25 अप्रैल 2024

आज का सबक

सिर्फ पांच मिनिट का मदरसा क़ुरआन व सुन्नत की रौशनी में
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1. इस्लामी तारीख

हुजूर (ﷺ) की हिजरत

रसूलअल्लाह (ﷺ) को जब अल्लाह ताला के हुक्म से हिजरत की इजाजत मिली, तो उसकी इत्तेला हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) को दे दी, और जब हिजरत का वक्त आया, तो रात के वक्त घर से निकले और काबा पर अलविदाई नज़र डालकर फ़र्माया : तू मुझे तमाम दुनिया से ज़ियादा महबूब है। अगर मेरी क़ौम यहाँ से न निकालती तो मै तेरे सिवा किसी और जगह को रहने के लिये इख्तियार न करता।

हजरत असमा बिन्ते अबू बक्र (र.अ) ने दो तीन रोज़ के खाने पीने का सामान तय्यार किया। आप (ﷺ) हज़रत अबू बक्र (र.अ) के साथ मक्का से रवाना हुए। एक तरफ महबूब वतन छोड़ने का गम था और दूसरी तरफ नुकीले पत्थरों के दुश्वार गुजार रास्ते और हर तरफ से दुश्मनों का खौफ था। मगर इस्लाम की खातिर इमामुल अम्बिया तमाम मुसीबतों को झेलते हुए आगे बढ़ रहे थे।

रास्ते में हज़रत अबू बक्र (र.अ) कभी आगे आगे चलते और कभी पीछे पीछे चलने लगते थे। हुजूर (ﷺ) ने इस की वजह पूछी, तो उन्होंने फ़रमाया : या रसूलल्लाह (ﷺ) जब मुझे पीछे से किसी के आने का खयाल होता है, तो मैं आप के पीछे चलने लगता हूँ और जब आगे किसी के घात में रहने का खतरा होता है, तो आगे चलने लगता हूँ। चूँकि कुफ्फार की मुखालफत का जोर था और वह लोग (नऊजु बिल्लाह) आप (ﷺ) के कत्ल की कोशिश में थे। इस लिये रास्ते में आप (ﷺ) और हज़रत अबू बक्र (र.अ) ने “गारे सौर” में पनाह ली, उस गार में पहले हजरत अबू बक्र (र.अ) दाखिल हुए और उसको साफ किया, फिर हुजूर (ﷺ) उस में दाखिल हुए और तीन रोज तक उसी ग़ार में रहे।

To be Continued…

📕 इस्लामी तारीख

2. अल्लाह की कुदरत/मोजज़ा

जमीन का अजीब फर्श

अल्लाह तआला फर्माता है :

“हम ने जमीन को फर्श बनाया और हम कैसे अच्छे बिछाने वाले हैं।”

जरा गौर कीजिये, अल्लाह तआला ने ज़मीन का कैसा अच्छा बिस्तर बिछाया है जिस पर हम आराम करते हैं, इस बिस्तर के बगैर हमारे लिये रहना दुश्वार था। फिर हमारे लिये ज़िंदगी की तमाम जरुरियात खाने पीने, अनाज, ग़ल्ले और मेवे के लिये जमीन को ख़ज़ाना बनाया, फिर सदी, गर्मी से हिफाजत भी जमीन पर रह कर कर सकते हैं और बदबूदार चीजें और मुरदार जिन की बदबू से हम को सख्त तकलीफ होती है ऐसी चीजों को हम जमीन में दफन कर के खराब हवा के असर से महफूज हो जाते हैं, बिलाशुबा इतना लम्बा चौड़ा जमीन का बिस्तर उसी हकीमे मुतलक की कारीगरी है।

📕 अल्लाह की कुदरत

यह भी देखे : ज़मीन कीशक्ल के बारे में कुरआन क्या कहता है?

3. एक फर्ज के बारे में

वालिदैन के साथ एहसान का मामला करो

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:

“तुम्हारे रब (अल्लाह) ने फैसला कर दिया है उसके के अलावा किसी और की इबादत न करो और वालिदैन के साथ एहसान का मामला करो।”

📕 सूरह बनी इस्राईल : २३

खुलासा: माँ बाप की खिदमत करना और उनके साथ अच्छा बरताव करना फर्ज है।

4. एक सुन्नत के बारे में

पुरे यकींन से दुआ करो

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :

“तुम अल्लाह तआला से ऐसी हालत में दुआ किया करो के तुम्हें कुबूलियत का पूरा यकीन हो और यह जान रखो के अल्लाह तआला गफलत से भरे दिल की दुआ कबूल नहीं करता।”

📕 तिर्मिजी: ३४७९

5. एक अहेम अमल की फजीलत

6. एक गुनाह के बारे में

इंसाफ न करने का वबाल

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“जो शख्स मेरी उम्मत की किसी छोटी या बड़ी जमात का जिम्मेदार बने फिर उनके दर्मियान अदल व इन्साफ न करे तो अल्लाह तआला उसको औंधे मुंह जहन्नम में डाल देगा।

📕 तबरानी कबीर : १६९११

7. दुनिया के बारे में

दुनियावी ज़िन्दगी की हक़ीक़त

क़ुरान में अल्लाह तआला फ़रमाता है –

“तूम खूब जान लो के दुनियावी जिन्दगी (बचपन में) खेल कूद और (जवानी में) ज़ेब व ज़ीनत और बाहम एक दूसरे पर फ़ख्र करना और (बुढ़ापे में) माल व औलाद में एक दूसरे से अपने को ज़्यादा बताना है।”

📕 सूर-ए-हदीद 57:20

8. आख़िरत के बारे में

कयामत के दिन के सवालात

रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:

“इन्सान के क़दम कयामत के दिन अल्लाह के सामने से उस वक़्त तक नहीं हटेंगे
जब तक उस से पाँच चीज़ो के बारे में सवाल न कर लिया जाए।

(1) उसकी उम्र के बारे में कि उसको कहाँ खत्म किया।
(2) उसकी जवानी के बारे में के उसको कहाँ ख़र्च किया।
(3) माल कहाँ से कमाया
(4) कहाँ खर्च किया।
(5) इल्म के मुताबिक़ क्या-क्या अमल किया।

📕 तिर्मिजी:2416, अन अब्दुल्लाह बिन मसऊद (र.अ)

9. तिब्बे नबवी से इलाज

जूं पड़ने का इलाज तिब्बे नबवी से

एक रिवायत में है के दो सहाबा ने रसूलुल्लाह (ﷺ) से एक गजवे के मौके पर (कपड़ों में) जूं पड़ जाने की शिकायत की, तो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने उन दोनों को रेश्मी कमीस पहनने की इजाजत दी।

फायदा: जूं पड़ना एक मर्ज है, जिस का इलाज आप (ﷺ) ने उस मौके पर रेश्मी लिबास तजवीज़ फ़र्माया, जरूरत की वजह से तजवीज़ करे तो गुन्जाइश है। अगरचे रेशमी कपडे आम तौर पे मर्दो पर हराम है (सुनन निसाई ५१४८/१०९)

📕 बुखारी : २९२०

10. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत

और देखे :