सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 4

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 4

पेज: 36 

ख़ास तब्लीग

हजरत मुहम्मद सल्ल० एक मुद्दत से तन्हाई में रहना पसन्द करने लगे थे। ज्यादातर हिरा के गार में वक्त गुजारते, हफ्तों घर न आतें, ऐसा लगता था, गोया हुजूर सल्ल० को दुनिया से नफ़रत हो गयी है।

हुजूर बचपन में अपने चचा अबू तालिब के साथ शाम देश में तिजारत के लिए तशरीफ़ ले जाते रहे। जवानी में हज़रत खदीजा की तिजारत का माल ले जाते थे। आप सच्चे और अमानतदार थे। कारोबार में मामला इतना साफ़ रखते थे कि किसी को भी किसी किस्म की शिकायत न होती। सब खुश रहते। जो एक बार आप सल्ल० से मामला कर ले, आप के अखलाख का क़ायल हो जाता। सिर्फ़ मक्का ही नहीं, यमन, बसरा, शाम के मुल्क में भी हुज़र जहां-जहां तशरीफ़ ले गये और जिन लोगों ने आप से मामला किया, सब आप की तारीफ करते। 

अक्सर लोग आप के साथ तिजारत का माल कर देते। आप पूरी ईमानदारी से माल बेचते और पूरी कीमत मालिक को दे देते। इस से आप की सच्चाई, ईमानदारी, दयानतदारी, अच्छे अख्लाक की आम शोहरत हो गयी। यह शोहरत इतनी बढ़ी कि दुनिया ने आप को ‘अमीन ताजिर’ का लकब दिया, हर जगह आप इसी नाम से मशहूर हो गये। आप वायदे के इस कदर सच्चे थे कि जो वायदा कर लेते, हजारों मुसीबतें उठाने पर भी उसे पूरा करते।

आप की दयानतदारी पर लोगों को इतना भरोसा था कि नकद रुपयों के अलावा कीमती चीजें भी आप के पास अमानत रख जाते थे और जब जरूरत पड़ती, ले जाते। हर चीज अपनी असली शक्ल में मिलती। आप की इस दयानतदारी और अमानतदारी की शोहरत आम हो गयी।

हजरत खदीजा ने भी सुना, तिजारत के कामों में इम्तिहान भी लिया। आप सल्ल० के अच्छे अल्लाक, पाकबाजी, शराफ़त, दयानत व’अमानत और शराफ़त का उन पर ऐसा असर हुआ कि खुद नफीया नाम की औरत के जरिए शादी का पैगाम दे दिया।

पेज: 37 

हजरत खदीजा (र.अ) से निकाह

हजरत खदीजा बिन्ते खुवैलद बहुत शरीफ़ खातून थीं। उन का खानदानी सिलसिला पांचवीं पीढ़ी से हुजूर सल्ल० के खानदान से मिलता है। वह बेवा थी। बहुत शरीफ़ और पाकीजा अख्लाक थीं। लोग उन को ताहिरा के नाम से याद करते थे।

दौलतमन्द इतनी थीं कि जब मक्के वालों का काफिला तिजारत के लिए रवाना होता तो अकेला उनका सामान तमाम काफिले के सामान के बराबर होता था। उस जमाने में उन से बड़ा ताजिर मक्के में कोई न था।

जब उन्होंने निकाह का पैगाम दिया तो हुजूर सल्ल. ने अपने चचा अबू तालिब से मश्विरा कर के मंजूर कर लिया, चुनांचे निकाह हो गया। निकाह का खुत्बा अबू तालिब ने पढ़ा और पांच सौ दिरहम महर करार पाया। क्यूंकि हजरत खदीजा मालदार थीं, खूबसूरत और पाकीजा और अरब के ऊंचे खानदान से थी, इसलिए अक्सर लोगों ने उन से निकाह करने का इरादा किया था, पर उन्हों ने तमाम दर्खास्तें रद्द कर दी थीं, शायद उन का निकाह करने का इरादा था ही नहीं, पर हुजूर सल्ल० की अमानत व दयानत और सच्चाई और अच्छे अखलाख की शोहरत सुन कर ऐसी निछावर हुई कि खुद निकाह का पंगाम देकर निकाह कर लिया।

