इल्मी काविशों का नतीजा है। मैं तेरी नसीहत को मानकर अपनी दौलत को इस तरह बर्बाद नहीं कर सकता।

मगर हज़रत मूसा (अ.स.) बराबर तब्लीग़ का अपना फ़र्ज़ अंजाम देते रहे और क़ारून को हिदायत का रास्ता दिखाते रहे। क़ारून ने जब यह देखा मूसा (अ.स.) किसी तरह पीछा नहीं छोड़ते तो उनको ज़च करने और अपनी दौलत व हश्मत के मुज़ाहरे से मरऊब करने के लिए एक दिन बड़े कर्र व फ़र्र के साथ निकला।

हज़रत मूसा (अ.स.) बनी इसराईल के मज्मे में अल्लाह का पैग़ाम सुना है कि क़ारून एक बड़ी जमाअत और ख़ास शान व शौकत और खज़ानों की नुमाइश के साथ सामने से गुजरा, इशारा यह था कि अगर हज़रत मूसा (अ.स.) की तब्लीग़ का यह सिलसिला यों ही जारी रहा, तो मैं भी एक भारी जत्था रखता हूं और ज़र व जवाहर का भी मालिक हूं। इसलिए इन दोनों हथियारों के जरिए मूसा (अ.स.) को हरा कर रहूंगा।

बनी इसराईल ने जब क़ारून की इस दुनियावी सरवत व अज़मत को देखा तो उनमें से कुछ आदमियों के दिलों में इंसानी कमज़ोरी ने यह जज़्बा पैदा कर दिया कि वे बेचैन होकर यह दुआ करने लगे, ‘ऐ काश! यह दौलत व सरवत और अज्मत व शौकत हमको भी नसीब होती।’

मगर बनी इसराईल के सूझ-बूझ वाले अहले इल्म ने फ़ौरन मुदाख़लत की और उनसे कहने लगे, ‘ख़बरदार! इस दुनियावी ज़ेब व ज़ीनत पर न जाना और उसके लालच में गिरफ्तार न हो बैठना, तुम बहुत जल्द देखोगे कि इस दौलत व सरवत का बुरा अंजाम कैसा होने वाला है।’

आख़िरकार जब क़ारून ने किब्र व नखवत के खूब-खूब मुज़ाहरे कर लिए और हज़रत मूसा (अ.स.) और बनी इसराईल के मुसलमानों की तहक़ीर व तज़लील में काफ़ी से ज़्यादा ज़ोर लगा लिया तो अब गैरते हक़ हरकत में आई और ‘अमल का बदला’ के फितरी कानून ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, और क़ारून और उसकी दौलत पर अल्लाह का यह अटल फैसला सुना दिया ‘फलसफ़ना बिही व बिदारिहिलअर्ज’ (हमने क़ारून को और उसके सरमाए को ज़मीन के अन्दर धंसा दिया) और बनी इसराईल का आंखों देखते न ग़रूर बाकी रहा और न सामाने ग़रूर, सबको ज़मीन ने निगल कर इबरत का सामान मुहैया कर दिया। क़ुरआन मजीद ने कई जगहों पर इस वाकिए को तफ्सील से भी और मुख्लसर भी बयान किया है।

फिर हमने क़ारून और उसके महल को ज़मीन में घसा दिया, पस इसके लिए कोई जमाअत मददगार साबित न हुई, जो अल्लाह के अज़ाब से उसको बचाए, और वह बेयार व मददगार ही रह गया।' क़सस 28-81

क़ारून का वाक़िया कब पेश आया?

तफसीर लिखने वाले उलेमा को इसमें तरहुद है कि क़ारून का वाकिया कब पेश आया? मिस्र में फ़िरऔन के ग़र्क होने से पहले या ‘तीह’ के मैदान में फ़िरऔन के गर्क होने के बाद। क़ुरआन ने इस वाकिए को फ़िरऔन के ग़र्क होने से मुताल्लिक वाकियों के बाद किया है। इसलिए हमारे नज़दीक यह वाक़िया ‘तीही मैदान का है।

To be continued …

इंशा अल्लाह उल अजीज! अगले पार्ट 31 में हम हज़रत मूसा (अ.स.) और हज़रत ख़िज़्र के बारे में तफ्सील में जिक्र करेंगे।

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 9) | Qasas ul Anbiya: Part 29 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-9/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-9/#respond Sun, 29 Oct 2023 15:57:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=35304 हजरत मूसा अलैहि सलाम » Qasas ul Anbiya: Part 15.9मूसा अलैहि सलाम (भाग: 9), बनी इसराईल की नाफरमानी और उसका नतीजा, हजरत हारून की वफ़ात, हज़रत मूसा की वफ़ात ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 9)
Qasas ul Anbiya: Part 29

बनी इसराईल की नाफरमानी और उसका नतीजा

जब हज़रत मूसा ने बनी इसराईल से कहा कि तुम इस बस्ती (अरीहा) में दाखिल हो और दुश्मन का मुकाबला करके उस पर काबिज हो जाओ, अल्लाह तुम्हारे साथ है।

तो बनी इसराईल ने यह सुनकर जवाब दिया कि, ‘मूसा! यहां तो बड़े खालिप लोग रहते हैं। हम तो उस वक़्त तक उस बस्ती में दाखिल न होंगे जब तक वे वहां से निकल न जाएं।’

अफ़सोस बदबख़्तो ने यह न सोचा कि जब तक हिम्मत व बहादुरी के साथ तुम उनको वहां से न निकालोगे, तो वे जालिम ख़ुद कैसे निकल जाएंगे?

यूशे और कालिब ने जब यह देखा तो कौम को हिम्मत दिलाई और कहा, शहर के फाटक से गुजर जाओ, कुछ मुश्किल नहीं, चलो और उनका मुकाबला करो। हमको पूरा यकीन है कि तुम ही ग़ालिब रहोगे।

इन डरने वालों में से दो ऐसे आदमियों ने जिन पर अल्लाह ने अपर फल और इनाम किया कि तुम इन जाबिरों पर दरवाजे की तरफ से दाखिल हो जाओ। बस जिस वक्त तुम दाखिल हो जाओगे, तुम बेशक गालिब रहोगे और (यह भी कहा कि अल्लाह ही पर भरोसा रखो, अगर तुम ईमान लाए हो।' अल-माइदा : 23

लेकिन बनी इसराईल पर इस दात का कुछ भी असर न हुआ और वे पहले की तरह अपने इंकार पर कायम रहे और जब हज़रत मूसा ने ज़्यादा जोर दिया तो अपने इंकार पर इसरार करते हुए कहने लगे

उन्होंने कहा, ऐ मूसा! हम कभी इस शहर में उस वक्त तक दाखिल नहीं होंगे, जब तक वे उसमें मौजूद हैं। पस तू और तेरा रब दोनों जाओ और उनसे लड़ो, हम तो यहीं बैठे हैं। (यानी तमाशा देखेंगे) अल-माइदा 24

हजरत मूसा ने जब यह ज़लील और बेहूदा बात सुनी तो बहुत दुखी हुए और इंतिहाई रंज़ व मलाल के साथ अल्लाह के हुजूर अर्ज किया, “ऐ अल्लाह! मैं अपने और हारून के सिवा किसी पर काबू नहीं रखता, सो हम दोनों हाज़िर हैं। अब तू हमारे और इस नाफरमान कौम के दर्मियान जुदाई कर दे, ये तो सखल ना अस्त हैं।’

अल्लाह ने हज़रत मूसा पर वह् नाजिल फ़रमाई, ‘मूसा! तुम ग़मगीन न हो, इनकी नाफरमानी का तुम पर कोई बोझ नहीं। अब हमने इनके लिए यह सजा मुकर्रर कर दी है कि ये चालीस साल इसी मैदान में भटकते फिरेंगे और इनको अर्जे मुक़द्दस में जाना नसीब न होगा। हमने उन पर अर्जे मुक़द्दस को हराम कर दिया है।’

(अल्लाह तआला ने) कहा: 'बेशक उन पर अर्जे मुकद्दस का दाखिला चालीस साल तक हराम कर दिया गया। इस मुद्दत में ये इसी मैदान में भटकते रहेंगे। बस तू नाफरमान क़ौम पर ग़म न खा और अफ़सोस न कर। सूरह मईदा 5:26

(सीना घाटी को ‘तीह‘ इसलिए कहते हैं कि कुरआन ने बनी इसराईल के लिए कहा है कि ‘यतीह-न फ़िलअर्ज‘ (ये उसमें भटकते फिरेंगे) जब कोई आदमी रास्ते से भटक जाए तो अरबी में कहते हैं ‘ता-ह फ़्ला‘)

इस सूरतेहाल के बाद हजरत मुसा और हजरत हारूरन को भी उसी मैदान में रहना पड़ा और वे भी अर्जे मुक़द्दस में दाखिल न हो सके, क्योंकि जरूरी था कि बनी इसराइल की रुश्द व हिदायत के लिए अल्लाह का पैग़म्बर उनमें मौजूद रहे। 

हजरत हारून की वफ़ात

ऊपर लिखे हालात में जब बनी इसराईल ‘तीह’ के मैदान में फिरते-फिराते पहाड़ की उस चोटी के करीब पहुंचे, जो ‘हूर’ के नाम से मशहूर थी, तो हजरत हारून को मौत का पैग़ाम आ पहुंचा। वह और हजरत मूसा अलैहि सलाम अल्लाह के हुक्म से ‘हूर’ पर चढ़ गए और वहीं कुछ दिनों अल्लाह की इबादत में लगे रहे और जब हज़रत हारून का वहां इंतिकाल हो गया तो हज़रत मूसा अलैहि सलाम उनको कफ़नाने-दफ़नाने के बाद नीचे उतरे और बनी इसराईल को हारून की वफ़ात से मुत्तला किया। 

हज़रत मूसा की वफ़ात

हज़रत मूसा अलैहि सलाम से रिवायत की गई एक हदीस के मुताबिक जब हजरत मूसा अलैहि सलाम की बफ़ात का वक्त करीब आ गया, तो मौत का फ़रिश्ता उनकी खिदमत में हाजिर हुआ।

फ़रिश्ते से कुछ बात-चीत के बाद हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने अल्लाह तआला से अर्ज़ किया कि अगर लम्बी से लम्बी जिंदगी का आखिरी नतीजा मौत ही है, तो फिर वह चीज़ आज ही क्यों न आ जाए और दुआ की कि ऐ अल्लाह! इस आखिरी वक़्त में अर्जे मुक़द्दस से करीब कर दे।

हज़रत मूसा की दुआ के मुताबिक उनकी क़ब्र ‘अरीहा‘ की बस्ती में कसीदे अमर (लाल टीला) पर वाकेय है, जिसका ज़िक्र एक हदीस में भी आया है। वाजेह रहे कि ‘तीह‘ मैदान के सबसे करीब वादी मुक़द्दस का इलाका अरीहा की बस्ती है, गोया अल्लाह पाक ने उनकी आखिरी दुआ को भी शरफ़े कुबूलियत बख्शा।

(अरीहा को रीहू भी कहा गया है और आजकल Dericeo भी कहा जाता है। यह जगह जॉर्डन नदी के पच्छिम में युरूशलम से कुछ मील के फासले पर है और यहां एक कब्र ‘बनी मुसा’ के नाम से मशहूर है।

To be continued …

इंशा अल्लाह उल अजीज! अगले पार्ट 30 में हम हज़रत मूसा की नुबूवत के ज़माने से मुताल्लिक़ दूसरे अहम् व इबरतनाक वाकियों पर गौर करेंगे।

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 8) | Qasas ul Anbiya: Part 28 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-8/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-8/#respond Sat, 28 Oct 2023 02:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=35269 हजरत मूसा अलैहि सलाम » Qasas ul Anbiya: Part 15.8मूसा अलैहि सलाम (भाग: 8) | सत्तर सरदारों का इंतिख़ाब, सरदारों की हथधर्मी, अज़ाबे इलाही और नई जिंदगी, बनी इसराईल का फिर इंकार और तूर पहाड़ का सरों पर बुलंद होना, अर्जे मुक़द्दस का वायदा और बनी इसराईल ..

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 8)
Qasas ul Anbiya: Part 28

अस्सलामु अलैकुम ! पिछले पार्ट 27 में हमने देखा बनी इसराईल की गौशालापरस्ती और सामरी का हश्र। अब आगे देखेंगे बनी इस्राईल में सत्तर सरदारों का इंतिख़ाब और उनके हथधर्मी के तहत अल्लाह का अजाब। 

सत्तर सरदारों का इंतिख़ाब

.      जब बनी इसराईल का यह जुर्म माफ़ कर दिया गया तो अब हजरत मूसा अलैहि सलाम ने उनसे फ़रमाया कि मेरे पास जो ये ‘अलवाह‘ (तख्तियां) हैं, यह किताब है, जो अल्लाह तआला ने तुम्हारी हिदायत और दीनी व दुनियावी जिंदगी की फ़लाह के लिए मुझको अता फरमाई है, यह तौरात है। अब तुम्हारा फर्ज है कि इस पर ईमान ले आओ और इसके हुक्मों को पूरा करो।

      बनी इसराईल बहरहाल बनी इसराईल थे, कहने लगे, मूसा! हम कैसे यक़ीन करें कि यह अल्लाह की किताब है? सिर्फ तेरे कहने से तो हम नहीं मानेंगे, हम तो जब उस पर ईमान लाएंगे कि अल्लाह को बे-परदा अपनी आंखों से देख लें और वह हमसे यह कहे कि यह तौरात मेरी किताब है, तुम इस पर ईमान लाओ।

      हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने उनको समझाया, यह बेवकूफ़ी का सवाल है, इन आंखों से अल्लाह को किसने देखा है जो तुम देखोगे? यह नहीं हो सकता, मगर बनी इसराईल का इसरार बराबर कायम रहा।

      हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने जब यह देखा तो कुछ सोचकर इरशाद फ़रमाया कि यह तो नामुमकिन है कि तुम लाखों की तायदाद में मेरे साथ हुईव (तूर पहाड़) पर इसकी तस्दीक के लिए जाओ, मुनासिब यह है कि तुममें से कुछ सरदार चुनकर साथ लिए जाता हूं, वे अगर वापस आकर तस्दीक कर दें तो फिर तुम भी तस्लीम कर लेना और चूकि अभी गौशाला परस्ती करके एक बहुत बड़ा गुनाह कर चुके हो, इसलिए नदामत के इजहार के लिए और अल्लाह से आगे नेकी के अहद के लिए भी यह मौका मुनासिब है। कौम इस पर राजी हो गई और हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने तमाम अस्बात से सत्तर सरदारों को चुन लिया और तूर पर जा पहुंचे।

      तूर पर एक सफेद बादल की तरह ‘नूर’ ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को घेर लिया और अल्लाह से हमकलामी शुरू हो गई। हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने अल्लाह के दरबार में अर्ज़ किया कि तू बनी इसराइल के हालात का दाना व जीना है, मैं उनकी जिद पर सत्तर आदमी इतिख़ाब कर लाया हूं क्या अच्छा हो कि वे भी इस ‘हिजाबे नूर’ से मेरी और तेरी हमकलामी को सुन ले और क़ौम के पास जाकर तस्दीक करने के काबिल हो जाए? 

अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम की दुआ मंज़ूर फ़रमा ली और उनको ‘हिजाबे नूर‘ में लिया गया और उन्होंने हजरत मूसा अलैहि सलाम और अल्लाह रब्बुल आलमीन की हमकलामी (आपस की बात-चीत) को सुना।


सरदारों की हथधर्मी, अज़ाबे इलाही और नई जिंदगी

लेकिन जब नूर का परदा हट गया और हज़रत मूसा अलैहि सलाम और उन सरदारों के दर्मियान आमना-सामना हुआ तो सरदारों ने वही अपना पहला इसरार कायम रखा कि जब तक बे-परदा अल्लाह को न देख लें, हम ईमान लाने वाले नहीं।

      इस बेवकूफी के इसरार और जिद पर अल्लाह की गैरत ने उनको यह सज़ा दी कि एक हैबतनाक चमक, कड़क और जलजले ने उनको आ लिया और जला कर खाक कर दिया। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने जब यह देखा तो अल्लाह के दरबार में आजिजी के साथ दुआ मांगी, इलाही! ये बेवकूफ़ अगर बेवकूफ़ी कर बैठे तो क्या तू हम सब को हलाक कर देगा। ऐ अल्लाह! अपनी रहमत से तू इनको माफ कर दे। अल्लाह तआला ने हजरत मूसा अलैहि सलाम की दुआ को सुना और उन सबको दुबारा ताजा जिंदगी बख्शी और फिर जब वे जिंदगी का लिबास पहन रहे थे तो एक दूसरे की ताजा जिंदगी को आंखों से देख रहे थे। [अल बक़रह 55]


बनी इसराईल का फिर इंकार और तूर पहाड़ का सरों पर बुलंद होना

बहरहाल जब ये सत्तर सरदार दोबारा जिंदगी पाकर क़ौम की तरफ वापस हुए तो उन्होंने क़ौम से तमाम किस्सा कह सुनाया और बताया कि मूसा अलैहि सलाम जो कुछ कहते हैं वह हक है और बेशक वे अल्लाह के भेजे हुए हैं।

      अब सलीम फ़ितरत का तकाज़ा तो यह था कि ये सब अल्लाह तआला का शुक्र बजा लाते और उसके ज़्यादा-से-ज्यादा फ़ज़्ल व करम को देखते हुए फरमाबरदारी और उबूदयित के साथ उसके सामने सर झुका देते, मगर हुंवा यह कि उन्होंने अपनी टेढ़ को बाकी रखा और अपने नुमाइन्दों की तस्दीक के वावजूद तौरात के कुबूल करने में ठुकराने और कुबूल न करने का रवैया अपना लिया और हज़रत मूसा अलैहि सलाम के इर्शाद पर कान न धरा।

      जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने यह देखा तो ख़ुदा के दरबार में रुजू करते हुए कौम की बेराहरवी की शिकायत की। अल्लाह के दरबार से हुक्म हुआ कि इन नाफ़रमानों के लिए मैं तुझको एक हुज्जत (मोजज़ा) और अता करता हूं और वह यह कि जिस पहाड़ (तूर) पर तू मुझसे हमकलाम हुआ है और जिस पर तेरी क़ौम के चुने हुए सरदारों ने हक़ का मुशाहदा किया है, उसी पहाड़ को हुक्म देता हूं कि वह अपनी जगह से हरकत करे और साइवान की तरह बनी इसराईल के सरों पर छा जाए और जुबाने हाल से यह सवाल करे कि मूसा अल्लाह का सच्चा पैग़ंबर है और तौरात बेशक अल्लाह की सच्ची किताब है और अगर ये दोनों हक व सदाकत का मजहर न होते तो, यह शानदार ‘निशान’ तुम न देखते, जिसका जाहिर होना अल्लाह की कुदरत के सिवा और किसी तरह भी नामुमकिन है।

      चुनांचे ज्योंही अल्लाह का यह फैसला हुआ, तूर उनके सरों पर सायबान की तरह नजर आने लगा और जुबाने हाल से कहने लगा कि ऐ बनी इसराइल! अगर तुममें अक्ल और होश बाक़ी है और हक व बातिल की पहचान मौजूद है तो कान खोल कर सुनो कि मैं अल्लाह का निशान बनकर तुमको यकीन दिलाता हूं और गवाही देता हूं कि मूसा अलैहि सलाम ने कई बार मेरी पीठ पर बैठ कर अल्लाह तआला से साथ बात करने का शरफ़ हासिल किया है और तुम्हारी रुश्द व हिदायत का कानून (तौरात) भी उसको मेरी पीठ ही पर अता हुआ है।

      और ऐ ग़फ़लत व सरकशी में मस्त लोगो! मेरी यह हैबत (रौब व दबदबा), जो तुम्हारे लिए हैरान करने वाली बन रही है, इस बात की गवाही है कि जब इंसान के सीने में दिल की नर्मी सख्ती से बदल जाती है, तो फिर वह पत्थर का टुकड़ा, बल्कि इससे भी ज़्यादा सख्त बन जाता है और रुश्द व हिदायत उसमें किसी ओर से दाखिल नहीं हो पाती। देखो, मैं पत्थर के टुकड़ों का मज्मूआ ‘पहाड़’ हूं, लेकिन अल्लाह के हुक्म के सामने किस तरह बन्दगी जाहिर कर रहा हूं, मगर तुम हो कि अना (मैं) और ख़ुदी के घमंड में किसी हालत में भी ‘नहीं’ को ‘हां’ से बदल देने को तैयार नहीं, सच है –

फिर तुम्हारे दिल सख्त हो गए, सो वे हो गए जैसे पत्थर या उनसे भी सख्त। अल-बकरः 74 

      बनी इसराईल ने जब यह ‘निशान’ देखा तो अब उसे वक़्ती खौफ़ व दहशत का फल समझिए या खुली आंखों अल्लाह के शानदार ‘निशान’ के मुशाहदे का नतीजा, यक़ीन कीजिए कि बनी इसराईल तौरात की तरफ़ मुतवज्जह हुए और हज़रत मूसा के सामने उसके अहकाम की तामील का इकरार किया, तब अल्लाह का फरमान हुआ कि ऐ बनी इसराईल! हमने जो तुझे दिया है, उसको मज़बूती के साथ लो और जो अहकाम इस (तौरात) में दर्ज हैं उनकी तामील करो, ताकि तुम परहेज़गार और मुत्तकी बन सको।

      मगर अफ़सोस कि बनी इसराईल का यह अहदे मीसाक हंगामी साबित हुआ और ज़्यादा दिनों तक वे उस पर कायम न रह सके और आदत के मुताबिक फिर ख़िलाफ़वर्ज़ी शुरू कर दी। कुरआन मजीद ने इन वाकीयों को बहुत ही थोड़े में, मगर साफ़ और खुले लफ़्ज़ों में इस तरह बयान किया है।

और जब हमने तुमसे अहद लिया और तुम्हारे सर पर तूर को ऊंचा किया और कह्म जो हमने तुमको दिया है, उसको ताकत से पकडो और जो कुछ उसमें है, उसको याद करो, ताकि परहेजगार बनो। फिर बाद तुमने (इस तोरात से) पीठ फेरे ली, पस अगर तुम पर अल्लाह का और उसकी रहमत न होती तो बेशक तुम नुकसान उठाने वालों में हो जाते। सूरह बक़रह 63-64
और जब हमने उनके (बनी इसराईल के) सरों पर पार कर दिया, गोया कि वह सायबान है और उन्होंने यकीन कर लिया कि पर गिरने वाला है, तो हमने कहा) जो हमने तुमको दिया है, उसको से लो और जो कुछ उसमें है, उसको याद करो, ताकि तुम परहेजगार बने।' अल-आराफ 170

      इन आयतों में साफ किया गया है कि बनी इसराईल ने जब तौरात के कुबूल करने में आनाकानी की, बल्कि इंकार कर दिया तो अल्लाह तआला रे उनके सरों पर तूर को बुलन्द कर दिया और इस तरह अल्लाह की निशानी जाहिर करके उनको सौरात कुबूल करने पर तैयार किया।


अर्जे मुक़द्दस का वायदा और बनी इसराईल

नोट – अर्जे मुक़द्दस से वह इलाका मुराद है जो पहले कनआन कहलाया, फिर फलस्तीन।

      सीना के जिस मैदान में, उस वक़्त बनी इसराईल मौजूद थे, वह सरजमीन फलस्तीन से करीब थी और उनके बाप-दादा हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्हाक, और हज़रत याकूब से अल्लाह का वायदा था कि तुम्हारी औलाद को फिर उस सरजमीन का मालिक बनाएंगे और वह वहां फूले फलेगी।

      इसलिए हज़रत मूसा अलैहि सलाम की मारफत अल्लाह का हुक्म हुआ कि अपनी क़ौम से को कि अर्जे मुकद्दस में दाखिल हों और वहां के जालिम व जाबिर हुक्मरानों को निकाल कर अदल व इंसाफ की जिंदगी बसर करें। हम वायदा करते हैं कि फ़ह तुम्हारी होगी और तुम्हारे जालिम दुश्मन नाकाम होंगे। हज़रत मूसा ने इससे पहले कि बनी इसराईल को अर्जे ‘मुकद्दस में दाखिल होने के लिए आमादा करें, बारह आदमियों को तफ्तीशे हाल के लिए भेजा। वह फ़लस्तीन के करीबी शहर अरील (Jaicho) में दाखिल हुए और तमाम हालात को पार से देखा, जब वापस आए तो हज़रत मूसा को बताया कि बहुत जसीम और तन व तोश के जबरदस्त हैं और बहुत कवी हैकल हैं।

      हजरत मूसा अलैहि सलाम ने फ़रमाया कि जिस तरह तुमने मुझसे उनके बारे में कह्म है, कौम के सामने न कहना इसलिए कि एक लम्बे अर्से की गुलामी ने उनके हौसले पस्त कर दिए हैं और उनकी शुजाअत, ख़ुददारी और ऊंची हिम्मत की जगह बुजदिली, जिल्लत और पस्त हिम्मती ने ले ली है, मगर आखिर ये भी उसी कौम के लोग थे, न माने और ख़ामोशी के साथ क़ौम के सामने दुश्मन की ताकत का खूब बढ़ा-चढ़ा कर जिक्र किया, अलबत्ता सिर्फ दो आदमी यूशेम बिन नून और कालिब बिन याना ने हजरत मूसा के हुक्म की पूरी-पूरी तामील की और उन्होंने बनी इसराईल से ऐसी कोई बात नहीं कही कि जिससे उनकी हिम्मत टूटे।

अब हज़रत मूसा ने बनी इसराईल से कहा कि तुम इस बस्ती (अरीहा) में दाखिल हो और दुश्मन का मुकाबला करके उस पर काबिज हो जाओ, अल्लाह तुम्हारे साथ है।

और जब मूसा ने अपनी कौम से कहा, ऐ कौम! तुम पर जो अल्लाह का एहसान रहा है, उसको याद करो कि उसने तुममें नबी और पैगम्बर बनाए और तुमको बादशाह और हुक्मरा बनाया और वह कुछ दिन जो जहानों में किसी को नहीं दिया। ऐ क्रोम! उस मुकद्दस सरजमीन में दाखिल हो जिसको अल्लाह तआला ने तुम पर फ़र्ज कर दिया है और पीठ फेरकर न लौटो (कि नतीजा यह निकले) कि तुम घाटा और नुक्सान उठाने वाले बकर लौटो।’ अल-माइदा 20-21

To be continued …

इंशा अल्लाह उल अजीज! अगले पार्ट 29 में मूसा अलैहि सलाम और हारून अलैहि सलाम की वफ़ात का तफ्सीली जिक्र करेंगे।

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 7) | Qasas ul Anbiya: Part 27 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-7/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-7/#comments Fri, 27 Oct 2023 16:52:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=26540 हजरत मूसा अलैहि सलाम » Qasas ul Anbiya: Part 15.7हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 7), बनी इसराईल की गौशालापरस्ती, बनी इसराईल को माफ़ी ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 7)
Qasas ul Anbiya: Part 27

बनी इसराईल की गौशालापरस्ती

.     इसी बीच एक और अजीब व ग़रीब वाकिया पेश आया, वह यह कि कोहे तूर पर एतिकाफ़ में फैलाव से फायदा उठाकर एक आदमी सामरी [सामरी के बारे में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने वजाहत की है कि वह बनी इसराईल में से न था, बल्कि वह सुमैरी क़ौम का आदमी था और सापरी उसका नाम नहीं है, बल्कि उसकी क़ौमियत की तरफ़ इशारा है (Sumarian) ] ने जो जाहिर में मुसलमान था, बनी इसराईल से कहा कि अगर तुम वह तमाम जेवर मेरे पास ले आओ जो तुमने मिस्रियों से उधार लिए थे और फिर वापस न कर सके, तो मैं तुम्हारे फायदे की एक बात कर दूं।

.     बनी इसराईल ने तमाम जेवर सामरी के हवाले कर दिए। उसने उनको गलाकर बछड़े का जिस्म तैयार किया और फिर अपने पास से एक मुट्ठी मिट्टी उसके लिए डाल दी। इस तर्कीब से उसमें जिंदगी के निशान पैदा हो गए और उससे बछड़े की आवाज़ ‘भाएं-भाएं’ आने लगी। अब सामरी ने बनी इसराईल से कहा कि मूसा (अलैहि सलाम) से गलती हो गई, तुम्हारा माबूद तो यह है।

सामरी की इस तर्गीब से बनी इससईल ने उसकी पूजा शुरू कर दी।

.     हजरत हारुन (अलैहि सलाम) ने यह देखा तो बनी इसराईल को समझाया कि ऐसा न करो। यह तो गुमगही का रास्ता है, मगर उन्होंने हारून (अ०) की बात मानने से इंकार कर दिया और कहने लगे कि जब तक मूसा न आ जाएं हम इससे वाज आने वाले नहीं।

.     यहां जब यह नौबत पहुंची तो अल्लाह तआला की मस्लहत का ताकाजा हुआ कि हजरत मुसा (अलैहि सलाम) को इस वाकिए की इत्तिला दे दे, इसलिए मुसा से पूछा, मुसा! तुमने कौम को छोड़कर यहां आने में इतनी जल्दी क्यों की? हजरत मूसा (अ०) ने अर्ज किया, ऐ अल्लाह! इसलिए कि तेरे पास हाजिर होकर कौम के लिए हिदायत हसिल करू?’ अल्लाह तआला ने उस वक़्त उनको बताया कि जिसकी हिदायत के लिए तुम इस कदर बेचैन हो। वह इस गुमराही में मुब्तला है। हजरत मूसा (अ०) ने यह सुना तो उनको सख्त रंज हुआ। और गुस्से और नदामत के साथ कौम की तरफ वापस हुए और कौम से मुखातब होकर फ़रमाया : “तुमने यह क्या किया?” मुझसे ऐसी कौन सी देर हो गई थी जो तुमने यह आफ़त खड़ी कर दी। यह फरमाते जाते थे और गैज व गजब से कांप रहे थे, यहां तक कि हाथ की लोहें (तख्तियां) भी गिर गई।

.     बनी इसराईल ने कहाः हमारा तो कोई कुसूर नहीं। मिस्रियों के जेवरों का जो बोझ हम साथ लिए फिर रहे थे, वह सामरी ने हमसे मांग कर यह स्वांग बना लिया और हमको गुमराह कर दिया।

.     ‘शिर्क‘ नुबूवत के मंसब के लिए एक बर्दाश्त न करने के काबिल चीज है, इसलिए और फिर इसलिए भी कि हज़रत मूसा बहुत गर्म मिज़ाज थे। उन्होंने अपने भाई हारून की गरदन पकड़ ली और दाढ़ी की तरफ हाथ बढ़ाया तो हज़रत हारून (अ.स) ने फ़रमाया, ‘ब्रादर! मेरी मुतलक खता नहीं है। मैंने उन्हें हर पहलू से समझाया, मगर उन्होंने किसी तरह नहीं माना और कहने लगे कि जब तक मूसा न आ जाएं, हम तेरी बात सुनने वाले नहीं, बल्कि उन्होंने मुझको कमजोर पा कर मेरे कत्ल का इरादा कर लिया था। जब मैंने यह हालत देखी तो ख्याल किया कि अगर इनसे लड़ाई की जाए और पूरे ईमान वालों और उनके दर्मियान लड़ाई छिड़ जाए तो कहीं मुझ पर यह इलज़ाम न लगाया जाए कि मेरे पीछे कौम में फूट डाल दी, इसलिए मैं ख़ामोशी के साथ तेरे इतिज़ार में रहा। प्यारे भाई! तू मेरे सर के बाल न नोच और न दाढ़ी पर हाथ वला और इस तरह दूसरों को हंसने का मौका न।”

.     हारून (अ०) की यह माकूल दलील सुनकर हजरत मुसा का गुस्सा उनकी तरफ से ठंडा हो गया और अब सामरी की तरफ़ मुखातब होकर फ़रमाया –

.     ‘सामरी! तूने यह क्या स्वांग बनाया है?’

