………. फ़िरऔन और हजरत मूसा अलैहि सलाम का यह वाक्रिया हक व बातिल के मारके में एक शानदार मारका है- एक ओर गुरूर व घमंड, जब व जुल्म, तो दूसरी ओर मज्लुमियत, ख़ुदापरस्ती और सब्र व इस्तिकामत की फ़तह व कामरानी का अजीब व ग़रीब मुरक्का। इसलिए अल्लाह तआला ने फ़िरऔन और फ़िरऔन की क़ौम को दुनिया की हलाकत के बाद इबरत व बसीरत के लिए इस तरफ़ भी तवज्जोह दिलाई है कि इस किस्म के लोगों के लिए आख़िरत में किस कदर सख्त अजाब और फिटकार के कैसे इबतरनाक सामान मुहैया हैं-
………. तर्जुमा- ‘और उलट पड़ा फ़िरऔन वालों पर बुरी तरह का अजाब वह आग है कि दिखला देते हैं उनको सुबह व शाम और जिस दिन कायम होगी कयामत, हुक्म होगा दाखिल करो फ़िरऔन वालों को सख्त से सख्त अजाब में।’ [अल-मोमिन 40:45-46]
………. हजरत मूसा अलैहि सलाम और बनी इसराईल ने सलामती के साथ लाल सागर पार करने के बाद शोर बयावान से होते हुए सीना की राह ली। सीना के मूर्ति-घरों में बुत के पुजारी, बुतों की पूजा में लगे हुए थे। बनी इसराईल ने यह मंजर मंजर देखा तो कहने लगे, मूसा! हमको भी ऐसे माबूद बना दे, ताकि हम भी इसी की तरह इनकी पूजा करें। हजरत मूसा ने क़ौम की जुबानी यह शिर्क भरी मांग सुनी, तो बहुत ज़्यादा नाराज हुए और बनी इसराईल को डांटा और इतनी शर्म दिलाई और मलामत की “कि बदबतो! एक अल्लाह की इबादत छोड़कर बुतों की इबादत की तरफ़ झुकाव है और अल्लाह की उन तमाम नेमतों को भूल बैठे जिन्हें अपनी आंखों से देख चुके हो।”
………. बनी इसराईल अब सीना की घाटी में थे, यहां बहुत तेज़ गर्मी पड़ती है। दूर दूर तक हरियाली और पानी का पता नहीं। बनी इसराईल हज़रत मूसा अलैहि सलाम से फ़रियाद करने लगे, तब हज़रत मूसा ने अल्लाह के दरबार में इल्तिजा की और अल्लाह की वह्य ने उनको हुक्म दिया कि अपना आसा (डंडा) ज़मीन पर मारो। हज़रत मूसा ने इर्शाद की तामील की तो फ़ौरन बारह सोते उबल पड़े और बनी इसराईल के बारह क़बीलों के लिए अलग-अलग चश्मे जारी हो गए।
………. पानी के इस तरह जुटाए जाने के बाद बनी इसराईल ने भूख की शिकायत की। हज़रत मूसा ने फिर रब्बुल आलमीन से दुआ की। हज़रत मूसा की दुआ कुबूल हुई और ऐसा हुआ कि जब रात बीत गई और सुबह हुई तो बनी इसराईल ने देखा कि जमीन और पेड़ों पर जगह-जगह सफ़ेद ओले के दाने की तरह ओस की शक्ल में आसमान से कोई चीज़ बरस कर गिरी हुई है। खाया, तो बहुत मीठे हलवे की तरह थी। यह ‘मन्न‘ था और दिन में तेज हवा चली और थोड़ी देर में बटेरों के झुंड के झुंड जमीन पर उतरे और फैल गए। बनी इसराईल उनको भूनकर खाने लगे, यह ‘सलवा‘ था।
………. अब बनी इसराईल ने गर्मी की तेजी और साएदार पेड़ों और मकानों की राहत मयस्सर न होने की शिकायत की, तो फिर हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने अल्लाह ताला से दुआ की, जो कुबूल हुई और आसमान पर बादलों के परे के परे बनी इसराइल पर साया फ़गन हो गए और बनी इस्राईल जहा भी जाते बादल साया फगन रहते।
