हजरत जाबिर (र.अ) फरमाते हैं के मेरे वालिद जंगे उहुद में शहीद हो गए, लेकिन अपने पीछे इतना कर्जा छोड़ गए के मेरे बाग़ की खजूरों से वह कर्जा अदा होना मुश्किल था और इधर खजूर काटने का वक्त आ पहुँचा तो मैं आप (ﷺ) के पास आया और सारी हालत आप (ﷺ) के सामने रखी, तो आपने फर्माया : अच्छा जाओ और खजूर काट कर अलग अलग ढेर कर लो, मैं गया और ऐसा ही किया, फिर हजूर (ﷺ) आए और सब से बड़े ढेर का तीन बार चक्कर लगाया और फिर उस के पास बैठ गए और फर्माया : अपने कर्ज ख्वाहों को देना शुरू करो !
मैं ने उस में से तौल कर देना शुरू किया, अल्लाह तआला ने मेरे वालिद का कुल क़र्जा अदा करा दिया लेकिन जितने ढेर थे सब बच गए और जिस पर हुजूर तशरीफ फ़र्मा थे कसम बखुदा! वह ऐसा ही रहा एक खजूर भी उसकी कम न हुई।
📕 बुखारी : २७८१, अन जाबिर बिन अब्दुल्लाह (र.अ)
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