19 अप्रैल 2024
आज का सबक
1. इस्लामी तारीख
सिरत : उम्मुल मोमिनीन हज़रत खदीजा (र.अ)
हजरत खदीजा बिन्ते खुवैलिद (र.अ) बड़ी बा कमाल और नेक सीरत खातून थीं, उनका तअल्लुक कुरैश के मुअज्जज खानदान से था, वह खुद भी बाअसर और कामयाब तिजारत की मालिक थीं। उनकी पहली शादी अबूहाला से हुई जिन से दो लड़के पैदा हुए उन के इन्तेकाल के बाद दूसरी शादी अतीक बिन आबिद मखजूमी से हुई उनसे एक लड़की पैदा हुई, कुछ दिनों के बाद अतीक की भी वफ़ात हो गई।
हजरत खदीजा (र.अ) की शराफ़त व मालदारी की वजह से बहुत से सरदाराने कुरैश उन के साथ निकाह करने के ख्वाहिशमन्द थे, मगर उन्होंने सबसे इन्कार कर दिया।
जब उन्होंने हुजूर (ﷺ) की अमानत व सच्चाई की शोहरत सुनी तो उनसे निकाह की रगबत पैदा हुई, मजीद तसल्ली के लिए आप को माले तिजारत देकर अपने गुलाम मैसरा के साथ मुल्के शाम भेजा, फिर जब आप सफ़र से वापस तशरीफ़ लाए, तो हजरत खदीजा (र.अ) ने तिजारत में बरकत और आप की अमानत व अख्लाक़ से मुतअस्सिर होकर खुद निकाह का पैगाम भेजा। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इस का तजकिरा अपने मुश्फ़िक चचा अबू तालिब से किया, उन्होंने बखुशी मंजूर किया और आप का निकाह हज़रत खदीजा (र.अ) से कर दिया। उस वक्त हज़रत खदीजा (र.अ) की उम्र चालीस साल और आप (ﷺ) की उम्र मुबारक पच्चीस साल थी।
2. अल्लाह की कुदरत/मोजज़ा
दाँतों की बनावट में अल्लाह की क़ुदरत
दाँतों की बनावट पर गौर कीजिये के अल्लाह तआला ने ३२ टुकड़ों को कैसी हसीन व खूबसूरत लड़ी में पिरोया है और उस की जड़ों को नर्म हड्डी में किस खूबी के साथ पेवस्त किया है, यह दाँत एक तरफ जहाँ चेहरे की हुस्न व जीनत हैं।
वहीं उन से हम चबाने, काटने, पीसने और तोड़ने का अहम काम भी कर लेते हैं और अल्लाह की अजीब कुदरत के उन को बत्तीस टुकड़ों में बनाया, एक ही सालिम हड्डी में उन को नहीं ढाला, वरना मुंह में बड़ी तकलीफ होती, इसी तरह अगर एक दाँत में कोई खराबी होती है, तो बाकी दाँतों से काम लिया जा सकता है, एक सालिम हड्डी होने की सूरत में यह मुमकिन न था।
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“खुद तुम्हारी ज़ात में भी (अल्लाह की कुदरत की) निशानियाँ हैं, तो क्या तुम देखते नहीं हो?” [ सूरह जारियात : २१ ]
3. एक फर्ज के बारे में
सजद-ए-तिलावत अदा करना
हज़रत इब्ने उमर (र.अ) फ़र्माते हैं :
“हुजूर (ﷺ) हमारे दर्मियान सजदे वाली सूरह की तिलावत फ़र्माते, तो सजदा करते और हम लोग भी सजदा करते, हत्ता के हम में से बाज़ आदमी को अपनी पेशानी रखने की जगह नहीं मिलती।”
📕 बुखारी: १७५, अन इब्ने उमर (र.अ)
वजाहत: सजदे वाली आयत तिलावत करने के बाद, तिलावत करने वाले और सुनने वाले दोनों पर सजदा करना वाजिब है।
4. एक सुन्नत के बारे में
बदअख़्लाक़ी से बचने की दुआ
۞ हदीस: रसूलुल्लाह (ﷺ) यह दुआ फरमाते थे :
اللَّهمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِن منْكَرَاتِ الأَخلاقِ، والأعْمَالِ، والأَهْواءِ
( Allahumma Inni A’udhu Bika Min Munkaratil-Akhlaqi Wal-Amali Wal-Ahwa )
तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मै बुरे अख्लाक और ख्वाहिशात से तेरी पनाह चाहता हु।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
मुसलमान को कपड़ा पहनाने की फ़ज़ीलत
रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“जिसने किसी मुसलमान को कपड़ा पहनाया, जब तक उस के बदन में एक धागा भी रहेगा, वह उस वक्त तक अल्लाह की हिफाजत रहेगा।”
6. एक गुनाह के बारे में
अहेद और कस्मों को तोड़ने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“यक़ीनन जो लोग अल्लाह तआला से अहेद कर के उस अहेद को और अपनी क़स्मों को थोड़ी सी कीमत पर फरोख्त कर डालते हैं, तो ऐसे लोगों का आखिरत में कोई हिस्सा नहीं और न अल्लाह तआला उनसे बात करेगा और न कयामत के दिन (रहमत की नज़र से) उनकी तरफ देखेगा और न उन को पाक करेगा और उन के लिये दर्दनाक अजाब होगा।”
7. दुनिया के बारे में
अल्लाह तआला अपने बंदे से क्या कहता है?
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“अल्लाह तआला फ़र्माता है : ऐ इब्ने आदम ! तू मेरी इबादत के लिए फारिग हो जा, मैं तेरे सीने को मालदारी से भर दूंगा और तेरी मोहताजगी को खत्म कर दूंगा और अगर ऐसा नहीं करेगा, तो मैं तेरे सीने को मशगूली से भर दूंगा और तेरी मोहताजगी को बंद नहीं करूंगा।”
8. आख़िरत के बारे में
गुनहगारों के लिये जहन्नम की आग है
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“(अल्लाह का अज़ाब उस दिन होगा) जिस दिन आसमान थर थर काँपने लगेगा और पहाड़ अपनी जगह से चल पड़ेंगे। उस दिन झुटलाने वालों के लिये बड़ी खराबी होगी, जो बेहूदा मशगले में लगे रहते हैं, उस दिन उन को जहन्नम की आग की तरफ धक्के मार कर धकेला जाएगा (और कहा जाएगा) यही वह आग है जिस को तुम झुटलाया करते थे।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
शहद और कुरआन से शिफा
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“तुम अपने लिए शिफा की दो चीजों : यानी शहद और कुरआन को लाजिम पकड़लो।”
10. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत
मुनक्का से पट्टे वगैरह का इलाज
हजरत अबू हिन्ददारी (र.अ) कहते हैं के –
रसूलुल्लाह (ﷺ) की खिदमत में मुनक्का का तोहफा एक बन्द थाल में पेश किया गया। आप (ﷺ) ने उसे खोल कर इर्शाद फर्माया:
“बिस्मिल्लाह” कह कर खाओ! मुनक्का बेहतरीन खाना है जो पेटों को मजबूत करता है, पुराने दर्द को खत्म करता है, गुस्से को ठंडा करता है और मुंह की बदबू को जाइल करता है, बलगम को निकालता है और रंग को निखारता है।”
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