.     सामरी ने जवाब दिया कि मैंने ऐसी बात देखी जो इन इसराईलियों में से किसी ने नहीं देखी थी, यानी फ़िरऔन के डूबने के वक्त जिब्राइल घोड़े पर सवार इसराईलियों और फ़िरऔनियों के दर्मियान रोक बने हुए थे। मैंने देखा कि उनके घोड़े की सुम की ख़ाक में जिंदगी का असर पैदा हो जाता है और सूखी जमीन पर सब्जा उग आता है, तो मैंने जिब्रइल के घोड़े के क़दमों की खाक से एक मुट्ठी भर ली और उस ख़ाक को इस बछड़े में डाल दिया और उसमें जिंदगी की निशानियां पैदा हो गईं और यह ‘भां-भां’ करने लगा।

.     हजरत मूसा (अ०) ने फ़रमाया –
.     अच्छा, अब दुनिया में तेरे लिए यह सजा तजवीज की गई है कि तू पागलों की तरह मारा-मारा फिरे और जब कोई इंसान तेरे करीब आए तो उससे भागते हुए यह कहे कि देखना, मुझको हाथ न लगाना, यह तो दुनिया वाला अजाब है और कयामत में ऐसे नाफ़रमानों और गुमराहों के लिए जो अजाब मुकर्रर है, वह तेरे लिए अल्लाह के वायदे की शक्ल में पूरा होने वाला है।

.     ऐ सामरी! यह भी देख कि तूने जिस गौशाला को माबूद बनाया था और उसकी समाधि लगाकर बैठा था, हम अभी उसको आग में डालकर खाक किए देते हैं और इस ख़ाक को दरिया में फेंके देते हैं कि तुझको और तेरे इन बेवकूफ मुक्तादिओं को मालूम हो जाए कि तुम्हारे माबूद की क़द्र व कीमत और ताकत व कूवत का यह हाल है कि वह दूसरों पर इनायत व करम तो क्या करता, ख़ुद अपनी ज़ात को हलाकत व तबाही से न बचा सका।


बनी इसराईल को माफ़ी

.     गुस्सा कम होने पर हज़रत मूसा (अ०) ने तौरात की तख्तियों को उठा लिया और अल्लाह की तरफ़ रुजू किया कि अब बनी इसराईल की इस बेदीनी और इर्तिदाद की सजा अल्लाह के नजदीक क्या है? जवाब मिला कि जिन लोगों ने यह शिर्क किया, उनको अपनी जान से हाथ धो लेना पड़ेगा।

.     नसई में रिवायत है कि हजरत मूसा (अ०) ने बनी इसराईल से कहा कि तुम्हारी तौबा की सिर्फ़ एक शक्ल मुकर्रर की गई है कि मुजरिमो को अपनी जान इस तरह खत्म कराना चाहिए कि जो आदमी रिश्ते में जिससे सबसे ज्यादा करीब है, वह अपने अजीज़ को अपने हाथ से कत्ल करे यानी बाप बेटे और बेटा बाप को और भाई भाई को, आख़िरकार बनी इसराईल को इस हुक्म के आगे सर झुका देना पड़ा।

काफ़ी तायदाद में बनी इसराईल कत्ल हुए, जब नौबत यहां तक पहुंची तो हज़रत मूसा (अ०) अल्लाह के दरबार में सज्दे में गिर पड़े और अर्ज किया, ऐ अल्लाह! अब इन पर रहम फ़रमा कर इनकी ख़ताओं को बश दे। हज़रत मूसा (अ०) की दुआ कुबूल हुई और अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि हमने क़ातिल व मक्तूल दोनों को बना दिया और जो जिंदा और कुसूरवार हैं, उनकी भी खता माफ़ कर दी। तुम उनको समझा दो कि आगे शिर्क के करीब भी न जाएं।

To be continued …

इंशा अल्लाह अगले पार्ट 28 में हम देखंगे बनी इसराईल पर अल्लाह का अज़ाब

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 6) | Qasas ul Anbiya: Part 26 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-6/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-6/#respond Thu, 26 Oct 2023 00:09:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=26167 हज़रत मूसा अलैहि सलाम Prophet Musa Alaihi Salam Story in hindi Qasas ul Anbiya part 15.6हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 6), फ़िरऔन, फ़िरऔन की क़ौम और कयामत का अजाब, हज़रत मूसा और बनी इसराईल समुद्र पार करने के बाद, बनी इसराईल की पहली मांग, बनी इसराईल पर अल्लाह के इनाम और खुली, निशानियां, चश्मों का जारी होना, मन्न व सलवा
बादलों का साया, बनी इसराईल की नाशुक्री
तूर पर एतिकाफ़, तजल्ली-ए-जात, तौरात का उतरना ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 6)
Qasas ul Anbiya: Part 26

फ़िरऔन, फ़िरऔन की क़ौम और कयामत का अजाब

………. फ़िरऔन और हजरत मूसा अलैहि सलाम का यह वाक्रिया हक व बातिल के मारके में एक शानदार मारका है- एक ओर गुरूर व घमंड, जब व जुल्म, तो दूसरी ओर मज्लुमियत, ख़ुदापरस्ती और सब्र व इस्तिकामत की फ़तह व कामरानी का अजीब व ग़रीब मुरक्का। इसलिए अल्लाह तआला ने फ़िरऔन और फ़िरऔन की क़ौम को दुनिया की हलाकत के बाद इबरत व बसीरत के लिए इस तरफ़ भी तवज्जोह दिलाई है कि इस किस्म के लोगों के लिए आख़िरत में किस कदर सख्त अजाब और फिटकार के कैसे इबतरनाक सामान मुहैया हैं-

और उलट पड़ा फ़िरऔन वालों पर बुरी तरह का अजाब वह आग है कि दिखला देते हैं उनको सुबह व शाम और जिस दिन कायम होगी कयामत, हुक्म होगा दाखिल करो फ़िरऔन वालों को सख्त से सख्त अजाब में।' अल-मोमिन 40:45-46

हज़रत मूसा और बनी इसराईल समुद्र पार करने के बाद बनी इसराईल की पहली मांग

………. हजरत मूसा अलैहि सलाम और बनी इसराईल ने सलामती के साथ लाल सागर पार करने के बाद शोर बयावान से होते हुए सीना की राह ली। सीना के मूर्ति-घरों में बुत के पुजारी, बुतों की पूजा में लगे हुए थे। बनी इसराईल ने यह मंजर मंजर देखा तो कहने लगे, मूसा! हमको भी ऐसे माबूद बना दे, ताकि हम भी इसी की तरह इनकी पूजा करें।

हजरत मूसा ने क़ौम की जुबानी यह शिर्क भरी मांग सुनी, तो बहुत ज़्यादा नाराज हुए और बनी इसराईल को डांटा और इतनी शर्म दिलाई और मलामत की “कि बदबतो! एक अल्लाह की इबादत छोड़कर बुतों की इबादत की तरफ़ झुकाव है और अल्लाह की उन तमाम नेमतों को भूल बैठे जिन्हें अपनी आंखों से देख चुके हो।


बनी इसराईल पर अल्लाह के इनाम और खुली निशानियां

चश्मों का जारी होना

………. बनी इसराईल अब सीना की घाटी में थे, यहां बहुत तेज़ गर्मी पड़ती है। दूर दूर तक हरियाली और पानी का पता नहीं। बनी इसराईल हज़रत मूसा अलैहि सलाम से फ़रियाद करने लगे, तब हज़रत मूसा ने अल्लाह के दरबार में इल्तिजा की और अल्लाह की वह्य ने उनको हुक्म दिया कि अपना आसा (डंडा) ज़मीन पर मारो। हज़रत मूसा ने इर्शाद की तामील की तो फ़ौरन बारह सोते उबल पड़े और बनी इसराईल के बारह क़बीलों के लिए अलग-अलग चश्मे जारी हो गए।

मन्न व सलवा

………. पानी के इस तरह जुटाए जाने के बाद बनी इसराईल ने भूख की शिकायत की। हज़रत मूसा ने फिर रब्बुल आलमीन से दुआ की। हज़रत मूसा की दुआ कुबूल हुई और ऐसा हुआ कि जब रात बीत गई और सुबह हुई तो बनी इसराईल ने देखा कि जमीन और पेड़ों पर जगह-जगह सफ़ेद ओले के दाने की तरह ओस की शक्ल में आसमान से कोई चीज़ बरस कर गिरी हुई है। खाया, तो बहुत मीठे हलवे की तरह थी। यह ‘मन्न‘ था और दिन में तेज हवा चली और थोड़ी देर में बटेरों के झुंड के झुंड जमीन पर उतरे और फैल गए। बनी इसराईल उनको भूनकर खाने लगे, यह ‘सलवा‘ था।

बादलों का साया

………. अब बनी इसराईल ने गर्मी की तेजी और साएदार पेड़ों और मकानों की राहत मयस्सर न होने की शिकायत की, तो फिर हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने अल्लाह ताला से दुआ की, जो कुबूल हुई और आसमान पर बादलों के परे के परे बनी इसराइल पर साया फ़गन हो गए और बनी इस्राईल जहा भी जाते बादल  साया फगन रहते।


बनी इसराईल की नाशुक्री

………. अल्लाह की इन मेहरबानियों और बख़्शिशो का बनी इसराईल शुक्र तो क्या अदा करते, एक दिन जमा होकर कहने लगे, ‘मूसा ! हम रोज-रोज़ एक ही खाना खाते रहने से घबरा गए हैं, हमको को इस ‘मन्न व सलवा‘ की ज़रूरत नहीं है। अपने अल्लाह से दुआ कर कि वह हमारे लिए जमीन से वाक़ला, खीरा, ककड़ी, मसूर, लहसुन, प्याज़ जैसी चीजें उगाए ताकि हम खूब खाएं।‘ जवाब में हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने कहा-

क्या तुम बेहतर और उम्दा चीज़ के बदले में घटिया चीज़ की ख्वाहिश करते हो, किसी शहर में जा क्रियाम करो, बेशक वहां यह सब कुछ मिल जाएगा, जिसके तुम तलबगार हो। अल-बकर 2:61

तूर पर एतिकाफ़

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम से अल्लाह का वायदा था कि जब बनी इसराईल गुलामी से आजाद हो जाएंगे, तुमको “शरीअत” दी जाएगी। अब हजरत मूसा अलैहि सलाम अल्लाह की वह्य के इशारे तूर पर पहुंचे और वहां अल्लाह की इबादत के लिए एतिकाफ किया।

और हमने मूसा से तीस रातों का वायदा किया था रातें बढ़ाकर उसे पूरे चालीस कर दिये। इस तरह परवरदिगार के हुजूर आने की मुक़र्रर की हुई मीयाद यानी चालीस रातों की मीयाद पूरी हो गई।' अल-आराफ़ 7:142

जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम तूर पर एतकाफ के लिए तशरीफ़ ले गए तो-

और मूसा ने अपने भाई हारून से कहा, तू मेरे पीछे मेरी क़ौम में नायब रहना और उनकी इस्लाह का ख्याल करना और फ़साद पैदा करने वाले की राह पर न चलना। अल-आराफ़ 7:142

तजल्ली-ए-जात

जब 40 रात पूरे हो गए तो अल्लाह ने हज़रत मूसा को हम कलामी का शरफ़ बख़्शा, तो वह पुकार उठे-

परवरदिगार! मुझे अपना जमाल दिखा कि तेरी तरफ़ नज़र कर सकू। हुक्म हुआ, तू मुझे नहीं देख सकेगा, मगर हां, इस पहाड़ की तरफ़ देख! अगर यह (तजल्ली-ए-हक़ की ताब ले आया और) अपनी जगह टिका रहा, तो मुझे देख सकेगा, फिर जब उसके परवरदिगार ने तजल्ली की तो उस तजल्ली ने पहाड़ रेजा-रेजा कर दिया और मूसा गश खाकर गिर पड़ा। जब मूसा होश में आया, तो बोला, 'अल्लाह! तेरे लिए हर तरह की तक्दिस हो। मैं तेरे हुजूर तौबा करता हूं और सबसे पहले यक़ीन करने वालों में हूं।' अल-आराफ़ 7:143

तौरात का उतरना

इस इस के बाद मूसा अलैहि सलाम को तौरात अता की गई।

और हमने उसके लिए तौरात की तख्तियों पर हर किस्म की नसीहत और (अहकाम में से) हर चीज़ की तफ्सील लिख दी है, पस इसका कुव्वत के साथ पकड़ और अपनी क़ौम को हुक्म कर कि वे उनको अच्छी तरह अख्तियार करें। अल-आराफ़ 145

………. बहरहाल हजरत मूसा अलैहि सलाम को (तख्तियों की शक्ल में) तौरात अता हुई और साथ-साथ यह भी बता दिया गया कि हमारा ‘कानून’ यह है कि जब कोई कौम हिदायत पहुंचने और उसकी सच्चाई पर दलील और रोशन हुज्जत आ जाने के बावजूद भी समझ से काम नहीं लेती और गुमराही और बाप-दादा की बूरी रस्म पर ही कायम रहती है और उस पर इसरार करती है, तो फिर हम भी उसको उस गुमराही में छोड़ देते हैं और हमारे हक के पैग़ाम में उनके लिए कोई हिस्सा बाक़ी नहीं रहता, इसलिए कि उन्होंने हक़ कुबूल करने की इस्तेदाद अपनी सरकशी के बदौलत बर्बाद कर दी।

To be continued …

इंशा अल्लाह अगले पार्ट 27 में हम देखंगे बनी इसराईल की हथधर्मी और गाय के बछड़े की इबादत के सबब अल्लाह का अज़ाब

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 5) | Qasas ul Anbiya: Part 25 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-5/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-5/#respond Tue, 24 Oct 2023 21:05:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=26152 हज़रत मूसा व हारून अलैहि सलाम Prophet Musa Alaihi Salam Story in hindi Qasas ul Anbiya part 15.5हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 5), फ़िरऔन का एलान, मिस्रियों पर अल्लाह का कहर, बनी इसराईल का मिस्र से लौटना और रवानगी, फ़िरऔन का डूबना, फ़िरऔन की लाश
समुद्र का फटना, बड़ा मोजज़ा ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 5)
Qasas ul Anbiya: Part 25

फ़िरऔन का एलान

………. ग़रज जब फ़िरऔन और उसके सरदारों को मूसा अलैहि सलाम को हराने में नाकामी हुई तो फ़िरऔन ने अपनी कौम में एलान किया-

………. तर्जुमा- ‘ऐ कौम! क्या मैं मिस्र के ताज व तख़्त का मालिक नहीं हूँ। मेरी हुक़ूमत के क़दमों के नीचे ये नहरें बह रही हैं? क्या तुम (मेरे इस जलाल को) नहीं देखते? (अब बताओ) क्या मैं बुलंद व बाला हूं या जिसको न इज्जत नसीब और जो बात भी साफ न कर सकता हो? (अगरचे अपने खुदा के यहां इज़्ज़त वाला है) तो क्यों उस पर (आसमान से) सोने के कंगन नहीं गिरते या फ़रिश्ते ही उसके सामने पर बांध कर खड़े नहीं होते।’ [अज-जुखरुफ 43:51-53]


मिस्रियों पर अल्लाह का कहर

………. गरज हज़रत मूसा अलैहि सलाम की रुश्द व हिदायत का फ़िरऔन और उसके सरदारों पर मुतलक असर नहीं हुआ और कुछ को छोड़कर आम मिस्रीयों ने भी उन्हीं की पैरवी की और सिर्फ यही नहीं, बल्कि फ़िरऔन के हुक्म से बनी इसराईल की नरीना औलाद यानी लड़के क़त्ल किए जाने लगे। मूसा अलैहि सलाम की तौहीन व तज्लील होने लगी और फ़िरऔन ने अपने रब और माबूद होने की जोर-शोर से तब्लीग़ शुरू कर दी। तब हज़रत मूसा अलैहि सलाम पर वह्य आई कि ‘फिरौन को इत्तेला कर दो कि अगर तुम्हारा यही तौर-तरीक़ा रहा, तो बहुत जल्द तूम पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल होने वाला है।’

………. चुनांचे उन्होंने जब इस पर भी ध्यान न दिया तो अब एक के बाद एक अल्लाह के अज़ाब आने लगे। यह देखकर फ़िरऔन और उसकी क़ौम ने यह तरीका अख्तियार किया कि जब अल्लाह का अज़ाब किसी एक शक्ल जाहिर होता, तो फ़िरऔन और फ़िरऔन की क़ौम हज़रत मूसा से वायदा करने लगती, अच्छा हम ईमान ले आएंगे, तू अपने खुदा से यह दुआ कर कि यह अजाब जाता रहे और जब वह अजाब जाता रहता, तो फिर सरकशी और नाफरमानी पर उतर आते, फिर अजाब जब दूसरी शक्ल में आता तो कहते कि अच्छा हम बनी इसराईल को आजाद करके तेरे साथ रवाना कर देंगे। दुआ कर कि यह अजाब ख़त्म हो जाए और जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम की दुआ से उनको फिर मोहलत मिल जाती और अजाब खत्म हो जाता, तो फिर उसी तरह मुखालफ़त पर उतर आते और इस तरह अल्लाह की ओर से अलग-अलग किस्म के निशान जाहिर हुए और फ़िरऔन और फ़िरऔन की कौम को बार-बार मोहलत दी जाती रही। कुरआन उन सात अज़ाब की निशानियों का इस तरह जिक्र करता है-

………. तर्जुमा- ‘और हमने पकड़ लिया फ़िरऔन वालों को अकालों में और मेवों के नुकसान में ताकि वे नसीहत मानें। फिर हमने भेजा उन पर तूफ़ान और टिडडी चीचड़ी और मेंढक और खून, बहुत-सी निशानियां अलग-अलग दीं।’ [अल आराफ़ 7:130-133]

………. इन आयतों में बयान की गई निशानियों में जूं और मेंढक के बारे में तफ़्सीर लिखने वालों ने लिखा है कि इन चीजों की यह हालत थी कि बनी इसराईल के खाने-पीने, पहनने और बरतने की कोई चीज़ ऐसी न थी, जिनमें ये नज़र न आते हों और खून के बारे में लिखा है कि नील नदी का पानी लहू के रंग का हो गया था और उसके मजे ने उसका पीना मुश्किल कर दिया था और पानी में मछलियां तक मर गई थीं।

………. नोट:कुम्मल डिक्शनरी के एतबार से बहुत मानी रखने वाला लफ़्ज़ है। इन तमाम मानी की जांच-पड़ताल इस तरह हो सकती है कि अल्लाह ने फ़िरऔनियों पर यह अजाब नाज़िल फ़रमाया कि इंसानों पर जुएं मुसल्लत कर दी, खाने-पीने की चीजों में छोटी मक्खियों को फैला दिया। इन जानवरों में हलाक करने वाला कीड़ा पैदा कर दिया, अनाज और ग़ल्ले में सुरसुरी पैदा कर दी। इन सब हलाक करने वाले कीड़ों को कुरआन ने एक लफ़्ज़ कुम्मल से ताबीर किया है।


बनी इसराईल का मिस्र से लौटना और रवानगी

………. जब मामला इस हद तक पहुंच गया कि अजाब की बातें भी फिरऔन और फ़िरऔन की क़ौम पर असर न डाल सकी, तो अल्लाह ने हजरत मुसा अलैहि सलाम को हुक्म दिया कि अब वक्त आ गया है कि तुम बनी इसराईल को मिस्र से निकाल कर बाप-दादा की सरजमीन की तरफ़ ले जाओ। इसलिए हज़रत मूसा और हारून बनी इसराईल को लेकर रातों रात लाल सागर के रास्ते पर हो लिए और रवाना होने से पहले मिस्री औरतों के जेवरात और कीमती चीजें जो एक त्यौहार में उधार लिए थे, वह भी वापस न कर सके कि कहीं मिस्रियों पर असल हाल न खुल जाए।


फ़िरऔन का डूबना

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने उनको तसल्ली दी और फ़रमाया: ‘डरो नहीं, अल्लाह का वायदा सच्चा है, वह तुमको नजात देगा और तुम ही कामयाब होंगे और फिर अल्लाह की बारगाह में हाथ फैलाकर दुआ करने लगे। अल्लाह की वस्य ने मूसा को हुक्म दिया कि अपनी लाठी को पानी पर मारो ताकि पानी फटकर बीच में रास्ता निकल आए। चुनांचे मूसा ने ऐसा ही किया, जब उन्होंने समुद्र पर अपना आसा (लाठी) मारा तो पानी फटकर दोनों तरफ़ दो पहाड़ों की तरह खड़ा हो गया और बीच में रास्ता निकल आया और हजरत मूसा अलैहि सलाम के हुक्म से तमाम बनी इसराईल उसमें उतर गए और सूखी जमीन की तरह उससे पार हो गए।

………. फ़िरऔन ने यह देखा तो अपनी कौम से मुखातब होकर कहने लगा, यह मेरी करिश्मासाज़ी है कि बनी इसराईल को तुम जा पकड़ो, इसलिए बढ़े चलो, चुनांचे फ़िरऔन और उसकी पूरी फौज बनी इसराईल के पीछे उसी रास्ते पर चल पड़ी लेकिन अल्लाह तआला की करिश्मासाजी देखिए कि जब बनी इसराईल का हर आदमी दूसरे किनारे पर सलामती के साथ पहुंच गया, तो पानी अल्लाह के हुक्म से फिर अपनी असली हालत पर आ गया और फ़िरऔन और उसकी तमाम फ़ौज जो अभी बीच ही में थी, डूब गयी।

………. जब फ़िरऔन डूबने लगा और अज़ाब के फ़रिश्ते सामने नजर आने लगे, तो पुकार कर कहने लगा, ‘मैं उसी एक ख़ुदा पर जिसका कोई शरीक नहीं, ईमान लाता हूं, जिस पर बनी इसराईल ईमान लाए हैं और मैं फ़रमांबरदारों में से हूं।’ मगर यह ईमान चूकि हकीक़ी इमान न था, बल्कि पिछले फ़रेबकारियों की तरह नजात हासिल करने के लिए यह भी एक डांवाडोल बात थी, इसलिए अल्लाह की तरफ से यह जवाब मिला-

अब यह कह रहा है, हालांकि इससे पहले जब इकरार का वक्त था, उसमें इंकार और खिलाफ़ ही करता रहा और हकीकत में तू फ़साद पैदा करने वालों में से है। यूनुस 10:91

यानी अल्लाह को खूब मालूम है कि तू ‘मुस्लिमीन’ में से नहीं, बल्कि फसाद पैदा करने वालों में से है।

………. हकीकत में फ़िरऔन की यह पुकार ऐसी पुकार थी जो ईमान लाने और यक़ीन हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि अल्लाह के अज़ाब को देख लेने के बाद इज्तिरारी और बे-अख्तियारी की हालत में निकलती है और अज़ाब के देखने के वक्त ‘ईमान व यकीन‘ की यह सदा हज़रत मूसा अलैहि सलाम की इस दुआ का नतीजा थी, जिसका जिक्र पिछले पार्ट्स में पढ़ चुके हैं।

पस ये उस वक्त तक ईमान न लाएं जब तक अपनी हलाकत और अजाब को आंखों से देख न लें। अल्लाह ने कहा, बेशक तुम दोनों की दुआ कुबूल कर ली गई। यूनुस 10:88-89

इस मौके पर फ़िरऔन की पुकार पर अल्लाह की ओर से यह भी जवाब दिया गया-

आज के दिन हम तेरे जिस्म को उन लोगों के लिए जो तेरे पीछे आने वाले हैं, नजात देंगे कि वह (इबरत का) निशान है। यूनुस 10:92

फ़िरऔन की लाश

………. मिस्रवाद (Egyptology) के मिस्री चिड़ियाघर में एक लाश आज तक महफूज है। ऐसा मालूम होता है कि समुद्र में डूबे रहने की वजह से उसकी नाक को मछली ने खा लिया है। कहा जाता है कि यह लाश मूसा के फ़िरऔन (Merneptah या फिर Ramesses II) की है। (अल्लाह बेहतर जाने) बहरहाल यह आम व ख़ास की तामाशागाह है।

Dead body of Firoun Ramases_II mummy Egypt
Dead body of Firoun Ramases_II mummy Egypt

इसके बारे में फ़्रांस के मशहूर डॉक्टर मोरिस बुकाय की दिलचस्ब दास्ताँ यहाँ तफ्सील में पढ़े जो डॉक्टर बुकाय के ईमान लाने की वजह भी बनी।


समुद्र का फटना

………. कुरआन मजीद में बनी इसराईल के रवाना होने, फ़िरऔन के डूबने और बनी इसराईल की नजात के वाकिए को बहुत थोड़े में बयान किया है और उसने उसके सिर्फ़ ज़रूरी हिस्सों का ही जिक्र किया है। अलबत्ता इससे मुताल्लिक, इबरत, नसीहत, बसीरत, मौअजत के मामले थोड़ा तफ़्सील के साथ जिक्र किए गए हैं।

चुनांचे अल्लाह तआला फ़रमाता है-
और फिर देखो) हमने मूसा पर वह्य भेजी थी कि (अब) मेरे बन्दों को रातों-रात (मिस्र से) निकाल ले जा, फिर समुद्र में उनके गुजरने के लिए खुश्की का रास्ता निकाल ले, तुझे न तो पीछा करने वालों का डर होगा और न किसी तरह का खतरा, फिर (जब मूसा अपनी कौम को लेकर निकल गया तो) फ़िरऔन ने अपने लश्कर के साथ उसका पीछा किया, पस पानी का रेला (जैसा कुछ उन पर छाने वाला था) छा गया (यानी जो कुछ उन पर गुजरनी थी, गुज़र गई) और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम पर (नजात का) रास्ता गुम कर दिया, तो उन्हें सीधा रास्ता न दिखाया।' ताहा 20:77-79

और इस तरह (ऐ पैग़म्बर) तेरे परवरदिगार का पसन्दीदा फ़रमान बनी इसराईल के हक में पूरा हुआ कि (हिम्मत व सबात के साथ जमे रहे थे) और फ़िरऔन और उसका गिरोह (अपनी ताक़त व शौकत के लिए) जो कुछ बनाता रहा था और जो कुछ (इमारतों की) बुलन्दियां उठाई थीं, वे सब दरहम बरहम कर दी।’ अल-आराफ 7:137

और बुराई करने लगे वह और उसकी फ़ौज मुल्क में नाहक और समझे कि वे हमारी ओर फिरकर न आएंगे, फिर पकड़ा हमने उसे और उसके लश्करों को, फिर फेंक दिया हमने उनको दरिया में, सो देख ले कैसा अंजाम हुआ गुनाहगारों का। अल-कसस 28:40

बहुत से छोड़ गए बाग़ और चश्मे और खेतियां और घर उम्दा और आराम का सामान जिनमें बातें बनाया करते थे, यों ही हुआ और वह सब हाथ लगा दिया हमने एक दूसरी कौम के, फिर न रोया उन पर आसमान और जमीन और न मिली उनको टील। अद दुखान 44:25-29


बड़ा मोजज़ा

कुरआन ए मजीद साफ़ कहता है कि लाल सागर में फ़िरऔन के डूबने और मूसा के नजात मिलने का यह वाकिया मूसा की ताईद में एक बड़ा ही शानदार मोजज़ा था, जिसने माद्दी कहरमानियत और सामाने इस्तब्दादियत को एक लम्हे में हरा कर मजलूम क़ौम को जालिम क़ौम के पंजे से नजात दिलाई। ‘वल्लाहु अला कुल्लि शैइन कदीर’

और हमने मूसा और उसके तमाम साथियों को नजात दी, फिर दूसरों को (यानी उनके दुश्मनों को) डुबो दिया। बेशक इस वाकिए में (अल्लाह का जबरदस्त) निशान (मोजजा) है और उनमें अक्सर ईमान नहीं लाते और इकरार नहीं करते और बेशक तेरा रब ही (सब पर) गालिब, रहमत वाला है। अश-शुअरा 26:65-67

To be continued …

इंशा अल्लाह अगले पार्ट 26 में हम देखंगे बनी इसराईल पर मन्नसलवा की बारिश और उनकी नाशुक्री की वजह से अल्लाह का अजाब

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दज्जाल की हकीकत | दज्जाल कौन है, कहाँ है और कब निकलेगा? https://ummat-e-nabi.com/dajjal-ki-hakikat-in-hindi/ https://ummat-e-nabi.com/dajjal-ki-hakikat-in-hindi/#respond Mon, 23 Oct 2023 20:16:03 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=41984 Dajjal ki hakikat in hindiDajjal ki Hakikat in Hindi दज्जाल की हकीकत | दज्जाल कौन है, दज्जाल कहाँ है, और वह कब निकलेगा? ۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम  ۞  अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान बहुत […]

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Dajjal ki Hakikat in Hindi

दज्जाल की हकीकत | दज्जाल कौन है, दज्जाल कहाँ है, और वह कब निकलेगा?

۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम  ۞ 

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान बहुत रहमवाला है।

सब तारीफें अल्लाह तआला के लिए हैं जो सारे जहान का पालनहार है। हम उसी से मदद व माफी चाहते हैं,
अल्लाह की ला’तादाद सलामती, रहमते व बरकतें नाज़िल हों मुहम्मद सल्ल. पर, आप की आल व औलाद और असहाब रजि. पर।   व बअद –

दज्जाल का कैद से निकलना भी कयामत से पहले की दस बड़ी निशानियों में से एक है। यह अपने साथ बहुत बड़े फ़ित्ने व शुब्हात ले कर आएगा। इसीलिए आप सल्ल. ने इसके बारे में उम्मत को ख़बरदार किया और डराया और फरमाया “अल्लाह की कसम! कयामत उस वक़्त तक कायम नहीं होगी जब तक तीस झूठे न ज़ाहिर हो जाएं। उनमें सबसे आखिरी काना दज्जाल होगा।” (रावी-अहमद) 

दज्जाल कौन है ?

दज्जाल औलादे आदम में से एक शख्स होगा। जिसे अल्लाह कूछ ऐसी ताकतें अता करेगा जो उसके सिवा किसी इन्सान को हासिल न हुई। 

उसे मिली यह ताकतें लोगों की आज़माइश के लिए होंगी। वह यह दावा भी करेगा कि वही रब्बुल आलमीन है। उसकी बाई आख मिटी हुई होगी यानी वह काना होगा। कुछ अहले इल्म के नजदीक उसे ‘मसीह’ इसलिए कहा गया है वह सारी जमीन में घूमेगा व चलेगा फिरेगा। 

दज्जाल का अर्थ

दज्जाल का अर्थ (मतलब) फरेब है, अहादीस के मुताबिक उसका काम दज्ल व फरेब करना, बहाने बनाना, हकाइक (हकीकत) को छिपाना और बड़े-बड़े झूठ बोलना होगा।

वह लोगों से उस पर ईमान लाने को कहेगा। इसीलिए नबी सल्ल. ने उसकी पहचान बताते हुए फरमाया “दज्जाल काना है और तुम्हारा रब काना नहीं है।” (वह हर ऐब से पाक है)” (बुखारी-7131) 


दज्जाल की कहानी

इब्ने सय्याद का किस्सा :

आप (ﷺ) के ज़माने में मदीना में “इब्ने सय्याद” नाम का एक यहूदी लड़का था। आप सल्ल. को उसके दज्जाल होने के बारे में शक था। 

इसीलिए एक दफा आप सल्ल. ने उससे फरमाया “क्या तु गवाही देता है कि मैं (मुहम्मद) अल्लाह का रसूल हूँ।” वह आप की तरफ देखकर बोला-मैं गवाही देता हूं कि आप उम्मीईन (अनपढ़ लोगों) की तरफ रसूल बना कर भेजे गए हैं। 

फिर उसने कहा कि क्या आप (सल्ल.) गवाही देते हैं कि मैं अलाह का रसूल हूं। आप सल्ल. ने उसकी रिसालत का इन्कार किया और फ़रमाया “मैं अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लाता हूं।” 

फिर आपने इब्ने सय्याद से पूछा कि “तुझे क्या नजर आता है? उसने बताया कि मेरे पास सच्चा और झूठा आता है। तब आप सल्ल. ने उससे फरमाया – “मैने तेरे लिए दिल में एक चीज़ छिपा रखी है।”

इब्ने सय्याद ने दुखान कहने की भरपूर कोशिश की लेकिन यह लफ्ज़ अदा करने की उसे तौफीक न मिली। वह सिर्फ दुख-दुख ही कह सका। 

आप सल्ल. ने फरमाया “फटकार है तुझपर! तू अपनी हैसियत से आगे न बढ़ सकेगा।” 

हज़रत उमर रजि. ने अर्ज किया कि मुझे इजाजत दीजिए कि मैं इसकी गर्दन उड़ा दूं।” 

आप सल्ल. ने फरमाया इसे छोड़ दो अगर यही दज्जाल है तो तुम इसे नहीं मार सकोगे और अगर यह दज्जाल नहीं है तो इसे कत्ल करने से कोई फायदा नहीं है। (मुस्लिम-7344, अहमद-11798)

इब्ने सय्याद का दज्जाल का पता बताना :

अबु सईद खुदरी रजि. का बयान हे कि “एक सफ़र में जब इब्ने सय्याद उनके साथ था उसने कहा अबु सईद लोग मेरे बारे में जो बाते करते हैं उस पर मेरा दिल चाहता है कि किसी पेड़ से रस्सी लटका कर खुद को फांसी दे लूं। हो सकता है कि (दज्जाल के बारे में) आप सल्ल. की हदीस का इल्म किसी और को न हो मगर तुम अन्सार से छिपी नहीं है। 

क्या अल्लाह के रसूल ने यह नहीं फरमाया था कि दज्जाल बांझ होगा? उसके कोई औलाद न होगी जबकि मैं औलाद वाला हूं और मेरी औलाद मदीना में मौजूद है। दज्जाल मक्का व मदीना में दाखिल न हो सकेगा जबकि मैं मदीना से आ रहा हूं और मक्का जा रहा हूं। 

अबू सईद रजि. कहते हैं कि मैं उसे माजुर मानने ही वाला था कि वह फिर बोला अल्लाह की कसम मैं अच्छी तरह जानता हूं कि दज्जाल कहां पैदा हुआ ? और इस वक्त वह कहां है ? (यानी दज्जाल पैदा हो चुका है) अबू सईद रजि. कहते हैं मैने कहा तुम्हारे लिए हलाकत व बर्बादी हो। (मुस्लिम 7350 अहमद 11945)


दज्जाल सबसे बड़ा फितना 

अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया:

1. आदम अलैहि. की पैदाइश से लेकर कयामत के दिन तक दज्जाल से बड़ी कोई मुसीबत नहीं। (मुस्लिम-7395)

2. दज्जाल के अलावा दूसरे फित्नों का तुम्हारे बारे में मुझे ज्यादा डर है। दज्जाल अगर मेरी जिन्दगी में निकल आया तो मैं दलील के ज़रिये मुकाबला करके तुम सब की तरफ़ से उस पर भारी पडूंगा और अगर वह मेरे बाद आया तो हर शख्स दलील के साथ उस पर गालिब आने की कोशिश करे। अल्लाह हर मुस्लिम की मदद करेगा। (मुस्लिम-7373, इब्ने माजा-4077)

3. मैं तुमको उससे डरा रहा हूँ। हर नबी ने अपनी कौम को उससे डराया है लेकिन मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताता हूं जो किसी नबी ने अपनी कौम को नहीं बतलाई। वह यह कि दज्जाल एक आंख से काना होगा और अल्लाह तआला ऐसा नहीं है। (बुखारी-7127, इब्ने माजा-4077)


खुरुजे दज्जाल से पहले होने वाले वाकिआत

1. बैतुल मक़दिस के आबाद होने से मदीना की बर्बादी शुरु हो जाएगी।

मदीना बर्बाद हुआ हुआ तो कुस्तुनतुनया फ़त्ह हो जाएगा और इसके फ़त्ह होने के बाद जल्दी ही दज्जाल निकल आएगा। (अबु दाऊद-4294) 

2. तुम ईसाईयों के साथ सुलह कर लोगे। फिर एक जंग के बाद रूमी तुम से गददारी करेगें मगर तुम्हे जीत हासिल होगी। मालेगनीमत मिलेगा और तुम नुकसान से बचे रहोगे। (अबु दाऊद 4292

3. खुरुजे दज्जाल से पहले के तीन साल बहुत सख्ती भरे होंगे
पहले साल 1/3 बारिश व 1/3 पैदावार कम होगी। दूसरे साल 2/3 बारिश व 2/3 पैदावार कम होगी और तीसरे साल न कोई बारिश होगी और न कोई चीज़ ज़मीन से पैदा होगी। उस वक्त “ला इलाहा इल्लललाह, अल्लाहु अकबर और अल्हम्दुलिल्लाह” का जिक्र लोगों की खुराक का काम करेगा।” (इब्ने माजा-4077) 

4. दज्जाल उस वक्त तक नहीं निकलेगा जब तक कि लोग उसके ज़िक्र से गाफिल न हो जाएं। यहा तक कि खतीब मिम्बर से उसका जिक्र करना तक छोड़ देगें। (अहमद-16788) 

5. अरबों की तादाद काफी कम हो जाएगी। लोग दज्जाल के डर से पहाड़ों में जा छिपेगें। (मुस्लिम-7393) 

6. “खुशहाली का फ़ित्ना” एक ऐसे शख्स के ज़रिये उठेगा जो खुद को मेरे अहले बैअत से बताएगा हालांकि उसका मुझसे कोई तअल्लुक न होगा। फिर लोग एक ऐसे शख्स को अपना हाकिम बना लेगें जो इस लायक बिल्कुल न होगा। इसके बाद फित्नों का दौर शुरु हो जाएगा। आदमी सुबह को मोमिन होगा और शाम को काफिर हो जाएगा। ऐसे में जल्दी ही दज्जाल ज़ाहिर हो जाएगा।” (अबु दाऊद 4242) 

7. “खुरुजे दज्जाल के वक्त मदीना बेहतरीन ज़मीन होगी। उसके हर सुराख पर फ़रिश्ता तैनात होगा जो दज्जाल को मदीना में दाखिल होने से रोकेगा। ऐसे वक्त मदीना में तीन ज़लज़ले आएगें और कोई मुनाफिक ख्वाह मर्द हो या औरत ऐसा न होगा जो मदीना से निकल कर दज्जाल से जा न मिले। इनमें से ज्यादातर औरतें होगी। यह वह दिन होगा जब मदीना अपने मैल कुचैल को इस तरह निकाल देगा जैसे लुहार की भट्टी लोहे के मैल कुचैल को दूर कर देती है। 

दज्जाल के साथ 70 हजार यहूदी होगें। जिनमें से हर एक ने हरे रंग की रेशमी चादर, ताज व जैवरात से सजी तलवार पहन रखी होगी।” (अहमद 14158)


दज्जाल कैसा दिखता है ? 

