24 अप्रैल 2024
आज का सबक
1. इस्लामी तारीख
ग़ज़व-ए-खन्दक | खंदक की लड़ाई
ग़ज़व-ए-खन्दक की वजह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने यहूद की बद अहदी और साजिशों की वजह से मदीना से निकल जाने का हुक्म दिया, तो वह खैबर और वादियुलकुरा में जा बसे, मगर वहाँ पहुँच कर भी उन की अदावत और दुश्मनी की आग ठंडी नहीं हुई, उन्होंने मुसलमानों को सफह-ए-हस्ती से मिटाने के लिये बनू नज़ीर के २० सरदारों का एक वफ़्द कुरैशे मक्का के पास भेजा और उन्हें रसूलुल्लाह (ﷺ) से मुक़ाबले और जंग के लिये आमादा किया।
किनाना बिन रबी ने बनू गितफान को खैबर की जमीन व बागात की आधी पैदावार देने का वादा कर के मुसलमानों के खिलाफ जंग करने पर तय्यार किया, इस तरह अबू सुफियान कुरैशे मक्का और बनू सुलैम, बनू साद वगैरा क़बाइल के इत्तेहाद से दस हजार का लश्करे जर्रार ले कर मुसलमानों को खत्म करने के इरादे से मदीना की तरफ रवाना हो गया।
मदीना की हिफाज़त की तदबीर
शव्वाल सन ५ हिजरी में रसूलुल्लाह (ﷺ) को इत्तेला मिली के कुरैश और यहूद मुत्तहिद हो कर मदीना पर हमला करना चाहते हैं और मुसलमानों के वजूद को हमेशा के लिये मिटाना चाहते हैं, आप ने सहाब-ए-किराम से मशवरा तलब किया, तो उन्होंने मदीना में क़िला बंद हो कर दिफाई जंग करने का इरादा जाहिर किया, उस मौके पर सलमान फारसी ने घुड़सवारों के हमलों से बचने के लिये खन्दक खोदने का मश्वरा दिया, हुजूर (ﷺ) को यह राए पसन्द आई और दुश्मन से हिफाजत के लिये मदीने के शिमाली मैदान और खुले हिस्से में खन्दक़ खोदने का हुक्म दिया और बजाते खुद निशान लगा कर हर दस सहाबा को खोदने के लिये दस दस गज जमीन तक़सीम फ़र्मा दी।
सहाब-ए-किराम शब व रोज खन्दक़ की खुदाई में मसरूफ थे के उस दौरान एक सख्त चटान आगई, आप (ﷺ) ने अल्लाह का नाम ले कर उस पर तीन कुदाल मारी, जिस से चटान रेज़ा रेज़ा हो गई, और आपने मुल्के शाम, ईरान और यमन की फतह की खुशखबरी सुनाई, गर्ज तीन हज़ार जाँनिसार सहाबा ने छे दिन में तक़रीबन तीन किलो मीटर लम्बी, पाँच गज चौड़ी और पाँच गज गहेरी खन्दक़ खोद कर तय्यार कर दी।
खन्दक खोदने में सहाबा की कुरबानी
सहाब-ए-किराम ने सख्त सरदी, बे सरो सामानी और फाक़ा कशी के बावजूद पूरी हिम्मत व इस्तेकामत के साथ खन्दक खोदने का काम अन्जाम दिया, हज़रत अबू तलहा (ﷺ) ने भूक की शिद्दत से अपना पेट खोल कर दिखाया जिस पर एक पत्थर बंधा हुआ था, यह देख कर रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अपने पेट से कपड़ा हटाया, तो सहाबा ने देखा उस पर दो पत्थर बंधे हुए थे।
एक दिन रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सुबह सवेरे सख्त सरदी और भूक प्यास की हालत में सहाबा को ख़न्दक खोदते देख कर यह दुआ दी : तर्जमा : ऐ अल्लाह ! अस्ल जिन्दगी तो आखिरत की जिन्दगी है, तू अन्सार व मुहाजिरीन की मग़फिरत फ़र्मा, यह सुन कर सहाबा जोशे मुहब्बत में कहने लगे: तर्जमा : हम ने मरते दम तक मुहम्मद (ﷺ) के हाथ पर जिहाद की बैत की, जब सहाब-ए-किराम को दौराने खन्दक कोई रुकावट पेश आती तो आप (ﷺ) पानी में अपना लुआब डाल कर अल्लाह से दुआ फ़र्माते और पानी छिड़क देते, तो वह चटान रेत के तौदे की तरह नर्म हो जाती, गर्ज दुश्मन के आने से पहले अहले मदीना ने अपनी हिफाज़त का इन्तेज़ाम मुकम्मल कर लिया।
ग़जव-ए-ख़न्दक़ में मुहासरे की शिद्दत
अबू सुफियान की कयादत में दस हज़ार का मुत्तहीद्दा लश्कर मदीना पहुँचा, शहर की हिफाज़त के लिये खोदी हुई खन्दक़ को देख कर मुश्रिकीन हैरान रह गए। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने तीन हजार सहाबा को उन के मुक़ाबले के लिये रवाना किया, दोनों लश्करों के दर्मियान ख़न्दक हाइल थी।
अबू सुफियान मदीने का मुहासरा कर चुका था, बनू कुरैजा और मुसलमानों के दर्मियान मुआहदा था, इस लिये वह जंग में शरीक नहीं हुए, बनू नज़ीर के सरदार हुए बिन अख्तर ने बड़ी जद्दो जहद और कोशिश के बाद बनू कुरैज़ा के सरदार कअब बिन असद को लालच दे कर मुसलमानों से बद अहदी करने पर आमादा कर के अपने साथ शामिल कर लिया।
इस बद अहदी से मुसलमानों को बड़ा सदमा हुआ, दूसरी तरफ मुनाफ़िकीन मुसलमानों से हीला साजी और बहाना बाजी कर के मैदान छोड़ कर जा रहे थे, इस तरह मुसलमान अन्दरूनी और बैरूनी हमले के बीच आ गए।
