रसूलुल्लाह (ﷺ) को जब खुशी का मौक़ा आता या कोई खुशखबरी सुनाई जाती,
तो आप (ﷺ) सज्दा ए-शुक्र अदा करते।
खुशी के वक्त सज्द-ए-शुक्र अदा करना
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नमाज़ में भूल चूक हो जाए तो सज्दा-ए-सहव करना रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जब तुम में से किसी को (नमाज़ में) भूल चूक हो जाए, तो सज्दा-ए-सहव कर ले।" 📕 मुस्लिम १२८३ फायदा : अगर नमाज़ में कोई वाजिब से छूट जाए या वाजिबात और फराइज़ में से किसी को अदा करने में देर हो जाए तो सज्द-ए-सब करना वाजिब है, इस के बगैर नमाज़ नहीं होती।
हज़रत तल्हा बिन उबैदुल्लाह (र.अ) हजरत तल्हा बिन उबैदुल्लाह (र.अ) का शुमार भी उन दस लोगों में होता है जिन को रसूलुल्लाह (ﷺ) ने दुनिया ही में जन्नत की खुशखबरी सुना दी थी। आप इस्लाम लाने वालों में अव्वलीन साबिकीन में से की हैं, ग़ज़व-ए-बद्र के अलावह तमाम ग़जवात में रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ रहे और आप को बैअते रिजवान का भी शर्फ हासिल है। जंगे उहुद के दिन जब दुश्मनों ने रसूलुल्लाह (ﷺ) को अपने तीरों का निशाना बना रखा था, उस वक्त हज़रत तल्हा ने अपने जिस्म के ज़रिये आप (ﷺ) की हिफाजत की। जिस की वजह से उन का हाथ शल हो…
मदीना में हुजूर (ﷺ) का इस्तिकबाल कुबा में चौदा दिन कयाम फ़र्मा कर रसूलुल्लाह (ﷺ) मदीना तय्यिबा के लिये रवाना हो गए, जब लोगों को आप के तशरीफ लाने का इल्म हुआ, तो खुशी में सब के सब बाहर निकल आए और सड़क के किनारे खड़े हो गए, सारा मदीना "अल्लाहु अक्बर" के नारों से गूंज उठा, अंसार की बच्चियाँ खुशी के आलम में यह अश्आर पढ़ने लगीं: “तर्जुमा: "रसूलुल्लाह (ﷺ) की आमद ऐसी है के गोया के वदअ पहाड़ की घाटियों से चौदहवीं का चाँद निकल आया हो, लिहाज़ा जब तक दुनिया में अल्लाह का नाम लेने वाला बाकी रहेगा, उन का शुक्र हम पर…
रुख्सत के वक़्त मुसाफा करना रसूलुल्लाह (ﷺ) जब किसी को रुख्सत फर्माते, तो उस का हाथ अपने हाथ में ले लेते और उस वक़्त तक (उसका हाथ) न छोड़ते, जब तक के वह आप के हाथ को खुद न छोड़ दे। 📕 तिर्मिजी : ३४४२, अन इब्ने उमर (र.अ)
किसी की मुसीबत पर खुशी का इजहार मत करो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "तम अपने किसी भाई की मुसीबत पर खुशी का इजहार मत करो। (अगर एसा करोगे तो हो सकता है के) अल्लाह तआला उसको उस मुसीबत से नजात दे दे और तुम को उस मुसीबत में मुब्तला कर दे।" 📕 तिर्मिजी: २५०६
औरतों का चंद बातों पर अमल करना औरतों का चंद बातों पर अमल करना रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "अगर औरत पाँच वक़्त की नमाज पढ़े और रमजान के रोजे रखे और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करे और अपने शौहर की फरमाबरदारी करे (तो कयामत के दिन) उससे कहा जाएगा: तुम जन्नत के जिस दरवाजे से चाहो जन्नत में दाखिल हो जाओ।" 📕 मुस्नदे अहमद : १६६४
खाने के बाद शुक्र अदा करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “खाना खा कर जो (अल्लाह का) शुक्र अदा करता है, वह रोजा रख कर सब्र करने वालों के बराबर है।” 📕 मुस्तदरक, हदीस १५३७
मुस्कुराते हुए मुलाकात करना हजरत जरीर (र.अ) के फर्माते हैं के मेरे इस्लाम लाने के बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मुझे कभी भी किसी भी वक्त अपने पास हाजिर होने से नहीं रोका और जब भी मुझे देखते तो आप मुस्कुराते थे। 📕 बूखारी : ३०३५