वह छोटे कद, मज़बूत जिस्म और बड़े सर वाला होगा। उसकी दोनों आंखें ऐबदार होंगी। दाई आंख अंगूर की तरह फूली हुई होगी और बांई आंख पर चमड़ा आया हुआ होगा। बाल घने व घुघराले होगें। सफेद रंगत वाला होगा और उसकी दोनों आंखों के बीच ‘काफिर’ लिखा होगा।

तमीमदारी रजि. की ‘दज्जाल व जस्सासा’ वाली हदीस के मुताबिक वह एक समन्दरी जजीरे में कैद है। आप सल्ल. के जमाने में मौजूद था। तमीमदारी रजि. व उनके साथियों ने उसे जज़ीरों में जकड़ा हुआ देखा था। कयामत से पहले जब अल्लाह चाहेगा शदीद गुस्सा करने की वजह से उसकी जंजीरे टूट जाएगी और वह कैद से निकल जाएगा।” (मुस्लिम-7386, इब्ने माजा-4077)


जमीन पर दज्जाल की रफ्तार

उसकी रफ्तार उस बारिश की तरह होगी जिसके पीछे हवा हो। मतलब यह कि वह बहुत तेजी से ज़मीन के हर हिस्से में पहुंच जाएगा। 

वह ज़मीन में 40 रोज़ तक फिरेगा। उनमें का एक दिन एक साल की तरह, एक दिन एक महीने के बराबर और एक दिन एक हफ्ते के बराबर होगा। बाकी के दिन आम दिनों की तरह होगें, गधे पर सवार होगा। 

उसके दोनों कानों के बीच 40 हाथ का फासला होगा, लोगों से कहेगा कि मैं तुम्हारा रब हूं हालाकिं वह एक आंख से काना होगा और तुम्हारा रब ऐसा नहीं है। उसकी दोनों आंखों के बीच काफ़िर लिखा होगा जिसे हर मोमिन पढ़ लेगा। चाहे वह पढ़ा लिखा हो या अनपढ़। (अहमद-14158, मुस्लिम-7365, अबु दाऊद-4318)

“वह मशरिक की तरफ से आएगा। उसका इरादा मदीना में दाखिल होने का होगा। मगर उहद पहाड़ के पीछे फ़रिश्ते उसे रोक कर उसका रुख शाम (सीरिया) की तरफ फैर देगें।” (मुस्लिम 3351)


दज्जाल के फ़ितने  

1. उसके साथ जन्नत व जहन्नम होगी। उसकी आग असल में जन्नत होगी और उसकी जन्नत हकीकत में जहन्नम होगी।” 

2. उसके साथ पानी और आग होगी। उसकी आग असल में ठण्डा पानी होगी और उसका पानी हकीकत में आग होगी। तुममे से जो कोई दज्जाल को पाए तो उसे चाहिए कि उसकी आग में कूद जाए क्योंकि वह ठण्डा मीठा पानी होगा।” (बुखारी-7130, मुस्लिम-7370) 

3. “वह एक कौम के पास आएगा तो वह कौम उस पर ईमान ले आएगी। वह आसमान को हुक्म देगा तो वह बारिश बरसाना शुरु कर देगा। जमीन को हुक्म देगा तो वह पैदावार देना शुरु कर देगी। भेड़ बकरियां जब चर कर लौटेंगी तो उनके थन दूध से लबरेज होगें। 

फिर जब वह एक दूसरी कौम के पास जाएगा तो वह उस पर ईमान नहीं लाएगी। सुबह जब वह कौम अपने खेतों को देखेगी तो फसलें बर्बाद हो चुकी होंगी और जमीन बन्जर। वह उस बन्जर जमीन को हक्म देगा तो ज़मीन से खजाने निकल कर शहद की मक्खियों की तरह होकर उसके पीछे-पीछे चलेगें। (मुस्लिम 7373) 

4. “दज्जाल जब एक देहाती से कहेगा कि अगर मैं तुम्हारे मर चुके मां-बाप को ज़िन्दा कर दूं तो क्या तुम मुझे अपना रब मान लोगे ? वह हामी भर लेगा तो दौ शैतान उसके मां-बाप की शक्ल में उसके सामने आ जाएगें और कहेगें कि बेटा! इसका कहा मानो, यही तुम्हारा रब है।” (इब्ने माजा-4077, सही अल जामेअ-7885)

“वह एक जवान को तलवार मार कर उसके दो टुकडे कर देगा। फिर कहेगा कि मैं इसे ज़िन्दा कर दूंगा मगर यह मुझे अपना रब नहीं मानेगा। वह मुर्दा उसके कहने पर उठ खड़ा होगा। यह जवान से पूछेगा कि मेरा रब कौन है तो वह कहेगा कि मेरा रब अल्लाह है और तू अल्लाह का दुश्मन दज्जाल है।” (इब्ने माजा-4077)

अब सवाल यह है कि जिन लोगों की जिन्दगी में वह जाहिर हो, वो उसके फ़ितने से बचने के लिए क्या करें?


फितना ए दज्जाल से बचने के तरीके 

1. दज्जाल से दूर रहे –

“जो कोई दज्जाल के बारे में सुने तो वह उससे दूर रहे।” (मुस्लिम 7395) 

“दज्जाल से भाग कर पहाड़ो में छुप जाएं।” (मुस्लिम 7395) 

2. अल्लाह से मदद तलब करें –

“जो शख्स उसकी आग के फिरने में फंस जाए वह अल्लाह से मदद चाहे। (इब्ने माजा-4077) 

3. अल्लाह के अस्मा व सिफात का इल्म हासिल करे – 

“दज्जाल एक आंख से काना है और अल्लाह तआला हरगिज़ ऐसा नहीं है।” (बुखारी-7131) 

4. सूरह कहफ़ के शुरु की दस आयतों की तिलावत करें –

“जो कोई सूरह कहा की इब्तेदाई दस आयात याद कर लेगा वह दज्जाल के फ़ितने से महफूज रहेगा।” (मुस्लिम 1883) 

5. हरमैन शरफैन में से किसी एक में पनाह ले –

इसलिए कि “दज्जाल मक्का व मदीना में दाखिल नहीं हो सकेगा।” (अहमद 11945 सही) 

6. लोगों को दज्जाल से आगाह करते रहे –

“दज्जाल उस वक्त तक नहीं निकलेगा जब तक कि लोग उसके ज़िक्र से गाफिल न हो जाएं।” (अहमद 16788) 

7. इल्मे दीन हासिल करें – 

“जिसने दज्जाल से कहा कि हमारा रब अल्लाह है हम उसी पर भरोसा करते हैं और उसी की तरफ हम लौट कर जाएगें और तुझसे बचने के लिए हम अल्लाह ही की पनाह चाहते हैं तो ऐसे शख्स पर दज्जाल का कोई असर नही चलेगा।” (अहमद हसन) 

8. नमाज़ के आखिर में दज्जाल के फित्ने से अल्लाह की पनाह मांगे –

आखिरी तश्हूद में सलाम फैरने से पहले यह दुआ करें- “अल्लाहुम्मा इन्नी आऊजुबिका मिन अज़ाबिल कब्रि व मिन अज़ाबिल जहन्नमा व मिन फित्नति महयाया व ममाति व मिन फित्नति मसीहि दज्जाल“ 
यानि ऐ अल्लाह ! मैं तुझसे कब्र व जहन्नम के अजाब से, जिन्दगी व मौत के फित्ने से और मसीह दज्जाल के फ़ित्ने से पनाह मांगता हूं। (मुस्लिम-1324, नाई-1309, इब्ने माजा-909, अबु दाऊद-983, बुखारी-1377, अहमद-7236)


दज्जाल को कौन मारेगा ?

दज्जाल जब ईसा अलैहि. को देखेगा तो इस तरह पिघलने लगेगा जैसे पानी में नमक।  वह भागेगा मगर ईसा अलैहि. उसे बाब लुद्द (जो फिलीस्तीन में है) के करीब जा पकड़ेगें और नेजा मार कर उसे मौत के घाट उतार देगें। 

फिर ईसा अलैहि. दज्जाल का नेजे पर लगा हुआ खून लोगों को दिखाएगें। (मुस्लिम 7279 इब्ने माजा 4077)


दज्जाल का इन्कार करने वाले 

माजी करीब में कुछ उलैमा ऐसे भी गुजरे हैं जिन्होंने दज्जाल का इन्कार किया और इस मसअले में खता कर गए। जैसे – 

1. शैख़ मुहम्मद अब्दह की नज़र में दज्जाल की कोई हकीकत नहीं, यह सिर्फ खुराफात है। 
2. मुहम्मद फहीम – इनकी नज़र में दज्जाल से मुराद शर व फ़साद का फैलाव है। 
3. किसी ने कहा दज्जाल ज़ाहिर तो होगा मगर उसके साथ फित्ने और जन्नत जहन्नम नहीं होगें। 
4. तो किसी की नज़र में दज्जाल वगैरह तो अफ़साने हैं।

इनमें से अक्सर का कहना है कि दज्जाल का जिक्र कुरआन में नहीं है। हालांकि इर्शादे बारी है “जिस रोज तुम्हारे रब की कुछ निशानियां आ जाएंगी तो जो शख्स पहले से ईमान वाला न होगा। उस वक्त उसका ईमान लाना कुछ फायदा न देगा।” (अनआम आयत 158) में दज्जाल का जिक्र है। 

जिसकी वजाहत इस हदीस से होती है। जब तीन चीजें ज़ाहिर हो जाएगी तो किसी ऐसे शख्स का ईमान लाना उसे फायदा न देगा जो पहले से मोमिन नहीं होगा। 1. खुरुजे दज्जाल, 2. खरुजे दाब्बा (जमीन से एक बड़े जानवर का निकलना।) और 3. सूरज का मगरिब से तुलूअ होना। (मुस्लिम 398, तिर्मिजी 3072) 

आखिर में यह जान लें कि “शिर्के खफ़ी दज्जाल से ज्यादा खतरनाक है।” (अहमद) साथ ही “गुमराह पेशवा” (उलैमा) दज्जाल के फ़ित्ने से ज्यादा खोफ़नाक है। (अहमद, सिलसिला अहादीस सहीहा-1989) 

हज़रत उमर रजि. ने फरमाया था “खबरदार” तुम्हारे बाद कुछ ऐसे लोग आने वाले हैं जो रजम (संगसार) दज्जाल, शफाअत और अज़ाबे कब्र का इनकर करेगें। वह इस बात का भी इन्कार करेगें कि अल्लाह एक कौम को जहन्नम से निकाल कर जन्नत में दाखिल करेगा। हालांकि वोह जलकर कोयला हो चुके होगें। (अहमद) 

फित्नों वाली अहादीस को जानकर हम ना उम्मीद न हों बल्कि अपने ईमान में पुख्तगी लाएं और साबित कदम रहें।

अल्लाह से दुआ है कि वह हमें फ़ित्ना ए दज्जाल से महफूज रखे, हमारी ख़ताओं से दरगुज़र फरमाए और हमें अपने दीन की सीधी राह पर चलाए। आमीन।

आपका दीनी भाई
✒️ मुहम्मद सईद 
09214836639
09887239649

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 4) | Qasas ul Anbiya: Part 24 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-4/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-4/#respond Mon, 23 Oct 2023 19:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=26147 हज़रत मूसा व हारून अलैहि सलाम Prophet Musa Alaihi Salam Story in hindi Qasas ul Anbiya part 15.4हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 4), जादूगरों की हार और फ़िरऔन का रद्देअमल (प्रतिक्रिया), बनी इसराईल की बेचैनी, फ़िरऔन की जवाबी कार्रवाई, मिस्री मर्दे मोमिन ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 4)
Qasas ul Anbiya: Part 24

जादूगरों की हार और फ़िरऔन का रद्देअमल (प्रतिक्रिया)

………. बहरहाल जश्न का दिन आ पहुंचा, जश्न के मैदान में तमाम शाहाना कर व फ़र के साथ फ़िरऔन तख्तनशी है और दरबारी भी दर्जे के एतबार से क़रीने से बैठे हैं और लाखों इंसान हक व बातिल के मारके का नज़ारा करने को जमा हैं। एक तरफ मिस्र के मशहूर जादूगरों का गिरोह अपने साज व सामान से लेस खड़ा है और दूसरी तरफ़ अल्लाह के रसूल, हक के पैगम्बर, सच्चाई और रास्ती के पेकर हज़रत मूसा व हारून खड़े हैं। ऐसी हालत में-

जादूगर फ़िरऔन के पास आए और कहने लगे, क्या अगर हम मूसा पर ग़ालिब आ जाएं, तो हमारे लिए इनाम व इकराम है? फ़िरऔन ने कहा, हां, ज़रूर और यही नहीं बल्कि तुम शाही दरबार के मुकर्रब बनोगे। 7:113-114

………. जादूगरों ने जब इस तरफ़ से इत्मीनान कर लिया तो हज़रत मूसा अलैहि सलाम की तरफ़ मुतवज्जह हुए और हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने कहा-

अफ़सोस तुम पर देखो, अल्लाह पर झूठी तोहमत न लगाओ, ऐसा न हो कि वह कोई अज़ाब भेजकर तुम्हारी जड़ उखाड़ दे। जिस किसी ने झूठ बात बनाई, वह नामुराद हुआ। 20:60

जादूगरों ने कहा-
ऐ मूसा! या तो तुम अपनी लाठी फेंको या फिर हम फेंके। मूसा ने कहा, तुम ही पहले फेंको। फिर जब जादूगरों ने जादू की बनाई हुई लाठियां और रस्सियां फेंकी, तो लोगों की निगाहें जादू से मार दी और अपने करतबों से उनमें दहशत फैला दी और बहुत बड़ा जादू बना लाए।’ आराफ 7:115-116

और उस वक्त हमने मूसा पर वह्य की कि तुम भी अपनी लाठी डाल दो। ज्यों ही उसने लाठी फेंकी तो अचानक क्या हुआ कि जो कुछ झूठी नुमाइश जादूगरों की थी, सब उसने निगल कर नाबूद कर दी, पस हक कायम हो गया और वे जो अमल कर रहे थे, बातिल होकर रह गया। पस इस मौके वे मतलूब हो गए। आराफ 7:117-118

जादूगरों ने जब मूसा के असा का यह करिश्मा देखा तो-
सब जादूगर सज्दे में गिर पड़े, कहने लगे, हम तो जहानों के परवरदिगार पर ईमान ले आए, जो मूसा व हारून का परवरदिगार है।’ आराफ 7:120-122

इस हालत को देखकर फिरऔन ने कहा-
तुम बगैर मेरे हुक्म के मूसा पर ईमान लाए, जरूर यह तुम्हारा सरदार है, जिसने तुम्हें जादू सिखाया है, अच्छा देखो, मैं क्या करता हूं। मैं तुम्हारे हाथ-पांव उलटे-सीधे कटवा दूंगा और खजूर के तनों पर सूली दूंगा। ताहा 20:71

मगर सच्चा ईमान जब किसी को नसीब हो जाता है भले ही वह एक लम्हें ही का क्यों न हो’ वह ऐसी बेपनाह रूहानी कूवत पैदा कर देता है कि कायनात की कोई जबर्दस्त से जबर्दस्त ताक़त भी उसको मरऊब नहीं कर सकती।

इसीलिए जादूगरों को फ़िरऔन की जाबिराना धमकियां मरऊब न कर सकी और उन्होंने कहा-
हम यह कभी नहीं कर सकते कि सच्चाई की जो रोशन दलीलें हमारे सामने आ गई हैं और जिस अल्लाह ने हमें पैदा किया है, उससे मुंह मोड़ कर तेरा हुक्म मान लें, तू जो फैसला करना चाहता है, कर गुज़र, तू ज्यादा से ज्यादा जो कुछ कर सकता है वह यही है कि दुनिया की इस जिंदगी का फैसला कर दे। हम तो अपने परवरदिगार पर ईमान ला चुके कि वह हमारी ख़ताये बख्श दे, खास तौर से जादूगरी की ख़ता कि जिस पर तूने हमें मजबूर किया था। हमारे लिए अल्लाह ही बेहतर है और यही बाकी रहने वाला है। ताहा 20:72-73

………. ग़रज़ हक व बातिल की इस कशमकश में फ़िरऔन और उसके दरबारियों को जबरदस्त हार का मुंह देखना पड़ा और वे खुलेआम ज़लील व रुसवा हुए और हजरत मूसा अलैहि सलाम पर अल्लाह का वायदा पूरा हुआ और कामियाबी का सेहरा उन्हीं के सर रहा और जादूगरों के अलावा एक छोटी सी जमाअत इसराईली नौजवानों में से भी मुसलमान हो गई।

फिर मूसा पर कोई ईमान नहीं लाया मगर सिर्फ एक गिरोह जो उसकी कौम के नौजवानों का गिरोह था, वह भी फ़िरऔन और उसके सरदारों से डरता हुआ कि कहीं किसी मुसीबत में न डाल दे। यूनुस 10:83

हज़रत मूसा की इस महदूद कामियाबी से मुतास्सिर होकर-
फ़िरऔन की क़ौम में से एक जमाअत ने फ़िरऔन से कहा, क्या तू मूसा और उसकी कौम को यों ही छोड़ देगा कि वह ज़मीन (मिस्र) में फ़साद करते फिरें और तुझको और तेरे देवताओं को ठुकरा दें। फ़िरऔन ने कहा हम उनके लड़कों को क़त्ल कर देंगे और उनकी लड़कियों को (बांदिया बनाने के लिए) जिंदा रखेंगे।’ आराफ़ 7:127

यह फ़िरऔन का दूसरा एलान था जो बनी इसराईल के बच्चों के क़त्ल से मुताल्लिक़ किया गया।


बनी इसराईल की बेचैनी

हज़रत मूसा अलैहि सलाम को जब फ़िरऔन और उसके दरबारियों की बात-चीत का हाल मालूम हुआ, तो उन्होंने बनी इसराईल को जमा करके सब्र और अल्लाह पर भरोसा करने की तलकीन की, बनी इसराईल ने सुनकर जवाब दिया कि मूसा, हम पहले ही से मुसीबतों में गिरफ्तार थे, अब तेरे आने पर कुछ उम्मीद बंधी थी, मगर तेरे आने के बाद भी वही मुसीबत बाकी रही, यह तो सख्त आफ़त का सामना है।

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने तसल्ली दी कि अल्लाह का वायदा सच्चा है, घबराओ नहीं, तुम्ही कामयाब रहोगे और तुम्हारे दुश्मन को हलाकत का मुंह देखना पड़ेगा। जमीन का मालिक फ़िरऔन या उसकी कौम नहीं है, बल्कि रब्बुल आलमीन है जो मुख्तारे मुतलक़ है, पस वह. अपने बन्दों में से जिसको चाहे उसका मालिक बना दे और अंजामेकार यह इनाम मुत्तक्रियों ही का हिस्सा है।

………. इसके बाद हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने मुसलमानों से कहा कि फ़िरऔन के जूल्मों का सिलसिला अभी ख़त्म नहीं हुआ और वह बनी इसराईल मामिनों को आजादी के साथ मिस्र से चले जाने पर राजी नहीं है। और फिर अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ की, ऐ अल्लाह! फिरओनियों को जो तूने दौलत व सरवत अता फ़रमाई है; उस पर शुक्र करने के बजाए वे तेरे बन्दों पर जब्र और जुल्म व सितम करने पर आमादा हो गए हैं

और हक के तेरे रास्ते को न ये ख़ुद कुबूल करते हैं और न किसी को कुबूल करने देते हैं, बल्कि जब्र व तशद्दुद से काम लेकर उनके आड़े आते हैं, इसलिए अब तू उनके जुल्मों का मज़ा उनको चखा और उनकी दौलत सरबत को तबाह व हलाक कर दे, जिस पर उन्हें घमंड है और जिस तर ईमान की सच्चाई को ठुकराते हैं, तू भी उनको ईमान की दौलत के बजाए ऐसा दर्दनाक अज़ाब दे कि उनकी दास्तान दूसरों के लिए इबरत बन जाए।


फ़िरऔन की जवाबी कार्रवाई

………. फ़िरऔन ने अपने सरदारों से अगरचे इत्मीनान का इजहार कर दिया लेकिन हज़रत मूसा अलैहि सलाम के रूहानी ग़लबे का ख्याल उसको अन्दर ही अन्दर घुल डालता था और बनी इसराइल के लड़कों के क़त्ल के हुक्म से भी उनके कल्ब को सुकून नसीब न था, आखिरकार उसने कहा-

मुझे मूसा को क़त्ल ही कर लेने दो और उसको चाहिए अपने रब को पुकारे। 40:26

हज़रत मूसा को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने कहा-
मैं अपने और तुम्हारे रब की पनाह चाहता हूँ, हर उस घमंडी से जो हिसाब के दिन पर ईमान नहीं लाता। 40:27


मिस्री मर्दे मोमिन

………. फिरऔन और उसके सरदार जब उस बात-चीत में लगे हुए थे, तो उस मज्लिस में एक मिस्री ‘मर्दै मोमिन’ भी था, जिसने अभी तक अपने इस्लाम’ को छिपा रखा था।

उसने जब यह सुना तो अपनी कौम के उन लोगों के मुकाबले में हज़रत मूसा अलैहि सलाम की ओर से बचाव करने की कोशिश शुरू की, और उनको समझाया कि तुम एक ऐसे आदमी को क़त्ल करने चले हो जो सच्ची बात कहता है कि मेरा परवरदिगार अल्लाह है और जो तुम्हारे सामने अपनी सच्चाई पर बेहतरीन दलील और निशनियां लाया है।

मान लीजिए अगर वह झूठा है तो उसके झूठ से तुमको कुछ नुक्सान नहीं पहुंच रहा है और वह सच्चा है तो फिर उसकी उन धमकियों से डरो जो वह तुमको अल्लाह की ओर से सुनाता है।

………. फ़िरऔन ने मर्दै मोमिन की बात काटते हुए कहा कि मैं तुमको वही मश्विरा दे रहा हूं, जिसको अपने ख्याल में दुरुस्त समझता हूं और तुम्हारी भलाई की बात कह रहा हूं।

………. मर्दे मोमिन ने आखिरी नसीहत के तौर पर कहा: ऐ मेरी क़ौम! मुझे यह डर है कि हमारा हाल कहीं उन पिछली क़ौमों जैसा न हो जाए जो नूह, आद और समूद की कौमों के नाम से मशहूर हैं या उनके बाद कौमें आई। अल्लाह अपने बन्दों पर कभी जुल्म नहीं करता, बल्कि उन क़ौमों की हलाकत खुद अपने इसी किस्म के आमाल की बदौलत पेश आई थी जो आज तुम मूसा के खिलाफ सोच रहे हो तो तुम आज दुनिया में ‘बड़े’ होने की सोच में पड़े हो और मैं तुम्हारे लिए उस दिन से डर रहा हूं जब क़ियामत का दिन होगा और सब एक दूसरे को पुकारेंगे, मगर उस वक़्त तुम्हें कोई अल्लाह के अजाब से बचाने वाला न होगा।

………. ऐ कौम के सरदारो! तुम्हारा हाल तो यह है कि इस सरज़मीन में जब हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने अल्लाह का पैग़ाम सुनाया था तब भी तुम यानी तुम्हारे बाप-दादा इसी शक और तशद्दुद में पड़े रहे और इन पर ईमान न लाए और जब इनकी वफ़ात हो गई, तो कहने लगे कि अब अल्लाह अपना कोई रसूल न भेजेगा। अब यही मामला तुम मूसा अलैहि सलाम के साथ कर रहे हो। खुदा के लिए समझो और सीधी राह अपनाओ।

………. जब फ़िरऔन और उसके सरदारों ने उस मर्दे मोमिन की ये बातें सुनी तो उनका रुख मूसा अलैहि सलाम से हटकर उसकी तरफ़ हो गया और फ़िरऔनियों ने चाहा कि पहले उसकी ही खबर लें और उसको क़त्ल कर दें, मगर अल्लाह तआला ने इस नापाक इरादे में उनको कामयाब न होने दिया।

To be continued …

इंशा अल्लाह अगले पार्ट 25 में हम देखंगे मिस्रियों पर अल्लाह का कहर और फिरौन का पानी में गर्क होना

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 3) | Qasas ul Anbiya: Part 23 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-3/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-3/#respond Mon, 23 Oct 2023 01:56:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=26119 हजरत मूसा व हारून अलैहि सलाम » क़सस उल अंबिया Part 15.3हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 3), मिस्र में दाखिला, फ़िरऔन के दरबार में हक की दावत, हज़रत हारून (अ.) का किरदार, फिरऔन का रद्देअमल (प्रतिक्रिया), हामान, फ़िरऔन के दरबार में मुजाहरा ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 3)
Qasas ul Anbiya: Part 23

हज़रत मूसा अलैहि सलाम की एक नबी की हैसियत से मिस्र को वापसी और हज़रत हारून अलैहि सलाम को रिसालत का मंसब अता किया जाना।

मिस्र में दाखिला

………. जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम नुबूवत के मंसब से सरफ़राज़ होकर कलामे रब्बानी से फैजयाब बनकर और दावत और हक़ की तब्लीग़ में कामयाबी व कामरानी की खुशखबरी पा कर मुक़द्दस वादी से उतरे, तो अपनी बीवी के पास पहुंचे जो वादी के सामने जंगल में उनके इंतजार में रास्ता देख रही थीं। उनको लिया और यहीं से हुक्मे इलाही की तामील के लिए मिस्र रवाना हो गए। मंजिलें तै करते हुए जब मिस्र पहुंचे तो रात हो गई थी। ख़ामोशी के साथ मिस्र में दाखिल होकर अपने मकान पहुंचे, अन्दर दाखिल हुए और मां के सामने एक मुसाफ़िर की हैसियत में जाहिर हुए। यह बनी इसराईल में मेहमानवाज घर था।

………. हजरत मूसा अलैहि सलाम की खूब ख़ातिर मदारत की गई। इसी बीच उनके बड़े भाई हजरत हारून आ पहुंचे। यहां पहुंचने से पहले ही हारून को अल्लाह की तरफ़ से रिसालत का मंसब दिया जा चुका था, इसलिए उनको वह्य के ज़रिए हजरत मूसा अलैहि सलाम का सारा किस्सा बता दिया गया था। वह भाई से आकर लिपट गए और फिर उनके घर वालों को घर के अन्दर ले गए और मां को सारा हाल सुनाया। तब सब ख़ानदान के लोग आपस में गले मिले और बिछड़े हुए भाई एक दूसरे की बीती जिंदगी के हालात से वाकिफ हुए और मां की दोनों आंखों ने ठंडक हासिल की।


फ़िरऔन के दरबार में हक की दावत

बहरहाल हजरत मूसा अलैहि सलाम व हजरत हारून अलैहि सलाम के दर्मियान जब मुलाकात और बात-चीत का सिलसिला खत्म हुआ, तो अब दोनों ने तै किया कि अल्लाह का हुक्म पहुंचाने के लिए फ़िरऔन के पास चलना और उसको अल्लाह का पैगाम सुनाना चाहिए। इस ग़रज़ से दोनों भाई यानी अल्लाह के सच्चे पैग़म्बर व नबी फ़िरऔन के दरबार में पहुंचे और बगैर कोई डर और ख़तरा महसूस किए दाखिल हो गए। जब फ़िरऔन के तहत के करीब पहुंचे तो हज़रत मूसा व हारून अलैहि सलाम ने अपने आने की वजह बयान की और बात-चीत शुरू हुई।

और मूसा ने कहा, ऐ फिरऔन! मैं जहानों के परवरदिगार का भेजा हुआ रसूल हूं। मेरे लिए किसी तरह जेबा नहीं कि अल्लाह पर हक और सच के अलावा कुछ और कहूं, बेशक मैं तुम्हारे लिए, तुम्हारे परवरदिगार के पास से दलील और निशानी लाया हूं पस तू मेरे साथ बनी इसराईल को भेज।’ अल आराफ 7:104-105

फ़िरऔन ने जवाब में कहा –
क्या हमने तुझको अपने यहां लड़का-सा नहीं पाला और तू हमारे यहां एक मुद्दत तक नहीं रहा और तूने उस जमाने में जो कुछ काम किया वह तुझे खुद भी मालूम है और तू नाशुक्रगुजार है। 26:19

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने कहा-
मैंने वह काम (मिस्री का क़त्ल) जरूर किया और मैं चूक जाने वालों में से हूं, फिर यहां से तुम्हारे खौफ से भाग गया, फिर मेरे रब ने मुझको सही फ़ैसले की समझ दी और मुझको अपने पैगम्बरों में से बना लिया (ये उसकी हिक्मत की करिश्मासाजियां है) और मेरी (परवरिश) का यह एहसान जिसको तू मुझ पर जता रहा है, क्या ऐसा एहसान है कि तू बनी इसराईल को गुलाम बनाए रखे?' 26:20-22

फ़िरऔन बोला –
बोला फ़िरऔन क्या मानी हैं परवरदिगारे आलम के?’ 26:23

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने फ़रमाया, ‘रब्बुल आलमीन’ वह हस्ती है, जिसके रब होने के असर से तेरा और तेरे बाप का वजूद भी खाली नहीं है, यानी जिस वक्त तू वजूद में न आया था, तो तुझको पैदा किया और तेरी तरबियत की और इसी तरह वह तुझसे पहले तेरे बाप-दादा को आलमे वजूद में लाया और उनको अपने रब होने से नवाज़ा।’

………. फ़िरऔन ने जब इस खामोश कर देने वाली और जबरदस्त दलील को सुना और कोई जबाव न बन पड़ा तो दरबारियों से कहने लगा, मुझे ऐसा मालूम होता है कि यह जो खुद को तुम्हारा पैगम्बर और रसूल कहता है, मजनूं और पागल है।

हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने जब यह देखा कि उससे अब कोई जवाब नहीं बन पड़ता तो सोचा यह बेहतर है कि ज्यादा दिलनशीं अन्दाजे बयान में अल्लाह के रब होने को वाजेह किया जाए, इसलिए फ़रमाया :

………. ‘यह जो पूरब और पच्छिम और उसके बीच सारी कायनात नज़र आती है उसका रब होना उसकी कुदरत में है, उसी को मैं ‘रब्बुल आलमीन’ कहता हूं। तुम अगर जरा मी अक्ल से काम लो तो इस हकीकत को आसानी से पा सकते हो।’

एक बार फिर हजरत मूसा ने फ़िरऔन को यद दिलाया कि जो रास्ता तूने अख्तियार किया है, यह सही नहीं है, बल्कि रब्बुल आलमीन ही वह जात है, जो परश्तिश के लायक है और उसके मुकाबले में किसी इंसान का रब होने का दावा करना खुला हुआ शिर्क है। ऐ फ़िरऔन! तू इससे बाज़ आ क्योंकि उस हस्ती ने जिसको मैं रब्बुल-आलमीन कह रहा हूं, हम पर यह वह्य उतारी है कि जो आदमी हक़ के इस कौल की ख़िलाफ़वर्जी करेगा। झल्लाएगा और उससे मुंह मोड़ेगा, वह अल्लाह के अजाब का हकदार ठहरेगा।

जो कोई सरताबी करे तो हम पर वह्य उतर चुकी कि उसके लिए अनाब का पयाम है। तहा 20:48

फ़िरऔन ने फिर वही सवाल दोहराया-
अगर ऐसा ही है तो बतलाओ तुम्हारा परवरदिगार कौन है। ताहा 20:49

मूसा ने कहा -
हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज को उसका वजूद बख्शा और उस पर (जिंदगी व अमल की) राह खोल दी। ताहा 20:50

फिर उनका क्या हाल होता है जो पिछले जमानों में गुजर चुके। ताहा 20:51

मूसा ने कहा-
इस बात का इल्म मेरे परवरदिगार के पास नविश्ते में है, मेरा परवरदिगार ऐसा नहीं कि खोया जाए या भूल में पड़ जाए, वह परवरदिगार जिसने तुम्हारे लिए जमीन बिछौने की तरह बिछा दी, चलने-फिरने के लिए उसमें राहें निकाल दी, आसमान से पानी बरसाया, उसकी सिंचाई से हर तरह की वनस्पति के जोड़े पैदा कर दिए, खुद भी खाओ और मवेशी भी चराओ, इस बात में अक्ल वालों के लिए कैसी खुली निशानियां हैं? उसने इस जमीन से तुम्हें पैदा किया, उसी में लौटना है और फिर उसी से दूसरी बार उठाएं जाओगे।’ ताहा 20:52-55


हज़रत हारून (अ.) का किरदार

तफ्सीर के उलेमा लिखते हैं कि फ़िरऔन और मूसा के इन मुकालमों में हजरत हारून अलैहि सलाम दोनों के दर्मियान तर्जुमान होते और हजरत मूसा अलैहि सलाम की दलीलों और सबूतों को बड़े ही असरदार अंदाज के साथ अदा फ़रमाते थे।


फिरऔन का रद्देअमल (प्रतिक्रिया)

अलग-अलग मज्लिसो में बात-चीत का यह सिलसिला जारी रहा और फिरऔन ने बहस के सिलसिले को ख़त्म करने के लिए दूसरे तरीके अखियार किए। आखिरकार उसने अपनी कौम को मुखातब करते हुए कहा-

और फ़िरऔन ने कहा, ऐ जमाअत! मैं तुम्हारे लिए अपने सिवा कोई खुदा नहीं जानता। कसस 28:38

और फिर (अपने वजीर मुशीर को) हुक्म दिया-
ऐ हामान! मेरे लिए एक बुलन्द इमारत तैयार कर, ताकि मैं आसमानों की बुलन्दियों और उनके जरियों तक दस्तरस हासिल कर सकूँ और इस तरह मूसा के खुदा का हाल मालूम कर सकूँ और मैं तो उसको झूठा समझता हूं। 40: 36-37


हामान

हामान के बारे में कुरआन ने साफ़ नहीं किया कि यह शख्सियत का नाम है या ओहदे और मंसब का और न उसने इस पर रोशनी डाली कि हामान ने इमारत तैयार कराई या नहीं। तौरात भी इस बारे में ख़ामोश है।


फ़िरऔन के दरबार में मुजाहरा

गरज फ़िरऔन का ख़दशा बढ़ता ही रहा और नौबत यहां तक पहुंची कि-

फ़िरऔन ने कहा, अगर तूने मेरे सिवा किसी को माबूद बनाया तो मैं तुझे जरूर कत्ल कर दूंगा। 26:29

मूसा ने कहा -
अगरचे मैं तेरे पास जाहिर निशान लाया हूं, तब भी?' 26:30

फ़िरऔन ने कहा –
अगर तू सच्चा है, तो वह निशान दिखा।’ 26:31

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम आगे बढ़े और भरे दरबार में फ़िरऔन के सामने अपनी लाठी को जमीन पर डाला। उसी वक्त उसने अजगर की शक्ल अख्तियार कर ली और यह हकीकत थी, नज़र का घोखा न था और फिर हजरत मुसा अलैहि सलाम ने अपने हाथ को गरेबान के अन्दर ले जाकर बाहर निकाला तो वह एक रोशन सितारे की तरह चमकता हुआ नज़र आ रहा था। यह दूसरी निशानी और दूसरा मोजजा था।

………. फ़िरऔन के दरबारियों ने जब इस तरह एक इसराईली के हाथों अपनी कौम और अपने बादशाह की हार को देखा, तो तिलमिला उठे और कहने लगे, बेशक यह बहुत बड़ा माहिर जादूगर है और उसने यह सब ढोंग इसलिए रचाया है कि तुम पर ग़ालिब आकर तुमको तुम्हारी सरज़मीन (मिस्र) से बाहर निकाल दे, इसलिए अब हमको सोचना है कि उसके बारे में क्या होना चाहिए।

………. आखिर फ़िरऔन और फ़िरऔनियों के आपसी मशवरे से यह तै पाया कि फ़िलहाल तो इसको और हारून को मोहलत दो और इस मुद्दत में पूरे राज्य से माहिर जादूगरों को राजधानी में जमा करो और फिर मूसा का मुकाबला कराओ, यह हार खा जाएगा और इसके तमाम इरादे ख़ाक में मिल जाएंगे।

………. तब फ़िरऔन ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम से कहा, मुसा! हम समझ गए कि तू इस हीले से हमको मिस्र की धरती से बेदखल करना चाहता है, इसलिए तेरा इलाज अब इसके सिवा कुछ नहीं कि बड़े-बड़े माहिर जादूगरों को जमा करके तुझको हार दिला दी जाए। अब तेरे और हमारे दर्मियान मुकाबले के दिन का समझौता होना चाहिए और फिर न हम उससे टालेंगे और न तुम वादाखिलाफ़ी करना।

………. हजरत मूसा अलैहि सलाम ने फ़रमाया कि इस काम के लिए सबसे बेहतर वक़्त ‘यौमुजीना’ (जश्न का दिन) है, उस दिन सूरज बुलन्द होने पर हम सबको मौजूद होना चाहिए।

………. नोट: मिस्रियों की ईद का दिन जो ‘वफ़ाउन्नैल’ के नाम से मशहूर है, क्योंकि उनके यहां तमाम ईदों में सबसे बड़ी ईद का दिन यही था।

………. गरज हजरत मूसा अलैहि सलाम और फ़िरऔन के दर्मियान ‘यौमुजीना’ ते पाया और फ़िरऔन ने उसी वक्त अपने जिम्मेदारों और दरबारियों के नाम हुक्म जारी कर दिए कि पूरे राज्य में जो भी मशहूर और माहिर जादूगर हों, उनको जल्द-से-जल्द राजधानी रवाना कर दो।

To be continued …

इंशा अल्लाह अगले पार्ट 24 में हम देखंगे जादूगरों की हार और फ़िरऔन का रद्देअमल

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 2) | Qasas ul Anbiya: Part 22 https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-2/ https://ummat-e-nabi.com/musa-alaihi-salam-part-15-2/#respond Sun, 22 Oct 2023 17:40:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=26102 हजरत मूसा व हारून अलैहि सलाम » क़सस उल अंबिया Part 15.2हज़रत मूसा अलैहि सलाम की मिस्र से मदयन के लिए हिजरत, मूसा अलैहि सलाम और मदयन का इलाका, मदयन का पानी, शेख की बेटी से निकाह का रिश्ता, मुकद्दस वादी, रसूल बनाए गए, अल्लाह की निशानियां ...

