20 अप्रैल 2024
आज का सबक
1. इस्लामी तारीख
मदीना में मुनाफिक़ीन का जुहूर
मुनाफिक उस शख्स को कहते हैं जो जबान से अपने आप को मुसलमान जाहिर करे, मगर दिल में कुफ्र छुपाए रखे, जब मुसलमान हिजरत कर के मदीना आ गए तो लोगों के ईमान कबूल करने की वजह से इस्लाम तेजी से फैलने लगा और मुसलमानों को ताक़त व कुव्वत हासिल होने लगी, तो इस्लाम और मुसलमानों से दुश्मनी रखने वाली मुनाफिकीन की जमात उभर कर सामने आ गई, जो मुसलमानों के ताकत व गलबे और अपने जाती नफे के लिये मुसलमानों के सामने अपने ईमान का इजहार करते, मगर जब अपने काफिर दोस्तों से मिलते, तो कहते के हम तो तुम्हारे ही साथ हैं।
मुसलमानों को धोका देने और उनका मजाक उड़ाने के लिये उन के पास जाते हैं, उनका सरदार अब्दुल्लाह बिन उबइ था, जिस को मदीने का बादशाह बना कर ताज पोशी की तैयारियाँ की जा रही थीं, मगर हुजूर (ﷺ) के तशरीफ लाते ही अहले मदीना ने आप (ﷺ) को अपना सरदार और रसूल तस्लीमकर लिया और उस की बादशाहत खतरे में पड़ गई. इस लिये उस के दिल में आप (ﷺ) और मुसलमानों के खिलाफ दुश्मनी, हसद और नफरत पैदा हो गई।
इस के बावजूद हुजूर (ﷺ) उस के साथ हुस्ने सुलूक करते रहे, जिस के नतीजे में उस के बेटे अब्दुल्लाह (र.अ) ने ईमान कबूल कर लिया।
2. अल्लाह की कुदरत/मोजज़ा
जिस्म में गुर्दे की अहमियत (Kidney)
इन्सान के ख़ून में हर लम्हा ज़हरीले माददे (Toxin) की मिक़दार बढ़ती रहती है। गुर्दे उन ज़हरीले माददों को पेशाब के ज़रिये खारिज कर के बदन को साफ़ ख़ून सपलाई करते रहते हैं, इस तरह गुर्दे 24 घंटे में कई लीटर ख़ून से ज़हरीला माददा निकाल कर पूरे जिस्म की हिफाज़त करते रहते हैं।
अल्लाह ना करे अगर ये गुर्दे काम करना बंद कर दें, तो भारी दौलत ख़र्च कर के बड़ी-बड़ी मशीनों के ज़रिये खून साफ कर के वह फ़ायदा हासिल नहीं होता, जो गुर्दो के कुदरती अमल से होता है।
गुर्दो के ज़रिये ख़ून से ज़हरीले माददों को ख़ारिज कर के जिस्मे इन्सानी की हिफाज़त करना अल्लाह की कितनी बड़ी कुदरत है।
3. एक फर्ज के बारे में
माँगी हुई चीज़ का लौटाना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“(वापसी की शर्त पर) माँगी हुई चीज़ को वापस किया जाएगा।”
खुलासा : अगर किसी शख्स ने कोई सामान यह कह कर माँगा के वापस कर दूंगा, तो उस का मुक़र्रर वक्त पर लौटाना वाजिब है, उसको अपने पास रख लेना और बहाना बनाना जाइज नही है।
4. एक सुन्नत के बारे में
इशा के बाद दो रकात नमाज पढना
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर (र.अ) बयान फ़र्माते हैं के,
“मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ ईशा की फर्ज नमाज़ के बाद दो रकात (सुन्नत) पढ़ी है।”
फायदा: इशा की नमाज के बाद वित्र से पहले दो रकात पढ़ना सुन्नते मोअक्कदा है।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
बेवा या तलाकशुदा बेटी की कफालत की फजीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने एक मर्तबा फ़रमाया –
“क्या मैं तुम्हें बेहतरीन सदक़ा न बताऊं?
तेरी वह लड़की जो लौट कर तेरे ही पास आ गई हो और उसके लिये तेरे सिवा कोई कमाने वाला न हो (तो ऐसी लड़की पर जो भी खर्च किया जाएगा वह बेहतरीन सदक़ा है।)”
6. एक गुनाह के बारे में
सरगोशी करने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“ऐसी सरगोशी (खुफिया मश्वरा) सिर्फ शैतान की तरफ से है जो के मुसलमानों को रंज में मुब्तला कर दे, और वह अल्लाह की मशिय्यत व इरादे के बगैर (मुसलमानों को) कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचा सकता और मुसलमानों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिये।”
7. दुनिया के बारे में
दुनिया मोमिन के लिये कैदख़ाना है
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:
“दुनिया मोमिन के लिये कैदखाना है और काफिर के लिये जन्नत है।”
वजाहत: शरीअत के अहकाम पर अमल करना, नफसानी ख्वाहिशों को छोड़ना, अल्लाह और उसके रसूल के हुक्मों पर चलना नफ्स के लिये कैद है और काफिर अपने नफ्स की हर ख्वाहिश को पूरी करने में आज़ाद है, इस लिये गोया दुनिया ही उसके लिये जन्नत का दर्जा रखती है। अगरचे के आख़िरत में उसके लिए रुस्वाई है और मोमिन के लिए जन्नत।
8. आख़िरत के बारे में
दोज़ख़ में बिच्छू के डसने का असर
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“दोजख में खच्चरों की तरह बिच्छू हैं, एक बार जब उनमें से एक बिच्छू डसेगा, तो दोजखी चालीस साल तक उस की जलन महसूस करेगा।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
निमोनिया का इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने निमोनिया के लिये वर्स, कुस्त और रोग़ने जैतून पिलाने को मुफीद बतलाया है।
फायदा : “वर्स” तिल के मानिंद एक किस्म की घास है, जिस से रंगाई का काम लिया जाता है और “कुस्त” एक खुशबूदार लकड़ी है जिस को ऊदे हिन्दी भी कहते हैं।
10. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत
निमोनिया का इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने निमोनिया के लिये वर्स, कुस्त और रोग़ने जैतून पिलाने को मुफीद बतलाया है।
फायदा : “वर्स” तिल के मानिंद एक किस्म की घास है, जिस से रंगाई का काम लिया जाता है और “कुस्त” एक खुशबूदार लकड़ी है जिस को ऊदे हिन्दी भी कहते हैं।
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