हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 8) | Qasas ul Anbiya: Part 28

हजरत मूसा अलैहि सलाम (भाग: 8)
Qasas ul Anbiya: Part 28

अस्सलामु अलैकुम ! पिछले पार्ट 27 में हमने देखा बनी इसराईल की गौशालापरस्ती और सामरी का हश्र। अब आगे देखेंगे बनी इस्राईल में सत्तर सरदारों का इंतिख़ाब और उनके हथधर्मी के तहत अल्लाह का अजाब। 

सत्तर सरदारों का इंतिख़ाब

.      जब बनी इसराईल का यह जुर्म माफ़ कर दिया गया तो अब हजरत मूसा अलैहि सलाम ने उनसे फ़रमाया कि मेरे पास जो ये ‘अलवाह‘ (तख्तियां) हैं, यह किताब है, जो अल्लाह तआला ने तुम्हारी हिदायत और दीनी व दुनियावी जिंदगी की फ़लाह के लिए मुझको अता फरमाई है, यह तौरात है। अब तुम्हारा फर्ज है कि इस पर ईमान ले आओ और इसके हुक्मों को पूरा करो।

      बनी इसराईल बहरहाल बनी इसराईल थे, कहने लगे, मूसा! हम कैसे यक़ीन करें कि यह अल्लाह की किताब है? सिर्फ तेरे कहने से तो हम नहीं मानेंगे, हम तो जब उस पर ईमान लाएंगे कि अल्लाह को बे-परदा अपनी आंखों से देख लें और वह हमसे यह कहे कि यह तौरात मेरी किताब है, तुम इस पर ईमान लाओ।

      हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने उनको समझाया, यह बेवकूफ़ी का सवाल है, इन आंखों से अल्लाह को किसने देखा है जो तुम देखोगे? यह नहीं हो सकता, मगर बनी इसराईल का इसरार बराबर कायम रहा।

      हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने जब यह देखा तो कुछ सोचकर इरशाद फ़रमाया कि यह तो नामुमकिन है कि तुम लाखों की तायदाद में मेरे साथ हुईव (तूर पहाड़) पर इसकी तस्दीक के लिए जाओ, मुनासिब यह है कि तुममें से कुछ सरदार चुनकर साथ लिए जाता हूं, वे अगर वापस आकर तस्दीक कर दें तो फिर तुम भी तस्लीम कर लेना और चूकि अभी गौशाला परस्ती करके एक बहुत बड़ा गुनाह कर चुके हो, इसलिए नदामत के इजहार के लिए और अल्लाह से आगे नेकी के अहद के लिए भी यह मौका मुनासिब है। कौम इस पर राजी हो गई और हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने तमाम अस्बात से सत्तर सरदारों को चुन लिया और तूर पर जा पहुंचे।

      तूर पर एक सफेद बादल की तरह ‘नूर’ ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को घेर लिया और अल्लाह से हमकलामी शुरू हो गई। हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने अल्लाह के दरबार में अर्ज़ किया कि तू बनी इसराइल के हालात का दाना व जीना है, मैं उनकी जिद पर सत्तर आदमी इतिख़ाब कर लाया हूं क्या अच्छा हो कि वे भी इस ‘हिजाबे नूर’ से मेरी और तेरी हमकलामी को सुन ले और क़ौम के पास जाकर तस्दीक करने के काबिल हो जाए? 

अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम की दुआ मंज़ूर फ़रमा ली और उनको ‘हिजाबे नूर‘ में लिया गया और उन्होंने हजरत मूसा अलैहि सलाम और अल्लाह रब्बुल आलमीन की हमकलामी (आपस की बात-चीत) को सुना।


सरदारों की हथधर्मी, अज़ाबे इलाही और नई जिंदगी

लेकिन जब नूर का परदा हट गया और हज़रत मूसा अलैहि सलाम और उन सरदारों के दर्मियान आमना-सामना हुआ तो सरदारों ने वही अपना पहला इसरार कायम रखा कि जब तक बे-परदा अल्लाह को न देख लें, हम ईमान लाने वाले नहीं।

      इस बेवकूफी के इसरार और जिद पर अल्लाह की गैरत ने उनको यह सज़ा दी कि एक हैबतनाक चमक, कड़क और जलजले ने उनको आ लिया और जला कर खाक कर दिया। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने जब यह देखा तो अल्लाह के दरबार में आजिजी के साथ दुआ मांगी, इलाही! ये बेवकूफ़ अगर बेवकूफ़ी कर बैठे तो क्या तू हम सब को हलाक कर देगा। ऐ अल्लाह! अपनी रहमत से तू इनको माफ कर दे। अल्लाह तआला ने हजरत मूसा अलैहि सलाम की दुआ को सुना और उन सबको दुबारा ताजा जिंदगी बख्शी और फिर जब वे जिंदगी का लिबास पहन रहे थे तो एक दूसरे की ताजा जिंदगी को आंखों से देख रहे थे। [अल बक़रह 55]


