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Subah aur Sham ki Duaein
सुबह और शाम में इन दुआओं को पढ़ना चाहिए :
بِسمِ اللهِ الَّذِي لَا يَضُرُّ مَعَ اسْمِهِ شَيْءٍ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي السَّمَاءِ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ (تمن بار)
1. बिस्मिल्लाहिल्लज़ी ला यजुररू म- अरमिहि शैउन फिल अर्ज वा फिस्समा वहुवरसमीउल अलीम. 1
(तीन बार पढ़े)
तर्जुमा : अल्लाह के नाम से (शुरु करता हूँ) जिसके नाम से ज़मीन और आसमान की कोई चीज़ नुकसान नहीं पहुँचा सकती और वह खुब सुनने और जानने वाला है।
फाइदा : रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया जो बंदा रोज़ाना सुबह और शाम यह दुआ तीन बार पढ़े तो उस को कोई चीज़ नुकसान नहीं पहुँचा सकती।
لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَ هُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
2. ला इलाह इल्लल्लाहु वहदहू ला शरी-क-लहू लहुल मुल्कु व-ल-हुल हम्दु वहु-व अला कुल्लि शैइन क़दीर. तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिए तारीफ है और वह हर चीज़ पर कादिर है।
फज़ीलत :
1. रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया जिसने सुबह यह दुआ पढ़ी तो उसे इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद से एक गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलेगा और उसके लिए दस नेकीयाँ लिखी जाएँगी और उस की दस बुराइयाँ मिटाई जाती हैं और उस के दस दरजे बुलंद किये जाते हैं और शाम तक शैतान से वह बचा रहेगा और जो शाम के वक़्त यह दुआ पढ़े तो उसे भी यही सवाब मिलेगा। 2
2. और फरमाया अगर कोई यह दुआ दिन में 100 बार पढ़े तो सवाब में उससे कोई आगे नहीं बढ़ सकता सिवा उसके जो यह दुआ दिन में 100 से भी ज़्यादा बार पढ़े। 3
सैयिदुल इस्तिग्फार (सुबह और शाम में यह दुआ भी पढ़े)
اللَّهُمَّ أَنْتَ رَبِّي لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ خَلَقْتَنِي ، وَأَنَا عَبْدُكَ، وَأَنَا عَلَى عَهْدِكَ وَوَعْدِكَ، مَا اسْتَطَعْتُ، اَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا صَنَعْتُ، أَبُوءُ لَكَ بِنِعْمَتِكَ عَلَى، وَاَبُوءُ بِذَنْبِي فَاغْفِرْ لِي، فَإِنَّهُ لَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا أَنْتَ
अल्लाहुम्म अन्त रब्बी लाइला-ह इल्ला अन्त-खलक- तनी, वअना अब्दु-क, वअना अला अदि-क, व वदिक मस्त – तस्तु, अऊजुबि – क मिन शर्रि मा सनस्तु, अबूउ ल-क-बिनिमति-क अलैय, व अबूउ बिज़म्बी फफिर ली, फइन्नहु ला यग्फिरूज्जनुब इल्ला अन्त 4
तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! तू मेरा रब है, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तूने ही मुझे पैदा किया है और मैं तेरा बंदा हूँ और मैं तेरे अहद और तेरे वादे पर अपनी ताकत के मुताबिक काइम हूँ और मैं अपने किये हुए बुरे कामों से तेरी पनाह माँगता हूँ। मुझ पर तेरे जो एहसान हैं उसका मैं इक़रार करता हूँ और मैं अपने गुनाह कबूल करता हूँ। मुझे क्युंकि के तेरे सिवा गुनाहों को बख़्शने वाला कोई नहीं।
फजीलतः
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया जिसने यह दुआ यकीन के साथ सुबह में पढ़ी और शाम से पहले मर गया तो वह जन्नत वालों में से है और जिसने रात में पढ़ी और सुबह होने से पहले मर गया तो वह जन्नत वालों में से है।
शाम की दुआ:
اَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللهِ التَّامَّاتِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ
अजु-कलिमातिल्लाहित्ताम्माति मिन शर्रि मा खलक 5
तर्जुमा : मैं पनाह माँगता हूँ अल्लाह के पूरे कलिमों के ज़रीए तमाम मख़्लूक की बुराई से।
फाइदा : रसूलुल्लाह (ﷺ) के एक सहाबी को बिच्छू ने डंख मारा जिस की वजह से उन को बहुत तकलीफ हुई और आप के पास आकर अपनी तकलीफ बताने लगे । आप (ﷺ) ने फरमाया अगर शाम को यह दुआ पढ़ लेते तो यह तकलीफ न होती।
सुबह और शाम जिन सूरतों का पढ़ना मस्नून (सुन्नत) है:
सूरह इख़्लास, सूरह फलक और सूरह नास (तीन तीन बार )
देखे: सूरह इख्लास | سورة الإخلاص
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ اللَّهُ الصَّمَدُ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ
कुल हुवल्लाहु अहद, अल्लाहुस्समद, लम् यलिद वलम यूलद, वलम कुल्लहू कुफुवन अहद.
तर्जुमा: आप कह दीजिए के वह अल्लाह एक है, अल्लाह बेनियाज़ (बेपरवा) है । न उससे कोई पैदा हुआ, और न वह किसी से पैदा किया गया और न उसका कोई हमसर (बराबर ) है । [सूरह अल-इख़लास]
देखे: सूरह फलक | سورة الفلق
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ مِن شَرِّ مَا خَلَقَ وَمِن شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ وَمِن شَرِّ النَّفَّاثَاتِ فِي الْعُقَدِ وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَِ
कुल अऊजु बिरब्बिल फलक, मिन शर रिमा ख़लक़, वा-मिन शर रिग़ासिकिन इज़ा वकब, व-मिन शर रिन नफ़फ़ासाति फ़िल उक़द, व-मिन शर रिहासिदिन इज़ा हसद
तर्जुमा: (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं सुबह के मालिक की (1) हर चीज़ की बुराई से जो उसने पैदा की पनाह माँगता हूँ (2) और अंधेरीरात की बुराई से जब उसका अंधेरा छा जाए (3) और गन्डों पर फूँकने वालियों की बुराई से (4) (जब फूँके) और हसद करने वाले की बुराई से (5) [सूरह फलक]
देखे: सूरह नास | سورة الناس
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ مَلِكِ النَّاسِ إِلَٰهِ النَّاسِ مِن شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ
कुल अऊजु बिरब्बिन नास , मलिकिन नास, इलाहिन नास, मिन शर रिल वसवा सिल खन्नास, अल्लज़ी युवस विसु फी सुदूरिन नास, मिनल जिन्नति वन नास
तर्जुमा: (ऐ रसूल) तुम कह दो मैं लोगों के परवरदिगार (1) लोगों के बादशाह (2) लोगों के माबूद की (शैतानी) (3) वसवसे की बुराई से पनाह माँगता हूँ (4) जो (ख़ुदा के नाम से) पीछे हट जाता है जो लोगों के दिलों में वसवसे डाला करता है (5) जिन्नात में से ख्वाह आदमियों में से (6) [सूरह अन-नास]
फज़ीलत : रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अपने एक सहाबी से फरमाया के सुब्ह और शाम तीन तीन बार सूरह इख़्लास और मुअव्विज़तैन (सूरह फलक और सूरह नास) पढ़ो, यह तुम्हें हर मुसीबत और परेशानी से बचाएगी। 6