निकाह के वक्त हुजूर सल्ल० की उम्र पच्चीस साल और हजरत खदीजा की उम्र चालीस साल थी। हजरत खदीजा से आप के दो लड़के कासिम और ताहिर पैदा हुए और बचपन ही में इन्तिकाल कर गये।

कासिम इस हद तक बड़े हो गये थे कि सवारी वगैरह पर सवार हो सकते थे। कासिम की वजह से आप का लकब अबुल कासिम मशहूर हुआ ।

हजरत खदीजा से आप की चार साहबजादियां हजरत फातमा, हजरत जैनब, हजरत रुकया और हजरत उम्मे कुलसम हुई। इन में हजरत रुक्कैया सब से बड़ी थीं। 

हजरत जैनब का निकाह अबुल आस बिन रुबस से हुआ था।

हजरत उम्मे कुलसूम का निकाह हजरत उस्मान गनी रजि. से हुआ था। उन की वफ़ात के बाद हजरत रुकया हजरत उस्मान से ब्याही गयीं। इसी वजह से हजरत उस्मान का लकब जुन्नूरैन था। हजरत फातमा सबसे छोटी थीं।

पेज: 38 

हज़रत अली हुज़ूर सल्ल० की परवरिश में:

आप के चचा अबू तालिब के तीन बेटे अकील, जाफ़र और अली थे, बाल-बच्चेदार थे। तंगी के साथ वक्त गुजरता था। एक बार जब कहत पड़ा और अब तालिब बड़ी तंगी में गिरफ्तार हो गये, तो हुजूर सल्ल० अपने चचा अब्बास से फ़रमाने लगे कि चचा अबू तालिब तंगी की जिंदगी जी रहे हैं, हमें चाहिए कि हम उनकी मदद करें। एक लड़के को आप ले आएं और एक को मैं ले आऊं। हजरत अब्बास रजि० ने मंजूर कर लिया।

दोनों अबू तालिब की खिदमत में पहुंचे और उन से अपनी ख्वाहिश जाहिर की। अबू तालिब ने कहा, अकील को मेरे पास रहने दो, जाफ़र को अब्बास ले जाएं और अली को तुम ले जाओ। चुनांचे हजरत जाफ़र को अब्बास ले गये और हजरत अली को हजूर सल्ल० ले आए और उन की परवरिश करने लगे।

हजरत खदीजा के एक भतीजे हकीम बिन हिजाम थे। दौलतमन्द आदमी थे। वह एक ईसाई गुलाम जैद बिन हारिस को खरीद लाये थे।

उन्हों ने जैद को हजरत खदीजा को भेंट कर दिया। हजरत खदीजा ने हुजूर सल्ल० को भेंट कर दिया। आप ने उसे अपने अजीज की तरह अपने पास रख लिया।

कुछ दिनों के बाद जैद के बाप हारिस और चचा काब उसे लेने के लिए आए और हुजूर सल्ल० की खिदमत में हाजिर हुए। निहायत आजिजी से दर्खास्त की कि जैद को या तो आजाद कर के उन के साथ कर दिया जाए या उन की मुनासिब कीमत लेकर आजाद कर दिया जाए।

आप सल्ल० ने फ़रमाया, अगर जैद आप के साथ जाने पर तैयार हो, तो उसे आजाद कर दूंगा। चुनांचे जैद को बुलवाया गया। उन के बाद हारिस ने उन से पूछा, जैद ! क्या तुम हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो ?

जैद ने जवाब दिया, नहीं। हारिस को बड़ा ताज्जुब हुआ। उसने पूछा, किस वजह से ?

जैद ने जवाब दिया, अगरचे मैं गुलाम हैं, मगर मैं एक ऐसे बा-अख्लाक और मेहरबान की खिदमत में हूं, जिस की इनायत ने मेरे दिल में घर कर लिया है और मैं उन से जुदा होना नहीं चाहता।

हारिस को गुस्सा आया। उस ने कहा बदबख्त ! क्या तू आजादी को गुलामी पर तर्जीह देता है ?