बनी इसराईल का फिर इंकार और तूर पहाड़ का सरों पर बुलंद होना

बहरहाल जब ये सत्तर सरदार दोबारा जिंदगी पाकर क़ौम की तरफ वापस हुए तो उन्होंने क़ौम से तमाम किस्सा कह सुनाया और बताया कि मूसा अलैहि सलाम जो कुछ कहते हैं वह हक है और बेशक वे अल्लाह के भेजे हुए हैं।

      अब सलीम फ़ितरत का तकाज़ा तो यह था कि ये सब अल्लाह तआला का शुक्र बजा लाते और उसके ज़्यादा-से-ज्यादा फ़ज़्ल व करम को देखते हुए फरमाबरदारी और उबूदयित के साथ उसके सामने सर झुका देते, मगर हुंवा यह कि उन्होंने अपनी टेढ़ को बाकी रखा और अपने नुमाइन्दों की तस्दीक के वावजूद तौरात के कुबूल करने में ठुकराने और कुबूल न करने का रवैया अपना लिया और हज़रत मूसा अलैहि सलाम के इर्शाद पर कान न धरा।

      जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने यह देखा तो ख़ुदा के दरबार में रुजू करते हुए कौम की बेराहरवी की शिकायत की। अल्लाह के दरबार से हुक्म हुआ कि इन नाफ़रमानों के लिए मैं तुझको एक हुज्जत (मोजज़ा) और अता करता हूं और वह यह कि जिस पहाड़ (तूर) पर तू मुझसे हमकलाम हुआ है और जिस पर तेरी क़ौम के चुने हुए सरदारों ने हक़ का मुशाहदा किया है, उसी पहाड़ को हुक्म देता हूं कि वह अपनी जगह से हरकत करे और साइवान की तरह बनी इसराईल के सरों पर छा जाए और जुबाने हाल से यह सवाल करे कि मूसा अल्लाह का सच्चा पैग़ंबर है और तौरात बेशक अल्लाह की सच्ची किताब है और अगर ये दोनों हक व सदाकत का मजहर न होते तो, यह शानदार ‘निशान’ तुम न देखते, जिसका जाहिर होना अल्लाह की कुदरत के सिवा और किसी तरह भी नामुमकिन है।

      चुनांचे ज्योंही अल्लाह का यह फैसला हुआ, तूर उनके सरों पर सायबान की तरह नजर आने लगा और जुबाने हाल से कहने लगा कि ऐ बनी इसराइल! अगर तुममें अक्ल और होश बाक़ी है और हक व बातिल की पहचान मौजूद है तो कान खोल कर सुनो कि मैं अल्लाह का निशान बनकर तुमको यकीन दिलाता हूं और गवाही देता हूं कि मूसा अलैहि सलाम ने कई बार मेरी पीठ पर बैठ कर अल्लाह तआला से साथ बात करने का शरफ़ हासिल किया है और तुम्हारी रुश्द व हिदायत का कानून (तौरात) भी उसको मेरी पीठ ही पर अता हुआ है।

      और ऐ ग़फ़लत व सरकशी में मस्त लोगो! मेरी यह हैबत (रौब व दबदबा), जो तुम्हारे लिए हैरान करने वाली बन रही है, इस बात की गवाही है कि जब इंसान के सीने में दिल की नर्मी सख्ती से बदल जाती है, तो फिर वह पत्थर का टुकड़ा, बल्कि इससे भी ज़्यादा सख्त बन जाता है और रुश्द व हिदायत उसमें किसी ओर से दाखिल नहीं हो पाती। देखो, मैं पत्थर के टुकड़ों का मज्मूआ ‘पहाड़’ हूं, लेकिन अल्लाह के हुक्म के सामने किस तरह बन्दगी जाहिर कर रहा हूं, मगर तुम हो कि अना (मैं) और ख़ुदी के घमंड में किसी हालत में भी ‘नहीं’ को ‘हां’ से बदल देने को तैयार नहीं, सच है –

फिर तुम्हारे दिल सख्त हो गए, सो वे हो गए जैसे पत्थर या उनसे भी सख्त। अल-बकरः 74 

      बनी इसराईल ने जब यह ‘निशान’ देखा तो अब उसे वक़्ती खौफ़ व दहशत का फल समझिए या खुली आंखों अल्लाह के शानदार ‘निशान’ के मुशाहदे का नतीजा, यक़ीन कीजिए कि बनी इसराईल तौरात की तरफ़ मुतवज्जह हुए और हज़रत मूसा के सामने उसके अहकाम की तामील का इकरार किया, तब अल्लाह का फरमान हुआ कि ऐ बनी इसराईल! हमने जो तुझे दिया है, उसको मज़बूती के साथ लो और जो अहकाम इस (तौरात) में दर्ज हैं उनकी तामील करो, ताकि तुम परहेज़गार और मुत्तकी बन सको।

      मगर अफ़सोस कि बनी इसराईल का यह अहदे मीसाक हंगामी साबित हुआ और ज़्यादा दिनों तक वे उस पर कायम न रह सके और आदत के मुताबिक फिर ख़िलाफ़वर्ज़ी शुरू कर दी। कुरआन मजीद ने इन वाकीयों को बहुत ही थोड़े में, मगर साफ़ और खुले लफ़्ज़ों में इस तरह बयान किया है।

