सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 35

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 35

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नबी (ﷺ) दुश्मनों के घेरे में

चूँकि मैदान साफ़ हो गया था। कोई रोकने वाला बाकी न रहा था, इसलिए मुशरिक तेज रफ्तारी के साथ पहाड़ी के नीचे उतरने लगे।

कुछ मुसलमान हुजूर (ﷺ) के करीब खड़े थे। उन्हों ने खालिद और उन के साथियों को पहाड़ी से नीचे उतरते हुए देख लिया। 

अब इन सब ने अल्लाहु अक्बर का नारा लगाया।

इस नारे की आवाज को सुन कर के मुसलमान, जो मुशरिको का पीछा कर रहे थे पीछे पलट कर देखने लगे। उहद की पहाड़ी से कुफ्फ़ार की फ़ौज उतरती नजर आयी। 

हजरत मुहम्मद (ﷺ) पहाड़ी के दामन में कुछ मुसलमानों के साथ खड़े थे, इसलिए मुसलमानों को डर हुआ कि कहीं कुफ्फ़ार आप पर हमला न कर दें। वे फ़ौरन पलटे और बड़ी तेजी से हुजूर (ﷺ) की मदद और हिफ़ाजत के लिए बढ़े। 

इक्रिमा ने मुसलमानों को वापस आते हुए देख लिया, उस ने ललकार कर अपने साथियों को रोका। जब वे उस के आगे जमा हो गये, तो उस ने मसलमानों पर धावा बोल दिया। बड़ी तेजी से मुसलमानों के पीछे दौड़ा।

अबू सुफ़ियान जो अब तक भागा जा रहा था, रुका, उस ने कुफ्फार को जमा होने का हुक्म दिया। तमाम मक्का वाले उस के चारों तरफ़ जमा हो गये। वह तमाम कुफ्फार को साथ ले कर नये जोश और नयी हिम्मत के साथ हमलावर हुआ।

मुसलमानों पर ये तमाम हमले एक-एक कर के उम्मीद के खिलाफ और अचानक हुए।

नतीजा यह हुआ कि लड़ाई का रंग बदल गया। मुसलमान हर तरफ़ से कुफ्फार के घेरे में आ गये।

फिर भी मुसलमानों ने हिम्मत न हारी और वे जगह-जगह घिरे होने के बावजूद अपनी बहादुरी का सबूत देते रहे। बड़ी खूरेज लड़ाई शुरू हो गयी थी। 

मुसलमान अपने से ज्यादा हुजूर (ﷺ) को बचाना चाहते थे।

हुजूर (ﷺ) अपने जान-निसारों के जान देने और जान लड़ा देने का यह मंजर देख रहे थे।

लड़ाई की चक्की निहायत तेजी से घूम रही थी। तलवारें जल्द-जल्द चल रही थीं।

खालिद और उनके साथी बढ़-बढ़ कर हमले कर रहे थे। वे मुसलमानों को कुचल डालने के लिए घोड़े बढ़ाते थे, पर जब मुसलमान बढ़ कर, संभल कर जोश और तैश में हमले करते, तो वे पीछे हट जाते थे।

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नबी (ﷺ) के शहीद होने की अफवाह 

हजरत मुसअब (र.अ) एक हाथ में तलवार लिए और दूसरे में झंडा लिए बड़े जोश से लड़ रहे थे। वह अब तक बहुत बड़ी तायदाद में काफिरों को जहन्नम रसीद कर चुके थे।

एक बार वह बड़े जोश में आगे बढ़े। वह खालिद को जानते थे, कत्ल करने के लिए आगे बढ़े थे। कई काफिरों को मारते-मारते खालिद के करीब पहुंच गये। 

उन्हों ने तलवार उठायी, पूरी ताकत और जोश से हमला किया। खालिद पीछे हटे। हजरत मुसअब (र.अ) आगे बढ़े। उन्हों ने फिर हमला करना चाहा।

इस मुद्दत में पीछे से कुफ्फार के एक मशहुर सहसवार जालिम। इब्ने कुमैया ने आ कर हमला कर दिया।

चूंकि हजरत मुसअब (र.अ) भी हुजूर (ﷺ) की शक्ल के थे, इसलिए इब्ने कुमैया ने समझा कि रसूले खुदा ही को कत्ल कर डाला, चुनांचे उस ने बुलन्द आवाज से कहा, मुहम्मद कत्ल कर दिये गये।

इस आवाज को सुन कर मुशरिको ने मारे खुशी के नारे लगाने शुरू कर दिये। 

मुसलमान इन नारों को सुन कर हैरान रह गये। वे गम में डूब गये, लड़ना-भिड़ना भूल गये। गम में डूबी हुई निगाहों से खुदा के महबूब को, रसूल (ﷺ) को ढूंढ़ने लगे।