जैद ने कहा, हजरत मुहम्मद सल्ल० की गुलामी पर हजारों आजादियां कुर्बान हैं। मैं ने उन में ऐसी बातें देखी हैं कि मैं सारी दुनिया पर उन्हें तर्जीह दूंगा।

हारिस और उस के चचा काब ने बहुत समझाया, पर वह किसी तरह वहां से जाने पर राजी न हुए। मजबूरन दोनों खामोश हो गये। हुजूर सल्ल० उठे और जैद और उन के बाप और चचा को साथ लेकर खाना काबा में आ गये और यह ऐलान किया कि लोगो! गवाह रहो कि आज मैं ने जंद को आजाद कर दिया है और उसे अपना बेटा बना लिया है। 

जैद के बाप और चचा इस बात से खुश हो गये और जैद को आप के पास छोड़ कर चले गये। आप का रसूख हर तबके के लोगों में था, रईस, अमीर, गरीब, फकीर, सिपहसालार, सिपाही, गरज कि सब से आप सल्ल० मिलते और सब आप से मिलते थे, लेकिन आप के खास ताल्लुक खास लोगों से थे, और ज्यादा अबू बक्र बिन कहाफ़ा से ताल्लुकात थे।

पेज: 39 

अबू बक्र (र.अ) का मुख़्तसर तारुफ़

अबू बक्र निहायत खूबसूरत थे। खूबसूरती की वजह से आपका लकब अतीक पड़ गया था। आप क़बीला बनू तमीम में से थे। खून बहा और तावान का फ़ैसला करने के लिए आप हाकिम बनाये जाया करते थे। आप का फैसला तमाम कबीलों को बे चुन व चरा मानना पड़ता था। आप बहुत अमीर थे। मिस्र व शाम को तिजारत की गरज से जाया करते थे। तमाम कबीलों में आप का असर व रसूख था। छठी पीढ़ी में आप का खानदान हजूर सल्ल० के खानदान से मिल जाता है।

उस्मान बिन अफ्फान आप के दामाद थे। हजरत उस्मान की नानी हजूर सल्ल० के वालिद हजरत अब्दुल्लाह की सगी बहन थीं, जो हजरत अब्दुल्लाह के साथ जुड़वाँ पैदा हुई थीं। इस तरह हजरत उस्मान हुजूर सल्ल० की फूफीजाद बहन के बेटे थे। निहायत मालदार, बड़े सखी, बड़े शर्मीले थे। 

आप से भी हुजूर सल्ल० के खास ताल्लुकात थे। इनके अलावा अबू सुफ़ियान, खालिद, अबू जहल, सुहेब वगैरह से भी ताल्लुकात थे। हर कबीला, कबीले का हर आदमी आप को इजत की नजरों से देखता था। अक्सर लोग आपसी लड़ाई के वक्त आप को हकम करार देते थे, आप के फैसले को मानते थे, लेकिन जब से आप हिरा की गुफा में ज्यादा वक्त लगाने लगे थे, उस वक्त से आप ने लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया था और जब से आप पर वह्य आनी शुरू हुई, तो आप चुपचाप रहने लगे लगे थे। 


वह्य का सिलसिला

हजरत खदीजा को आपकी खामोशी से बड़ी चिन्ता हो गयी थी। किसी काम में दिल नहीं लगता था। हुजूर सल्ल० खामोश बैठे थे कि हजरत अली आ गये। हजरत अली आप ही के पास रहते थे। उम्र में बहुत छोटे थे। खामोश देख कर उन्हें कुछ कहने की हिम्मत न हुई। शाम तक हुजूर बैठे रहे। रात को खाना खाकर आराम किया, इस के बाद वह्य आती रही।

एक दिन आप पहाड़ के दामन में बैठे हुए थे कि हजरत जिब्रईल तशरीफ़ लाये और उन्होंने वुजू किया। हुजूर सल्ल० ने भी इसी तरह वुजू किया, जिस तरह हजरत जिब्रईल ने किया था। फिर हजरत जिब्रईल ने नमाज पढ़ी। उस दिन से हुजूर नमाज पढ़ने लगे। आप तन्हा नमाज पढ़ते थे, न कोई उस वक्त तक मुसलमान हुआ था, न नमाज़ पढ़ता था। पहले तो आप पहाड़ी पर नमाज पढ़ते थे। फिर धीरे-धीरे मकान पर भी नमाज पढ़ने लगे। 