और जब हमने तुमसे अहद लिया और तुम्हारे सर पर तूर को ऊंचा किया और कह्म जो हमने तुमको दिया है, उसको ताकत से पकडो और जो कुछ उसमें है, उसको याद करो, ताकि परहेजगार बनो। फिर बाद तुमने (इस तोरात से) पीठ फेरे ली, पस अगर तुम पर अल्लाह का और उसकी रहमत न होती तो बेशक तुम नुकसान उठाने वालों में हो जाते। सूरह बक़रह 63-64
और जब हमने उनके (बनी इसराईल के) सरों पर पार कर दिया, गोया कि वह सायबान है और उन्होंने यकीन कर लिया कि पर गिरने वाला है, तो हमने कहा) जो हमने तुमको दिया है, उसको से लो और जो कुछ उसमें है, उसको याद करो, ताकि तुम परहेजगार बने।' अल-आराफ 170

      इन आयतों में साफ किया गया है कि बनी इसराईल ने जब तौरात के कुबूल करने में आनाकानी की, बल्कि इंकार कर दिया तो अल्लाह तआला रे उनके सरों पर तूर को बुलन्द कर दिया और इस तरह अल्लाह की निशानी जाहिर करके उनको सौरात कुबूल करने पर तैयार किया।


अर्जे मुक़द्दस का वायदा और बनी इसराईल

नोट – अर्जे मुक़द्दस से वह इलाका मुराद है जो पहले कनआन कहलाया, फिर फलस्तीन।

      सीना के जिस मैदान में, उस वक़्त बनी इसराईल मौजूद थे, वह सरजमीन फलस्तीन से करीब थी और उनके बाप-दादा हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्हाक, और हज़रत याकूब से अल्लाह का वायदा था कि तुम्हारी औलाद को फिर उस सरजमीन का मालिक बनाएंगे और वह वहां फूले फलेगी।

      इसलिए हज़रत मूसा अलैहि सलाम की मारफत अल्लाह का हुक्म हुआ कि अपनी क़ौम से को कि अर्जे मुकद्दस में दाखिल हों और वहां के जालिम व जाबिर हुक्मरानों को निकाल कर अदल व इंसाफ की जिंदगी बसर करें। हम वायदा करते हैं कि फ़ह तुम्हारी होगी और तुम्हारे जालिम दुश्मन नाकाम होंगे। हज़रत मूसा ने इससे पहले कि बनी इसराईल को अर्जे ‘मुकद्दस में दाखिल होने के लिए आमादा करें, बारह आदमियों को तफ्तीशे हाल के लिए भेजा। वह फ़लस्तीन के करीबी शहर अरील (Jaicho) में दाखिल हुए और तमाम हालात को पार से देखा, जब वापस आए तो हज़रत मूसा को बताया कि बहुत जसीम और तन व तोश के जबरदस्त हैं और बहुत कवी हैकल हैं।

      हजरत मूसा अलैहि सलाम ने फ़रमाया कि जिस तरह तुमने मुझसे उनके बारे में कह्म है, कौम के सामने न कहना इसलिए कि एक लम्बे अर्से की गुलामी ने उनके हौसले पस्त कर दिए हैं और उनकी शुजाअत, ख़ुददारी और ऊंची हिम्मत की जगह बुजदिली, जिल्लत और पस्त हिम्मती ने ले ली है, मगर आखिर ये भी उसी कौम के लोग थे, न माने और ख़ामोशी के साथ क़ौम के सामने दुश्मन की ताकत का खूब बढ़ा-चढ़ा कर जिक्र किया, अलबत्ता सिर्फ दो आदमी यूशेम बिन नून और कालिब बिन याना ने हजरत मूसा के हुक्म की पूरी-पूरी तामील की और उन्होंने बनी इसराईल से ऐसी कोई बात नहीं कही कि जिससे उनकी हिम्मत टूटे।

अब हज़रत मूसा ने बनी इसराईल से कहा कि तुम इस बस्ती (अरीहा) में दाखिल हो और दुश्मन का मुकाबला करके उस पर काबिज हो जाओ, अल्लाह तुम्हारे साथ है।

और जब मूसा ने अपनी कौम से कहा, ऐ कौम! तुम पर जो अल्लाह का एहसान रहा है, उसको याद करो कि उसने तुममें नबी और पैगम्बर बनाए और तुमको बादशाह और हुक्मरा बनाया और वह कुछ दिन जो जहानों में किसी को नहीं दिया। ऐ क्रोम! उस मुकद्दस सरजमीन में दाखिल हो जिसको अल्लाह तआला ने तुम पर फ़र्ज कर दिया है और पीठ फेरकर न लौटो (कि नतीजा यह निकले) कि तुम घाटा और नुक्सान उठाने वाले बकर लौटो।’ अल-माइदा 20-21

To be continued …

इंशा अल्लाह उल अजीज! अगले पार्ट 29 में मूसा अलैहि सलाम और हारून अलैहि सलाम की वफ़ात का तफ्सीली जिक्र करेंगे।

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