………. अल्लाह की इन मेहरबानियों और बख़्शिशो का बनी इसराईल शुक्र तो क्या अदा करते, एक दिन जमा होकर कहने लगे, ‘मूसा ! हम रोज-रोज़ एक ही खाना खाते रहने से घबरा गए हैं, हमको को इस ‘मन्न व सलवा‘ की ज़रूरत नहीं है। अपने अल्लाह से दुआ कर कि वह हमारे लिए जमीन से वाक़ला, खीरा, ककड़ी, मसूर, लहसुन, प्याज़ जैसी चीजें उगाए ताकि हम खूब खाएं।‘ जवाब में हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने कहा-
………. तर्जुमा- ‘क्या तुम बेहतर और उम्दा चीज़ के बदले में घटिया चीज़ की ख्वाहिश करते हो, किसी शहर में जा क्रियाम करो, बेशक वहां यह सब कुछ मिल जाएगा, जिसके तुम तलबगार हो।’ [अल-बकर 2:61]
………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम से अल्लाह का वायदा था कि जब बनी इसराईल गुलामी से आजाद हो जाएंगे, तुमको “शरीअत” दी जाएगी। अब हजरत मूसा अलैहि सलाम अल्लाह की वह्य के इशारे तूर पर पहुंचे और वहां अल्लाह की इबादत के लिए एतिकाफ किया।
………. तर्जुमा- ‘और हमने मूसा से तीस रातों का वायदा किया था रातें बढ़ाकर उसे पूरे चालीस कर दिये। इस तरह परवरदिगार के हुजूर आने की मुक़र्रर की हुई मीयाद यानी चालीस रातों की मीयाद पूरी हो गई।’ [अल-आराफ़ 7:142]
जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम तूर पर एतकाफ के लिए तशरीफ़ ले गए तो-
………. तर्जुमा- ‘और मूसा ने अपने भाई हारून से कहा, तू मेरे पीछे मेरी क़ौम में नायब रहना और उनकी इस्लाह का ख्याल करना और फ़साद पैदा करने वाले की राह पर न चलना।‘ [अल-आराफ़ 7:142]
जब 40 रात पूरे हो गए तो अल्लाह ने हज़रत मूसा को हम कलामी का शरफ़ बख़्शा, तो वह पुकार उठे-
………. तर्जुमा- ‘परवरदिगार! मुझे अपना जमाल दिखा कि तेरी तरफ़ नज़र कर सकू। हुक्म हुआ, तू मुझे नहीं देख सकेगा, मगर हां, इस पहाड़ की तरफ़ देख! अगर यह (तजल्ली-ए-हक़ की ताब ले आया और) अपनी जगह टिका रहा, तो मुझे देख सकेगा, फिर जब उसके परवरदिगार ने तजल्ली की तो उस तजल्ली ने पहाड़ रेजा-रेजा कर दिया और मूसा गश खाकर गिर पड़ा। जब मूसा होश में आया, तो बोला, ‘अल्लाह! तेरे लिए हर तरह की तक्दिस हो। मैं तेरे हुजूर तौबा करता हूं और सबसे पहले यक़ीन करने वालों में हूं।‘ [अल-आराफ़ 7:143]
इस इस के बाद मूसा अलैहि सलाम को तौरात अता की गई।
………. तर्जुमा- ‘और हमने उसके लिए तौरात की तख्तियों पर हर किस्म की नसीहत और (अहकाम में से) हर चीज़ की तफ्सील लिख दी है, पस इसका कुव्वत के साथ पकड़ और अपनी क़ौम को हुक्म कर कि वे उनको अच्छी तरह अख्तियार करें।’ [अल-आराफ़ 145]
………. बहरहाल हजरत मूसा अलैहि सलाम को (तख्तियों की शक्ल में) तौरात अता हुई और साथ-साथ यह भी बता दिया गया कि हमारा ‘कानून’ यह है कि जब कोई कौम हिदायत पहुंचने और उसकी सच्चाई पर दलील और रोशन हुज्जत आ जाने के बावजूद भी समझ से काम नहीं लेती और गुमराही और बाप-दादा की बूरी रस्म पर ही कायम रहती है और उस पर इसरार करती है, तो फिर हम भी उसको उस गुमराही में छोड़ देते हैं और हमारे हक के पैग़ाम में उनके लिए कोई हिस्सा बाक़ी नहीं रहता, इसलिए कि उन्होंने हक़ कुबूल करने की इस्तेदाद अपनी सरकशी के बदौलत बर्बाद कर दी।
To be continued …
इंशा अल्लाह अगले पार्ट 15.7 में हम देखंगे बनी इसराईल की हथधर्मी और गाय के बछड़े की इबादत के सबब अल्लाह का अज़ाब।