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 2)
Qasas ul Anbiya: Part 22

मूसा अलैहि सलाम की हिजरत और मदयन का इलाका

………. हजरत शुऐब अलैहि सलाम के वाक़ियों में मदयन का जिक्र आ चुका है। मदयन की आबादी मिस्र से आठ मंजिल पर वाकए थी। हजरत मूसा अलैहि सलाम सलाम चूंकि फ़िरऔन के डर से भागे थे, इसलिए उनके साथ न कोई रफीक और रहनुमा था और नही रास्ते का ख़र्च और तेज भागने की वजह से नंगे पैर थे। इस परेशान हाली में मूसा अलैहि सलाम मदयन के इलाके में दाखिल हुए।

मदयन का पानी

………. जब मदयन की सरजमीन में कदम रखा तो देखा कि कुएं के सामने पानी के हौज (प्याऊ) पर भीड़ लगी हुई है और जानवरों को पानी पिलाया जा रहा है, मगर इस जमाअत से थोड़ी दूरी पर दो लड़कियां खड़ी हैं और अपने जानवरों को पानी पर जाने से रोक रही हैं।

………. बहरहाल हजरत मूसा अलैहि सलाम से यह हालत न देखी गई और आगे बढ़कर लड़कियों से मालूम किया: ‘तुम क्यों नहीं पानी पिलाती‘, पीछे किस लिए खड़ी हो? दोनों ने जवाब दिया, ‘हम मजबूर हैं, अगर जानवरों को लेकर आगे बढ़ते हैं तो ये ताकतवर जबरदस्त हम को पीछे हटा देते हैं और हमारे वालिद बहुत बूढ़े हैं। अब उनमें यह ताकत नहीं है कि उनके रोक को दूर कर सकें, पस जब ये सब पानी पिलाकर वापस हो जाएंगे, तब हम बचा हुआ पानी पिलाकर लौटेंगे, यही हमारा रोज का दस्तूर है।

………. हजरत मूसा अलैहि सलाम को जोश आ गया और आगे बढ़कर तमाम भीड़ को चीरते हुए कुएं पर जा पहुंचे और कुएं का बड़ा डोल उठाया और तंह खींच कर लड़कियों के मवेशियों को पानी पिला दिया। हजरत मूसा अलैहि सलाम जब भीड़ को चीरते हुए दर्राना घुसने लगे, तो अगरचे लोगों को नागवार गुजरा, लेकिन उनकी जलाली सूरत और जिस्मानी ताकत से मरऊब हो गये और डोल को तंहा खींचते ही देखकर उसी ताकत से हार मान गए जिसके बलबूते पर कमज़ोरों और नातवा को पीछे हटा दिया करते और उनकी जरूरतों को पामाल करते रहते थे।

………. ग़रज जब इन लड़कियों के जानवरों ने पानी पी लिया तो वे घर को वापस चली, घर पहुंची तो आदत के ख़िलाफ़ जल्द वापसी पर उनके बाप को बड़ा ताज्जुब हुआ, पूछने पर लड़कियों ने गुजरा हुआ माजरा कह सुनाया कि किस तरह उनकी एक मिस्री ने मदद की। बाप ने कहा, ‘जाओ और उसको मेरे पास लेकर आओ।’

………. यहां तो बाप बेटी के दर्मियान यह बात-चीत हो रही थी और उधर हजरत मूसा अलैहि सलाम पानी पिलाने के बाद करीब ही एक पेड़ के साए में बैठकर सुस्ताने लगे। मुसाफ़रत, अजनबीपन और भूख-प्यास, इस हालत में उन्होंने दुआ की –

परवरदिगार! इस वक्त जो भी बेहतर सामान मेरे लिए तू अपनी कुदरत से नाजिल करे, मैं उसका मुहताज हूं। 28:24

………. लड़की वहां पहुंची तो देखा कि कुएं के क़रीब ही हज़रत मूसा अलैहि सलाम बैठे हुए हैं। शर्म व हया के साथ नज़रें नीचे किए लड़की ने कहा, ‘आप हमारे घर चलिए, वालिद बुलाते हैं। वह आपके इस एहसान का बदला देंगे।

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम यह सुनकर उठ खड़े हुए और लड़की की रहनुमाई में चल पड़े और लड़कियों के बाप की खिदमत में हाजिर होकर मुलाकात का शरफ़ हासिल किया। उन बुजुर्ग ने पहले तो खाना खिलाया और उनके हालात सुने। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने ठीक ठीक अपनी पैदाइश और फ़िरऔन के बनी इसराईल पर मज़ालिम से शुरू करके आखिर तक सारी दास्तान कह सुनाई। बुजुर्ग ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को तसल्ली दी और फरमाया कि अल्लाह का शुक्र अदा करो कि अब तुमको जालिमों के पंजे से निजात मिल गई। अब कोई डरने की बात नहीं है। कुरआन करीम ने उन बुजुर्ग को शेखे कबीर कहा है।


शेख की बेटी से निकाह का रिश्ता

ऊपर की बातों के दौरान उस लड़की ने, जो हमारत मूसा अलैहि सलाम को बुलाने गई थी, अपने बाप से कहा –

ऐ बाप! आप उस मेहमान को अपने मवेशियों के चराने और पानी मुहैया करने के लिए अज्र पर रख लीजिए। अज्र पर किसी बेहतर आदमी को रखा जाए, जो मजबूत भी हो और अमानतदार भी। अल कसस 28:26

………. बुजुर्ग बाप ने बेटी की इन बातों को सुना तो बहुत मसरूर हुए और हजरत मूसा अलैहि सलाम से कहा कि अगर तुम आठ साल तक मेरे पास रहो और मेरी बकरियां चराओ तो मैं अपनी इस बेटी को तुमसे शादी करने को तैयार हूं और अगर तुम इस मुद्दत को दो साल बढ़ाकर दस साल कर दो तो और भी बेहतर है।

………. हजरत मूसा अलैहि सलाम ने इस शर्त को मंजूर कर लिया और फरमाया कि यह मेरी ख़ुशी पर छोड़ दीजिए कि मैं इन दोनों महतों में से जिसको चाहूं पूरा कर दूं। आपकी तरफ़ से मुझ पर इस बारे में कोई जब्र न होगा। दोनों तरफ़ की इस आपसी रजामंदी के बाद बुजुर्ग मेज़बान ने मूसा अलैहि सलाम से उस बेटी की शादी कर दी।

………. नोटहजरत मौलाना स्युहारवी रह० का कहना है कि हजरत मूसा अलैहि सलाम के ससुर जिनको कुरआने मजीद ने ‘शेख कबीर’ कहा है, वह हजरत शुऐब न थे, जबकि बाज़ तारीखी रिवायतों से ये मशहूर कौल है के वह बुजुर्ग हज़रत शुएब अलैहि सलाम ही थे, देखे तफ़्सीर इब्ने कसीर। अल्लाहु आलम।


मुकद्दस वादी

………. शादी के बाद हज़रत मूसा अलैहि सलाम अपने ससुर के यहां मुक़र्रर की हुई मुद्दत पूरै करने, यानी बकरियां चराने के लिए ठहरे रहे। तफसीर लिखने वाले मुस्तनब रिवायतों के पेशेनजर फ़रमाते हैं कि मूसा अलैहि सलाम ने पूरी मुद्दत यानी दस साल के मुद्दत पूरी की। कुरआन मजीद ने यह नहीं बताया कि मुद्दत पूरी होने के किस कदर बाद तक मूसा अलैहि सलाम अपने ससुर के पास ठहरे रहे। बहरहाल हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने मदयन में एक मुहलत तक कियाम किया और इस पूरी मुद्दत में आप ससुर के मवेशियों की देख-भाल करते रहे।

………. इस बीच एक बार हज़रत मूसा अलैहि सलाम अपने घर वालों समेत बकरि चराते-चराते मदयन से बहुत दूर निकल गए। जानवरों के चरने-चराने का काम करने वाले कबीलों के लिए यह बात ताज्जुब की न थी, मगर रात ठंडी थी।

………. इसलिए सर्दी आग की खोज के लिए मजबूर कर रही थी, सामने सीना (पहाड़) का सिलसिला नजर आ रहा था, यह सीना का पूर्वी कोना था और मदयन एक दिन के फ़ासले पर लाल सागर की दो शाखाओं के दर्मियान मिस्र जाते हुए वाके था। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने सामने की घाटी (ऐमन की घाटी) में निगाह दौड़ाई तो एक शोला चमकता हुआ नजर पड़ा। बीवी से कहा कि तुम यही ठहरो मैं आग ले आऊ, तापने का भी इन्तिजाम हो जाएगा और अगर वहां को रहबर मिल गया तो भटकी हुई राह का भी पता लग जाएगा।

फिर मूसा अलैहि सलाम ने अपनी बीवी से कहा, तुम यहां ठहरो, मैंने आग देखी है, शायद उसमें से कोई चिंगारी तुम्हारे लिए ला सकू या वहां अलाव पर किसी रहबर को पा सकूँ। ताहा 20:10

रसूल बनाए गए

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने देखा कि अजब आग है, पेड़ पर रोशनी नज़र आती है, मगर न पेड़ को जलाती है, न गुल ही होती है।  यह सोचते हुए आगे बढ़े, ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते जाते थे, आग और दूर होती जाती थी। यह देखकर मूसा अलैहि सलाम को डर-सा पैदा हुआ और उन्होंने इरादा किया कि वापस हो जाएं। ज्यों ही वह पलटने लगे, आग क़रीब आ गई और करीब हुए तो सुना कि यह आवाज़ आ रही है –

ऐसा मूसा! मैं हूं अल्लाह, परवरदिगार दुनियाओं का। क़सस 28:30

………. तर्जुमा- ‘पस जब मूसा अलैहि सलाम उस (आग) के करीब आए तो पुकारे गए, ऐ मूसा! मैं हूं तेरा परवरदिगार पस अपनी जूती उतार दे, तू तुवा की मुक़द्दस वादी में खड़ा है और देख! मैंने तुझको अपनी रिसालत के लिए चुन लिया है, पस जो कुछ वह्य की जाती है, उसे कान लगाकर सुन। [ताहा 20:11-18]

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने जब अल्लाह की उस आवाज़ को सुना और उनको यह मालूम हुआ कि आज उनके नसीब में वह दौलत आ गई है जो इंसानी शराफत की इम्तियाजी शान और अल्लाह की मुहब्बत का आखिरी निशान है, तो फुले न समाए। आखिर फिर उसी तरफ़ से शुरूआत हुई और पूछा गया-

मूसा! तेरे दाहिने हाथ मैं यह क्या है? ताहा 20:11

हालाँकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त बेहतर इल्म रखने वाला है।

मूसा अलैहि सलाम ने जवाब दिया-

यह मेरी लाठी है। इस पर (बकरियां चराते वक्त) सहारा लिया करता हूँ और अपनी बकरियों के लिए पत्ते झाड़ लेता हूं। ताहा 20:18

अल्लाह की निशानियां

अब अल्लाह तआला ने इर्शाद फरमाया-

मूसा! अपनी इस लाठी को जमीन पर डाल दो। ताहा 20:19-20

और मूसा अलैहि सलाम ने इस इर्शाद की तामील की-

मूसा अलैहि सलाम ने लाठी को ज़मीन पर डाल दिया, पस यकायक वह अजगर बनकर दौड़ने लगा। ताहा 20:21

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने जब हैरत में डाल देने वाला यह वाकिया देखा, तो घबरा गए और बशर होने के तकाजे का असर लेकर भागने लगे। पीठ फेरते ही ये कि आवाज आई –

(अल्लाह तआला ने फ़रमाया) ‘मूसा! इसको पकड़ लो, खौफ़ न खाओ, हम इसको इसकी असल हालत पर लौटा देंगे। ताहा 20:21

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम की लकड़ी दो शाखा थी। अब वही दो शाखा अजगर मुंह नजर आ रहा था। सख्त परेशान थे, मगर अल्लाह की कुर्बत ने तमानियत व सुकून की हालत पैदा कर दी और उन्होंने बे-ख़ौफ़ होकर उसके मुंह पर हाथ डाल दिया। इस अमल के साथ ही फ़ौरन वह दो शाखा फिर लाठी बन गयी।

………. अब मूसा अलैहि सलाम को दोबारा पुकारा गया और हुक्म हुआ कि अपने हाथ गरेबान के अन्दर ले जाकर बग़ल से मस कीजिए और फिर देखिए, वह मरज से पाक बे-दाग़ चमकता हुआ निकलेगा।

और मिला दे अपने हाथ को अपनी बाल के साथ, निकल आएगा वह रोशन, बगैर किसी मरज के (यानी बर्स से पाक) यह दसरी निशानी है। ताहा 20-22

मूसा! यह हमारी ओर से तुम्हारी नुबूवत व रिसालत के दो बड़े निशान हैं। ये सच्चाई के तुम्हारे पैग़ाम और हक़ की दलीलों की जबरदस्त ताईद करेंगे, पस जिस तरह हमने तुमको नुबूबत व रिसालत से नवाजा, उसी तरह तुमको ये दो अजीमुश्शान निशान (मोजजे) भी अता किए।

ताकि हम तुझको अपनी बड़ी निशानियों का मुशाहदा करा दें। ताहा 20-25
पस तेरे परवरदिगार की ओर से फिरऔन और उसकी जमानत के मुकाबले में तेरे लिए ये दो बुरहान' हैं। बेशक वह फ़िरऔन और उसकी जमाअत नाफरमान कौम हैं। ताहा 20-32

अब जाओ फ़िरऔन और उसकी कौम को हिदायत की राह दिखाओ। उन्होंने बहुत सकरशी और नाफरमानी अख्तियार कर रखी है और अपने गुरुर व तकब्बुर और बेइंतिहा जुल्म के साथ उन्होंने बनी इसराईल को गुलाम बना रखा है। सो उनको गुलामी से नजात दिलाओ।’

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने जनाबे बारी तआला में अर्ज किया,

………. ‘परवदिगार! मेरे हाथ से एक मिस्री क़त्ल हो गया था, इसलिए यह ख़ौफ़ है कि कहीं वे मुझको क़त्ल न कर दें। मुझे यह भी ख्याल है कि वे मुझे बहुत जोर से झुठलाएंगे और मुझे झूठा कहेंगे, यह ऊंचा मंसब जब तूने दिया है तो मेरे सीने को फ़रानी और नूर से भर दे और इस अहम खिदमत को मेरे लिए आसान बना दे और जुबान में पड़ी हुई गिरह को खोल दे, ताकि लोगों को मेरी बात समझने में आसानी हो। चूंकि मेरी बातों में रवानी नहीं है और मेरे मुकाबले में मेरा भाई हारून मुझसे ज़्यादा निखरी जुबान में बातें करता है, इसलिए उसको भी अपनी इस नेमत (नबूवत) से नवाज़ कर मेरे कामों में शरीक बना दे।’ [ताहा 20:25-35]

………. अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को इत्मीनान दिलाया कि तुम हमारा पैगाम लेकर जरूर जाओ और उनको हक का रास्ता दिखाओ, वे तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। हमारी मदद तुम्हारे साथ है और जो निशान हमने तुमको दिए हैं, वे तुम्हारी कामियाबी की वजह होंगे और नतीजे के तौर पर तुम्हीं ग़ालिब रहोगे। हम तुम्हारी दरख्वास्त मंजूर करते हैं और तुम्हारे भाई हारून को भी तुम्हारा शरीकेकार बनाते हैं। देखो, तुम दोनों फ़िरऔन और उसकी क़ौम को जब हमारे सही रास्ते की ओर बुलाओ, तो उस पैग़ामे हक्क में नर्मी और मिठास के साथ पेश आना, क्या अजब है कि वे नसीहत कुबूल कर लें और ख़ुदा का ख़ौफ़ करते हुए जुल्म से बाज़ आ जाएं।

To be continued …

इंशा अल्लाह अगले पार्ट 23 में हम देखंगे हज़रत मूसा (अ.स.) की एक नबी की हैसियत से मिस्र को वापसी और फ़िरोंन के दरबार में हक़ की दावत

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हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 1)
Qasas ul Anbiya: Part 21

हज़रत मूसा अलैहि सलाम की शुरूआती जिंदगी और बनी इसराईल मिस्र में

………. हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम के किस्से में बनी इसराईल का जिक्र सिर्फ इसी क़दर किया गया था कि हज़रत याकूब और उनका ख़ानदान हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम से मिलने मिस्र में आए, मगर उसके सदियों बाद फिर एक बार कुरआन करीम बनी इसराईल के वाकिए तफ्सील के साथ सुनाता है जिनसे मालूम होता है कि बनी इसराईल हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम के ज़माने में मिस्र ही में बस गए थे। तौरात से और तफ़सील मालूम होती है और यह भी कि हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने फ़िरऔन से अपने बाप और ख़ानदान के लिए अर्जे जाशान (Goshen) तलब की जो फ़िरऔन ने ख़ुशी-खुशी उनके सुपुर्द कर दी।

………. बहरहाल इन तफ़्सीलों से यह वात साफ़ हो जाती है कि बनी इसराईल हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम और हज़रत मूसा अलैहि सलाम की दर्मियानी सदियों में मिस्र में आबाद रहे और उनकी तायदाद लगभग छः लाख हो गई थी। (‘नेशनल ज्योग्रेफ़िक’ जनवरी 1078 ई. के मुताबिक ये छः सौ खानदान यानी पन्द्रह हजार लोगों से कुछ कम ही हो सकते हैं।)


फ़िरऔन

………. शुरू ही में यह साफ़ कर देना ज़रूरी है कि “फ़िरऔन‘ मिस्र के बादशाहों का लकब है, किसी ख़ास हुक्मरौं या बादशाह का नाम नहीं है। तारीखी एतबार से तीन हजार साल कब्ल मसीह से शुरू होकर सिकन्दर आजम के जमाने तक फ़िरऔनों के 31 खानदान मिस्र पर हुक्मरा रहे हैं। (अल्लाहु आलम) हजरत मूसा अलैहि सलाम के जमाने में मिस्र का हुक्मरां (फ़िरऔन) कौन था और उसका क्या नाम था, यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता, इसलिए यहां फ़िरऔन को उस वक़्त के मिस्र का हुक्मरां (शासक) समझा जाए।


फ़िरऔन का ख्वाब

………. तौरात में है और तारीख के माहिर भी कहते हैं कि फ़िरऔन को बनी इसराईल के साथ इसलिए दुश्मनी हो गई थी कि उस ज़माने के काहिनों, नजूमियों और क़याफ़ागरों ने उसको बताया था कि उसकी हुकूमत का ज़वाल एक इसराईली लड़के के हाथ से होगा और कुछ तारीख़ी रिवायतों में है कि फ़िरऔन ने एक भयानक ख्वाब देखा था, जिसकी ताबीर दरबार के ज्योतिषियों और काहिनों ने वहीं दी थी, जिसका ज़िक्र गुज़र चुका है। इस पर फ़िरऔन ने एक जमाअत को इसलिए मुकर्रर किया कि वह तफ़्तीश और तलाश के साथ इसराईली लड़कों को क़त्ल कर दे और लड़कियों को छोड़ दिया करे।


हज़रत मूसा अलैहि सलाम की पैदाइश

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम का नसब (वंश) कुछ वास्तों से हज़रत याकूब अलैहि सलाम तक पहुंचता है। उनके वालिद का नाम इमरान और वालिदा का नाम यूकाबुद था। इमरान के घर में मूसा अलैहि सलाम की पैदाइश ऐसे ज़माने में हुई जबकि फ़िरऔन इसराईली लड़कों के क़त्ल का फैसला कर चुका था। बहरहाल जूं-जूं करके तीन माह तक उनके पैदा होने की किसी को मुतलक खबर न होने दी। इस सख्त और नाजुक वक़्त में आख़िर अल्लाह तआला ने मदद की और मूसा अलैहि सलाम की वालिदा के दिल में यह बात डाल दी कि एक ताबूत की तरह का सन्दूक बनाओ, जिस पर राल और रोगन पालिश कर दो, ताकि पानी अन्दर असर न कर सके और उसमें उस बच्चे को हिफाजत से रख दो और फिर उस सन्दूक को नील नदी के बहाव पर छोड़ दो।

………. मूसा अलैहि सलाम की मां ने ऐसा ही किया और साथ ही अपनी बड़ी लड़की मूसा की बहन को लगाया कि वह इस सन्दूक के बहाव के साथ किनारे-किनारे चलकर सन्दूक को निगाह में रखे और देखे कि अल्लाह उसकी हिफाजत का वायदा किस तरह पूरा करता है, क्योंकि मूसा अलैहि सलाम की वालिदा को अल्लाह तआला ने यह बशारत पहले ही सुना दी थी कि हम इस बच्चे को तेरी ही तरफ ला कर देंगे और यह हमारा पैग़म्बर और रसूल होगा।


फ़िरऔन के घर में तर्बियत

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम की बहन बराबर सन्दूक के बहाव के साथ-साथ किनारे-किनारे निगरानी करती जा रही थीं कि उन्होंने देखा सन्दूक तैरते हुए शाही महल के किनारे आ लगा और फ़िरऔन के घराने में से एक औरत ने ख़ादीमों के जरिए उसको उठवा लिया और शाही महल में ले गई। हज़रत मुसा अलैहि सलाम की हमशीरा (बहन) यह देखकर बहुत खुश हुई और हालात की सही तफ़्सील मालूम करने के लिए शाही महल की नौकरानियों में शामिल हो गई।

………. यहां यह बात हो रही थी, उधर हजरत मूसा अलैहि सलाम की वालिदा लतीफन रोवी के इन्तिजार में आंखें फैलाए हुए थीं कि लड़की (हज़रत मूसा की बहन) ने आकर पूरी दास्तान कह सुनाई और कहा कि अब तुम चलकर अपने बच्चे को सीने से लगाओ और आंखें ठंडी करो और उसका शुक्र अदा करो कि उसने अपना वायदा पूरा कर दिया। इस तरह अल्लाह तआला ने हजरत मूसा की परवरिश का पूरा इन्तिजाम कर दिया।


मूसा अलैहि सलाम का मिस्र से निकलना

………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम एक अर्से तक शाही तबियत में बसर करते-करत जवानी के दौर में दाखिल हुए तो निहायत मज़बूत, कड़यल और बहादुर जवान निकले। चहरे से रौब टपकता और बातों से एक खास वकार और अजमत को शान शाहिर होती थी। उनको यह भी मालूम हो गया था कि वह इसराईली हैं और मिस्री खानदानों से इनकी कोई रिश्तेदारी नहीं है। उन्होंने यह भी देखा कि बनी इसराईल पर बड़े जुल्म हो रहे हैं और वे मिस्र में बड़ी जिल्लत और गुलामी की जिंदगी बसर कर रहे हैं। यह देखकर उनका खून खौलने लगता और मौके-मौके से इबरानियों की हिमायत व मदद में पेश हो जाते।

………. एक बार शहरी आबादी से एक किनारे जा रहे थे कि देखा एक मिस्री एक इसराईली को बेकार के लिए घसीट रहा है। इसराईली ने मूसा अलैहि सलाम को देखा तो लगा फ़रियाद करने और मदद चाहने। हज़रत मूसा को मिस्री की इस जाबिराना हरकत पर सख्त गुस्सा आया और उसको बाज़ रखने की कोशिश की, मगर मिस्री न माना, मूसा ने गुस्से में आकर एक तमांचा रसीद कर दिया। मिस्री इस मार को सह न सका और उसी वक्त मर गया। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने यह देखा तो बहुत अफ़सोस किया, क्योंकि उनका इरादा बिल्कुल उसके क़त्ल का न था और नदामत व शर्मिन्दगी के साथ दिल में कहने लगे कि बेशक यह शैतान का काम है। वही इंसान को ग़लत रास्ते पर लगाता है और अल्लाह की बारगाह में अर्ज करने लगे कि यह जो कुछ हुआ, अनजाने में हुआ, मैं तुझसे माफ़ी चाहता हूं। अल्लाह ने भी उनकी ग़लती को माफ़ कर दिया और मग़फ़िरत की बशारत से नवाज़ा।

………. इधर शहर में मिस्री के क़त्ल की ख़बर फैल गई, मगर क़ातिल का कुछ पता न चला। आख़िर फ़िरऔन के पास मदद तलब की कि यह काम किसी इसराईली का है, इसलिए आप मदद फ़रमाएं। फ़िरऔन ने कहा कि इस तरह सारी क़ौम से बदला नहीं लिया जा सकता, तुम क़ातिल का पता लगाओ, मैं उसको ज़रूर पूरी सज्ञा दूंगा।

………. बुरा इत्तिफ़ाक़ कहिए या अच्छा इत्तिफ़ाक़ कि दूसरे दिन भी हज़रत मूसा अलैहि सलाम शहर के किनारे पर सैर फ़रमा रहे थे कि देखा वहीं इसराईली एक क़िब्ती से झगड़ रहा है और किब्ती गालिब है। मूसा अलैहि सलाम को देखकर कल की तरह उसने आज भी फ़रियाद की और मदद चाही।

………. इस वाकिए को देखकर हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने दोहरी नागवारी महसूस की, एक तरफ़ क़िब्ती का जुल्म था और दूसरी तरफ़ इसराईली का शोर और पिछले वाकीए की याद थी, इसी झुंझलाहट में एक तरफ मिस्री को बाज रखने के लिए हाथ बढ़ाया और साथ ही इसराईलीही को झिड़कते हुए फरमाया ‘इन-क समावीयुन अमीन० (तू ही बेशक, खुला हुआ गुमराह है) यानी ख्वामखाही झगड़ा मोल लेकर दाद व फ़रियाद करता रहता है।

………. इसराईली ने हजरत मूसा अलैहि सलाम को हाथ बढ़ाते और फिर अपने मुताबिक नागवार और कड़वे अलफाज कहते सुना तो यह समझा कि यह मुझको मारने के लिए हाथ बढ़ा रहे हैं और मुझको पकड़ में लेना चाहते हैं, इसलिए शरा भरे अन्दाज में कहने लगा –

जिस तरह कल तूने एक जान (क़िब्ती) को हलाक किया उसी तरह आप मुझको क़त्ल कर देना चाहता है। क़ुरान 28:19

………. मिस्री ने जब यह सुना तो उस वक्त फिरौनियों से जाकर सारी दास्ताँ कह सुनाई। उन्होंने फिरौन को इत्तिला दी कि मिस्री का कातिल मूसा है। फ़िरऔन ने यह सुना तो जल्लाद को हुक्म दिया कि मूसा को गिरफ्तार कर हाजिर करे। मिस्रियों के इस मज्मे में एक मुअज्जज शहरी वह भी था जो दिल व जान से हजरत मूसा से मुहब्बत रखता और इसराईली मजहब को जानता था।

………. यह फ़िरऔन ही के खानदान का आदमी था और दरबार में हाजिर था। उसने फ़िरऔन का यह हुक्म सुना तो फिरौनी जल्लाद से  पहले ही दरबार से निकल कर दौड़ता हुआ हज़रत मूसा की खिदमत में हाजिर हुआ और उनसे सारा किस्सा बयान किया और उनको मशविरा दिया कि इस वक्त मस्लहत यही है कि खुद को मिस्रियों से नजात दिलाइए और किसी ऐसे मक़ाम पर हिजरत कर जाइए जहां उनकी पकड़ न हो सके। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने उसके मशविरे को कुबूल फ़रमाया और अर्जे मदयन की तरफ खामोशी के साथ रवाना हो गए।

To be continued …

इंशा अल्लाह! अगले पार्ट (22) में हम देखेंगे हज़रत मूसा अलैहि सलाम की शुएब अलैहि सलाम से मुलाकात और उनकी बेटी से आपका निकाह।

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हजरत शुएब अलैहि सलाम | Qasas ul Anbiya: Part 20 https://ummat-e-nabi.com/shoaib-alaihi-salam/ https://ummat-e-nabi.com/shoaib-alaihi-salam/#respond Thu, 19 Oct 2023 18:36:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=26055 हज़रत नबी शुऐब अलैहि सलाम Prophet Shoaib Alaihi Salam Story in hindiहज़रत शुऐब अलैहि सलाम की कौम, मदयन या असहाबे ऐक, हक की दावत, अज़ाब की किस्में, हज़रत शुऐब अल० की कब्र, सबक़ भरी नसीहतें, हज़रत शुऐब का ज़िक्र कुरआन पाक में ...

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हजरत शुएब अलैहि सलाम
Qasas ul Anbiya: Part 20

हज़रत शुऐब अलैहि सलाम की कौम

हज़रत शुऐब अलैहि सलाम मदयन या मदयान की ओर भेजे गए थे। मदयन एक कबीले का नाम है, जो हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम के बेटे मदयन की नस्ल से था। शुएब अलैहि सलाम भी चूंकि उसी नस्ल और उसी क़बीले से थे, इसलिए उनके भेजे जाने के बाद यह कौम ‘शुऐब की क़ौम‘ (क़ौमे शुऐब) कहलाई।

मदयन या असहाबे ऐकः

कुरआन मजीद में इस क़बीले से मुताल्लिक़ हमको दो बातें बताई गई।

एक यह कि वह इमामे मुबीन पर आबाद था और लूत की कौम और मदयन दोनों बड़ी शाहराहे पर आबाद थे।' सूरह अल हिज्र 15:79

अरब के भूगोल में जो शाहराह (Main Road) हिजाज़ के ताजिर क़ाफ़िलों को शाम, फलस्तीन, यमन, बल्कि मिस्र तक ले जाती और लाल सागर के पूर्वी किनारे से होकर गुजरती थी, कुरआन उसी को ‘इमामे मुबीन‘ (खुला और साफ़ रास्ता) कहता है, जहां तक अस्हाबे ऐकः का ताल्लुक है, तो अरबी में ‘ऐका’ हरी-भरी झाड़ियों को कहते हैं जो झांदले की शक्ल अख्तियार कर लेती है।

………. इन दोनों बालों के जान लेने के बाद मदयन की आबादी के बारे में यही कहा जा सकता है कि मदयन का कबीला लाल सागर के पूर्वी किनारे और आब के उत्तर पश्चिम में ऐसी जगह आबाद था जो शाम से मिले हुए हिजाज़ का आखिरी हिस्सा कहा जा सकता है। कुछ विद्वानों ने मदयन और अस्हाबे ऐका में फर्क किया है, लेकिन तीही बात यही है कि मदयन और असहाबे ऐकः एक ही कबीला है जो बाप की निस्बत से मदयन कहलाया और जमीन की तबई और भौगोलिक हैसियत से अस्हाबे ऐका कहलाया।

हक की दावत

बहरहाल शुऐब अलैहि सलाम जब अपनी क़ौम में भेजे गए तो उन्होंने देखा कि अल्लाह की नाफरमानी और बड़े गुनाह के काम सिर्फ कुछ लोगों में ही नहीं पाए जाते। बल्कि सारी कौम इसकी शिकार है और अपनी बद-आमालियों में इतनी मस्त है कि एक लम्हे के लिए भी उनको यह एहसास नहीं होता कि जो कुछ हो रहा है, अल्लाह की नाफरमानी और गुनाह है बल्कि ये अपने इन आमाल को फक्र की वजह समझते हैं।

उनकी बहुत-सी नाफरमानियों और बद-अख़्लाकियों से हटकर जिन गंदे कामों ने खास तौर से उनमें रिवाज पा लिया था, वे यह थे –
1. बुतपरस्ती और मुशरिकाना रस्म और अकीदे।
2. ख़रीदे बेचने में पूरा लेना और कम तौलना, यानी दूसरे को उसके हक में कम देना और अपने लिए हक के मुताबिक़ लेना, बल्कि उससे ज्यादा।
3. तमाम मामलों में खोट और डाकाजनी।

………. कौमों के आम रिवाज के मुताबिक असल में उनकी सनआसानी, ऐश परस्ती, दौलत की ज़्यादती, जमीन और बालों की जरखेजी और हरियाली ने उनको इतना घमंडी बना दिया था कि वे इन तमाम चीज़ों को अपनी जाती मीरास और अपना खानदानी हुनर समझ बैठे थे और एक लम्हे के लिए भी उनके दिल में यह खतरा नहीं गुज़रता था कि यह सब कुछ अल्लाह की अता और बशिश है कि शुक्रगुज़ार होते और सरकशी से बाज़ रहते, ग़रज़ उनकी खुशहाली ने उनमें तरह-तरह की बद-अख़्लाक़ियां और किस्मकिस्म के ऐब पैदा कर दिए थे।

………. आख़िर हक़ की गैरत हरकत में आई और अल्लाह की सुन्नत के मुताबिक़ उनको हक़ का रास्ता दिखाने, नाफ़रमानियों और ग़लत और गन्दे कामों से बचाने और अमीन व मुत्तकी और अख़्लाक़ वाला बनाने के लिए उन्हीं में से एक हस्ती को चुन लिया और नुबूवत व रिसालत से नवाज़ कर उसको इस्लाम की दावत और हक़ के पैग़ाम का इमाम बनाया। यह हस्ती हजरत शुऐब अलैहि सलाम की जाते गरामी थी।

………. अल्लाह की तौहीद और शिर्क से बेजारी का एतकाद तो तमाम (अलैहिमुस्सलाम) की तालीम की मुश्तरक बुनियाद और असल है जो शुऐब के हिस्से में भी आई थी, मगर कौम की मासूस बद-अख्लानियों पर तवज्जोह दिलाने और उनको सीधे रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने कानून को भी अहमियत दी कि बेचने-खरीदने के मामले में यह हमेशा नजरों में रहना चाहिए कि जो जिसका हक है, वह पूरा-पूरा उसको मिले कि दन्यता मामलों में यही एक ऐसी बुनियाद है जो डगमगा जाने के बाद हर किस्म के जुल्म, फ़िस्क व फुजूर और मुस्लिक खराबियों और बद-अख़्लाक्रियों की वजह बनती है।