कुफ्फार ने मुसलमानों को इस घबराहट का फायदा उठाते हुए जोरदार हमला कर दिया।

मुसलमान संभले, होश में आये।

अक्सर मुसलमान यह कह कर मैदान में नये जोश के साथ कूद पड़े कि जब महबूब रसूल ही जिंदा न रहे, तो अब जिंदगी का मजा ही क्या रहा, मुसलमानो ! लड़ो और लड़ कर शहीद हो जाओ। 

मुसलमानों ने जोश में आकर पूरी ताकत से हमला किया। हर तरफ़ से तलवारें बुलन्द हुई, जोश व गजब का तूफ़ान उमड़ आया। सर कट-कट कर गिरने लगे और खून की नदियां बहने लगीं।

हजरत काब बिन मालिक (र.अ) बड़े जोश व ग़जब में भरे हुए कुफ्फार को कत्ल करते उस तरफ़ आगे बढ़ रहे थे, जहां हुजूर (ﷺ) खड़े थे। उन्होंने हुजूर (ﷺ) को सहाबा किराम के दरमियाँ खड़े हुए देख लिया। वह मारे खुशी के उछल पड़े। उन्होंने ऊंची आवाज से कहा – मुसलमानो ! खुदा का शुक्र है कि रसूले खुदा जिंदा हैं।

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इसी बीच हुजूर (ﷺ) ने निहायत ऊंची आवाज में फ़रमाया, खुदा के बन्दो ! मेरी तरफ़ आओ, मैं खुदा का रसूल हूं।

मुसलमानों ने इस आवाज को सुना, उन का गम दूर हुआ, खुशी की लहर दौड़ गयी। चेहरे खिल गये। वे हर तरफ़ से सिमट-सिमट कर आप की तरफ बढ़ने लगे।

आम तौर पर कुफ्फ़ार समझ रहे थे कि हुजूर (ﷺ) शहीद हो गये। 

हुजूर (ﷺ) की आवाज ने बता दिया था कि आप जिन्दा हैं। वे भी हर तरफ़ से सिमट-सिमट कर हुजूर (ﷺ) की तरफ़ बढ़ने लगे।

अब वह जगह जहां हुजूर (ﷺ) तशरीफ़ रखते थे, लड़ाई का मर्कज बन गयी।

बड़ी खूरेज लड़ाई होने लगी। इंसान खीरे-ककड़ी की तरह कट-कट कर गिरने लगे।

खालिद और उसके साथी हुजूर (ﷺ) के साथियों पर टूट पड़े। मुसलमान हुजूर (ﷺ) को घेरे में लिये हुए थे।

कुफ्फार उस घेरे को तोड़ना चाहते थे, इसलिए जोरदार हमले कर रहे थे।

मुसलमान भी उसी जोश व खरोश से हमले को तोड़ रहे थे और जवाबी हमले भी कर रहे थे।

इक्रिमा बिन अबू जहल ने भी हुजूर (ﷺ) की आवाज सुन ली थी। वे मय साथियों के निहायत जोश व खरोश से हुजूर (ﷺ) के साथियों पर हमलावर हुआ। 

हजरत जियाद और हजरत अम्मारा इन दो मुजाहिदों ने बड़े इस्तिकलाल से उन का हमला रोक कर खुद भी हमला कर दिया। जोरदार लड़ाई हुई, यहां ये दोनों मुजाहिद शहीद हो गये।

कुफ्फार का निशाना हुजूर (ﷺ) थे, इस लिए आप पर धावा भी ज्यादा था। वे चाहते थे कि किसी तरह रास्ता साफ़ कर के हुजूर (ﷺ) को घेरे में ले लिया जाए, लेकिन मुसलमान थे कि आप के चारों तरफ़ लोहे की दीवार बन गये थे।

खालिद ने अपने साथियों में से पचीस-बीस जवानों को अलग कर के उन को तीर चलाने का हुक्म दिया। उन लोगों ने एक बुलन्द जगह पर पहुंच कर हुजूर (ﷺ) की जमाअत पर तीर चलाना शुरू किया।

इस तीरंदाजी मे मुसलमानों को सख्त नुक्सान पहुंचने लगा। हर आदमी तीर खा-खा कर घायल हो गया। 

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चूँकि डर पैदा हो गया था कि कहीं कोई तीर हुजूर (ﷺ) को न लग जाए, इसलिए हजरत अबू दुजाना हुजूर (ﷺ) की तरफ़ मुंह कर के खड़े हो गये, गोया आप ने अपनी पीठ को ढाल बना लिया। 

