20 अप्रैल 2024
आज का सबक
1. इस्लामी तारीख
मदीना के कबाइल से हुजूर (ﷺ) का मुआहदा
मदीना तय्यिबा में मुख्तलिफ नस्ल व मज़हब के लोग रहते थे, कुफ्फार व मुश्रिकीन के साथ यहुद भी एक लम्बे जमाने से आबाद थे। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मदीना पहुँचने के बाद हिजरत के पहले ही साल मुसलमानों और यहूदियों के दर्मियान बाहमी तअल्लुकात ख़ुशगवार रखने के लिये एक बैनल अक्रवामी मुआहदा फर्माया। ताके नसल व मजहब के इख्तिलाफ के बावजूद कौमी यकजेहती और इत्तेहाद व इत्तेफाक कायम रहे और हर एक को एक दूसरे से मदद मिलती रहे।
यह मुआहदा हुकूके इन्सानी की सच्ची तस्वीर थी, तमाम लोगों को पूरे तौर पर मज़हबी आजादी हासिल थी, शहर में अमन व अमान और अद्ल व इन्साफ कायम करने और जुल्म व सितम को जड़ से ख़त्म करने का एक कामिल व मुकम्मल कानून था, बल्के इस को दुनिया का क़दीम तरीन बाकायदा “तहरीरी दस्तूर” कहा जा सकता है जो मुकम्मल शक्ल में आज भी मौजूद है। इस मुआहदे पर मदीना और उस के आस पास रहने वाले कबाइल से दस्तख़त भी लिये गए थे।
2. अल्लाह की कुदरत/मोजज़ा
कंगारु में अल्लाह की क़ुदरत
कंगारु, खरगोश की हम शक्ल एक बड़ा जानवर है जो इन्सानी कद के बराबर होता है।
उसके अगले पैर बहुत छोटे और पिछले पैर बहुत बड़े और मजबूत होते हैं, इस की दूम भी काफ़ी लंबी और मोटी होती है, यह अपनी दुम पर बैठ जाता है।
अजीब बात यह है के इस के पेट पर एक थैली होती है, कंगारु का बच्चा पैदाइश के वक्त सिर्फ दो इंच का होता है जिस की आँख भी बंद रहती है।
इसके बावजूद वह अपनी माँ के जिस्म के बालों को पकड़ कर सीधा उस थैली में पहुँच जाता है और वहा दूध पीकर बड़ा होता है। जियादा वक्त इसी थैले मे गुजारता है और कंगारु उस को हर जगह लिये फिरता खिलाता-पिलाता है।
भला बताओ तो सही के इस छोटे से बच्चे को थैली का रास्ता कौन बताता और बचपने से बडा होने तक कौन उसकी हिफाजत व परवरिश करता है। बेशक अल्लाह ही अपनी कुदरत से इन जानवरों की रहनुमाई फर्माता है।
3. एक फर्ज के बारे में
नमाज़ में खामोश रहना (एक फर्ज अमल)
हज़रत जैद बिन अरकम (र.अ) फर्माते हैं :
(शुरू इस्लाम में) हम में से बाज़ अपने बाज़ में खड़े शख्स से नमाज की हालत में बात कर लिया करता था,
फिर यह आयत नाजिल हुई:
तर्जमाः अल्लाह के लिये खामोशी के साथ खड़े रहो (यानी बातें न करो)।
फिर हमें खामोश रहने का हुक्म दे दिया गया और बात करने से रोक दिया गया।
फायदा: नमाज़ में बातचीत न करना और खामोश रहना जरूरी है।
4. एक सुन्नत के बारे में
इत्र लगाना
हजरते आयशा (र.अ) से मालूम किया गया के
रसूलुल्लाह इत्र लगाया करते थे? उन्होंने फ़रमाया :
“हाँ मुश्क वगैरह की उम्दा खुशबु लगाया करते थे।”
5. एक अहेम अमल की फजीलत
वुजू कर के इमाम के साथ नमाज अदा करने की फ़ज़ीलत
रसुलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जिस ने अच्छी तरह मुकम्मल वुजू किया, फिर फर्ज नमाज अदा करने के लिये गया और इमाम के साथ नमाज पढी, उसके (सगीरा गुनाह) माफ कर दिये जाते हैं।”
6. एक गुनाह के बारे में
रसूल (ﷺ) के हुक्म को न मानने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“जो लोग रसूलुल्लाह (ﷺ) के हुक्म की खिलाफ वरजी करते हैं,
उनको इस से डरना चाहिये के कोई आफत उन पर आ पड़े
या कोई दर्दनाक अज़ाब उन पर आ जाए।”
7. दुनिया के बारे में
हलाल रोज़ी कमाओ
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“रोज़ी को दूर न समझो, क्योंकि कोई आदमी उस वक्त तक नहीं मर सकता जब तक के जो रोजी उस के मुक़द्दर में लिख दी गई है, वह उस को न मिल जाए।
लिहाजा रोजी हासिल करने में बेहतर तरीका इख्तियार करो, हलाल रोजी कमाओ और हराम को छोड़ दो।”
8. आख़िरत के बारे में
हज़रत मिकाईल की हालत
आप (ﷺ) ने हज़रत जिब्रईल से दर्याप्त फ़रमाया :
“क्या बात है ? मैं ने मिकाईल (फ़रिश्ते) को हंसते हुए नहीं देखा?“
अर्ज़ किया: जब से दोज़ख की पैदाइश हुई है, मिकाईल नहीं हंसे।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
दस्त (बकरी की अगली रान) के फवाइद
रसूलुल्लाह (ﷺ) को दस्त (अगली रान) का गोश्त बहुत पसन्द था।
📕 बुखारी : ३३४०, अन अबी हुरैरह (र.अ)
फायदा : अल्लामा इब्ने क़य्यिम ने लिखा है के बकरी के गोश्त में सब से हल्की गिज़ा का हिस्सा गरदन और दस्त है, उसके खाने से मेदे में भारीपन नहीं होता।
10. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत
कै (उल्टी) के जरिये इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने कै (Vomit) की और फिर वुजू फ़रमाया।
वजाहत : अल्लामा इब्ने कय्यिम (रह.) लिखते हैं : कै(उलटी) से मेअदे की सफाई होती है और उस में ताकत आती है, आँखों की रौशनी तेज होती है, सर का भारी पन खत्म हो जाता है। इस के अलावा और भी बहुत से फवायद हैं।
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