………. खुलासा यह है कि हजरत शुऐब अलैहि सलाम ने भी अपनी कौम की बदआमालियों को देखकर बड़ा दुख महसूस किया और रुश्द ब हिदायत की तालीम देते हुए क़ौम को उन्हीं उसूलों की तरफ़ बुलाया जो नबियों की दावत व इर्शाद का खुलासा है –

उन्होंने फ़रमाया : ‘ऐ कौम! एक अल्लाह की इबादत कर, उसके अलावा कोई इबादत के काबिल नहीं है और ख़रीदने-बेचने में नाप-तौल को पूरा रख और लोगों के साथ मामलों में खोट न कर, कल तक मुम्किन है कि तुझको उन बद-अख्लाकीयों और बुराइयों का हाल मालूम न हुआ हो, मगर आज तेरे पास अल्लाह की हुज्जत, निशानी और बुरहान आ चुका, अब जहल व नादानी, अक्ल व दरगुज़र के काबिल नहीं है, हक को कुबूल कर और बातिल से बाज़ आ कि यही कामियाबी और कामरानी की राह है और अल्लाह की जमीन में फ़ित्ना व फ़साद न कर, जबकि अल्लाह तआला ने उसकी सलाह व खैर के तमाम सामान जुटा दिए, अगर तुझमें ईमान व यकीन की सदाक़त मौजूद है तो समझ कि यही फलाह व बहबूदी की राह है और देख ऐसा न कर कि हक की दावत के रास्ते को रोकने और लोगों को लूटने के लिए हर राह पर जा बैठे और जो आदमी भी ईमान ले आए उसको अल्लाह का रास्ता अख्तियार करने पर धमकियां देने लगे और उसमें टेढ़ पैदा करने पर उत्तर आए। ऐ कौम के लोगो! उस वक़्त को याद करो और अल्लाह का एहसान मानो कि तुम बहुत थोड़े थे, फिर उसने अम्न व आफ़ियत देकर तुम्हारी तायदाद को ज्यादा से ज्यादा बढ़ा दिया।

………. ‘ऐ मेरी कौम! जरा इस पर भी गौर कर कि जिन लोगों ने अल्लाह की जमीन में फ़साद फैलाने का तरीका अख्तियार किया था, उनका अंजाम कितना खरतनाक हुआ, और अगर तुममें से एक जमाअत मुझ पर ईमान ले आई और एक जमाअत ईमान नहीं ले आई तो सिर्फ इतनी ही बात पर मामला ख़त्म हो जाने वाला नहीं, बल्कि सब्र के साथ इंतिज़ार कर, यहां तक कि अल्लाह तआला हमारे दर्मियान आखिरी फैसला कर दे और वही बेहतरीन फैसला करने वाला है।’

………. हज़रत शुऐब अलैहि सलाम बड़े फ़सीह व बलीग़ मुरिर (स्पष्ट और उत्साहवर्धक वक्ता) थे। शीरीं कलामी (बातों में मिठास) हुस्ने खिताबत (सुन्दर वक्तव्य) तर्जेबयान (वर्णन-शैली) और तलाक़ते लिसानी (भाषा-विद्वता) में बहुत नुमायां इम्तियाज रखते थे, इसलिए मुफस्सिर (टीकाकार) उनको खतीबुल अंबिया के लकब से याद करते हैं। पस उन्होंने निहायत नर्म-गर्म हर तरीके से रुश्द व हिदायत के ये कलिमे कहे, पर उस बदबख्त क़ौम पर ज़रा भी कोई असर न हुआ और कुछ कमजोर और बूढ़े लोगों के अलावा किसी ने हक़ के पैग़ाम पर कान न धरा, वे खुद भी इसी तरह बद-आमाल (दुष्कर्मी) रहे और दूसरों का रास्ता भी मारते रहे, वे रास्तों में बैठ जाते और हज़रत शुऐब अलैहि सलाम के पास आने जाने वालों को हक कुबूल करने से रोकते और अगर मौका लग जाता तो लोगों को लूट लेते।

………. अगर इस पर भी कोई खुशकिस्मत हक़ पर लब्बैक कह देता, तो उसको डराते-धमकाते और तरह-तरह से टेढ़े रास्ते पर चलने पर आमादा करते, लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद हजरत शुऐब अलैहि सलाम की हक की दावत का सिलसिला बराबर जारी रहा, तो उनमें से बड़े किस्म के लोगों ने, जिन में अपनी शौकत और ताकतवर पर घमंड था, हजरत शुऐब अलैहि सलाम से कहाः ऐ शुऐब! दो बातों में से एक बात ज़रूर होकर रहेगी या हम तुझको और तुझ पर ईमान लाने वालों को अपनी बस्ती में से निकाल देंगे और तेरा देश निकाला करेंगे या तुझको मजबूर करेंगे कि फिर हमारे दीन में वापस आ जाओ।

………. हज़रत शुऐब अलैहि सलाम ने फ़रमाया : ‘अगर हम तुम्हारे दीन को ग़लत और बातिल समझते हों, तब भी जबरदस्ती मान लें, यह तो बड़ा जुल्म है? जबकि हमको अल्लाह तआला ने तुम्हारे उस दीन से नजात दे दी तो फिर उसकी तरफ लौट जाएं, तो इसका मतलब तो यह होगा कि हमने झूठ बोल अल्लाह तआला पर बोहतान बांधा, यह नामुमकिन है। हां, अगर अल्लाह की (जो कि हमारा परवरदिगार है) यही मर्जी हो तो वह जो चाहेगा करेगा। हमारे रब का इल्म तमाम चीज़ों पर छाया हुआ है, हमारा तो सिर्फ उसी पर भरोसा है। ऐ परवरदिगार! तू हमारे और हमारी कौम के दर्मियान हक़ और सजा के साथ फैसला कर दे, तू ही बेहतरीन फैसला करने वाला है।

………. कौम के सरदारों ने जब हज़रत शुऐब अलैहि सलाम का यह अज़्म व इस्तिकलाल देखा तो उन से चेहरा फेर कर अपनी कौम के लोगों से कहने लगा : ‘ख़बरदार! अगर तमने शुऐब का कहना माना तो तुम हलाक व बर्बाद हो जाओगे।

………. हजरत शुऐब अलैहि सलाम ने यह भी फ़रमाया : ‘देखो, अल्लाह तआला ने मुझको इसलिए भेजा है कि मैं अपनी ताक़त पर तुम्हारी इस्लाह की कोशिश करूं और मैं जो कुछ कहता हूं उसकी सदाक़त और सच्चाई के लिए अल्लाह की हुज्जत और दलील और निशानी भी पेश कर रहा हूं। मगर अफ़सोस तम इस वाजेह हुज्जत को देखकर भी सरकशी और नाफरमानी पर क़ायम हो और मुखालफ़त का कोई पहलू ऐसा नहीं है जो तुमसे छूटा हुआ हो, फिर मैं तुमसे अपनी इस रुश्द व हिदायत के बदले में कोई उजरत भी नहीं मांगता और न कोई दुनिया के नफ़ा को तलब कर रहा हूं। मेरा बदला तो अल्लाह के पास है और अगर तुम अब भी न मानोगे, तो मुझे डर है कि कहीं अल्लाह का अज़ाब तुमको हलाक व बर्बाद न कर डाले, उसका फैसला अटल है और किसी की मजाल नहीं कि उसको रद्द कर दे।

………. क़ौम के सरदार त्यौरी चढ़ा कर बोले : शुऐब! क्या तेरी नमाज़ हमसे यह चाहती है कि हम अपने बाप-दादा के देवताओं को पूजना छोड़ दें और उसको अपने माल व दौलत में यह अख्तियार न रहे कि जिस तरह चाहें, मामला करें, अगर हम कम तौलना छोड़ दें, लोगों के कारोबार में खोट न करें तो ग़रीब और खल्लाश होकर रह जाएं पस क्या ऐसी तालीम देने में तुझको कोई संजीदा और सच्चा रहबर कह सकता है?

………. हजरत शुऐब अलैहि सलाम ने बड़ी दिलसोजी और मुहब्बत के साथ फ़रमायाः ऐ कौम! मुझे यह डर लग रहा है कि तेरी ये बेवाकिया और अल्लाह के मुकाबले में नाफरमानियां कहीं तेरा भी वह अंजाम न कर दें, जो तुझसे पहले कौमे नूह, कौमे हूद, क़ौम सालेह और कौमे लूत का हुआ। अब भी कुछ नहीं गया, अल्लाह के सामने झुक जा और अपनी बद-किरदारियों के लिए बख्रिशश का तलबगार बन और हमेशा के लिए उनसे तौबा कर ले। बेशक मेरा परवरदिगार रहम करने वाला और बहुत ही मेहरबान है। वह तेरी तमाम खताएं बख्श देगा।

………. कौम के सरदारों ने यह सुनकर जवाब दिया: ‘शुऐब! हमारी समझ में कुछ नहीं आता कि तू क्या कहता है? तू हम सबसे कमजोर और ग़रीब है। अगर तेरी बातें सच्ची होती, तो तेरी जिंदगी हम सबसे अच्छी होती और हमको सिर्फ तेरे खानदान का डर है, वरना तुझको संगसार करके छोड़ते, तू हरगिज हम पर ग़ालिब नहीं आ सकता।

………. हज़रत शुऐब अलैहि सलाम ने फ़रमाया : ‘अफ़सोस है तुम पर! क्या तुम्हारे लिए अल्लाह के मुकाबले में मेरा ख़ानदान ज़्यादा डर की वजह बन रहा है, हालांकि मेरा रब तुम्हारे तमाम कामों का एहाता किए हुए है और वह दाना व बीना है।’
खैर, अगर तुम नहीं मानते तो तुम जानो, तो वह सब कुछ करते रहो जो कर रहे हो, बहुत जल्द अल्लाह का फ़ैसला बता देगा कि

………. अजाब का हक़दार कौन है और कौन झूठा और काजिब है, तुम भी इन्तिज़ार करो और में भी इन्तिजार करता हूँ। आखिर वही हुआ जो अल्लाह के कानून का अब्दी व सरमदी फैसला है, ‘यानी हुज्जत व बुरहान की रोशनी आने के बाद भी जब बातिल पर इसरार हो और उसकी सच्चाई का मज़ाक उड़ाया जाए और उसकी इताअत में रुकावटें डाली जाएं, तो फिर अल्लाह का अज़ाब इस मुज्रिमाना जिंदगी का खात्मा कर देता है और आने वाली कौमो के लिए उसको इबरत व मौइज़त बना दिया करता है।

अज़ाब की किस्में

कुरआन अज़ीज़ कहता है कि नाफरमानी और सरकशी के बदले में ही शुएब अलैहि सलाम की कौम को दो किस्म के अज़ाब ने आ घेरा. एक ज़लज़ले का अजाब और दूसरा आग की बारिश का अजाब यानी जब वे अपने घरों में आराम कर थे तो यकायक एक हौलनाक ज़लज़ला आया। अभी यह हौलनाकी ख़त्म न हुई थी कि ऊपर से आग बरसने लगी और नतीजा यह निकला कि सुबह को देखने वालों ने देखा कि कल के सरकश और मगरूर आज घुटनों के डर औंधे झुलसे हुए पड़े हैं।

फिर आ पकड़ा उनको ज़लज़ले ने, पस सुबह को रह गए अपने-अपने घरों के अन्दर औंधे पड़े। अल-आराफ 7:78
फिर उन्होंने शुऐब को झुठलाया, पस आ पकड़ा उनको बादल वाले अज़ाब ने (जिसमें आग थी) बेशक वह बड़े होलनाक दिन का अज़ाब था। सूरह अस-शुआरा 26:189

हज़रत शुऐब अल० की कब्र

हजरमौत में एक क़ब्र है, वहां के बाशिदों का दावा है कि यह हज़रत शुऐब अलैहि सलाम की क़ब्र है, जो मदयन की हलाकत के बाद यहां बस गए थे और यहीं उनकी वफ़ात हुई।

सबक़ भरी नसीहतें

1. इस्लाम में बन्दों के हक की हिफ़ाज़त, समाजी दुरुस्तकारी और मामलों में दवानत व अमानत को इस दर्जा अहम समझा गया है कि अल्लाह ने जलीलुलकद्र पैग़म्बर को भेजे जाने का मक्सद इसी को करार दिया और इन्हीं मामलों की इस्लाह के लिए रसूल बनाकर भेजा।

2. खरीदने-बेचने में दूसरे के हक को पूरा न देना इंसानी जिंदगी में ऐसा रोग लगा देता है कि यह बद-अखलाखी बढ़ते-बढ़ते बन्दों के तमाम हक़ों के बारे में हक़ मारने की खसलत पैदा कर देती है और इस तरह इंसानी शराफ़त और आपसी भाईचारा और मुहब्बत के रिश्ते को काट करके लालच, लोभ, खुदगर्जी और कंजूसी जैसे ख़राब कामों वाला बना देती है।

3. नाप-तौल में इंसाफ़ सिर्फ चीज़ों के ख़रीदने-बेचने तक महदूद नहीं है, बल्कि इंसानी किरदार का यह कमाल होना चाहिए कि अल्लाह और उसके बन्दे के तमाम हक़ और फ़र्ज़ में इस असल को काम की बुनियाद बनाए और किसी मौके पर किसी हालत में भी अद्ल व इंसाफ़ के तराजू को हाथ से जाने न दे।

4. ख़रीदने-बेचने के दर्मियान नाप-तौल में कमी न करना और इंसान को बाक़ी रखना, गोया एक कसौटी है कि जो इंसानी जिंदगी के मामूली लेन-देन में अद्ल व इंसाफ़ नहीं बरतता, उससे क्या उम्मीद हो सकती है कि वह अहम दीनी और दुनियावी मालों में अद्ल व इंसाफ़ को काम में लाएगा।

5. सुधार के बाद अल्लाह की ज़मीन में फ़साद पैदा करने से बढ़कर कोई जुर्म नहीं है, इसलिए कि जुल्म, किब्र, कत्ल और इस्मतरेज़ी जैसे बड़े-बड़े जुर्मों की बुनियाद और असल यही रज़ीला (गन्दे और घटिया काम) हैं।

6. नबियों और उनके मानने वालों की जिंदगी के पढ़ने से पता चलता है कि नबियों के रोशन दलील देने, आयातुल्लाह यानी अल्लाह की निशानियां दिखाने, मुहब्बत और रहम के जज्बो को जाहिर करने और अपनी दावत व तब्लीग पर किसी किस्म का अज्र तलब न करने का इत्मीनान दिलाते रहे हैं मगर इसके बावजूद दूसरी तरफ यानी बातिल पर कायम रहने वालों की तरफ़ से यही जबाव मिलता रहा है कि तमको संगसार कर दिया जाएगा, क़त्ल कर दिया जाएगा। अल्लाह के पैगम्बर के वजूद तक को बरदाश्त नहीं किया गया और यहां तक कहा गया कि अगर सच्चे हो तो जिस अज़ाब से डराते हो, वह अभी ले आओ, वरना तो हमेशा के लिए तुम्हारा और तुम्हारे मिशन का ख़ात्मा कर दिया जाएगा।

7. हक़ व बातिल का यही वह आखिरी मरहला है जिसके बाद अल्लाह तआला का वह कानून जिसको ‘अमल के बदले का कानून’ कहा जाता है, ऐसी सरकश और तकब्बुर भरी कौमों के लिए दुनिया ही में लागू हो जाता है और उनको हलाक व तबाह करके आने वाली नस्लों और क़ौमों के लिए इबरत और नसीहत का सामान जुटा देता है।

हज़रत शुऐब का ज़िक्र कुरआन पाक में

कुरआन हकीम में हजरत शुऐब अलैहि सलाम और उनकी कौम का तज़किरा सूरह आराफ, सूरह हूद और सूरह शुअरा में कुछ तफ्सील से किया गया है और सूरह हिज्र व सूरह अंकबूत में थोड़े में है।

इंशाअल्लाह अगले पार्ट में हम हज़रत मूसा और हारून अलैहि सलाम तज़किरा करेंगे।

To be continued …

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हज़रत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 4) | Qasas ul Anbiya: Part 19 https://ummat-e-nabi.com/yusuf-alaihis-salam-part-4/ https://ummat-e-nabi.com/yusuf-alaihis-salam-part-4/#respond Thu, 19 Oct 2023 01:28:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=25811 Prophet Yusuf Alaihi Salam Story in hindi part 4युसूफ अलैहि सलाम का भाइयों को हकीकत बताना, याकूब अलैहि सलाम का ख़ानदान मिस्र में
वफ़ात, अहम अख़्लाक़ी बातें ...

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हजरत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 4)
Qasas ul Anbiya: Part 19

युसूफ अलैहि सलाम का भाइयों को हकीकत बताना

बहरहाल हज़रत याकूब अलैहि सलाम ने अपने बेटों से फ़रमाया : ‘देखो, एक बार फिर मिस्र जाओ और यूसफ़ और उसके भाई की तलाश करो और अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद और मायूस न हो, इसलिए कि अल्लाह की रहमत से ना उम्मीदी काफिरों का शेवा है।’

यूसुफ के भाइयों ने तीसरी बार फिर मिस्र का इरादा किया और शाही दरबार में पहुंच कर अपनी परेशानी बयान की और खुसूसी लुक व करम की दरख्वास्त भी की। हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने परेशानी का हल सुना तो दिल भर आया और आपसे जब्त न हो सका कि खुद को छिपाएं और राज़ जाहिर न होने दें। आख़िर फरमाने लगे-

क्यों जी, तुम जानते हो कि तुमने यूसफ और उसके भाई के साथ क्या मामला किया, जबकि तुम जिहालत में डूबे हुए थे? यूसुफ़ 12:89

भाइयों ने यह उम्मीद के ख़िलाफ़ सुनकर कहा –

क्या तूम वाकई यूसुफ़ ही हो? यूसुफ 12:98

हजरत यूसुफ ने जवाब दिया-

हां, मैं यूसुफ हूं और यह (बिनयमीन) मेरा मांजाया भाई है। अल्लाह ने हम पर एहसान किया और जो आदमी भी बुराइयों से बचे और (मुसीबतों में) साबित कदम रहे, तो अल्लाह नेक लोगों का अज्र बर्बाद नहीं करता। यूसुफ 12:98

यूसुफ़ के भाई यह सुनकर कहने लगे –

ख़ुदा की कसम, इसमें शक नहीं कि अल्लाह तआला ने तुझको हम पर बरतरी व बुलन्दी बख्शी और बेशक हम पूरी तरह कुसूरवार थे। यूसुफ़ 12:91

हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम ने अपने सौतले भाइयों की खस्ताहाली और पशेमानी को देखा तो पैगम्बराना रहमत और दरगुज़र के साथ फ़ौरन फ़रमाया-

आज के दिन मेरी ओर से तुम पर कोई फटकार नहीं। अल्लाह तुम्हारा कुसूर बख्शे और वह तमाम रहम करने वालों से बढ़कर रहम करने वाला है। यूसुफ़ 12:92

हज़रत यूसुफ ने यह भी फ़रमाया-

अब तुम कनान वापस जाओ और मेरी पैरहन लेते जाओ, यह वालिद की आंखों पर डाल देना, इन्शाअल्लाह यूसुफ की खुश्बू उनकी आँखों को रोशन कर देगी और तमाम खानदान को मिस्र ले आओ। यूसुफ 12:93

इधर यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों का काफिला कनआन को यूसुफ़ का पैरहन लेकर चला, तो उधर हजरत याकूब को वह्य इलाही ने यूसुफ़ की खुश्बू से महका दिया।

फ़रमाने लगे, ऐ याकूब के खानदान! अगर तुम यह न समझो कि  बुढ़ापे में उसकी अक्ल मारी गई है, तो मैं यक़ीन के साथ कहता हूं कि मुझको युसूफ की महक आ रही है। वे सब कहने लगे, ‘खुदा की कसम! आप तो अपने पुराने खत में पड़े हो, यानी इस कदर मुद्दत गुजर जाने के बाद भी, जबकि उस का नाम व निशान भी बाक़ी नहीं रहा, तुम्हें यूसुफ़ ही की रट लगी हुई है।’

कनआन का क़ाफ़िला वापस पहुंचा, तो वही हुआ जिसकी ओर हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने इशारा किया था-

फिर जब बशारत देने वाला आ पहुंचा, तो उसने यूसफ़, के परहन को याकूब के चेहरे पर डाल दिया, पस उसकी आंखें रोशन हो गयी, याकूब अलैहि सलाम ने कहा, क्या मैं तुमसे न कहता था कि मैं अल्लाह की ओर से वो बात जानता हूं, जो तुम नहीं जानते। यूसुफ 12:96

यूसुफ के भाइयों के लिए यह वक्त बहुत कठिन था, शर्म व नदामत हूवे हुए, सर झुकाये हुए बोले, ऐ बाप! आप अल्लाह की जनाब में हमारे गुनाहों की मगफिरत के लिए दुआ फरमाइए, बेशक हम ख़ताकार और कुसूरवार हैं।

हज़रत याकूब अलैहि सलाम ने फ़रमाया-

बहुत जल्द मैं अपने रब से तुम्हारी मगफिरत की दुआ करूँगा बेशक वह बड़ा बख्शने वाला, रहम करने वाला है। यूसुफ़ 12:98

याकूब अलैहि सलाम का ख़ानदान मिस्र में

………. ग़रज़ हज़रत याकूब अलैहि सलाम अपने सब खानदान को लेकर मिस्र रवाना हो गए। तौरात के मुताबिक मित्र आने वाले सत्तर लोग थे। जब हज़रत युसूफ अलैहि सलाम को इतिला हुई कि उनके वालिद ख़ानदान समेत शहर के करीब पहुंच गए तो वह फौरन इस्तेकबाल के लिए बाहर निकले। हजरत याकूब अलैहि सलाम ने एक लम्बी मुद्दत के बाद बेटे को देखा तो सीने से चिमट लिया। हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने वालिद से अर्ज किया कि अब आप इज्जत व एहतराम और अम्न व हिफाजत के साथ शहर में तशरीफ़ ले चलें।

………. हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने वालिद माजिद और तमाम ख़ानदान को शाही सवारियों में बिठा कर शहर और शाही महल में उतारा। इसके बाद एक दरबार सजाया गया। हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम के वालिद को शाही तख़्त पर जगह दी गई। इसके बाद खुद हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम शाही तख्त पर बैठे। उस वक्त दरबारी हुकूमत के दस्तूर के मुताबिक तख्त के सामने ताजीम के लिए सज्दे में गिर पड़े। (ताज़ीम का यह तरीका शायद पिछले नबियों की उम्मत में जायज रहा हो।

लेकिन नबी अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस किस्म की ताजीम को अपनी उम्मत के लिए हराम करार दिया है और उसको जाते इलाही ही के लिए महसूस बनाया है) यूसुफ़ अलैहि सलाम के तमाम ख़ानदान वालों ने भी यही अमल किया। यह देखकर हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम को अपने बचपन का जमाना याद आ गया और अपने वालिद से कहने लगे –

और यूसुफ़ ने कहा, ऐ बाप! यह है तासीर उस ख्वाब की जो मुद्दत हुई, मैंने देखा था, मेरे परवरदिगार ने उसे सच्चा साबित कर दिया। यूसुफ 12:100

ऊपर के वाक्रियात के अच्छे खात्मे से मुतास्सिर होकर यूसुफ़ अलैहि सलाम बे-अख्तियार हो गए और अल्लाह की जनाब में इस तरह दुआ की-

ऐ परवदिगार! तूने मुझे हुकूमत अता फरमाई और बातों का मतलब और नतीजा निकालना तालीम फ़रमाया। ऐ आसमान व जमीन के बनाने वाले! तू ही मेरा कारसाज है, दुनिया में भी और आख़िरत में भी। तो यह भी कीजियो कि दुनिया से जाऊं तो तेरी फ़रमांबरदारी की हालत में जाऊं और उन लोगों में दाखिल हो जाऊं जो तेरे नेक बन्दे हैं। यूसुफ 12:101

तौरात के मुताबिक इस वाकिए के बाद हजरत यूसुफ़ का तमाम ख़ानदान मिस्र ही में आबाद हो गया।


वफ़ात:

तारीखी हवालो से कहा जाता है की, हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम ने अपनी जिंदगी के लम्बे अर्से को मिस्र ही में गुजारा और जब उनकी उम्र 110 साल की हुई तो उनकी वफ़ात हो गई तो हुनूत (मम्मी) करके ताबूत में महफूज रख दिया और उनकी वसीयत के मुताबिक जब मूसा के जमाने में बनी-इसराईल मिस्र से निकले तो उस ताबूत को भी साथ ले गए और अपने बाप-दादा की सरज़मीन ही में ले जाकर सुपुर्दे खाक कर दिया। बताया गया है कि इनकी क़ब्र नाबलस के आस-पास है, यह कनआन का इलाका है जिस पर अब इसराईल का कब्जा है। (अल्लाहु आलम)


अहम अख़्लाक़ी बातें:

1. अगर किसी आदमी का निजी मिजाज उम्दा हो और उसका माहौल भी पाक, मुक़द्दस, और लतीफ़ हो, तो उस आदमी की जिंदगी असलाके करीमाना में नुमायां और अच्छी सिफ़तों में मुम्ताज़ होगी और वह हर किस्म के शरफ व मज्द का हामिल होगा।

2. अगर किसी आदमी में अल्लाह पर ईमान मजबूत और साफ़-सुथरा हो और उस पर यकीन पक्का और मजबूत हो तो फिर इस राह की तमाम परेशानियां और मुश्किलें उस पर आसान बल्कि आसानतर हो जाती हैं और हक़ देख-समझ लेने के बाद तमाम ख़तरे और मुसीबतें बेकार हो कर रह जाती हैं।

3. इब्तिला और आजमाइश मुसीबत व हलाकत की शक्ल में हो या दोलत व सरवत और नफ़्सानी अस्वाब की सूरत में, हर हालत में इंसान को अल्लाह की जानिब ही रुजू करना चाहिए और उसी से इल्तिजा करनी चाहिए कि वह हक़ मामले पर साबित कदम रखे।

4. जब अल्लाह तआला की मुहब्बत दिल की गहराइयों में उतर जाता है, तो फिर इंसान की जिंदगी का तमामतर मक्सद वही बन जाता है और उसके दीन की दावत व तब्लीग का जस्बा हर वक्त रग-रग में दौड़ता रहता है।

5. दयानत और अमानत एक ऐसी नेमत है कि उसको इंसान को दीनी दुनियावी सआदतों की कुंजी कहना चाहिए।
खुदएतमादी इंसान की बुलन्द सिफ़तों से एक बड़ी सिफत है। अल्लाह ने जिस शख्स को यह दौलत दी है, वहीं दुनिया की मुसीबतों और दुखो से गुजर कर दुनिया और दीन दोनों की बुलन्दियों को हासिल कर सकता है।

7. सब्र एक शानदार ‘खुल्क’ है और बहुत-सी बुराइयों के लिए सबर और ढाल का काम देता है। कुरआन करीम में सबसे ज़्यादा जगहों पर उसकी फजीलत का एलान किया गया है और अल्लाह तआला ने ऊंचे रुत्बे और बुलंद दर्जे का मदार इसी फजीलत पर रखा है।

8. तक्लीफ़ पहुंचाने वाले भाइयों की नदामत के वक्त सब्र का अख्तियार करना यानी दिल की युस्अत का सबूत है।

9. बेहतरीन अख़्लाक में शुक्र भी सबसे बेहतर अख़्लाक़ है, इसलिए यह अल्लाह के अख़्लाक में सबसे बुलन्द है।

10. हसद (जलन) और बुग्ज़ (द्वेष) का अंजाम हसद करने वाले और बुग्ज़ रखने वाले के हक़ ही में नुक्सानदेह होता है और अगरचे कभी जिससे हसद और बुग्ज़ किया गया है, उसको भी दुनिया का नुक्सान पहुंच जाना मुम्किन है, लेकिन हसद करने वाला किसी हाल में भी फलाह नहीं पाता और वह दुनिया और आख़िरत में घाटा उठाने वाला जैसा हो जाता है, अलावा इसके कि तौबा कर ले और हसद वाली जिंदगी को छोड़ दे।

11. सदाकत, दयानत, अमानत, सब्र और शुक्र जैसी ऊंची सिफ़तों वाली जिंदगी ही हकीक़ी और कामयाब जिंदगी है और अगर इंसान में ये सिफ़तें नहीं पाई जातीं, तो फिर वह इंसान नहीं, बल्कि हैवान है, बल्कि उससे भी बुरा ।

हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की पूरी जिंदगी ऊपर लिखे अखलाकी मसलों पर गवाह है और इस दुआ के लिए दावत दे रही है –

ऐ आसमानों और जमीन के पैदा करने वाले! तू ही दुनिया और आखिरत में मेरा मददगार है, तू मुझे अपनी इताअत पर मौत दीजियो और नेक लोगों के साथ शामिल कीजियो। यूसुफ़ 12:101

इंशाअल्लाह अगले पार्ट में हम हज़रत शोएब अलैहि सलाम औरक़ौम तज़किरा करेंगे.

To be continued …

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हज़रत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 3) | Qasas ul Anbiya: Part 18 https://ummat-e-nabi.com/yusuf-alaihis-salam-part-3/ https://ummat-e-nabi.com/yusuf-alaihis-salam-part-3/#respond Wed, 18 Oct 2023 00:48:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=25805 Prophet Yusuf Alaihi Salam Story in hindi part 3हज़रत युसूफ अलैहि सलाम की बेगुनाही का साबित होना, अजीजे मिस्र के ख्वाब ताबीर, अकाल और याकूब अलैहि सलाम का ख़ानदान ...

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हजरत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 3)
Qasas ul Anbiya: Part 18

युसूफ अलैहि सलाम की बेगुनाही का साबित होना

साक्री ने यह सब मामला बादशाह के सामने जा सुनाया। बादशाह ने ख्वाब की ताबीर का मामला देखकर कहा कि ऐसे आदमी को मेरे पास लाओ। जब बादशाह का दूत हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम के पास पहुंचा तो हजरत यूसुफ ने कैदखाने से बाहर आने से इंकार कर दिया और फरमाया कि इस तरह तो मैं जाने को तैयार नहीं हूं, तुम अपने आका के पास जाओ और उससे कहो कि वह यह जांच करे कि इन औरतों का मामला क्या था, जिन्होंने हाथ काट लिए थे? पहले यह बात साफ़ हो जाए कि उन्होंने कैसी कुछ मक्कारियां की थीं और मेरा परवरदिगार तो उनकी मक्कारियों को खूब जानता है।

………. ग़रज बादशाह ने जब यह सुना तो उन औरतों को बुलवाया और उनसे कहा कि साफ़-साफ़ और सही-सही बताओ कि इस मामले की सही हक़ीक़त क्या है, जबकि तुमने यूसुफ़ पर डोरे डाले थे, ताकि तुम उसको अपनी तरफ़ मायल कर लो? वह एक जुबान होकर बोलीं –

बोली: माशाअल्लाह! हमने इसमें बुराई की कोई बात नहीं पाई। यूसुफ 12:51

मज्मा में अजीज की बीवी भी थी और अब वह इश्क व मुहब्बत की मट्टी में ख़ाम न थी, कुन्दन थी और जिल्लत व रुस्वाई के डर से आगे निकल चुकी थी। उसने जब यह देखा कि यूसुफ़ अलैहि सलाम की ख्वाहिश है कि हक़ीकते हाल सामने आ जाए तो बे-अख्तियार बोल उठी –

जो हक़ीक़त थी, वह अब जाहिर हो गई, हा.. वह मैं ही थी, जिसने यूसुफ़ पर डोरे डाले कि अपना दिल हार बैठे। बेशक वह (अपने बयान में) बिल्कुल सच्चा है।' यूसुफ 12:51

इस तरह अब वह वक्त आ गया कि तोहमत लगाने वालों की जुबान से ही साफ़ हो जाए, चुनांचे वाजेह और जाहिर हो गया यानी शाही दरबार में मुजिरमों ने जुर्म का एतराफ़ करके यह बता दिया कि यूसुफ़ अलैहि सलाम का दामन हर किस्म की आलूदगियों से पाक है।


अजीजे मिस्र के ख्वाब ताबीर

अजीजे मिस्र पर जब हकीकत वाजेह हो गई तो उसके दिल में हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की अजमत व जलालत का सिक्का बैठ गया, वह कहने लगा –

उसको (जल्द) मेरे पास लाओ कि मैं उसको खास अपने कामों के लिए मुकर्रर करूं। यूसुफ 12:51

अजीजे मिस्र के इस हुक्म की तामील में हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम बादशाह के दरबार में तशरीफ़ लाए, तो अजीजे मिस्र ने कहा –

बेशक आज के दिन तू हमारी निगाहों में बड़े इक्तिदार का और अमानतदार है। यूसुफ़ 12:54

और उनसे मालूम किया कि मेरे ख्वाब में अकाल का ज़िक्र है, उसके बाद में मुझको क्या-क्या उपाय करने चाहिए। हजरत यूसुफ़ ने जवाब दिया –

अपने राज्य के ख़ज़ानों पर आप मुझे मुख्तार (अख्तियार वाला) कर दीजिए, मैं हिफाजत कर सकता हूं और मैं इस काम का जानने वाला है। यूसुफ़ 12:55

……… चुनांचे बादशाह ने ऐसा ही किया और हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम को अपने पूरे राज्य का मुकम्मल ज़िम्मेदार बना दिया और शाही ख़जाने की कुजियां उनके हवाले करके मुख़्तारे आम कर दिया। इसीलिए अल्लाह तआला ने अज़ीज के कारोबार का मुख्तार बनाकर यूसुफ़ अलैहि सलाम के लिए यह फ़रमाया था कि हमने उसको ‘तम्कीन फ़िल अर्जि‘ (ज़मीन का पूरा मालिक के मुख्तार) अता कर दी। सूरः यूसुफ़ में ‘तम्कीन फ़िल अर्जि’ की खुशखबरी दो बार सुनाई गई है। ग़रज़ हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने मिस्र राज्य के मुख्तारे कुल होने के बाद ख्वाब से मुताल्लिक वे तमाम तदबीरें शुरू कर दी जो चौदह साल के अन्दर फायदेमंद हो सकें और अवाम अकाल के दिनों में भी भूख और परेशानहाली से बची रह सके।


अकाल और याकूब अलैहि सलाम का ख़ानदान

गरज जब अकाल का ज़माना शुरू हुआ तो मिस्र और उसके आस-पास के इलाके में सनत अकाल पड़ा और कनआन में हजरत याकूब अलैहि सलाम ने साहबजादों से कहा कि मिस्र में अजीजे मिस्र ने एलान किया है कि उसके पास ग़ल्ला हिफ़ाजत से रखा हुआ है, तुम सब जाओ और ग़ल्ला खरीद कर लाओ। चुनांचे बाप के हुक्म के मुताबिक यह कनानी क़ाफ़िला मिस्र के अजीज से ग़ल्ला लेने के लिए मिस्र रवाना हुआ।

और यूसुफ़ के भाई (गल्ला ख़रीदने मिस) आए। वे जब यूसुफ के पास पहुंचे तो उसने फ़ौरन उनको पहचान लिया और वे यूसुफ़ को नपहचान सके।' यूसुफ़ 12:58

……… तौरात का बयान है कि यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों पर जासूसी का इलज़ाम लगाया गया और इस तरह उनको यूसुफ़ अलैहि सलाम के सामने हाज़िर होकर आमने-सामने बात करने का मौक़ा मिला और उन्होंने अपने बाप (हजरत याकूब अलैहि सलाम, सगे भाई बिन यमीन) और घर के हालात को खूब कुरेद-कुरेद कर पूछा और –