वह मर्दानावार खड़े थे। तीर उनकी पीठ पर आ-आ कर लग रहा था, अगरचे तीरों के लगने से उन्हें तकलीफ़ हो रही थी, पर उन के चश्म व आबरू पर बल तक न आता था। 

अब्दुल्लाह बिन हिशाब जोहरी, खालिद का एक साथी था। मुसलमानों से बचता हुआ हुजूर (ﷺ) के करीब पहुंचा।

हुजूर (ﷺ) उस वक्त दूसरी तरफ मुतवज्जह थे।

अब्दुल्लाह बिन हिशाब ने हुजूर (ﷺ) के करीब पहुंच कर वार किया।

आप (ﷺ) का मुबारक चेहरा घायल हो गया। 

चूंकि अबू दुजाना (र.अ) आप की तरफ मुंह किये खड़े थे और अब्दुल्लाह अबू दुजाना के पीछे से आया, इसलिए उन्हों ने उसे नहीं देखा।

जब अब्दुल्लाह ने हमला कर के हुजूर (ﷺ) को जख्मी कर दिया, तो अबू दुजाना ने जोश में आ कर उस पर हमला किया। उन की तलवार अब्दुल्लाह का खूद काट कर कई इंच सर में उतर गयी।

वह जख्मी हो कर पीछे हटा। 

अबू दुजाना उस के पीछे दौड़े, वह दौड़ कर मुश्रिकों के गोल में जा घुसे। 

चूंकि अबू दुजाना जोश ब ग़ज़ब में भरे हुए थे, इसलिए वह मुश्रिकों को कत्ल करते हुए अब्दुल्लाह के पीछे ही पीछे चले गये। 

अब्दुल्लाह बिन हिशाब उन से ऐसा डर गया था कि वह अपनी जान बचाने के लिए कुफ्फ़ार के एक गोल से दूसरे में और दूसरे से तीसरे में छिपता फिरता था।

अबू दुजाना (र.अ) उस के पीछे फिरते रहे थे। वह उसे कत्ल करना चाहते थे। आखिरकार वह भाग कर अबू सुफ़ियान के लश्कर में जा घुसा और सबसे पीछे जा खड़ा हुआ।

अब हुजूर (ﷺ) तंहा रह गये थे। 

तमाम मुसलमान अलग हो गये थे या अलग कर दिये गये थे और वे जगह-जगह पूरी बहादुरी से लड़ रहे थे। अब हुजूर (ﷺ) के पास सिर्फ उम्मे अम्मारा रह गयी थीं या करीब ही हजरत अबू उबैदा बिन जर्राह लड़ रहे थे।

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उम्मे अम्मारा की बहादुरी 

इब्ने कुमैया, जिस ने हजरत मुसअब (र.अ) को शहीद किया था, हुजूर (ﷺ) की तरफ़ तलवार ले कर लपका।

हजरत उम्मे अम्मारा ने उसे झपटते हुए देख लिया। उन्हों ने बुलन्द आवाज से कहा, ओ काफ़िर ! खबरदार ! आगे कदम न बढ़ाना।

यह कहते ही उन्हों ने जां-बाजी से इब्ने कुमैया पर हमला किया।

वह दोहरी जिरह पहने हुए था। उस की जिरह पर तलवार पड़ कर उचट गयी।

हजरत उम्मे अम्मारा ने कई बार लगातार हमले लिए, पर कोई एक वार भी कामियाब न हुआ।

इब्ने कुमैया ने जोश में आकर उम्मे अम्मारा पर तलवार का एक हाथ मारा, चूंकि वह जिरह पहने हुई न थीं, न उनके पास ढाल थी, इसलिए वह इस हमले को न रोक सकीं। उन का हाथ कंधे के करीब घायल हो गया।

इतने में कुमैया हुजूर (ﷺ) की तरफ़ बढ़ा। हजरत अबू उबैदा (र.अ) ने उसे देख लिया।

अगरचे वह कूफ्फ़ार के गोल में घिरे हुए थे, हर तरफ़ से उन पर हमले किये जा रहे थे, वह बड़ी फुर्ती से हमलों को रोक रहे थे, मगर इब्ने कुमैया को बढ़ते हुए देख कर तड़प गये।

वह हुजूर (ﷺ) की हिफाजत के लिए आप की तरफ़ बढ़े। उन्होंने ऊंची आवाज से मुसलमानों से खिताब फ़रमाते हुए कहा, मुसलमानो ! खुदा के रसूल दुश्मनों के घेरे में आ गए है।