पेज: 40 

हजरत खदीजा, हजरत अली, जैद आप को नमाज पढ़ते हैरत से देखा करते थे। वह्य के आने का सिलसिला जारी रहा। एक वह्य में आया ‘और तूझ को जो हुक्म दिया गया है, खोल कर कह दो।’ 

आप रब के इस हुक्म को सुन कर परेशान हो गये। आप की परेशानी सही भी थी। उस वक्त सभी लोग गुमराही में पड़े हुए थे, खास तौर पर अरब का हर कबीला और हर आदमी मुहिद था, बुत परस्ती आम थी, वाहिद खुदा (अल्लाह) को कोई जानता भी न था, फिर ऐसे सख्त और सरकश लोग थे कि बुतों के खिलाफ एक लफ्ज भी सुनने को तैयार न थे।

हजूर सल्ल. सोचने लगे कि तब्लीग कहां से और कौन से लोगों से शुरू की जाए ? अल्लाह का हुक्म हुवा कि अपने करीबी खानदान वालों को डराओ।

वह्य ने तब्लीग का रास्ता बताया। आप ने तुरन्त तब्लीग शुरू की।

सब से पहले हजरत मुहम्मद सल्ल० ने हजरत खदीजा के सामने अल्लाह की तारीफ़ बयान की। हजरत खदीजा बुतों की पूजा करती थी, मगर वह वरका से सुन चुकी थीं कि हुजूर सल्ल० पैगम्बर हो जाएं तो अजब नहीं, फ़ौरन ईमान ले आयीं, कुफ्र व शिर्क से तौबा कर के मुसलमान हो गयीं। हजूर सल्ल० को उन के मुसलमान होने से खुशी हुई।

हुजूर.सल्ल० तनहा नमाज पढ़ा करते थे, अब हजरत खदीजा के साथ मिल कर पढ़ने लगे।


पेज: 41  

हजरत अली (र.अ) का ईमान लाना 

एक दिन हुजूर सल्ल० और हजरत खदीजा नमाज पढ़ रहे थे कि हजरत अली आए। उस वक़्त आप को सख्त ताज्जुब हुआ, अगरचे आप पहले भी हुजूर सल्ल० को नमाज पढ़ते देख चुके थे, लेकिन हजरत खदीजा को कभी न देखा था। जब वह नमाज़ से फ़ारिग हुए, तो आप ने हुजूर सल्ल० से पूछा, आप दोनों क्या कर रहे हैं ?

हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया, नमाज पढ़ रहे हैं। आप ने हैरान होकर कहा, नमाज ! लेकिन सज्दा बुतों को किया जाता है और आप के सामने कोई बुत न था ?

हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया, बुतों को नहीं पूजते, वल्कि खुदा (अल्लाह) को पूजते है, हजरत अली यह सुन कर हैरान रह गये।

आप सल्ल० ने कहा, यह तो अजीब बात है, मैं ने पहले कभी नहीं सुनी।

हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया, अली ! मैं खुदा का रसूल हूं। खुदा का पैगाम मुझ पर उतरता है। आओ, तुम भी दीने हक में दाखिल हो जाओ।

हजरत अली ने कहा, मुझे सोचने दीजिए।

हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया, ऐ अली! अगर तू इसे कबूल कर ले तो रात तक उसे छिपाना, ताकि खुदा तेरे दिल में इस्लाम डाल दे।

हजरत अली ने इस बात का इकरार कर लिया।

जब रात गुजर गयी तो हजरत अली हुजूर सल्ल० के पास आए और कहा, मैं अब खुदा के दीन में दाखिल होना चाहता हूं।

हुजूर सल्ल० ने तुरन्त कलिमा पढ़वा कर मुसलमान कर लिया और हिदायत की कि अभी अपने इस्लाम को किसी पर जाहिर न करें।

हुजूर सल्ल० चाहते थे कि धीरे-धीरे कुछ लोग मुसलमान हो जाएं, तब एलानिया तब्लीग करें और हुक्म भी यही आया था कि पहले घर वालों को खुदा से डराओ।

पेज: 42

हजरत अबू बक्र (र.अ) का इस्लाम अपनाना

एक दिन आप सल्ल० बैठे थे कि हजरत अबू बक्र आये। जब वह बैठ चुके तो हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया, अबू बक्र ! तुम मुझे क्या समझते हो ? हजरत अबू बक्र ने कहा, बहुत नेक और बहुत बा-अख्लाक ! 