और जब यूसुफ़ ने उनका सामान मुहैया कर दिया तो कहा, अब आना तो अपने सौतेले भाई बिन यमीन को भी साथ लाना। तुमने अच्छी तरह देख लिया है कि मैं तुम्हें (गल्ला) पूरी तौल देता हूं और बाहर से आने वालों के लिए बेहतर मेहमान नवाज हूं, लेकिन अगर तुम उसे मेरे पास न लाए तो फिर याद रखो, न तुम्हारे लिए मेरे पास खरीद व फरोख्त होगी, न तुम मेरे पास जगह पाओगे।' यूसुफ़ 12:59-60

फिर यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाई जब हज़रत यूसुफ़ से रुख्सत होने आए, तो उन्होंने अपने नौकरों को हुक्म दिया कि ख़ामोशी के साथ उनके कजावों में उनकी वह पूंजी भी रख दो जो उन्होंने ग़ल्ले की कीमत के नाम से दी है, ताकि जब घर जाकर उसको देखें, तो अजब नहीं कि फिर दोबारा आएं। जब यह क़ाफ़िला कनआन वापस पहुंचा तो उन्होंने अपने तमाम हालात अपने बाप याकूब अलैहि सलाम को सुनाए और उनसे कहा कि मिस्र के वली (ज़िम्मेदार मालिक) ने साफ़-साफ़ हमसे कह दिया है कि उस वक्त तक यहां न आना और न ग़ल्ले की खरीद का ध्यान करना, जब तक कि अपने सौतेले भाई बिन यमीन को साथ न लाओ, इसलिए अब आपको चाहिए कि उनको हमारे साथ कर दें, हम उसके हर तरह के निगहबान और हिफाजत करने वाले हैं। इस मौके पर हजरत याकूब अलैहि सलाम ने कहा-

कहा, क्या मैं तुम पर (बिन यमीन) के बारे में ऐसा ही एतमाद करू जैसा कि इससे पहले उसके भाई (यूसुफ़) के बारे में कर चुका हूं, सो अल्लाह ही बेहतरीन हिफाजत करने वाला है और वह ही सबसे बढ़कर रहम करने वाला है। यूसुफ़ 12:64

इस बात-चीत से फ़ारिग होने के बाद अब उन्होंने अपना सामान खोलना शुरू किया, तो देखा, उनकी पूंजी उन्हीं को वापस कर दी गई है। यह वे कहने लगे, ऐ बाप! इससे ज़्यादा और क्या हमको चाहिए? इजाजत दें कि हम दोबारा उसके पास जाएं और घर वालों के लिए रसद: और बिन यमीन को भी हमारे साथ भेज दे, हम उसकी पूरी हिफाजत करेंगे।

हज़रत याकूब ने फरमाया कि मैं ‘बिन यमीन’ को हरगिज़ तुम्हारे साथ नहीं भेजूंगा, जब तक तुम अल्लाह के नाम पर मुझसे अहद न करो। अहद व पैमान के बाद यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों का काफ़िला दोबारा मिस्र को रवाना हुआ और इस बार बिन यमीन भी साथ था। हज़रत याकूब अलैहि सलाम ने उनको रुखसत करते वक्त नसीहतें फरमाई –

फिर जब ये मिस्र में उसी तरह दाखिल हुए जिस तरह उनके बाप ने उनको हुक्म दिया, तो यह (एहतियात) उनको अल्लाह की मशीयत के मुकाबले में कुछ काम न आई, मगर यह एक ख्याल था याकूब के जी में जो उसने पूरा कर लिया और बेशक वह इल्म वाला था और हमने ही उसको यह इल्म सिखाया था, लेकिन अक्सर लोग नहीं समझते। यूसुफ 12:68

इस बीच यह सूरत पेश आई कि जब यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाई कनआन से रवाना हुए, तो रास्ते में बिन यमीन को तंग करना शुरू कर दिया। कभी उसको बाप की मुहब्बत का ताना देते और कभी इस बात पर हसद करते कि अज़ीजे मिस्र ने ख़ास तौर पर उसको क्यों बुलाया है और जब ये लोग मंज़िले मक्सूद पर पहुंचे तो –

और जब ये सब यूसुफ के पास पहुंचे तो उसने अपने भाई (बिन यमीन) को अपने पास बिठा लिया और उससे (धीरे से) कहा, मैं तेरा भाई (यूसुफ) हूं पस जो बदसुलूकी ये तेरे साथ करते आए हैं, तू उस पर गमगीन न हो। यूसुफ़ 12:69

कनानी काफिला कुछ दिनों के क्रियाम के बाद जब रुखसत होने लगा तो यूसुफ अलैहि सलाम ने हुक्म दिया कि उनके ऊंटों को इस कदर लाद दो, जितना ये ले जा सकें। हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की यह ख्वाहिश थी कि किसी तरह अपने प्यारे भाई ‘बिन यमीन’ को अपने पास रोक लें, लेकिन मिस्र की हुकूमत के कानून के मुताबिक किसी गैर-मिस्री को बगैर किसी माकूल वजह के रोक लेना सख्त मना था और हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम उस वक़्त हकीक़त खोलना नहीं चाहते थे, इसलिए जब क़ाफ़िला रवाना होने लगा तो किसी को इत्तिला किए बगैर शाही पैमाने को बिन यमीन की खुरजी में रख दिया, (ताकि भाई के पास एक निशानी रहे।)

……… कनान के इस क़ाफ़िले ने अभी थोड़ा ही फ़ासला तै किया होगा कि यूसुफ़ अलैहि सलाम के कारिंदों ने शाही बरतनों की देख-भाल की, तो उसमें प्याला न मिला, समझे कि शाही महल में कन्आनियों के सिवा दूसरा कोई नहीं आया, इसलिए उन्होंने ही चोरी की है, फ़ौरन दौड़े और चिल्लाए।

फिर पुकारा पुकारने वाले ने, ऐ काफ़िले वालो! तुम तो अलबत्ता चोर हो। वे कहने लगे उनकी ओर मुंह करके तुम्हारी क्या चीज़ गुम हो गई? वे कारिन्दे बोले, हम नहीं पाते बादशाह (यूसुफ़) का पैमाना (कटोरा) और जो कोई उसको लाए उसको मिले एक ऊंट का बोझ (ग़ल्ला) और मैं हूं उसका जामिन। वे बोले, ख़ुदा की कसम! तुमको मालूम है कि हम शरारत करने को नहीं आए मिस्र के मुल्क में और न हम कभी चोर थे। वे (कारिंदे) बोले, फिर क्या सज़ा है उसकी अगर तुम निकले झूठे। कहने लगे, उसकी सज़ा यह है कि जिनके सामानों में हाथ आए, वही उसके बदले में जाए। हम यही सजा देते हैं जालिमों को। यूसुफ़ 12:71-75

इस मरहले के बाद यह मामला अज़ीजे मिस्र के सामने पेश हुआ और उनकी तलाशी ली गई तो बिन यमीन के कजाये में वह प्याला मौजूद था।

फिर यूसुफ़ ने उनकी खुर्जियां देखनी शुरू की। आखिर में वह बरतन निकाला अपने भाई की खुरजी से।यूसुफ़ 12:76

इसके बाद अल्लाह तआला फ़रमाता है-

यों खुफ़िया तदबीर कर दी हमने यूसुफ़ के लिए। वह हरगिज़ न ले सकता या अपने भाई यमीन को उस बादशाह (मिस्र) के तरीके के मुताबिक, मगर यह कि अल्लाह तआला ही चाहे। यूसुफ़ 12:76

इस तरह ‘बिन यमीन’ को मिस्र में रोक लिया गया और यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों ने जब यह रंग देखा तो बाप का अहद व पैमान याद आ गया और खुशामद भरे अर्ज-मारून करके अजीज़े मिस्र को बिन-यमीन की वापसी की तर्गीब दिलाई। यह तरीक़ा भी कामियाब न हो सका तो आपस में मश्विरे से पाया कि वालिद बुजुर्गवार को सही सूरत बतला दी जाए और कहा कि वे इस वाकिये की तस्दीक दूसरे क़ाफ़िले वालों से भी कर लें। इस मशविरे के मुताबिक यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाई कनआन वापस आए और हज़रत याकूब अलैहि सलाम से बिना घटाए-बढ़ाए सारा वाकिया कह सुनाया।

……… हज़रत याकूब यूसुफ़ के मामले में उनकी सदाक़त का तजुर्बा कर चुके थे, इसलिए फ़रमाया ‘तुम्हारे जी ने एक बात बना ली है, वाकिया यों नहीं है, बिन यमीन और चोरी? यह नहीं हो सकता, खैर अब सब्र के सिवा कोई चारा नहीं, ऐसा सब्र कि बेहतर से बेहतर हो। अल्लाह तआला के लिए नामुम्किन तो नहीं कि एक दिन हम लोगों को फिर जमा कर दे और एक साथ इन दोनों को मुझसे मिला दे। बेशक वह दाना है और हिक्मत वाला है और उनकी ओर से रुख कर लिया और फ़रमाने लगे- ‘आह! यूसुफ की जुदाई का ग़म!

……… हज़रत याकूब अलैहि सलाम की आंखें ग़म की ज़्यादती की वजह से रोते-रोते सफेद पड़ गई थीं और सीना ग़म की जलन से जल रहा था, मगर सब्र के साथ अल्लाह पर तवक्कुल किए बैठे थे।

बटे यह हाल देखकर कहने लगे, ‘खुदा की कसम! तुम हमेशा इसी तरह यूसुफ़ की याद में घुलते रहोगे या इसी ग़म में जान दे दोगे!

हज़रत याकूब ने यह सुनकर फ़रमाया, मैं कुछ तुम्हारा शिकवा तो नहीं। करता और न तुमको सताता हूं।

बल्कि मैं तो अपनी हाजत और ग़म अल्लाह को बारगाह में अर्ज करता हूँ। में अल्लाह की ओर से वह बात जानता हूं, जो तुम नही जानते। यूसुफ 12:86

इंशा अल्लाह, अगले पार्ट में हम देखेंगे युसूफ अलैहि सलाम की सच्चाई का अपने भाइयों और वालिद के सामने जाहिर होना।

To be continued …

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हज़रत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 2) | Qasas ul Anbiya: Part 17 https://ummat-e-nabi.com/yusuf-alaihis-salam-part-2/ https://ummat-e-nabi.com/yusuf-alaihis-salam-part-2/#respond Mon, 16 Oct 2023 21:49:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=25798 Yusuf aur zulaikha story in hindi part 2हज़रत युसूफ अलैहि सलाम, अज़ीज़े मिस्र की बीवी जुलेखा और यूसुफ (अ.), यूसुफ़ अलैहि सलाम जेल में, कैदखाने में दावत व तब्लीग, अजीजे मिस्र का ख्वाब ...

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हजरत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 2)
Qasas ul Anbiya: Part 17

अज़ीज़े मिस्र की बीवी जुलेखा और यूसुफ (अ.) 

………. कुएं में डाले जाने और गुलामी के बाद अब हज़रत यूसुफ़ की एक और आज़माइश शुरू हुई, वह यह कि हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की जवानी का आलम था। हुस्न और खूबसूरती का कोई ऐसा पहलू न था जो उनके अन्दर मौजूद ना हो। अजीजे मिस्र की बीवी दिल पर काबू न रख सकी और यूसुफ़ अलैहि सलाम पर परवानावार निसार होने लगी, मगर नुबूवत के लिए मुंतखब आदमी से भला यह कैसे मुम्किन था कि अज़ीज़ की बीवी के नापाक इरादों को पूरा करे। कुरआन में पेश आने वाले वाकिए का ज़िक इस तरह से है –

और फुसलाया यूसुफ को उस औरत ने, जिसके घर में वह रहते थे, उसके नफ़्स के मामले में और दरवाजे बन्द कर दिए और कहने लगी, आ मेरे पास आ।' यूसुफ़ ने कहा, 'अल्लाह की पनाह।' यूसुफ़ 12:23

बहरहाल हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम दरवाजे की तरफ़ भागे तो अजीज की बीवी ने पीछा किया और दरवाज़ा किसी तरह खुल गया। सामने अजीजे मिस्र और औरत का चचेरा भाई खड़े थे। अज़ीजे मिस्र की बीवी बोली –

कहने लगी उस शख्स की सज़ा क्या है जो तेरे अहल के साथ बुराई का इरादा रखता हो, मगर यह कि कैद कर दिया जाए या दर्दनाक अजाब में मुब्तला किया जाए। यूसुफ़ ने कहा, इसी ने मुझको मेरे नफ़्स के बारे में फुसलाया था और फैसला किया औरत के ही घराने के एक बच्चे ने कि अगर यूसुफ़ का पैरहन सामने से चाक है तो औरत सच्ची है और यूसुफ़ झूठा है और अगर पीछे से चाक है तो औरत झूठी है और यूसुफ़ सच्चा है। पस जब उसकी कमीज़ को देखा गया तो पीछे से चाक था, कहा, बेशक ऐ औरत: यह तेरे मक्र व फरेब से है। बेशक तुम्हारा मक्र बहुत बड़ा है। यूसुफ़! तू इस मामले से दरगुजर कर और ऐ औरत! तू अपने गुनाह की माफ़ी मांग, तू बेशक खताकार है।' यूसूफ 12:25-29

अज़ीजे मिस्र ने अगरचे फ़ज़ीहत और रुस्वाई से बचने के लिए इस मामले को यहीं पर ख़त्म कर दिया, मगर बात छिपी न रह सकी। कुरआन मजीद में आता है –

और (जब इस मामले का चर्चा फैला) तो शहर की कुछ औरतें कहने लगीं, देखो अजीज की बीवी अपने गुलाम पर डोरे डालने लगी उसे रिझा ले, वह उसकी चाहत में दिल हार गई हमारे ख्याल में तो बदचलनी में पड़ गई। पस जब अजीज़ की बीवी ने इन औरतों की बातों को सुना, तो उनको बुलावा भेजा और उनके लिए मस्नदें तैयार की और (दस्तूर के मुताबिक) हर एक को एक-एक छुरी पेश कर दी, फिर यूसुफ़ से कहा, सबके सामने निकल आओ। जब यूसुफ़ को इन औरतों ने देखा तो बड़ाई की कायल हो गईं, उन्होंने अपने हाथ काट लिए और (बे-अलिया पुकार उठी, यह तो इंसान नहीं, ज़रूर एक फ़रिश्ता है, बड़े रुतबेवाला फ़रिश्ता। (अज़ीज की बीवी) बोली : तुमने देखा, यह है वह आदमी जिस के बारे में तुमने मुझे ताने दिए। यूसुफ़ 12:30-38

अज़ीज़ की बीवी ने यह भी कहा कि बेशक मैंने उसका दिल अपने काम में लेना चाहा था, मगर वह बे-काबू न हुआ, मगर मैं कहे देती हूं कि अगर इसने मेरा कहा न माना तो यह होकर रहेगा कि वह कैद किया जाए और बेइज्जती में पड़े।

हज़रत यूसुफ़ ने जब यह सुना और फिर अजीजे मिस्र की बीवी के अलावा और सब औरतों के चरित्र अपने बारे में देखे तो अल्लाह के हुजर हाथ फैलाकर दुआ की और कहने लगे –

यूसुफ़ ने कहा, ऐ मेरे पालनहार! जिस बात की तरफ़ ये मुझको बुलाती है, मुझे उसके मुकाबले में कैदखाने में रहना ज़्यादा पसन्द है. और अगर तूने उनके मक्र को मुझसे न हटा दिया और मेरी मदद न की, तो मैं कहीं उनकी ओर झुक न जाऊं और नादानों में से हो जाऊं। पस उसके रब ने उसकी दुआ कुबूल की और उससे उनका मक्र हटा दिया। बेशक वह सुन वाला, जानने वाला है। यूसुफ़ 12:33-35

अब अजीजे मिस्र ने यूसुफ़ अलैहि सलाम की तमाम निशानियां देखने और समझने के बाद अपनी बीवी की फजीहत व रुसवाई होती देखकर यह तय कर ही लिया कि यूसुफ को एक मुद्दत के लिए कैदखाने में बन्द कर दिया जाए, ताकि यह मामला लोगों के दिलों से निकल जाए, ये चर्चे बन्द हो जाएं, इस तरह हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम को जेल जाना पड़ा।


यूसुफ़ अलैहि सलाम जेल में:

………. तौरात में है कि यूसुफ़ अलैहि सलाम के इल्मी और अमली जौहर कैदखाने में भी न छिप सके और कैदखाने का दारोगा उनके हलका-ए-इरादत में दाखिल हो गया और जेल का तमाम इन्तिजाम व इन्सिराम उनके सुपुर्द कर दिया और वह कैदखाने के बिल्कुल मुख्तार हो गए।


कैदखाने में दावत व तब्लीग:

………. एक अच्छा इत्तिफ़ाक देखिए कि हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम के साथ दो नवजवान और कैदखाने में दाखिल हुए। उनमें से एक शाही साकी था और दूसरा था शाही बावर्चीखाने का दारोगा। एक दिन दोनों नवजवान हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम की खिदमत में हाज़िर हुए और उनमें से साक़ी ने कहा कि मैंने यह ख्वाब देखा है कि मैं शराब बनाने के लिए अंगूर निचोड़ रहा हूं और दूसरे ने कहा, मैंने यह देखा है कि मेरे सर पर रोटियों का ख्यान है और परिंदे उसे खा रहे हैं।

यह सुनकर हज़रत यूसुफ़ ने फ़रमाया: बेशक अल्लाह तआला ने जो बातें मुझे तालीम फ़रमाई हैं, उनमें से एक इल्म यह भी अता फरमाया है। मैं इससे पहले कि तुम्हारा मुक़र्रर खाना तुम तक पहुंचे, तुम्हारे ख्वाबों की ताबीर बता दूंगा, मगर तुमसे एक बात कहता हूं, जरा इस पर भी गौर करो और समझो-बूझो।

ऐ मज्लिस के साथियो! (तुमने इस पर भी गौर किया कि) जुदा-जुदा माबूदों का होना बेहतर है या एक अल्लाह का जो अकेला और सब पर ग़ालिब है। तुम इसके सिवा जिन हस्तियों की बन्दगी करते हो, उनकी हकीकत इससे ज़्यादा क्या है कि सिर्फ कुछ नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं। हुकूमत तो अल्लाह ही के लिए है। उसका फरमान यह है कि सिर्फ़ उसकी बन्दगी करो और किसी की न करो, यही सीधा दीन है, मगर अक्सर आदमी ऐसे हैं जो नहीं जानते। यूसुफ 12:39-40

रुश्द व हिदायत के इस पैग़ाम के बाद हजरत यूसुफ़ उनके ख्वाबों की ताबीर की तरफ मुतवजह हुए और फ़रमाने लगे-
‘दोस्तो! जिसने देखा है कि वह अंगूर निचोड़ रहा है, वह फिर आजाद होकर बादशाह के साथी की ख़िदमत अंजाम देगा और जिसने रोटियों वाला ख्वाब देखा है, उसको सूली दी जाएगी और परिदै उसके सर को नोच-नोच कर खाएंगे।’

हज़रत यूसुफ़ जब ख्वाब की ताबीर से फ़ारिग हो गए तो साक्री से, यह समझकर कि वह नजात पा जाएगा, फ़रमाने लगे, ‘अपने बादशाह से मेरा जिक्र करना।’ साक्री को जब रिहा किया गया तो उसको अपनी मशगुलियतों में कुछ भी याद न रहा और कुछ साल तक और यूसुफ़ को जेल में रहना पड़ा।


अजीजे मिस्र का ख्वाब:

………. हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम अभी जेल ही में थे कि वक़्त के अजीजे मिस्र ने एक ख्वाब देखा कि सात मोटी गाएं हैं और सात दुबली गाँये, दुबली गाएं मोटी गायों को निगल गई और सात सरसब्ज व शादाब बालियां हैं और सात सूखी बालियों ने हरी बालियों को खा लिया। बादशाह सुबह उठा और फ़ौरन दरबार के मुशीरों से अपना ख्वाब कहा। दरबारी इस ख्वाब को सुनकर ताज्जुब में पड़ गए। इस बीच साक्री को अपना ख्वाब और हज़रत यूसुफ़ की दी हुई ताबीर का वाकिया याद आ गया। उसने बादशाह की खिदमत में अर्ज किया कि अगर कुछ मोहलत दीजिए तो मैं उसकी ताबीर ला सकता हूं। बादशाह की इजाजत से वह कैदखाना पहुंचा और हजरत यूसुफ़ को बादशाह का ख्वाब सुनाया और कहा कि आप इसको हल कीजिए।

हज़रत यूसुफ़ ने उसी वक्त ख्वाब की ताबीर दी और सही तदबीर भी बतला दी जैसा कि कुरआन में जिक्र किया गया है –

कहा, तुम खेती करोगे सात बरस जम कर, सो जो काटो उसको छोड़ दो उसकी बाली में, मगर थोड़ा-सा जो तुम खाओ, फिर आएंगे इसके बाद सात वर्ष सख्ती के खा जाएंगे जो रखा तुमने उसके वास्ते मगर थोड़ा तो रोक रखोगे बीज के वास्ते, फिर आएगा, एक वर्ष उसके पीछे उसमें वर्षा होगी लोगों पर और उसमें रस निचोड़ेंगे।' यूसुफ़ 12:47-49

To be continued …

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हज़रत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 1) | Qasas ul Anbiya: Part 16 https://ummat-e-nabi.com/yusuf-alaihis-salam/ https://ummat-e-nabi.com/yusuf-alaihis-salam/#respond Sun, 15 Oct 2023 20:38:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=25794 Yayuf Alaihi Salam story in hindi Part 1हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम का ख़ानदान, ख्वाब और यूसुफ़ के भाई, कनान का कुंवां, यूसुफ अलैहि सलाम और गुलामी ...

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हजरत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 1)
Qasas ul Anbiya: Part 16

ख़ानदान

हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम हज़रत याकूब अलैहि सलाम के बेटे और हजरत इब्राहिम अलैहि सलाम के पड़पोते हैं।

उनको यह शरफ़ हासिल है कि वह ख़ुद नबी, उनके वालिद नबी, उनके दादा नबी और परदादा हज़रत इब्राहीम अबुल अंबिया (नबियों के बाप) हैं।

कुरआन में इनका जिक्र छब्बीस बार आया है और इनको यह भी फक्र हासिल है कि इनके नाम पर एक सूरः (सूरः यूसुफ़) कुरआन में मोजूद है जो सबक और नसीहत का बेनज़ीर जखीरा है, इसीलिए कुरआन मजीद में हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम के वाकिए को ‘अहसनुल कसस’ कहा गया है।


हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम का ख्वाब और यूसुफ़ के भाई

………. शुरू जिंदगी ही से हज़रत यूसुफ़ की दिमागी और फ़ितरी इस्तेदाद दूसरे भाइयों के मुकाबले में बिल्कुल जुदा और नुमायां थी। साथ ही हजरत याकूब अलैहि सलाम यूसुफ़ अलैहि सलाम की पेशानी का चमकता हुआ नूरे नुबूवत पहचानते और अल्लाह की वह्य के ज़रिए इसकी इत्तिला पा चुके थे।

इन्ही वजह से वे अपनी तमाम औलाद में हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम से बेहद मुहब्बत रखते थे और यह मुहब्बत यूसुफ़ के भाइयों से बेहद शाक़ और नाकाबिले बरदाश्त थी।

………. और वे हर वक्त इस फ़िक्र में लगे रहते थे कि या तो हज़रत याकूब के दिल से इस मुहब्बत को निकाल डालें और या फिर यूसफ़ ही को अपने रास्ते से हटा दें, ताकि किस्सा पाक हो जाए। इन भाइयों के हसद पर ख्यालात को जबरदस्त ठेस उस वक्त लगी, जब यूसफ़ अलैहि सलाम ने एक ख्वाब देखा कि ग्यारह सितारे और सूरज व चांद उनके सामने सज्दा कर रह है। हजरत याकूब अलैहि सलाम ने यह ख्वाब सुना तो सख्ती के साथ उनको मना कर दिया कि अपना यह ख्वाव किसी के सामने न दोहराना, ऐसा न हो कि ” सुनकर तेरे भाई बुरी तरह पेश आएं, क्योंकि शैतान इंसान के पीछे लगा है। और तेरा ख्वाब अपनी ताबीर में बहुत साफ और वाजेह है, लेकिन हसद की भड़कती हुई आग ने एक दिन यूसुफ के भाइयों को उनके खिलाफ साजिश करने मजबूर कर ही दिया।

'उनमें से एक ने कहा, यूसुफ को क़त्ल न करो और उसको गुमनाम कुएं में डाल दो कि उठा ले जाए उसको कोई मुसाफिर, अगर तुमको करना ही है।' युसूफ 12:10

इस मशवरे के बाद सब जमा होकर हजरत याकूब की खिदमत में हाजिर हुए और कहने लगे-

'(ऐ बाप!) क्या बात है कि तुमको यूसुफ के बारे में हम पर एतमाद नहीं है, हालांकि हम उसके खैरख्वाह हैं।' यूसुफ 12:11

हजरत याकूब समझ गए कि उनके दिलों में खोट है।

'याकूब ने कहा, मुझे इससे रंज और दुख पहुंचता है कि तुम इसको (अपने साथ ले जाओ और मुझे यह डर है कि उसको भेड़िया खा जाए और तुम गाफिल रहो।' यूसुफ 12:13

यूसुफ के भाई ने यह सुनकर एक जुबान होकर कहा-

'अगर खा गया इसको भेड़िया, जबकि हम सब ताकतवर हैं, तो बेशक इस शक्ल में तो हमने सब कुछ गंवा दिया।' यूसुफ 12:14

कनान का कुंवां

………. ग़रज यूसुफ अलैहि सलाम के भाई यूसुफ़ को सैर कराने के बहाने ले गए और मश्विरे के मुताबिक उसको एक ऐसे कुएं में डाल दिया, जिसमें पानी न था और मुद्दत से सूखा पड़ा था और वापसी में उसकी कमीज को किसी जानवर के खून में तर करके रोते हुए हजरत याकूब अलैहि सलाम के पास आए और कहने लगे, ‘ऐ बाप! अगरचे हम अपनी सच्चाई का कितना ही यकीन दिलाएं, मगर तुमको हरगिज़ यकीन न आएगा कि हम दौड़ में एक दूसरे से आगे निकलने में लगे हुए थे कि अचानक यूसुफ को भेड़िया उठाकर ले गया।

………. हजरत याक्रूब अलैहि सलाम ने यूसुफ़ के लिबास को देखा तो खून से लथपथ था, मगर किसी एक जगह से भी फटा हुआ न था और न चाक दामां था, फौरन हकीक़त भांप गए मगर भड़कने, तान व तकनीम करने और नफ़रत व हकारत का तरीका बजाए पैग़म्बराना इल्म व फरासत के साथ यह बता दिया कि हकीकत की कोशिश के बावजूद तुम उसे छिपा न सके।


यूसुफ अलैहि सलाम और गुलामी

………. इधर ये बातें हो रही थीं, उधर हिजाजी इस्माईलियों का एक काफिला शाम से मिस्र को जा रहा था। कुंवां देखकर उन्होंने पानी के लिए डोल डाल यूसुफ को देखकर जोश से शोर मचाया “बशारत हो एक गुलाम हाथ आया।”

………. ग़रज इस तरह हजरत यूसुफ को इस्माईली ताजिरों के काफिले ने अपना गुलाम बना लिया और तिजारत के माल के साथ उनको भी मिस ले गए और बाजार में रिवाज के मुताबिक़ बेचने के लिए पेश कर दिया।

उसी वक़्त शाही ख़ानदान का एक रईस और मिस्री फ़ौजों का अफसर फ़ोतीफार बाजार से गुजर रहा था। उसने उनको खरीद लिया और अपने घर लाकर बीबी से कहा –

देखो! इसको इज्जत से रखो, कुछ अजब नहीं कि यह हमको फायदा बख्शे या हम इसको अपना बेटा बना लें।' यूसुफ 12:21

फ़ोतीफार ने हजरत यूसुफ़ को औलाद की तरह इज्जत व एहतराम से रखा और अपने तमाम मामले और दूसरी जिम्मेदारियां उनके सुपुर्द कर दीं। यह सब कुछ अल्लाह की मंशा के मुताबिक हो रहा था।

'और इसी तरह जगह दी हमने यूसुफ को उस मुल्क में और इस वास्ते कि उसको सिखाएं बातों का नतीजा और मतलब निकालना और अल्लाह ताकतवर रहता है अपने काम में, लेकिन अक्सर आदमी ऐसे हैं जो नहीं जानते।' यूसुफ 12:21

इंशा अल्लाह, अगले पार्ट में अजीजे मिस्र की बीवी जुलेखा और युसूफ अलैहि सलाम के वाकिये पर गौर करेंगे.

To be continued …

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हज़रत याकूब अलैहि सलाम | Qasas ul Anbiya: Part 15 https://ummat-e-nabi.com/yaqub-alaihis-salam/ https://ummat-e-nabi.com/yaqub-alaihis-salam/#comments Sun, 15 Oct 2023 14:24:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=25787 Yaqub Alaihi Salam story in hindiहज़रत याकूब अलैहि सलाम, नाम और ख़ानदान, हज़रत याकूब का जिक्र कुरआन में ...

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हजरत याकूब अलैहि सलाम
Qasas ul Anbiya: Part 15

नाम और ख़ानदान:

हजरत याकूब अलैहि सलाम, हज़रत इसहाक्र के दूसरे बेटे और हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के पोते हैं। इबरानी भाषा में हजरत याकूब का नाम इसराईल है। यह “इसरा‘ (अन्द, गुलाम) और ईल (अल्लाह) दो शब्दों में बना है और अरबी में इसका तर्जुमा अब्दुल्लाह किया जाता है।

इसी वजह से हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम के बेटे हजरत इस्हाक्र अलैहि सलाम से जुड़ा खानदान जो हजरत याकूब अलैहि सलाम यानी इसराईल की नस्ल से है, बनी इसराईल कहलाता है।

हज़रत याकूब का जिक्र कुरआन में:

कुरान में हजरत याकूब अलैहि सलाम का नाम दस जगह आया है। सूरः यूसुफ़ में जगह-जगह जमीरों और औसाफ़ के लिहाज से, कुछ दूसरी सूरतों में औसाफ़ के एतबार से उनका तज़किरा मौजूद है, असल में कुरआन पाक हज़रत याकूब अलैहि सलाम के जलीलुल-कद्र नबी, साहिबे सब्र व अजीमत और हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम के बुजुर्ग बाप होने की तरफ़ तवज्जोह दिलाता है।

हज़रत याकूब अलैहि सलाम अल्लाह के बरगजीदा पैग़म्बर थे और कन्आनियों के लिए भेजे गए थे। उन्होंने वर्षों इस खिदमत को अंजाम दिया। उनके बारह लड़के थे। खुद उनका और उनकी औलाद का जिक्र, हजरत यूसुफ़ से जुड़ा हुआ है, इसलिए तफसीलात हजरत यूसुफ़ के जिक्र में मौजूद हैं, जो आगे आता है।

To be continued …

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हज़रत लूत अलैहि सलाम | Qasas ul Anbiya: Part 14 https://ummat-e-nabi.com/loot-alaihi-salam/ https://ummat-e-nabi.com/loot-alaihi-salam/#respond Sat, 14 Oct 2023 00:12:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=25494 हज़रत लूत अलैहि सलाम | Loot Alaihi Salam: Qasas-ul-Ambiya Series in Hindi: Post 11हज़रत लूत व इब्राहीम अलैहि सलाम, मिस्र से वापसी, कौमे लूत, हज़रत लूत और तब्लीगे हक, हजरत इब्राहीम और अल्लाह के फ़रिश्ते,

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हजरत लूत अलैहि सलाम
Qasas ul Anbiya: Part 14

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

हज़रत लूत व इब्राहीम अलैहि सलाम:

हजरत लूत हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के भतीजे हैं और उनका बचपन हज़रत इब्राहीम ही की निगरानी में गुजरा और उनकी नशरोनुमा हजरत इब्राहीम ही व तर्बियत में हुई।

मिस्र से वापसी:

हज़रत लूत अलैहि सलाम और उनकी बीवी हजरत इब्राहीम की हिजरत मे हमेशा उनके साथ रहे हैं और जब हजरत इब्राहीम मिस्र में थे, तो उस वक्त भी यह हमसफ़र थे। मिस्र से वापसी पर हजरत इब्राहीम फ़लस्तीन में आबाद हुए और हजरत लूत ने शर्के उर्दुन के इलाके में सुकूनत अख्तियार की। इस इलाके में दो मशहूर बस्तियां सदूम और आमूरा थीं।

कौमे लूत:

हज़रत लूत अलैहि सलाम ने जब शर्के उर्दुन (ट्रांस जॉर्डन) के इलाके में सदूम आ कर कियाम किया तो देखा कि यहां बाशिंदे फ़वाहिश और मासियतों में इतने पड़े हुए हैं कि दुनिया में कोई बुराई ऐसी न थी जो उनमें मौजूद न हो। दूसरे ऐबों और फहश कामों के अलावा यह क़ौम एक ख़बीस अमल में मुब्तेला थी, यानी अपनी नफ़्सानी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए वे औरतों के बजाए अमरद लड़कों से ताल्लुकात रखते थे।

दुनिया की कौमों में उस वक्त तक इस अमल का क़तई रियाज न था। यही बदबख्त कौम है जिसने नापाक अमल की ईजाद की और इससे भी ज़्यादा शरारत, ख़बासत बेहयाई यह थी कि वे अपनी बदकिरदारी को ऐब नहीं समझते बल्कि ऐलानिया फ़न व मुबाहात के साथ उसको करते रहते थे।

'और (याद करो) लूत का वाकिया जब उसने अपनी क़ौम से कहा, क्या तुम ऐसे फ़हश काम में लगे हुए हो जिसको दुनिया में तुमसे पहले किसी ने नहीं किया, यह कि बेशक तुम औरतों के बजाए अपनी शहवत को मर्दो से पूरी करते हो, यक़ीनन तुम हद से गुजरने वाले हो।' अल-आराफ 7 : 80-81

हज़रत लूत और तब्लीगे हक:

….. इन हालात में हज़रत लूत अलैहि सलाम ने उनको उनकी बेहयाइयों और ख़बासतों पर मलामत की और शराफ़त और तहारत की जिंदगी की रग्बत दिलाई और नर्मी के साथ जो मुस्किन तरीके हो सकते थे, उनसे उनको समझाया और पिछली कौम की बदआमालियों के नतीजे बताकर इबरत दिलाई, मगर उन पर बिल्कुल असर न हुआ, बल्कि कहने लगे

'लूत की क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि कहने लगे इन (लूत और उसके खानदान) को अपने शहर से निकाल दो। ये बेशक बहुत ही पाक लोग हैं। आराफ़ 7:72

….. ‘बेशक ये पाक लोग हैं’, कौमे लूत का यह मज़ाकिया जुम्ला था, गोया हज़रत लूत अलैहि सलाम और उनके खानदान पर तंज करते और उनका ठट्ठा उड़ाते थे कि बड़े पाकबाज़ हैं, इनका हमारी बस्ती में क्या काम या मेहरबान नसीहत करने वाले की मेहरबान नसीहत से गैज़ व ग़ज़ब में आकर कहते थे कि अगर हम नापाक और बेहया हैं और वे बड़े पाकबाज़ हैं, तो इनका हमारी बस्ती से क्या वास्ता, इनको यहां से निकालो।

….. हजरत लूत अलैहि सलाम ने फिर एक बार भरी महफ़िल में उनको नसीहत की और फ़रमाया, ‘तुमको इतना भी एहसास नहीं रहा है कि यह समझ सको कि मर्दो के साथ बेहयाई का ताल्लुक, लूट-मार और इसी किस्म की बद-अखलाकियां बहुत बुरे आमाल हैं, तुम यह सब कुछ करते हो और भरी महफ़िलों और मजलिसो में करते हो और शर्मिंदा होने के बजाए बाद में उनका ज़िक्र इस तरह करते हो कि गोया ये कारे नुमायां हैं जो तुमने अंजाम दिए हैं।

क्या तुम वहीं नहीं हो कि तुम मर्दो से बदअमली करते हो, लोगों की राह मारते हो और अपनी मजलिसो में और घर वालों के सामने फहश काम करते हो। अल-अनकबूत 29:29

….. कौम ने इस नसीहत को सुना तो ग़म व गुस्से से तिलमिला उठी और कहने लगी, लूत! बस ये नसीहतें और इबरतें खत्म कर और अगर हमारे उन आमाल से तेरा खुदा नाराज़ है तो वह अज़ाब ला कर दिखा, जिसका जिक्र करके बार-बार हमको डराता है और अगर तू वाकई अपने कौल में सच्चा है तो हमारा और तेरा फ़ैसला अब हो जाना ही जरूरी है।

'पस उस (लूत) की क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि वे कहने लगे, तू हमारे पास अल्लाह का अज़ाब ले आ, अगर तू सच्चा है।' अल-अनकबूत 29:29

हजरत इब्राहीम और अल्लाह के फ़रिश्ते:

….. इधर यह हो रहा था और दूसरी तरफ़ हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के साथ यह वाकिया पेश आया कि हज़रत इब्राहीम जंगल में सैर कर रहे थे उन्होंने देखा कि तीन लोग खड़े हैं। हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम बड़े मुतवाज़े और मेहमान नवाज़ थे और हमेशा उनका दस्तरख्वान मेहमानों के लिए फैला रहता था, इसलिए इन तीनों को देखकर वह बहुत खुश हुए और उनको अपने घर ले गए और बछड़ा जिब्ह करके तिक्के बनाए और भून कर मेहमानों के सामने पेश किए, मगर उन्होंने खाने से इंकार किया। यह देखकर हज़रत इब्राहीम ने समझा कि ये कोई दुश्मन हैं जो दस्तूर के मुताबिक़ खाने से इंकार कर रहे हैं और कुछ डरे कि ये आखिर कौन हैं?