इस आवाज को सुन कर मुसलमान चौके, संभले और अपने सामने वालों को कत्ल करते हुए हुजूर (ﷺ) की तरफ़ बढ़े। 

इस बीच इब्ने कुमैया हुजूर (ﷺ) के करीब पहुंच गया। उस ने तलवार उठा कर पूरी ताक़त से हमला किया। तलवार हुजूर (ﷺ) के खूद पर पड़ी। खूद के दो-दो हलके आंखों से नीचे की हड्डी में घुस गये।

इब्ने कुमैया ने दूसरा वार करना चाहा, लेकिन उस वक्त तक अबू उबैदा (र.अ) उस के करीब पहुंच गये थे। उन्हों ने ललकार कर कहा, ओ काफ़िर ! संभल ! इब्ने कुमैया घबरा गया, वह पीछ हटा।

अबू उबैदा ने जोश में आ कर उस पर हमला किया। हमला इतना जोरदार था कि उस की दोहरी जिरह चीर उठी और कंधे के करीब घाव कर के हंसली की हड्डी तोड़ गयी।

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इब्ने कुमैया ने खौफ़नाक चीख मारी और सख्त खौफजदा हो कर भागा। 

अबू उबैदा ने उसका पीछा करना चाहा पर हुजूर (ﷺ) ने उन्हें रोक दिया। 

अब अबू उबैदा (र.अ) हुजूर (ﷺ) के पास पहुंचे। हुजूर (ﷺ) को जख्मी देख कर तड़प गये।

हुजूर (ﷺ) पूरे सब्र व इस्तिक्लाल के साथ खड़े थे और जख्मी होने है पर भी हुजूर (ﷺ) के चेहरे से मलाल या दुख नहीं जाहिर हो रहा था।

हज़रत अबू उबैदा ने खुद को जो हुजूर (ﷺ) की आंखों के नीचे हड्डी में घुसा हुआ था, दांतो से पकड़ कर खींचा। बहुत जोर लगाया, पर खूद न निकला। खूद निकालने में ज़ोर लगाते-लगाते अबू उबैदा के दो दांत टूट गये।

बड़ी जद्दोजहद के बाद खुद निकाला गया। खुद के निकलते ही खून का फ़व्वारा बहने लगा।

हुजूर (ﷺ) अपने चेहरे से खून, पोंछते जाते थे और फ़रमाते जाते थे, वह कौम कैसे फ़लाह पा सकती है, जिस ने अपने नबी के चेहरे को इस लिए खून से रंगा कि वह उन्हें अल्लाह की तरफ़ बुलाता है।

अभी हुजूर (ﷺ) यह फ़रमा ही रहे थे कि एक शरीर बदमाश ने हुजूर (ﷺ) को एक पत्थर खींच कर मारा। (नऊज़ुबिल्लाह) उस से हुजूर (ﷺ) का होंठ जख्मी होकर नीचे का एक दांत शहीद हो गया।

हुजूर (ﷺ) के पीछे.एक गढ़ा था। हुजूर (ﷺ) गढ़े में गिर गये। 

इस बीच हजरत अबू बक्र (र.अ), उमर (र.अ), अली (र.अ), हजरत तलहा (र.अ) और कुछ दूसरे सहाबा किराम (र.अ) अपने मुकाबले के दुश्मनों को खत्म कर के हुजूर (ﷺ) के पास आ गये। 

फ़ौरन हजरत अली (र.अ) ने हुजूर (ﷺ) का हाथ पकड़ा। हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) और हजरत तलहा (र.अ) ने बाहर निकाला। आप (ﷺ) का मुबारक चेहरा खून से तर हो रहा था। हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) ने अपनी इबा के दामन से खून पोंछना शुरू किया। 

हजरत तलहा बोले –

ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ) ! इस कौम के हक में बद-दुआ फ़रमाइए।

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, 

नहीं तलहा ! मैं खुदा का रसूल हूं। एक रसूल की शान यह न होनी चाहिए कि वह कौम के जुल्मों से तंग आकर बद-दुआ कर के तमाम कौम को अल्लाह के ग़जब में डाल दे।

लड़ाई अब भी जोर व शोर से हो रही थी। सर धड़ से कट-कट कर गिर रहा था। खून पानी की तरह बह रहा था। 

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हुजूर (ﷺ) ने हजरत अबू बक्र (र.अ) से फरमाया, हो सके तो उहद की पहाड़ी पर चढ़ चलो। 

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा, हुजूर (ﷺ) तशरीफ़ ले चलें। हम जांनिसार खादिम आप के साथ हैं। 