और सच्चा भी? हां, सच्चा भी। मैं ने कभी गलत बात कहते हुए आप को न सुना। 

अगर मैं यह कहूं कि मैं खुदा का रसूल हूं और मुझ पर वह्य उतरती है, तों तुम यकीन करते हो।

बेशक यकीन करूंगा। अच्छा सुनो, मुझ पर वह्य उतरती है। मैं खुदा का पैग़म्बर हूं और खुदा का हुक्म है कि गैर-अल्लाह की पूजा छोड़ दो। उसी को पूजो जिसने तुम को पैदा किया है और जिस के हाथ में फ़ना और बक़ा है।

हजरत अबू बक्र ने कहा – मैं उस अल्लाह पर ईमान लाया। आप को यह सुन कर बेहद खुशी हुई और हजरत अबू  बक्र को सीने से लगा लिया। थोड़ी देर बाद हजरत अबू बक्र (र.अ) चले गये।


हजरत ज़ैद बिन हरीसा (र.अ) का इमांन लाना

कुछ दिनों के बाद आप सल्ल० ने जैद से कहा, जैद ! मैं अल्लाह का रसूल हूं। उस के भेजे दीन का प्रचार करता हूं। तुम भी अल्लाह के दीन में ३ दाखिल हो जाओ। जैद बोले, मेरे मालिक ! मैं आप को खूब अच्छी तरह जानता हूं, इस लिए मुझे आप की बातों में जरा भी शक नहीं है। आप मुझे मुसलमान कर ले।

हुजूर सल्ल० ने जैद को भी मुसलमान कर लिया। अब तीन बहुत ही करीबी लोग हुजूर सल्ल० पर ईमान ला चुके थे।

दीन की तब्लीग़ का काम बड़ी राजदारी, खामोशी और चुपके-चुपके शुरू हुआ। लेकिन यह बात छिपने वाली कब थी? धीरे-धीरे लोगों को मालूम होने लगी। सारे मक्का में चर्चा शुरू हो गयी। कुफ्फ़ारे मक्का ने सुना, सख्त नाराज हुए और खुल कर कह दिया कि जो कोई हमारे माबूदों की बुराई करेगा, हम उसे कड़ी से कड़ी सजा देंगे।

अगरचे सल्ल० जानते थे कि हम तंहा हैं, कमजोर हैं, मक्का वालों का मुकाबला किसी तरह भी नहीं कर सकेंगे, पर आप न डरे, न घबराये, बल्कि पहले ही की तरह तब्लीग करते रहे। यह एक ऐसी दलेरी की बात थी, जिस की मिसाल तारीख में नहीं मिलती।

एक अकेले आदमी का सारी कौम और पूरे मुल्क के मुकाबले में खड़े हो जाना बड़े दिल-गुर्दे की बात थी, वह भी इस हालत में कि न आप के हाथ में तलवार थी और न तलवार में यह ताकत थी कि आप लोगों को डरा-धमका सकें, न आप के पास आदमी थे कि कौम आप के आदमियों की धौंस खा जाती, न हुकमत थी जिस से लोग दब जाते, न दौलत थी कि कोई लालच में आ जाए। 

कहने का मतलब यह है कि कुछ न था, हां, अगर कुछ था तो अल्लाह पर यकीन था, इसी यक़ीन ने आप सल्ल० में बे-मिसाल हौसला पैदा कर दिया था।

आप अल्लाह के भरोसे बराबर तब्लीग में लगे रहे, मगर एलानिया नहीं, खुफ़िया तौर पर। जो आप के पास आता, चाहे वह मक्के का हो, या मक्के से बाहर का, आप उस के सामने भी अल्लाह का कलाम पढ़ देते, अल्लाह का हुक्म बयान कर देते। अगरचे शुरू में आप की तब्लीग का तरीका यही रहा, लेकिन इस्लाम और मुसलमानों का जिक्र घर-घर होने लगा।

To be continued …

इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा …. 
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और अपनी राय भी दे … 

Leave a Reply