….. मेहमानों ने जब हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की बेचैनी देखी तो उनसे हँस कर कहा कि आप घबराएं नहीं। हम अल्लाह के फ़रिश्ते हैं और कौमे लूत की तबाही के लिए भेजे गए हैं, इसलिए सदूम जा रहे हैं।

….. जब हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम को इत्मीनान हो गया कि ये दुश्मन नहीं हैं, बल्कि अल्लाह के फ़रिश्ते हैं, तो अब उनके दिल की रिक्क़त, हमदर्दी का जज्बा और मुहब्बत व शफ़क़त की फ़रावानी ग़ालिब आई और उन्होंने लूत अलैहि सलाम की ओर से झगड़ना शुरू कर दिया और फ़रमाने लगे कि तूम उस कौम को कैसे बर्बाद करने जा रहे हो, जिसमें लूत अलैहि सलाम जैसा अल्लाह का बरगजीता नबी मौजूद है और वह मेरा भतीजा भी है।

….. फ़रिश्ते ने कहा, हम यह सब कुछ जानते हैं, मगर अल्लाह का यह फैसला है कि कौमे लूत को अपनी सरकशी, बदअमली, बेहयाई और फहश वालों पर इसरार की वजह से जरूर हलाक की जाएगी और लूत और उसका खानदान इस अज़ाब से महफूज रहेगा, अलबत्ता लूत की बीवी क़ौम की हिदायत और उनकी बद-आमालियों और बदअक़ीदगियों में शिरकत की वजह से क़ौमे लूत ही के साथ अज़ाब पाएगी।

….. ग़रज हजरत लूत अलैहि सलाम के हक पहुंचाने, भलाइयों का हुक्म देने और बुराइयों से मना करने का क़ौम पर मुतलक कुछ असर न हुआ और वह अपनी बद-अख़्लाक्रियों पर वैसे ही जमी रही। हज़रत लूत अलैहि सलाम ने यहां तक गैरत दिलाई कि तुम इस बात को नहीं सोचते कि मैं रात-दिन जो इस्लाम और सीधे रास्ते की दावत और पैग़ाम के लिए तुम्हारे साथ हैरान व परेशान हूं, क्या कभी मैंने इस कोशिश का कोई मुआवजा तलब किया, क्या कोई उजरत मांगी, किसी नज्र  व नियाज का तलबगार हुआ। मेरी नज़रों में तो तुम्हारी दीनी व दुनियावी फलाह व सआदत इस के सिवा और कुछ भी नहीं है, मगर तुम हो कि जरा भी तवज्जोह नहीं करते।

….. मगर उनके अंधेरे दिलों पर इस कहने का तनिक भर भी असर न हुआ और वे हजरत लूत अलैहि सलाम को निकाल देने और पत्थर मार-मार कर हलाक कर देने की धमकियां देते रहे। जब नौबत यहां तक पहुंची और उनकी बुरी किस्मत ने किसी तरह अख़्लाक़ी जिंदगी पर आमादा न होने दिया, तब उनको भी वही पेश आया जो अल्लाह के बनाए हुए कानूने जजा का यकीनी और हतमी फैसला है, यानी बद किरदारियों और इसरार की सजा बर्बादी या हलाकत। ग़रज अल्लाह के फ़रिश्ते हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के पास से रवाना होकर सदूम पहुंचे और लूत अलैहि सलाम के यहां मेहमान हुए। ये अपनी शक्ल व सूरत में हसीनखूबसूरत और उम्र में नवजवान लड़कों की शक्ल व सूरत के थे। हजरत लूत ने उन मेहमानों को देखा तो घबरा गए और डरे कि बदबख्त क़ौम मेरे इन मेहमानों के साथ क्या मामला करेगी, क्योंकि अभी तक उनको यह नहीं बताया गया था कि ये अल्लाह के पाक फ़रिश्ते हैं।

….. अभी हज़रत लूत अलैहि सलाम इस हैस-बैस में थे कि कौम को ख़बर लग गई और लूत अलैहि सलाम के मकान पर चढ़ आए और मुतालबा करने लगे कि तुम इसको हमारे हवाले करो। हज़रत लूत ने बहुत समझाया और कहा, क्या तुम में कोई भी ‘सलीमुल फ़िरत इंसान’ नहीं है कि वह इंसानियत को बरते और हक को समझे? तुम क्यों इस लानत में गिरफ्तार हो और नफ़्सानी ख्वाहिश पूरी करने के लिए फ़ितरी तरीका छोड़कर और हलाल तरीकों से औरतों को जीवन-साथी बनाने की जगह इस मलऊन बेहयाई पर उतर आए हो? ऐ काश! मैं ‘रुक्ने शदीद’ की जबरदस्त हिमायत कर सकता!

….. हज़रत लूत अलैहि सलाम की इस परेशानी को देखकर फ़रिश्तों ने कहा, आप हमारी जाहिरी शक्लो को देखकर घबराइए नहीं, हम अज़ाब के फ़रिश्ते हैं और अल्लाह के कानून ‘जज़ा-ए-अमाल‘ का फैसला इनके हक में अटल है, वह अब इनके सर से टलने वाला नहीं। आप और आप का ख़ानदान अज़ाब से बचा रहेगा, मगर आपकी बीवी बेहयाओं के साथ रहेगी और तुम्हारा साथ न देगी।

….. आखिर अजाबे इलाही का वक़्त आ पहुंचा, रात शुरू हुई तो फ़रिश्तो के इशारे पर हजरत लूत अलैहि सलाम अपने ख़ानदान समेत दूसरी ओर से निकल कर सदूम से रुख्सत हो गए और बीवी ने उनका साथ देने से इंकार कर दिया और रास्ते से ही लौट कर सदूम वापस आ गई, रात का आख़िर आया तो पहले जो एक हौलनाक चीख़ ने सदूम वालों को तह व बाला कर दिया और फिर आबादी का तख्ता ऊपर उठाकर उलट दिया गया और ऊपर से पत्थरों की बारिश ने उनका नाम व निशान तक मिटा दिया और वही हुआ जो पिछली कौम की नाफरमानी और सरकशी का अंजाम हो चुका है।

To be continued …

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हज़रत इसहाक अलैहि सलाम | Qasas ul Anbiya: Part 13 https://ummat-e-nabi.com/ishaq-alaihi-salam/ https://ummat-e-nabi.com/ishaq-alaihi-salam/#respond Thu, 12 Oct 2023 20:50:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=22641 Ishaq Alaihi Salam Story in Hindiहज़रत इसहाक अलैहि सलाम : पैदाइश, ख़त्ना, इस्हाक़ अलैहि सलाम की शादी, इस्हाक़ अलैहि सलाम का जिक्र कुरआन में ...

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हजरत इसहाक अलैहि सलाम
Qasas ul Anbiya: Part 13

पैदाइश:

हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम की उम्र सौ साल हुई तो अल्लाह तआला उनको बशारत सुनाई कि सारा अलैहि सलाम के पेट से भी तेरे एक बेटा होगा, उसका नाम इस्हाक रखना और कुरआन में है:

'पस हमने उसको इस्हाक़ की और उसके बाद (उसके और याकूब की बशारत दी। सारा कहने लगी, क्या मैं निगोड़ी बुढ़िया जनूंगी और जबकि यह इब्राहीम मेरा शौहर भी बूढ़ा है, वाक़ई यह तो बहुत अजीब बात है। फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू अल्लाह के हुक्म पर ताज्जुब करती है? ऐ अहले बैत! तुम पर अल्लाह की बरकत व रहमत हो। बेशक अल्लाह तआला हर तरह हम्द के काबिल है और है बहुत बुजुर्ग।' सूरह हूद 11:71-73
'इब्राहीम ने कहा, क्या तुम मुझको इस बुढ़ापा आ जाने पर भी बशारत देते हो, यह कैसी बशारत दे रहे हो? फ़रिश्तों ने कहा, हम तुझको हक़ बात की बशारत दे रहे हैं, पस तू नाउम्मीद होने वालों में से न हो। इब्राहीम ने कहा और नहीं नाउम्मीद होते अपने परवरदिगार की रहमत से, मगर गुमराह ।' अल-हिज 15:51-56

ख़त्ना:

हज़रत इस्हाक अलैहि सलाम जब आठ दिन के हुए तो हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने उनकी खतना करा दी।

इस्हाक़ अलैहि सलाम की शादी:

तौरात के एतबार से हज़रत इस्हाक अलैहि सलाम की शादी हज़रत इब्राहीम के भतीजे की बेटी से हुई और उससे उनके यहां दो बेटे ईसू और याकूब पैदा हुए। ईसू की शादी हज़रत इस्माईल अलैहि सलाम की साहबज़ादी बश्शामा या महल्लात से हुई और हजरत याकूब अलैहि सलाम अपने मामू के यहां व्याहे गए।

इस्हाक़ अलैहि सलाम का जिक्र कुरआन में:

कुरआन पाक में हजरत इस्हाक़ अलैहि सलाम का जिक्र सूरः अंबिया, सूरः मरयम, सूरः हूद और सूरः साफ़्फ़ात में आया है।

इंशा अल्लाह अगली पोस्ट में हम लूत अलैहि सलाम का तफ्सील में ज़िक्र करेंगे।

To be continued …

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हजरत इस्माईल अलैहि सलाम | Qasas ul Anbiya: Part 12 https://ummat-e-nabi.com/ismail-alaihi-salam/ https://ummat-e-nabi.com/ismail-alaihi-salam/#respond Wed, 11 Oct 2023 20:40:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=22637 Ismail Alaihi Salam Story in Hindiहजरत इस्माईल अलैहि सलाम पैदाइश, बंजर घाटी और हाजरा व इस्माईल, आबे जमजम का चश्मा, सुनसान वादी में अरब कौम की शुरुवात, नेक बीवी का किरदार, खतना, बाप और बेटे की क़ुरबानी, काबा की बुनियाद, कुरआन में हज़रत इस्माईल का तज्किरा, हज़रत इस्माईल की वफ़ात ...

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हजरत इस्माईल अलैहि सलाम
Qasas ul Anbiya: Part 12

पैदाइश:

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने मिस्र से वापसी पर फ़लस्तीन में रिहाइश इख़्तियार की। इस इलाके को ‘कनआन‘ भी कहा जाता है।

….. हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम उस वक्त तक औलाद से महरूम थे। तौरात के मुताबिक हजरत इब्राहीम ने अल्लाह की बारगाह में बेटे के लिए दुआ की और अल्लाह ने उनकी दुआ को कुबूल फ़रमा लिया और उनको तसल्ली दी। यह दुआ इस तरह कुबूल हुई कि हजरत इब्राहिम अलैहि सलाम की छोटी बीवी मोहतरमा हजरत हाजरा (र.) हामिला हुईं।

जब हज़रत सारा को यह पता चला तो उन्हें बशर के तक़ाजे के तौर पर रश्क पैदा हो गया। इस सूरतेहाल से मजबूर होकर हज़रत हाजरा उनके पास से चली गईं। तौरात के मुताबिक़ उनका गुज़र एक ऐसी जगह पर हुआ, जहां एक कुंवां था। उस जगह वह फ़रिश्ते से हमकलाम हुईं और कुंवें का नाम ‘जिंदा नज़र आने वाले का कुंवां’ रखा। थोड़े दिनों बाद हज़रत हाजरा के बेटा पैदा हुआ और फ़रिश्ते की बशारत के मुताबिक़ उसका नाम इस्माईल रखा गया।


बंजर घाटी और हाजरा व इस्माईल:

हज़रत इस्माईल अलैहि सलाम की पैदाइश के बाद के हालात बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अच्वास (र. अ.) से नकल की गई रिवायत में इस तरह बयान हुए हैं –

‘…. इब्राहीम अलैहि सलाम हजारा और दूध पीते बच्चे इस्माईल को लेकर चले और जहां आज काबा है, उस जगह एक बड़े पेड़ के नीचे जमजम की मौजूदा जगह से ऊपरी हिस्से पर उनको छोड़ गए, वह जगह वीरान और गैर-आबाद थी और पानी का नाम व निशान न था, इसलिए इब्राहीम अलैहि सलाम ने एक मश्क पानी और एक थैली खजूर भी उनके पास छोड़ दी और फिर मुंह फेर कर रवाना हो गए। हाजरा अलैहि सलाम उनके पीछे-पीछे यह कहते हुए चलीं, ऐ इब्राहीम! तुम हमको ऐसी घाटी में कहां छोड़कर चल दिए, जहां न आदमी है और ना बच्चा और न कोई मूनिस व ग़मवार। हाजरा बराबर यह कहती जाती थी, मगर इब्राहीम अलैहि सलाम ख़ामोश चले जा रहे थे। आखिर हाजरा ने मालूम किया क्या अल्लाह ने तुमको यह हुक्म दिया है? तब हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम फ़रमायाः ‘हां! अल्लाह के हुक्म से है।’

हाजरा अलैहि सलाम ने जब यह सुना तो कहने लगी, अगर यह अल्लाह का हुक्म है तो बेशक वह हम को जाया और बर्बाद नहीं करेगा और फिर वापस लौट आईं। इब्राहीम अलैहि सलाम चलते-चलते जब एक टीले पर ऐसी जगह पहुंचे की उनके घर वाले निगाह से ओझल हो गए, तो उस वादी की ओर (जहां आज काबा है), रुख किया और हाथ उठाकर यह दुआ मांगी –

'ऐ हम सबके परवरदिगार! (तू देख रहा है कि) एक ऐसे मैदान में जहां खेती का नाम व निशान नहीं, मैंने अपनी कुछ औलाद तेरे मोहतरम घर के पास लाकर बसाई है, कि वो नमाज़ क़ायम रखें (ताकि यह मोहतरम पर एक ख़ुदा की इबादत करने वालों से खाली न रहे) पस तू (अपने फ़ज़्लो करम से) ऐसा कर कि लोगों के दिल उनकी तरफ़ मायल हो जाएं और उनके लिए ज़मीन की पैदावार से रिज्क का सामान मुहैया कर दे, ताकि तेरे शुक्रगुजार हों। इब्राहीम 14:37

अब बीबी हाजरा अलैहि सलाम और इसमाइल अलैहि सलाम उस तपते सेहरा में तन्हा रह गए, बीबी हज़रा के पास जो पानी और खजूरें खातीं थी वो सब ख़त्म हो गयी,  पानी न मिलने की वजह से उनकी छाती का दूध भी सुख गया और जब बच्चे के लिए भी दूध न उतरा छाती से तो बच्चा भी भूक की वजह से रोने लगा। तो बीबी हाजरा ने बच्चे को एक खजूर की झाड़ के छांव में लिटा दिया।  और सामने दो पहाड़िया थी जिसे आज साफा और मरवाह के नाम से जाना जाता है उस पहाडी पर चढ़ गयी की देखे शायद कोई काफिला या कोइ इन्सान दीख जाए तो कम से कम उस से पानी तो मांग ले के जिस्म पानी तो जाये ताकि बच्चे के लिय दूध बन जाए। और बच्चे की भूक मिटे।

जब वोह एक पहाड़ी पर चढ़ती तो बच्चा आँखों से ओझल हो जाता, बच्चे की मोहब्बत मे वो जल्द से निचे उतर आती। लेकिन बच्चे को रोता देख जल्दी से भाग कर दुसरी पहाडी पर चढ जाती, की शायद कोई नजर आ जाए और कुछ मदद मिल जाए। इस तरहा आप ने उन दोनो पहाडी के साथ (7) चक्कर लगाये। कभी पहाड़ी चढ़ती और कभी औलाद की मोहब्बत मे निचे उतर आती। अल्लाह ताअला को बीबी हाजरा की ये अपनी औलाद के लिये मशक्कत (मेहनात) इतनी पसंद आयी की, अल्लाह तआला ने हर मुसल्मान मर्द और औरत पर जो भी मक्का शरीफ में हज या उमरा के लिऐ आता है उनके लिए सफा मारवाहा की दोनो पहाडियॉ के साथ (7) चक्कर लगाना फ़र्ज़ कर दिया है, और ये भी हज और उमराह के अरकानो मैं शामिल है।


आबे जमजम का चश्मा:

जब बीबी हाजरा उन दोनों पहाड़ियों पर दौड़कर चढ़ती और औलाद की मोहब्बत और बेकरारी में नीचे उतर आती। इधर बच्चा भूख से रो रहा था और अपनी एड़ियां जमीन पर रगड़ रहा था। उसी वक्त रहमत ए इलाही जोश में आई और इस्माइल अलैहिस्सलाम जहां अपनी एडिया रगड़ रहे थे उस जगह से पानी का चश्मा फूट पड़ा। जब बीबी हाजरा ने पानी देखा तो दौड़कर अपने बच्चे के पास पहुंची और उस पानी को जो बह रहा था रोकने के लिए उसको चारों तरफ रेत की दीवार बना दी और कहते जाती थी जमजम यानी कि रुक जा या ठहर जा इसीलिए उस पानी का नाम ‘आबे जमजम‘ पड़ गया।


सुनसान वादी में अरब कौम की शुरुवात:

इसी दौरान बनी जुरहम का एक क़बीला इस वादी के करीब आ ठहरा, देखा तो थोड़े से फ़ासले पर परिंदे उड़ रहे हैं। जुरहम ने कहा, यह पानी की निशानी है, यंहा जरूर पानी मौजूद है। जुरहम ने भी कियाम की इजाजत मांगी। हाजरा ने फ़रमाया, कियाम कर सकते हो, लेकिन पानी में मिल्कियत के हिस्सेदार नहीं हो सकते। जुरहम ने यह बात ख़ुशी से मंजूर कर ली। और वहीं मुकीम हो गए।

अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया कि “हाजरा भी आपसी उन्स व मुहब्बत और साथ के लिए यह चाहती थीं कि कोई आकर यहां ठहरे, इसलिए उन्होंने खुशी के साथ बनी जुरहम को क्रियाम की इजाजत दे दी। जुरहम ने आदमी भेजकर अपने बाकी ख़ानदान वालों को भी बुला लिया और यहां मकान बनाकर रहने-सहने लगे। इन्हीं में इस्माईल अलैहि सलाम भी रहते और खेलते और उनसे उनकी जुबान सीखते। जब इस्माईल बड़े हो गए तो उनका तरीका और अन्दाज़ और उनकी खूबसूरती बनी जुरहम को बहुत भाई और उन्होंने अपने ख़ानदान की लड़की से उनकी शादी कर दी।


नेक बीवी का किरदार

हज़रत इस्माईल की बीवियों के बारे में इस तरह बयान हुआ है:

‘इब्राहीम बराबर अपने बाल-बच्चों को देखने आते रहते थे। एक बार तशरीफ़ लाए, तो इस्माईल अलैहि सलाम घर पर न थे, उनकी बीवी से मालूम किया तो उन्होंने जवाब दिया कि रोजी की खोज में बाहर गए हैं। इब्राहीम अलैहि सलाम ने मालूम किया, गुजर-बसर की क्या हालत है? वह कहने लगी, सख्त मुसीबत और परेशानी में हैं और बड़े दुख और तक्लीफ़ में। इब्राहीम अलैहि सलाम ने यह सुनकर फ़रमाया, इस्माईल से मेरा सलाम कह देना और कहना कि अपने दरवाजे की चौखट तब्दील कर दो।’

इस्माईल अलैहि सलाम वापस आए तो इब्राहीम अलैहि सलाम के नूरे नुबूवत के असरात पाए, पूछा: कोई आदमी यहां आया था? बीवी ने सारा किस्सा सुनाया और पैग़ाम भी। इस्माईल अलैहि सलाम ने फ़रमाया कि वह मेरे बाप इब्राहीम अलैहि सलाम थे और उनका मश्विरा है कि तुझको तलाक दे दूं, इसलिए मैं तुझको जुदा करता हूं।

इस्माईल अलैहि सलाम ने फिर दूसरी शादी कर ली। एक बार इब्राहीम अलैहि सलाम फिर इस्माईल की गैर-मौजूदगी में आए और उसी तरह उनकी बीवी से सवाल किए। बीवी ने कहा, अल्लाह का शुक्र व एहसान है, अच्छी तरह गुजर रही है। मालूम हुआ, खाने को क्या मिलता है? इस्माईल अलैहि सलाम की बीवी ने जवाब दिया, गोश्त। इब्राहीम अलैहि सलाम ने पूछा और पीने को? उसने जवाब दिया, पानी। तब हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने दुआ मांगी, अल्लाह! इनके गोश्त और पानी में बरकत अता फरमा। और चलते हुए यह पैग़ाम दे गए कि अपने दरवाजे की चौखट को मज़बूत रखना।

हज़रत इस्माईल अलैहि सलाम आए तो उनकी बीवी ने तमाम वाक्रिया दोहराया और पैग़ाम भी सुनाया, इस्माईल अलैहि सलाम ने फ़रमाया कि यह मेरे बाप इब्राहीम अलैहि सलाम थे और उनका पैग़ाम यह है कि तू मेरी जिंदगी भर जीवन-साथी रहे।’


खतना:

तौरात के बयान के मुताबिक़ जब इब्राहीम अलैहि सलाम की उम्र ९९ साल हुई और हजरत इस्माईल की तेरह साल, तो अल्लाह तआला का हुक्म आया कि खतना करो। इब्राहीम अलैहि सलाम ने हुक्म की तामील में पहले अपनी की और इसके बाद इस्माईल अलैहि सलाम और तमाम खानाजादों (घरवालों) और गुलामों की खतना कराई।

यही खतने की रस्म आज भी इब्राहीमी मिल्लत का शिआर है और सुन्नते इब्राहीमी के नाम से मशहूर है।


बाप और बेटे की क़ुरबानी:

अल्लाह के मुकर्रब बन्दों को इम्तिहान व आजमाइश की सख्त-से-सख्त मंजिलों से गुजरना पड़ता है। पहली मंज़िल वह थी जब उनको आग में डाला गया, तो उस वक्त उन्होंने जिस सब्र और अल्लाह के फैसले पर राजी होने का सबूत दिया, वह उन्हीं का हिस्सा था। इसके बाद जब इस्माईल को और हाजरा को फारान के बयाबान में छोड़ आने का हुक्म मिला, तो वह भी मामूली इम्तिहान न था। अब एक तीसरे इम्तिहान की तैयारी है जो पहले दोनों से भी ज़्यादा हिला देने वाला और जान लेने वाला इम्तिहान है, यही कि हजरत इब्राहीम तीन रात बराबर ख़्वाब देखते हैं कि अल्लाह तआला फ़रमाता है कि ‘ऐ इब्राहीम! तू हमारी राह में अपने इकलौते बेटे की कुरबानी दे।’

नबियों का ख्वाब ‘सच्चा ख्वाब’ और वह्य इलाही होता है, इसलिए इब्राहीम रजा व तस्लीम बनकर तैयार हो गए कि अल्लाह के हुक्म की जल्द से जल्द तामील करें, चूंकि यह मामला अकेली अपनी जात से मुताल्लिक न था, बल्कि इस आज़माइश का दूसरा हिस्सा वह ‘बेटा’ था, जिसकी कुरबानी का हुक्म दिया गया था, इसलिए बाप ने अपने बेटे को अपना ख्वाब और अल्लाह का हुक्म सुनाया, बेटा इब्राहीम जैसे नबी और रसूल का बेटा था, तुरन्त हुक्म के आगे सर झुका दिया और कहने लगा, अगर अल्लाह की यही मर्जी है, तो इन्शाअल्लाह आप मुझको सब्र करने वाला पाएंगे।

इस बात-चीत के बाद बाप-बेटे अपनी कुरबानी पेश करने के लिए जंगल रवाना हो गए। बाप ने बेटे की मर्जी पाकर जिब्ह किए जाने वाले जानवर की तरह हाथ-पैर बांधे, छुरी को तेज किया और बेटे को पेशानी के बल पछाड़ कर जिब्ह करने को तैयार हो गए, फौरन अल्लाह की वह्य इब्राहीम अलैहि सलाम पर नाजिल हुई, ‘ऐ इब्राहीम! तूने अपना ख्वाब सच कर दिखाया। बेशक यह बहुत सख्त और कठिन आजमाइश थी।‘ अब लड़के को छोड़ और तेरे पास जो यह मेंढा खड़ा है, उसको बेटे के बदले में जिब्ह कर, हम नेकों को इसी तरह नवाज़ा करते हैं। इब्राहीम अलैहि सलाम ने पीछे मुड़कर देखा तो झाड़ी के करीब एक मेंढा खड़ा है। हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए उस मेंढे को जिब्ह किया।

यह वह ‘कुरबानी‘ है जो अल्लाह की बारगाह में ऐसी मकबूल हुई कि यादगार के तौर पर हमेशा के लिए मिल्लते इब्राहीमी का शिआर करार पाई
और आज ज़िलहिज्जा की दसयों तारीख को तमाम इस्लामी दुनिया में यह ‘शिआर’ उसी तरह मनाया जाता है।


काबा की बुनियाद:

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम अगरचे फ़लस्तीन में ठहरे थे, मगर बराबर मक्का में हाजरा और इस्माईल अलैहि सलाम को देखने आते रहते थे। इसी बीच इब्राहीम अलैहि सलाम को अल्लाह का हुक्म हुआ कि ‘अल्लाह के काबे‘ की तामीर करो। हज़रत इब्राहिम अलैहि सलाम ने हज़रत इस्माईल अलैहि सलाम से जिक्र किया और दोनों बाप-बेटों ने अल्लाह के घर की तामीर शुरू कर दी।

एक रिवायत के मुताबिक बैतुल्लाह की सबसे पहली बुनियाद हज़रत आदम अलैहि सलाम के हाथों रखी गई और अल्लाह के फ़रिश्तों ने उनको वह जगह बता दी थी, जहां काबे की तामीर होनी थी, मगर हजारों साल के हादसों ने अर्सा हुआ उसको बे-निशान कर दिया था, अलबत्ता अब भी वह एक टीला या उभरी हुई जमीन की शक्ल में मौजूद था। यही वह जगह है, जिसको अल्लाह की वस्य ने इब्राहीम अलैहि सलाम को बताया और उन्होंने इस्माईल अलैहि सलाम की मदद से उसको खोदना शुरू किया तो पिछली तामीर की बुनियादें नज़र आने लगीं। इन्हीं बुनियादों पर बैतुल्लाह की तामीर की गई, अलबत्ता कुरआन पाक में पिछली हालत का कोई तज़किरा नहीं है।

दूसरी तरफ़ यह हक़ीक़त है कि इस तामीर से पहले तमाम कायनात और दुनिया के कोने-कोने में बुतों और सितारों की पूजा के लिए हैकल और मन्दिर मौजूद थे, पर इन सबके उलट सिर्फ एक ख़ुदा की परस्तिश और उसकी यकताई के इकरार में सरे नियाज़ झुकाने के लिए दुनिया के बुतकदों में पहला घर जो ख़ुदा का घर कहलाया, वह यही बैतुल्लाह है।

'बेशक सबसे पहला यह घर जो लोगों के लिए अल्लाह की याद के लिए बनाया गया, अलबत्ता वह है जो मक्का में है, वह है सर से पैर तक बरकत और दुनिया वालों के लिए हिदायतों (का सर चश्मा)। आले इमरान 3:96

इसी तामीर को यह शरफ हासिल है कि इब्राहीम जैसा जलीलल कर पैग़म्बर उसका मेमार है और इस्माईल जैसा नबी व जबीह उसका मजदूर बाप-बेटे बराबर उसकी तामीर में लगे हुए हैं और जब उसकी दीवारें ऊपर उठती हैं और बुजुर्ग बाप का हाथ ऊपर तामीर करने से माजूर हो जाता है तो कुदरत की हिदायत के मुताबिक एक पत्थर को बाड़ बनाया जाता है, जिसको इस्माईल अलैहि सलाम अपने हाथ से सहारा देते और इब्राहीम अलैहि सलाम उस पर तामीर करते जाते हैं।

यही वह यादगार है जो ‘मकामे इब्राहीम‘ से जाना जाता है। जब तामीर इस हद पर पहुंची, जहां आज हजरे अस्वद नसब है तो जिब्रील अमीन ने उनकी रहनुमाई की और हजरे अस्वद को उनके सामने एक पहाड़ी से महफूज निकाल कर दिया, जिसको जन्नत का लाया हुआ पत्थर कहा जाता है, ताकि वह नसब कर दिया जाए।

अल्लाह का घर तामीर हो गया तो अल्लाह तआला ने इब्राहीम अलैहि सलाम को बताया कि यह मिल्लते इब्राहीमी के लिए (किबला) और हमारे सामने झुकने का निशान है, इसलिए यह तौहीद का मर्कज़ करार दिया जाता है। तब इब्राहीम व इस्माईल अलैहि सलाम ने दुआ मांगी कि अल्लाह तआला उनको और उनकी जुर्रियत (आल औलाद) को नमाज़ और जकात कायम करने की हिदायत दे और इस्तिकामत बरते और उनके लिए फलों, मेवों और रिज़क में बरकत दे और दुनिया के कोने कोने में बसने वाले गिरोह में से हिदायत पाए हुए गिरोह को इस तरफ़ मुतवजह करे कि वे दूर-दूर से आएं और हज के मनासिक अदा करें और हिदायत व रुश्द के इस मर्कज में जमा होकर अपनी जिंदगी की सआदतों से दामन भरें।

कुरआन मजीद ने बैतुल्लाह की तामीर, तामीर के वक्त इब्राहीम व इस्माईल की मुनाजात, नमाज कायम करने और हज की रस्मों को अदा करने के लिए शौक़ व तमन्ना के इजहार और बैतुल्लाह के तौहीद का मर्कज होने के एलान का जगह-जगह जिक्र किया है और नए-नए उस्लूब और तर्जे अदा से उसकी अज़्मत और जलालत व जबरूत को सूरः आलेइमरान 3:79, अल-बकरः 2 : 125-129 और अल-हज्ज 22: 26-33, 36:37 में वाजेह फ़रमाया है।


कुरआन में हज़रत इस्माईल का तज्किरा:

हज़रत इस्माईल अलैहि सलाम का जिक्र कुरआन मजीद में कई बार हुआ है। सूरः मरयम में उनके नाम के साथ उनके औसाफ़े जमीला का भी जिक्र किया गया है।

तर्जुमा – और याद कर किताब में इस्माईल का जिक्र था, वह वायदे का सच्चा था और था नबी और हुक्म करता था अपने आल को नमाज़ का और जकात का और था अपने परवरदिगार के नजदीक पसन्दीदा।

मरयम 19:54

हज़रत इस्माईल की वफ़ात:

हज़रत इस्माईल अलैहि सलाम की उम्र जब एक सौ छत्तीस साल की हुई, तो उनका इंतिक़ाल हो गया, तारीखी रिवायात के मुताबिक़ हज़रत इस्माईल अलैहि सलाम की वफ़ात फलस्तीन में हुई और फ़लस्तीन ही में उनकी क़ब्र बनी।

अरब तारीख के माहिरों के मुताबिक वह और उनकी वालिदा हाजरा बैतुल्लाह के क़रीब हरम के अन्दर दफ़न हैं। वल्लाहु आलम।

इंशा अल्लाह अगली पोस्ट में हम हजरत इसहाक अलैहि सलाम का जिक्र करेंगे।

To be continued …

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बनी इस्राईल पर अल्लाह का अज़ाब और उम्मते मुस्लिमा के लिए इबरत https://ummat-e-nabi.com/bani-israil-ki-halaqat-ka-wakia-hindi-me/ https://ummat-e-nabi.com/bani-israil-ki-halaqat-ka-wakia-hindi-me/#respond Wed, 11 Oct 2023 12:50:41 +0000 https://ummat-e-nabi.com/bani-israil-ki-halaqat-ka-wakia-hindi-me/ बनी इस्राईल पर अल्लाह का अज़ाबआज फलस्तीन और इस्राईल के दरमियान जो हालात है, जिस हालात से उम्मते मुस्लिमा आज गुजर रही है, आखिर क्या वजह है के ज़ालिम हुकुमराह हमपर मुसल्लत है ? आईये […]

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आज फलस्तीन और इस्राईल के दरमियान जो हालात है, जिस हालात से उम्मते मुस्लिमा आज गुजर रही है, आखिर क्या वजह है के ज़ालिम हुकुमराह हमपर मुसल्लत है ? आईये इसके ताल्लुक से हमसे पिछली उम्मत यानी बनी इस्राईल की हलाकत की मिसाल पर गौर करते है।

बनी इस्राईल पर अल्लाह के अज़ाब का पहला वादा:

बनी इस्राईल हमसे पहले अल्लाह की चुनिंदा कौम थी, अल्लाह ने इनमे अम्बिया (अलेही सलाम) भेजे, और इन्हें दीगर कौमो की इमामत का जिम्मा दिया, लेकिन इस कौम ने गुनाह और मासियत किये, रब को नाराज़ किया, शिर्क किया, अल्लाह के दिन में बिद्दते इजाद किये और सबसे बड़ा जुर्म ये कर बैठे के अल्लाह के भेजे अम्बिया (अलैहि सलातो सलाम) के क़त्ल को भी अपनी जिंदगी का शाआर बना बैठे।

फिर अल्लाह का अजाब इनपर यकीनी हुआ जिसके ताल्लुक से अल्लाह ने कुरान में फ़रमाया:

और जब पहले वादे का वक्त पूरा हो गया तो हमने ऐसे लड़ाकू बन्दे तुमपर हावी कर दिए जो बोहोत मजबूत थे लडाई में और ऐसे तुमसे लढे के तुम्हारे घरो में जा घुसे”

अल-कुरान १७:०५

इस आयत में पहले वादे से मुराद मुफस्सरिन लिखते है के यह “बूख्तनसर” बादशाह का ज़माना था, जब यहूदियों को अल्लाह ने दुनिया की इमामत के लिए चुना तो इन्होने अल्लाह की नाराज़गी वाले काम किये और दानियल (अलेही सलाम) जैसे नबी को तकलीफ पोह्चायी।

तो अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने अपने पहले वादे को इनके खिलाफ पूरा किया और बख्तनसर के जरये यहू*दियों को ज़लील कर इनको अपने मुल्क फलेस्तीन से निकालकर वो अपने साथ गुलाम बनाकर इराक ले गया।

दूसरा वादा:

बख्तनसर की कैद से कई सालो बाद ये आज़ाद होकर वापस आये लेकिन अल्लाह को पता था के ये लोग अपनी मासियत (हथधर्मी) से बाज़ नहीं आने वाले, तो अल्लाह ने इनपर दुबारा अपना गज़ब ढाया जिसके ताल्लुक से अल्लाह ताला ने कुरान में आगे फ़रमाया –

“और जब दूसरा वादा हमारा पूरा हुआ”

अल-कुरान १७:७

दुसरे वादे से मुराद जब यहू*दियों को अल्लाह ने बख्तनसर की क़ैद से आज़ादी दे दी, लेकिन फिर भी ये अपनी मासियत से ताईब न हुए और इन्होने वही सुलूक किया यानी अल्लाह के एक और नबी ईसा (अलैहि सलातो सलाम) के क़त्ल का मंसूबा किया।

अल्लाह ने उस मनसूबे में इनको नाकाम किया, ईसा (अलैहि सलाम) को दुनिया से उठा लिया और आपके जाने के ७० साल बाद अल्लाह ने यूनान के बादशाह “टाइटस” के हाथो बनी इस्राईल पर ऐसा कहर ढाया के इन्हें कम-से-कम १९०० साल के लिए फलेस्थिन की सरज़मीन से हकाल दिया।

टाइटस ने बनी इस्राईल पर इस शदीद तरह से हमला किया के ये कौम १९२४ तक कही बस न सकी, पूरी दुनिया में १९०० साल तक भटकते रहे, जिसको आज भी “The Jewish Diaspora” के नाम से जाना जाता है।

Arch of Titus Menorah
यहूदी लोगों के नहूम गोल्डमैन संग्रहालय में टाइटस के आर्क से राहत पैनल की प्रतिलिपि, यहूदी कैप्टा (“यहूदिया को गुलाम बनाया गया / जीत लिया गया”) का जश्न मनाते हुए रोमन सैनिकों की विजयी परेड को दर्शाया गया है और घेराबंदी की लूट का प्रदर्शन करते हुए नए गुलाम बनाए गए यहूदियों का नेतृत्व किया गया है। Source: Wikipedia

यानी अल्लाह ने इन्हें पूरी दुनिया में जलील और रुसवा किया, ये कौम ज़िल्लत की जिंदगी जीती रही, के यूरोप के अंदर इनके अलग इलाके हुआ करते थे जिसे “Ghettos” कहा जाता, मतलब जानवरों के रखने की जगह यहूदी रखे जाते थे।

लेकिन इनका शर्र्र और फितना ऐसा ही है के – इस कौम ने कभी अल्लाह की नाफ़रमानी से तौबा नहीं की, तो अल्लाह ने इनको क़यामत तक हमारे लिए इबरत बना दिया और वादा कर के कुरान में फ़रमाया  –

और वो वक्त याद करो जबकि तुम्हारे रब ने इस चीज़ को तय कर दिया बनी इस्रायील के लिए के क़यामत तक मैं तुमपर जालीम और जाबिर हुकुमरानो को मुसल्लत करता रहूँगा”

अल कुरान ७:१६७

और अल्लाह की उस मार और फटकार का नतीजा हम हर सदी में देख ही रहे है के यहू*दियों को क्या मिला है?