हुजूर (ﷺ) उहद की तरफ बढ़े। 

हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) ने ऊंची आवाज से कहा, मुसलमानो! उहद की पहाड़ी पर चढ़-चलो।

इस आवाज को सुन कर तमाम मुसलमान उहद की तरफ बढ़ने लगे। हुजूर (ﷺ) और सहाबा किराम भी उस तरफ़ बढ़े। 

पहाड़ी करीब ही थी। थोड़ी ही जद्दोजेहद में ये सब पहाड़ी पर चढ़ गये। मुसलमान भी इधर-उधर से सिमट-सिमटा कर उहद की पहाड़ी पर आने लगे। इस तरह लड़ाई का एक मोर्चा कायम हो गया।

अबू सुफ़ियान ने देखा कि मुसलमान बेहतरीन जगह पर पहुंच कर जी-तोड़ लड़ाई कर रहे हैं। वह पहाड़ी पर चढ़ने लगा। हुजूर (ﷺ) ने उमर (र.अ) से कहा, देखो, कुफ्फार को पहाड़ी पर चढ़ने से रोक दो।

हजरत उमर (र.अ) कुछ सहाबियों को अपने साथ लिए हुए बढ़े और बड़े जोश से कुफ्फार पर हमलावर हुए। अगरचे अबू सुफ़ियान और उसके साथियों ने ऊपर चढ़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया, पर सरफरोश मुजाहिदों ने उन्हें एक कदम भी न बढ़ने दिया, बल्कि ऐसे कड़े हमले किये कि कुफ्फ़ार को नीचे धकेल दिया। 

इस पर भी एक काफ़िर इम्ने अबी खलफ़, जो हुजूर (ﷺ) को क़त्ल कर डालने का पक्का इरादा कर के आया था, मरदानावार आगे बढ़ा और हुजूर (ﷺ) पर हमलावर हुआ।

हुजूर (ﷺ) ने हजरत हारिस के हाथ से नेजा लेकर उस पर वार किया। नेजा की अनी गरदन के नीचे की हड्डी में लगी। वह बद-हवास हो कर भागा। अगरचे जख्म मामूली था, फिर भी वह इसे बर्दाश्त नहीं कर सका और जान से हाथ धो बैठा। 

अब तमाम मुसलमान इधर-उधर से जमा हो कर कुफ्फार को मारते काटते पहाड़ी पर चढ़ गये। चूंकि कुफ्फार पहाड़ी से नीचे और मुसलमान पहाड़ी के ऊपर थे, इसलिए अब लड़ाई बन्द हो गयी।


फ़ौज को वापसी का हुक्म

अबू सुफ़ियान ने ऊंची आवाज से मालूम किया, तुम लोगों में मुहम्मद है ?

किसी ने उस का जवाब न दिया। 

उस ने फिर पूछा, क्या तुम में अबू बक्र हैं ?

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अब भी सब खामोश रहे।

उस ने फिर पूछा, क्या तुम में उमर हैं ? 

हजरत उमर (र.अ) ने चिल्ला कर कहा, ऐ खुदा के दुश्मन ! ये सभी जिंदा हैं। वह वक्त क़रीब है जब तू रुसवा होगा।

अबू सुफ़ियान ने घमंड के नशे में कहा, हबल की जय ! हबल की जय !

हुजूर (ﷺ) ने हजरत उमर (र.अ) से कहा, इसे जवाब दो ! अल्लाह व बरतर है। 

चुनांचे हजरत उमर (र.अ) ने यही जवाब दिया।

अबू सुफ़ियान ने कहा, उज्जा हमारा बुतं है, तुम्हारा नहीं।

हजरत उमर ने हुजूर (ﷺ) के इर्शाद के मुताबिक जवाब दिया, अल्लाह हमारा मौला है, तुम्हारा मौला नहीं है। 

अबू सुफ़ियान ने कहा, अब हमारा-तुम्हारा मुकाबला अगले साल बद्र नामी जगह पर होगा।

हजरत उमर (र.अ) ने हुजूर (ﷺ) के हुक्म के मुताबिक़ जवाब दिया, हमें तुम्हारा चैलेंज मंजूर है। 

इस के बाद अबू सुफ़ियान ने फ़ौज को वापसी का हुक्म दे दिया। कुफ्फार वापसी का हुक्म सुन कर बहुत खुश हुए, वे फौरन लौटे और मक्का की तरफ रवाना हुए।

मुसलमान उहद की पहाड़ी पर खड़े कुफ्फार की वापसी का मंजर देखने लगे।

थोड़े ही देर में तमाम कुफ्फार अपने मक्तूलों को लड़ाई के मैदान में छोड़ कर नजरों से ओझल हो गये।

To be continued …

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