मदीना में हुजूर (ﷺ) का इन्तेज़ार जब मदीना तय्यिबा के लोगों को यह मालूम हुआ के रसूलुल्लाह (ﷺ) मक्का से हिजरत कर के मदीना तशरीफ ला रहे हैं, तो उन की खुशी की इन्तेहा न रही, बच्चे बच्चियाँ अपने छतों पर बैठ कर हुजूर (ﷺ) के आने की खुशी में तराने गाती थीं, रोजाना जवान, बड़े बूढ़े शहर से बाहर निकल कर दोपहर तक आप (ﷺ) की तशरीफ आवरी का इन्तेज़ार करते थे। एक दिन वह इन्तेज़ार कर के वापस हो ही रहे थे के एक यहूदी की नज़र आप (ﷺ) पर पड़ी तो वह फौरन पुकार उठा "लोगो ! जिन का तुम को शिद्दत से…
रमज़ान की फरज़ियत और ईद की खुशी सन २ हिजरी में रमजान के रोजे फर्ज हुए। इसी साल सदक-ए-फित्र और जकात का भी हुक्म नाजिल हुआ। रमजान के रोजे से पहले आशूरा का रोज़ा रखा जाता था, लेकिन यह इख्तियारी था, जब रसूलुल्लाह (ﷺ) मदीना तशरीफ लाए, तो देखा के अहले मदीना साल में दो दिन खेल, तमाशों के जरिये खुशियाँ मनाते हैं, तो आप (ﷺ) ने उनसे दरयाफ्त किया के इन दो दिनों की हकीकत क्या है? सहाबा ने कहा : हम ज़माना-ए-जाहिलियत में इन दो दिनों में खेल, तमाशा करते थे। चुनान्चे रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया: "अल्लाह तआला ने इन दो दिनों को बेहतर दिनों…
क़ज़ा नमाजों की अदायगी रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "जो कोई नमाज पढ़ना भूल गया या नमाज के वक्त सोता रह गया, तो (उसका कफ्फारा यह है के) जब याद आए उसी वक्त पढ़ ले।” 📕 तिर्मिज़ी: १७७ फायदा: अगर किसी शख्स की नमाज किसी उज्र की वजह से छूट जाए या सोने की हालत में नमाज़ का वक़्त गुज़र जाए, तो बाद में उसको पढ़ना फर्ज है।
ग़ज़वा-ए-उहुद में मुसलमानों की आज़माइश जंग-ए-उहुद में मुसलमानों की आज़माइश ग़ज़वा-ए-उहुद में मुसलमानों ने बड़ी बहादुरी से मुशरिकीने मक्का का मुकाबला किया, जिस में पहले फतह हुई, मगर बाद में एक चूक की वजह से नाकामी का सामना करना पड़ा। जंग शुरू होने से पहले रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पचास तीरअन्दाजों की एक जमात को पहाड़ की घाटी पर जहाँ से दुश्मनों के हमले का खतरा था, मुकर्रर कर दिया और यह ताकीद फरमाई के "जंग में फतह हो या शिकश्त" तुम अपनी जगह से हरगिज न हटना। जब मुसलमानों को शुरू में फतह हुई, तो काफिरों को भागता हुआ देख कर यह लोग भी अपनी…
इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है ... रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर फर्ज है।” 📕 इब्ने माजा: २२४ फायदा : हर मुसलमान पर इल्मे दीन का इतना हासिल करना फर्ज है के जिस से हलाल व हराम में तमीज़ कर ले और दीन की सही समझ बूझ, इबादात के तरीके और सही मसाइल की मालमात हो जाए।
कर्ज़ अदा करना रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "क़र्ज़ की अदायगी पर ताकत रखने के बावजूद टाल मटोल करना जुल्म है।" 📕 बुखारी : २४००
पसंद के मुताबिक हदिया देना रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जो आदमी अपने मुसलमान भाई से किसी ऐसी चीज़ के साथ मुलाकात करे जिस से वह खुश होता हो, तो अल्लाह तआला उस को कयामत के दिन खुश कर देगा। 📕 तबरानी सगीर : ११७५ वजाहत: हदीस से मालूम हुआ के किसी दीनी भाई के यहाँ जाते वक़्त उस की पसंद के मुताबिक़ कोई चीज़ पेश करना चाहिये इस से अल्लाह की रजा व खुश्नूदी हासिल होती है।