हर सदी में ज़लील और रुसवा हुए, जानवरों के साथ रखे गए, पिछली सदी में हिटलर ने इन्हें लाखो की तादाद में अजीयत दे-देकर मारा। 🥺

और आज भी जिस तरह से ये लोग इंसानियत पर ज़ुल्मो सितम कर रहे है गोया के ये ‘लो’ तेजी से फड़क रही है और इंशाल्लाह ये अपने बुझने की और हमे ताईद कर रही है।

मुसलमानो के लिए इबरत

याद रहे के: किसी की भी हलाकत (नुकसान) हमारे लिए खुशियों का सबब नहीं है, बल्कि हमे चाहिए के इनकी हलाकत से इबरत हासिल करे, “अगला गिरा तो पिछले को चाहिए के वो संभल जाये”

वरना कही ऐसा न हो के अगर हमने भी अपने गुनाह-व-मासियत और अपने अमल के इस्लाह की गौरो फ़िक्र न की तो अल्लाह रब्बुल इज्ज़त के लिए कोई बईद (नामुमकिन) नहीं के वैसे ही फैसले अल्लाह हमारे हक में कर दे। (अल्लाह रहम करे हम पर)

और आज हम जिस हालत से गुजर रहे है जिसका नतीजा हमारे बुरे आमल है याद रखिये ,
– आज भाई भाई को क़त्ल कर रहा है ,
– मुसलमान मुल्क दुसरे मुसलमान मुल्क को क़त्ल कर रहे है ,
– मुसलमान आपस में एक दुसरे को गिरोहबंदी और फिर्काबंदी के नाम पर क़त्ल कर रहे है ,
– जमातो और तंजीमो के नाम पर एक दुसरे को क़त्ल किया जा रहा है,

और इस से ज्यादा अफ़सोस के साथ हम क्या कहे के “एक जमात में भी दो लोग आपस में तीसरे के खिलाफ चाले चल रहे है”
इतने हम गिर चुके है। अल्लाह रहम करे।

और फिर जब अल्लाह का अजाब आता है तौ हम परेशान होते है के कौमे क्यों हमपर मुसल्लत हो रही है।

याद रहे “आज हमारी शिकस्त की सबसे अहम् वजह अल्लाह की नाफ़रमानी है” अल्लाह की नाजिल करदा हिदायत और रसूलल्लाह (सलाल्लाहो अलैही वसल्लम) की सुन्नत की मुखालिफत यही सबसे अहम् वजह है हमारी जिल्लत और रुसवाई की।

तो बहरहाल अगर हम चाहते है के अल्लाह हमपर रहम करे, उसका करम हमपर हो तो हमे चाहिए के अल्लाह और उसके रसूल (सलल्लाहो अलैही वसल्लम) की तालीमात पर हम जम जाये और अपने दोस्त-अहबाब और दुसरो को भी उसकी दावत दे।

इंशा अल्लाह-उल-अज़ीज़!
– अल्लाह तआला हमे अपने रहमो करम का साया नसीब फरमाए।
– हमे तमाम किस्म की गुमराहियो से बचाए।
– किताबो-सुन्नत पर अमल की तौफीक दे।
– जब तक हमे जिंदा रखे इस्लाम और ईमान पर जिन्दा रखे।
– खात्मा हमारा ईमान पर हो।
– वा आखिरू दावा’ना अलह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन !!!

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हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम (भाग: 4) | Qasas ul Anbiya: Part 11 https://ummat-e-nabi.com/ibrahim-alaihis-salam-4/ https://ummat-e-nabi.com/ibrahim-alaihis-salam-4/#respond Tue, 10 Oct 2023 20:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=22632 Ibrahim Alaihis Salam Story in Hindiकिलदानीयीन की ओर हिजरत, फ़लस्तीन की ओर हिजरत, हजरत हाजरा रजि० की मुख़्तसर सीरत, परिंदो का ज़िंदा होने वाला इबरतनाक वाकिया, हज़रत इब्राहीम की औलाद और उम्र ...

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हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम (भाग: 4)
Qasas ul Anbiya: Part 11

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

पिछली पोस्ट (पार्ट ३) में हमने देखा ‘इब्राहिम अलैहि सलाम का बादशाह को इस्लाम की दावत‘ और आपको सजा के लिए तैयार की हुई ‘आग का ठंडा हो जाना‘। आईये इस पोस्ट में ‘इब्राहिम अलैहि सलाम की हिजरत, हाजरा (र.) की मुख़्तसर सीरत और परिंदो के जिन्दा होने वाले इबरतनाक वाकिये‘ पर गौर करते है।

किलदानीयीन की ओर हिजरत:

बहरहाल हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम अपने बाप आज़र और क़ौम से जुदा होकर फरात के पच्छिमी किनारे के क़रीब एक बस्ती में चले गए जो आज किलदानीयीन के नाम से मशहूर है। यहां कुछ दिनों कियाम किया और हज़रत लूत अलैहि सलाम और हजरत सारा दोनों सफ़र में साथ रहे।  कुछ दिनों के बाद यहां से ‘हरान’ या ‘हारान’ की ओर चले गए और वहां ‘दीने इस्लाम‘ की तब्लीग शुरू कर दी, मगर इस मुद्दत में बराबर अपने बाप आजर के लिए बारगाहे इलाही में इस्तगफार करते और उसकी हिदायत के लिए दुआ मांगते रहे और यह कछ इसलिए किया कि वे निहायत दिल के नर्म, रहीम और बहुत ही नरम दिल और बुर्दबार थे।

इसलिए आजर की ओर से हर किस्म की अदावत के मुजहरो के बावजूद उन्होंने आज़र से यह वायदा किया था कि अगरचे मैं तुझसे जुदा हो रहा हूं और अफ़सोस कि तूने अल्लाह की रुश्द व हिदायत पर तवज्जो न की, फिर भी मैं बराबर तेरे हक्क में अल्लाह की मगफिरत की दुआ करता रहूंगा। आखिरकार हज़रत इब्राहीम को अल्लाह की वह्य ने मुत्तला किया कि आज़र ईमान लाने वाला नहीं है और यह उन्हीं लोगों में से है जिन्होंने अपनी नेक इस्तेदाद को फ़ना करके खुद को उसका मिस्दाक़ बना लिया।

अल्लाह ने मोहर लगा दी उनके दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आंखों पर परदा है। अल-बक़रह 2:7

….. हज़रत इब्राहीम को जब यह मालूम हो गया तो आपने आज़र से अपने अलग होने का साफ़ एलान कर दिया।

फ़लस्तीन की ओर हिजरत:

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम इस तरह तब्लीग़ करते-करते फ़लस्तीन पहुंचे। इस सफ़र में भी उनके साथ हजरत सारा, हज़रत लूत अलैहि सलाम और लूत की बीवी थीं। हज़रत इब्राहीम फलस्तीन के पच्छिमी हिस्से में ठहरे, उस ज़माने में यह इलाका कन्आनियों के इख़्तेदार में था, फिर करीब ही शीकम (नाबलस) में चले गए और वहां कुछ दिनों ठहरे रहे, इसके बाद यहां भी ज्यादा दिनों कियाम नहीं फ़रमाया और मगरिब की तरफ़ ही बढ़ते चले गए, यहां तक कि मिस्र तक जा पहुंचे।

हजरत हाजरा रजि० की मुख़्तसर सीरत:

तमाम रिवायतों से इस कदर यकीनी मालूम होता है कि हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम से अपनी बीवी सारा और अपने भतीजे हजरत लूत अलैहि सलाम के साथ मिस्र तशरीफ़ ले गए। यह वह जमाना है जबकि मिस्र की हुकूमत ऐसे खानदान के हाथ में थी जो सामी नौम से ताल्लुक रखता था और इस तरह हज़रत इब्राहीम से नसबी सिलसिले में वाबस्ता था। यहां पहुंच कर इब्राहीम और मिस्र के फ़िरऔन के दर्मियान जरूर कोई ऐसा वाक़िया पेश आया जिससे उसको यकीन हो गया कि इब्राहीम और उसका ख़ानदान ख़ुदा का मतबल और बरगजीदा खानदान है।

यह देखकर उसने हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम और उनकी बीवी हज़रत सारा का बहुत एजाज़ किया और उनको हर किस्म के माल व मता से नवाजा और सिर्फ इसी पर इक्तिफ़ा नहीं किया बल्कि अपने क़दीम खानदानी रिश्ते को मजबूत और मुस्तहकम करने के लिए अपनी बेटी हाजरा को भी उनसे ब्याह में दे दिया, जो उस जमाने में रस्म व रिवाज के एतबार से पहली और बड़ी बीवी की खिदमतगुज़ार करार पाई। चुनांचे यहूदियों की एतबार वाली रिवायत के मुताबिक़ हज़रत हाजरा ‘शाहे मिन’ फ़िरऔन की बेटी थीं, लौंडी और बांदी नहीं थीं। तौरात का एक एतबार वाला मुफस्सिर बी सलूमलू इस्हाक किताबे में लिखता है:

जब उसने (रक्कयून शाहे मिस्र ने) सारा की वजह से करामतों को देखा तो कहाः मेरी बेटी का इस घर में लौंडी होकर रहना दूसरे घर में मलका होकर रहने से बेहतर है। अरजुल कुरआन, भाग 2, पृ० 41

दूसरे अरबी भाषा में हाजरा के मानी के लिहाज़ से क्रियास के करीब ज़्यादा यही है कि चूंकि यह अपने वतन मिस्र से जुदा होकर या हिजरत करके हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की शरीके हयात और हज़रत सारा की खिदमत गुजार बनीं, इसलिए हाजरा कहलाईं और तौरात में हाजरा को सिर्फ इसीलिए लौंडी कहा गया कि शाहे मिस्र ने उनको सारा और हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम के सुपुर्द करते हुए यह कहा था कि वह सारा की खिदमत गुज़ार रहेगी, रद मतलब न था कि वह लौंडी (‘जारिया’ के मानी में) हैं।

परिंदो का ज़िंदा होने वाला इबरतनाक वाकिया:

हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम की जिंदगी के कुछ वाकिए उनके बेटों हज़रत इस्माईल और हजरत इसहाक़ से जुड़े हुए हैं। मुनासिब समझा गया कि इन वाकियों को उन दोनों नबियों के हालात में ही बयान किया जाए। यही हाल उन वाकियों का है जिनका ताल्लुक़ उनके भतीजे हजरत लूत अलैहि सलाम से है, अलबत्ता ‘हयात बादल ममात’ (मरने के बाद की जिंदगी) से मुताल्लिक़ वाकिया यहां बयान किया जाता है।

….. हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम को चीज्ञों की हक़ीक़त मालूम करने की तलाश और तलब का तबई जौक था और वह हर चीज़ की हक़ीक़त तक पहुंचने की कोशिश को अपनी जिंदगी का खास मक्सद समझते थे, ताकि उनके जरिए एक ही ज़ात (अल्लाह जल्न जलालुहू) की, हस्ती, उसके एक होने और उसकी मुकम्मल कुदरत के बारे में इल्मुल यकीन (यकीन की हद तक इल्म) के बाद हक्कुल यक़ीन (यक़ीन ही हक़) हासिल कर लें, इसलिए हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने ‘हयात बादल ममात’ यानी मर जाने के बाद जी उठने से मुताल्लिक़ अल्लाह तआला से यह सवाल किया कि वह किस तरह ऐसा करेगा?

….. अल्लाह तआला ने इब्राहीम से फ़रमाया, ‘ऐ इब्राहीम! क्या तुम इस मस्अले पर यक़ीन और ईमान नहीं रखते?’ इब्राहीम अलैहि सलाम ने फ़ौरन जवाब दिया क्यों नहीं? मैं बिना किसी संकोच के इस पर ईमान रखता हूं, लेकिन मेरा यह सवाल ईमान व यक़ीन के खिलाफ इसलिए नहीं है कि मैं इल्मुल-यक़ीन के साथ-साथ ऐनुल-यकीन और हक्कुल यकीन (अगर किसी मसअले के बारे में दलील व बुरहान के जरिए ऐसा इल्म हासिल हो जाए कि शक व शुबहा जाता रहे तो इस कैफियत को इल्मुल यक़ीन कहा जाता है और इसका दूसरा दर्जा यह है कि इस इल्म के मुशाहदों और महसूसात से भी तौसीक़ हो जाए, तो उसको ऐनुल-यक़ीन का जाता है। इसके बाद तीसरा और आखिरी दर्जा हल्कुल-यकीन का है। यह वह कैफियत है, जब इस मसूअले से मुताल्लिक़ तमाम हक़ीक़तें वाजेह हो जाती हैं और आगे जुस्तजू की ख्वाहिश बाक़ी नहीं रहती) का ख्वास्तगार हूं। मेरी तमन्ना यह है कि तू मुझको आंखों से मुशाहदा करा दे कि ‘मौत के बाद की जिंदगी‘ की क्या शक्ल होगी?

….. तब अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि ‘अच्छा, अगर तुमको उसके मुशाहद की तलब है तो कुछ परिंदे लो और उनके टुकड़े-टुकड़े करके सामने वाले पहाड़ पर डाल दो और फिर फ़ासले पर खड़े होकर उनको पुकारो।

हज़रत इब्राहीम ने ऐसा ही किया। जब इब्राहीम अलैहि सलाम ने उनको आवाज़ दी तो उन सबके टुकड़े अलग-अलग होकर फ़ौरन अपनी-अपनी शक्ल पर आ गए और जिंदा होकर हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के पास उड़ते हुए चले आए। यह वाकिया, सूरः बक़रः की आयत 260 में बयान हुआ है।

हज़रत इब्राहीम की औलाद और उम्र:

हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के बड़े बेटे हज़रत इस्माईल की विलादत के वक़्त उनकी उम्र सत्तासी (87) साल थी और दूसरे बेटे हज़रत इस्हाक़ की विलादत के वक्त उनकी उम्र पूरे सौ साल थी। हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने हज़रत सारा और हज़रत हाजरा के अलावा एक और शादी की, जिनसे उनके यहां छह बेटे हुए। उनकी नस्ल अपनी मां के नाम पर बनी कतूरा कहलाई। हज़रत इब्राहीम की कुल उम्र एक सौ पचहत्तर साल हुई। वह हबरून (यरूशलम के करीब एक जगह) में मदफून (दफ़न किए गए) हैं।

इंशा अल्लाह अगले पोस्ट में हम हज़रत इस्माइल अलैहि सलाम का ज़िक्र करेंगे।

To be continued …

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हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम (भाग: 3)
Qasas ul Anbiya: Part 10

۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞

पिछली पोस्ट (भाग 2) में हमने देखा हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने बुतपरस्त कौम को नसीहत के लिए बूतों से बगावत की, अब इस पोस्ट (भाग: 3) में गौर करेंगे ‘इब्राहिम अलैहि सलाम की बादशाह को इस्लाम की दावत‘ और आपको सजा के लिए तैयार की हुई ‘आग का ठंडा हो जाना‘।

बादशाह को इस्लाम की दावत और उसका मुनाज़रा:

अभी ये मशवरे हो ही रहे थे कि थोड़ा-थोड़ा करके ये बातें वक़्त के बादशाह तक पहुंच गई, उस जमाने में इराक के बादशाह का लक़ब नमरूद होता था और ये पब्लिक के सिर्फ बादशाह ही नहीं होते थे, बल्कि खुद को उनका रब और मालिक मानते थे और पब्लिक भी दूसरे देवताओं की तरह उसको अपना ख़ुदा और माबूद मानती और उसकी इस तरह पूजा करती थी, जिस तरह देवताओं की, बल्कि उनसे भी पास व अदब के साथ पेश आती थी, इसलिए कि वह अक्ल व शऊर वाला भी होता था और ताज व तख़्त का मालिक भी।

…… नमरूद को जब यह मालूम हुआ तो आपे से बाहर हो गया और सोचने लगा कि उस आदमी की पैग़म्बराना दावत व  तब्लीग की सरगर्मियां अगर इसी तरह जारी रहीं तो यह मेरे मालिक होने, रब होने, बादशाह होने और अल्लाह होने से भी सब पब्लिक को दूर कर देगा और इस तरह बाप-दादा के मजहब के साथ-साथ मेरी यह हुकूमत भी गिर जाएगी, इसलिए इस किस्से का शुरू ही में ख़त्म कर देना बेहतर है।

यह सोचकर उसने हुक्म दिया कि इब्राहीम को हमारे दरबार में हाजिर करो। इब्राहीम अलैहि सलाम से मालूम किया कि तू बाप-दादा के दीन की मुखालफ़त किस लिए करता है और मुझको रब मानने से तुझे क्यों इंकार है?

…… इब्राहीम अलैहि सलाम ने कहा कि “मैं एक अल्लाह को मानने वाला हूँ, उसके अलावा किसी को उसका शरीक नहीं मानता। सारी कायनात और तमाम आलम उसी की मख्लूख हैं और वही इन सबका पैदा करने वाला और मालिक है। तू भी उसी तरह एक इंसान है, जिस तरह हम सब इंसान हैं, फिर तू किस तरह रब या ख़ुदा हो सकता है और किस तरह ये गूंगे-बहरे लकड़ी के बूत खुदा हो सकते हैं? मैं सही राह पर हूं और तुम सब ग़लत राह पर हो, इसलिए मैं हक़ की तब्लीग़ को किस तरह छोड़ सकता हूं और तुम्हारे बाप-दादा के अपने गढ़े हुए दीन को कैसे इख्तियार कर सकता हूं?”

नमरूद ने इब्राहीम अलैहि सलाम से मालूम किया कि अगर मेरे अलावा तेरा कोई रब है तो उसकी ऐसी खूबी बयान कर कि जिसकी कुदरत मुझमें न हो?

…… तब इब्राहीम अलैहि सलाम ने फ़रमाया, ‘मेरा रब वह है जिसके कब्जे में मौत व हयात है, वही मौत देता है और वही जिंदगी बनाता है।’ टेढ़ी समझ वाला नमरूद, मौत व हयात की हक़ीक़त से ना आशना कहने लगा, इस तरह मौत और जिंदगी तो मेरे क़ब्जे में भी है और यह कहकर उसी वक़्त एक बेकसूर आदमी के बारे में जल्लाद को हुक्म दिया कि उसकी गरदन मार दो और मौत के घाट उतार दो। जल्लाद ने फ़ौरन हुक्म पूरा किया और क़त्ल की सजा पाये हुए मुनिम को जेल से बुलाकर हुक्म दिया कि जाओ हमने तुम्हारी जान बख्शी की और फिर इब्राहीम की तरफ़ मुतवज्जह होकर कहने लगा- देखा, मैं भी किस तरह जिंदगी बख्शता और मौत देता हूं, फिर तेरे अल्लाह की ख़ास बात क्या रही?

…… इब्राहीम अलैहि सलाम समझ गए कि नमरूद या तो मौत और जिंदगी की असल हक़ीक़त नहीं जानता और या लागों और पब्लिक को ग़लतफ़हमी में डाल देना चाहता है, ताकि वे इस फ़र्क को समझ न सकें कि जिंदगी बख़्शना इसका नाम नहीं है बल्कि से हां करने का नाम जिंदगी बख्शना है। और इसी तरह किसी को क़त्ल या फांसी से बचा लेना मौत का मालिक होना नहीं है।

मौत का मालिक वही है जो इंसानी रूह को उसके जिस्म से निकाल कर अपने कब्जे में कर लेता है, इसलिए बहुत से फांसी की सजा पाए हुए और तलवार की जद में आए हुए लोग जिंदगी पा जाते हैं और बहुत से कल व फांसी से बचाए हुए इंसान मौत के घाट चढ़ जाते हैं और कोई ताक़त उनको रोक नहीं सकती और अगर ऐसा हो सकता तो इब्राहीम अलैहि सलाम से बातें करने वाला नमरूद गद्दी पर न बैठा होता, बल्कि उसके खानदान का पहला आदमी ही आज भी उस ताज व तख्त का मालिक नज़र आता, मगर न मालूम कि इराक के इस राज्य के कितने दावेदार जमीन के अन्दर दफ़न हो चुके हैं और अभी कितनों की बारी है।

…… फिर भी इब्राहीम अलैहि सलाम ने सोचा कि अगर मैंने इस मौके पर मौत और जिंदगी के बारीक फ़लसफ़े पर बहस शुरू कर दी, तो नमरूद का मक्सद पूरा हो जाएगा और लोगों को गलत रुख पर डालकर असल मामले को उलझा देगा और इस तरह मेरा नेक मक्सद पूरा न हो सकेगा और हक़ की तब्लीग के सिलसिले में भरी मफिल में नमरूद को लाजवाब करने का मौक़ा हाथ से जाता रहेगा, क्योंकि बहस व मुबाहसा और जदल व मुनाज़रा मेरा असल मक्सद नहीं है, बल्कि लोगों के दिल व दिमाग में एक अल्लाह का यक़ीन पैदा करना मेरा एक ही मक्सद है, इसलिए उन्होंने इस दलील को नज़रंदाज़ करके समझाने का एक दूसरा तरीका अपनाया और ऐसी दलील पेश की, जिसे सुबह व शाम हर आदमी आंखों से देखता और बगैर किसी मंतकी दलील के दिन व रात की जिंदगी में उससे दोचार होता रहता है।

इब्राहीम अलैहि सलाम ने फ़रमाया:
में उस हस्ती को ‘अल्लाह’ कहता हूं जो हर दिन सूरज को पूरब से लाता और मग़रिब की तरफ़ ले जाता है, पस अगर तू भी इसी तरह खुदाई का दावा करता है, तो इसके खिलाफ़ सूरज को मगरिब से निकाल और मशरिक में छिपा।

यह सुनकर नमरूद घबरा गया और उससे कोई जबाव न बन पड़ा और इस तरह इब्राहीम अलैहि सलाम की जुबान से नमरूद पर अल्लाह की हुज्जत पूरी हुई।

…… नमरूद इस दलील से घबराया क्यों और उसके पास इसके मुकाबले में ग़लत समझने की गुंजाइश क्यों न रही? यह इसलिए कि इब्राहीम अलैहि सलाम की दलील का हासिल यह था कि मैं एक ऐसी हस्ती को अल्लाह मानता हूं, जिसके बारे में मेरा अक़ीदा यह है कि यह सारी कायनात और इसका सारा निजाम उस ही ने बनाया है और उसने इस पूरे निजाम को अपनी हिक्मत के कानून में ऐसा कस दिया है कि उसकी कोई चीज़ मुक़र्रर जगह से पहले अपनी जगह से हट नहीं सकती है और न इधर-उधर हो सकती है।

तुम इस पूरे निजाम में से सूरज ही को देखो कि दुनिया उससे कितने फायदे हासिल करती है। साथ ही अल्लाह ने उसके निकलने और डूबने का भी एक निजाम मुक़र्रर कर दिया है, पस अगर सूरज लाख बार भी चाहे कि वह इस निजाम से बाहर हो जाए तो इस पर उसे कुदरत नहीं है, क्योंकि उसकी बागडोर एक अल्लाह की कुदरत के कब्जे में है और उसको बेशक यह कुदरत है कि जो चाहे कर गुज़रे, लेकिन वह करता वही है जो उसकी हिक्मत का तकाज़ा है।

…… इसलिए अब नमरुद के लिए तीन ही शक्लें जवाब देने की हो सकती थीं, या वह यह कहे कि मुझे सूरज पर पूरी कुदरत हासिल है और मैंने भी यह सारा निज़ाम बनाया है, मगर उसने यह जवाब इसलिए नहीं दिया कि वह खुद इसका कायल नहीं था कि यह सारी कायनात उसने बनाई है और सूरज की हरकत उसकी कुदरत के कब्जे में है, बल्कि वह तो खुद को अपनी रियाया का रब और देवता कहलाता था और बस।

…… दूसरी शक्ल यह थी कि वह कहता, “मैं इस दुनिया को किसी की पैदा की हुई नहीं मानता और सूरज तो मुस्तकिल ख़ुद देवता है, उसके अख्तियार में खुद बहुत कुछ है, मगर उसने यह भी इसलिए न कहा कि अगर वह ऐसा कहता, तो इब्राहीम अलैहि सलाम का वही एतराज सामने आ जाता जो उन्होंने सबके सामने सूरज के रब होने के खिलाफ़ उठाया था कि अगर वह ‘रब’ है तो इबादत करने वालों और पुजारियों से ज़्यादा इस माबूद और देवता में तब्दीलियां और फना के असरात क्यों मौजूद हैं?’ ‘रब’ को फना और तब्दीली से क्या वास्ता? और क्या उसकी कुदरत में यह है कि अगर वह चाहे तो मुकर्रर क्फ्त से पहले या बाद निकले या डूब जाए?

…… तीसरी शक्ल यह थी कि इब्राहीम अलैहि सलाम के चैलेंज को कुबूल कर लेता और मगरिब से निकाल कर दिखा देता, मगर नमरूद चूंकि इन तीनों शक्लों में से किसी शक्ल में जवाब देने की कुदरत न रखता था, इसलिए परेशान और लाजवाब हो जाने के अलाया उसके पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा।

…… ग़रज़ हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने सबसे पहले अपने वालिद आजर से इस्लाम के सिलसिले की बात कही, हक्क का पैग़ाम सुनाया और सीधा रास्ता दिखलाया। इसके बाद आम लोग और सब लोगों के सामने हक को मान लेने के लिए फ़ितरत के बेहतरीन उसूल और दलील पेश किए, नर्मी से, मीठी बातों से मगर मज़बूत और रोशन हुज्जत व दलील के साथ उन पर हक्क को वाजेह किया और सबसे आखिर में बादशाह नमरूद से मुनाजरा किया और उस पर रोशन कर दिया कि रब होने और माबूद होने का हक सिर्फ एक अल्लाह ही के लिए सबसे मुनासिब है और बड़े-से-बड़े शहंशाह को भी यह हक नहीं है कि वह उसकी बराबरी का दावा करे।

क्योंकि वह और कुल दुनिया उसी की मख्लूख है और वजूद व अदम के कैद व बन्द में गिरफ्तार, मगर इसके बावजूद कि बादशाह, आजर और आम लोग, हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की दलीलों से लाजवाब होते और दिलों में कायल, बल्कि बुतों के वाकिए में तो जुबान से इक़रार करना पड़ा कि इब्राहीम अलैहि सलाम जो कुछ कहता है।

वही हक्क है और सही व दुरुस्त, फिर भी उनमें से किसी ने सीधे रास्ते को न अपनाया और हक़ कुबूल करने से बचते रहे और इतना ही नहीं, बल्कि इसके ख़िलाफ़ अपनी नदामत्त और जिल्लत से मुतास्सिर होकर बहुत ज़्यादा ग़ैज़ व ग़ज़ब में आ गए और बादशाह से रियाया तक सब ने एक होकर फैसला कर लिया कि देवताओं की तौहीन और बाप-दादा के दीन की मुखालफ़त में इब्राहीम को देहकती आग में जला देना चाहिए, क्योंकि ऐसे सख़्त मुज़रिम की सजा यही हो सकती है और देवताओं को हकीर समझने का बदला इसी तरह लिया जा सकता है।

आग का ठंडा हो जाना:

इस मरहले पर पहुंच कर इब्राहीम अलैहि सलाम की जद्दोजेहद का मामला खुला हो गया और अब दलीलों की ताकत के मुकाबले में माद्दी ताक़त व सतवत ने मुजाहरा शुरू कर दिया, बाप उसका दुश्मन, लोग उसके मुखालिफ़ और वक्त का बादशाह उसे परेशान करने को तैयार, एक हस्ती और चारों ओर मुखालफत की आवाज, दुश्मनी के नारे और नफ़रत व हकारत के साथ का बदला और ख़ौफ़नाक सजा के इरादे, ऐसे वक्त में उसकी मदद कौन करे और उसकी हिमायत का सामान कैसे जुटे?

…… मगर इब्राहीम अलैहि सलाम को न इसकी परवाह थी और न उसका इर। वह इसी तरह बे-ख़ौफ़ व ख़तर और मलामत करने वालों की मलामत से बेनियाज़, हक के एलान में मस्त और रुश्द व हिदायत की दावत में लगे हुए थे। अलबत्ता ऐसे नाजुक वक्त में जब तमाम माद्दी सहारे खत्म, दुनियावी असबाब नापैद और हिमायत व नुसरत के जाहिरी अस्वाब मफ्कूद हो चुके थे, इब्राहीम अलैहि सलाम को उस वक्त भी एक ऐसा बड़ा जबरदस्त सहारा मौजूद था, जिसको तमाम सहारों का सहारा और तमाम मददों का मदद करने वाला कहा जाता है और वह एक अल्लाह का सहारा था। उसने अपने जलीलुल क़द्र पैग़म्बर, कौम के बड़े दर्जे के हादी और रहनुमा को बे-यार व मददगार न रहने दिया और दुश्मनों के तमाम मंसूबों को ख़ाक में मिला दिया।

…… हुआ यह कि नमरूद और कौम ने इब्राहीम अलैहि सलाम की सजा के लिए एक मखसूस जगह पर कई दिन लगातार आग धहकाई यहां तक कि उसके शोलों से आस-पास की चीजें तक झुलसने लगीं। जब इस तरह बादशाह और क़ौम को पूरा इत्मीनान हो गया कि अब इब्राहीम के इससे बच निकलने की कोई शक्ल बाक्री नहीं रही, तब एक गोफन में इब्राहीम अलैहि सलाम को बिठा कर दहकती हुई आग में फेंक दिया गया।

….. उस वक़्त आग में जलाने की तासीर बख्शने वाले (अल्लाह) ने आग को हुक्म दिया कि वह इब्राहीम अलैहि सलाम पर अपने जलाने का असर न करे। नारी होते हुए और (आग के) अनासिर का मज्मूआ होते हुए भी उसके हक में सलामती के साथ सर्द पड़ जाए।

….. आग उसी वक्त हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम के हक में ‘बरदंव-व सलामा‘ बन गई और दुश्मन उनको किसी किस्म का नुक्सान न पहुंचा सके और इब्राहीम अलैहि सलाम दहकती आग में सालिम व महफूज दुश्मनों के नरगे से निकल गए।

मुख्तसर यह कि बदबख्त कौम ने कुछ न सुना और किसी भी तरह रुश्द व हिदायत को कुबूल न किया और इब्राहीम अलैहि सलाम की बीवी हज़रत सारा और उनके बिरादरजादा हज़रत लूत अलैहि सलाम के अलावा कोई एक भी ईमान नहीं लाया। तमाम कौम ने हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम को जला देने का फैसला कर लिया और दहकती आग में डाल दिया, लेकिन अल्लाह तआला ने दुश्मनों के इरादों को ज़लील व रुसका कर के हजरत इब्राहीम के हक़ में आग को ‘बरदंब व सलामा‘ बना दिया, तो अब हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम ने इरादा किया कि किसी दूसरी जगह जा कर पैग़ामे इलाही सुनाएं और हक़ की दावत पहुंचाएं और यह सोचकर ‘फ़िदान’ आराम से हिजरत का इरादा कर लिया।

तर्जुमा: ‘और इब्राहीम ने कहा, मैं जाने वाला हूं अपने परवरदिगार की तरफ, करीब ही वह मेरी रहनुमाई करेगा।’ [अस्साफ्फात 37:99]

यानी अब मुझे किसी ऐसी आबादी में हिजरत करके चला जाना चाहिए, जहां अल्लाह की आवाज़ हक़ पसन्द कान से सुनी जाए, अल्लाह की ज़मीन तंग नहीं है, यह नहीं और सही, मेरा काम पहुंचाना है, ‘अल्लाह अपने दीन की इशाअत का सामान ख़ुद पैदा कर देगा।

इंशाअल्लाह! अगली पोस्ट (भाग: 4) में हम हजरते इब्राहीम अलैहि सलाम का किलदानीयीन की ओर हिजरत, हाजरा (र.) की मुख़्तसर सीरत और परिंदो के इबरतनाक वाकिये पर गौर करेंगे।

To be continued …

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