मुहासरे की शिद्दत और सख्ती के बाइस आप (ﷺ) ने बनू गितफान को मदीने की एक तिहाई पैदावार दे कर अबू सुफ़ियान के लश्कर से अलग हो जाने पर सुलह का इरादा फ़र्माया, मगर हज़रत सअद बिन मआज (र.अ) और सअद बिन उबादा (र.अ) जैसे बहादुर सहाबा ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह ! हम तलवारों के अलावा उन को अपना माल हरगिज़ नहीं देंगे, वह जो करना चाहें कर लें, हम मुक़ाबले के लिये तय्यार हैं।
गज्व-ए-ख़न्दक में सहाबा की कुरबानी
ग़ज़्व-ए-खन्दक में मुश्रिकीन ने दस हजार का लश्कर ले कर मदीने का मुहासरा कर दोनों तरफ से तीर अन्दाज़ी और संगबारी का तबादला होते हुए दो हफ्ते गुजर गए, तो कुरैश ने तमाम फौज को जमा कर के हमला करने का मन्सूबा बनाया।
इत्तेफाक से एक मकाम पर खन्दक़ की चौडाई कम थी, तो अरब का मशहूर बहादुर अम्र बिन अब्देवुद्ध और उसके साथियों ने घोड़ों को एड लगाकर खन्दक को पार कर लिया और मुसलमानों को तीन मर्तबा मुकाबले के लिये ललकारा। तो हजरत अली (र.अ) मुकाबले के लिये आगे बढ़े, थोड़ी देर दोनों ने अपने अपने जौहर दिखाए, बिलआखिर हजरत अली (र.अ) ने उस को निमटा दिया।
यह मन्जर देख कर मुश्रिकीन पर रोब तारी हो गया और मुकाबले की ताब न ला कर भाग गए, हमले का यह बड़ा सख्त दिन था, कुफ्फार व मुश्रिकीन की तरफ से नेजों और पत्थरों की बारिश हो रही थी।
चुनान्चे एक माह के तवील मुहासरे के बाद अल्लाह तआला की गैबी मदद आई और ऐसी ठंडी व तेज हवा चली के उन के खेमे उखड़ गए, लश्करों में अफरा तफरी मच गई मौसम की सख्ती, खाने पीने की किल्लत की वजह से वह मजबूर हो कर भाग गए।
2. अल्लाह की कुदरत/मोजज़ा
हवा में निज़ामे कुदरत
हवा में अल्लाह का निजामे कुदरत देखो के उस ने हवा पर बादलों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की कैसी डयूटी लगा रखी है के वह बराबर बादलों को ऐसी जमीन पर ले जाकर बारिश बरसाती हैं, जहाँ की जमीन सूखी और पानी के लिये प्यासी हो।
अगर अल्लाह तआला बादलों पर यह ज़िम्मेदारी न लगाता तो बादल पानी के बोझ से बोझल हो कर एक ही जगह पर ठहरे रहते और हमारे बाग़ात और खेतियाँ सूखे रह कर जाया हो जाते।
यकीनन अल्लाह वह बड़ी अजीम जात है जिस का हुक्म बादलों पर भी से चलता है।
3. एक फर्ज के बारे में
मस्जिद में दाखिल होने के लिए पाक होना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“किसी हाइजा औरत और किसी जनबी : यानी नापाक आदमी के लिए मस्जिद में दाखिल होने की बिल्कुल इजाजत नहीं है।”
📕 अबू दाऊद : २३२, अन आयशा (र.अ)
वजाहत: मस्जिद में दाखिल होने के लिये हैज व निफ़ास और जनाबत से पाक होना जरुरी है।
4. एक सुन्नत के बारे में
मुसीबत के वक्त की दुआ
जब कोई मुसीबत पहुँचे या उसकी खबर आए, तो यह दुआ पढ़ेः
“इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजिऊन”
तर्जमा : हम सब (मअ माल व औलाद हकीक़त में) अल्लाह तआला ही की मिल्कियत में है और मरने के बाद) हम सब को उसी के पास लौट कर जाना है।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
मस्जिदे नबवी में चालीस नमाज़ों का सवाब
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जिस ने मेरी मस्जिद में चालीस नमाज़े अदा की और कोई नमाज़ कजा नहीं की, तो उस के लिए जहन्नम से बरात और अज़ाब से नजात लिख दी जाती है और निफ़ाक से बरी कर दिया जाता है।”
6. एक गुनाह के बारे में
बगैर किसी उज्र के नमाज़ क़ज़ा करने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जो शख्स दो नमाज़ों को बगैर किसी उज्र के एक वक्त में पढ़े वह कबीरा गुनाहों के दरवाजों में से एक दरवाजे पर पहुँच गया।”
7. दुनिया के बारे में
दुनिया की जाहिरी हालत धोका है
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“यह लोग सिर्फ दुनियावी ज़िंदगी की ज़ाहिरी हालत को जानते हैं और यह आख़िरत से बिल्कुल ग़ाफिल हैं।” (यानी इन्सान सिर्फ दुनिया की चीजों को जानते और उसी को हासिल करने की फिक्र में लगे रहते हैं, उन्हें पता ही नहीं है के इस के बाद दूसरी जिंदगी आने वाली है और वह हमेशा हमेशा की जिंदगी है, लिहाजा दुनिया में लगने के बजाए आखिरत की तय्यारी में मशगूल रहना चाहिये।)”
8. आख़िरत के बारे में
आख़िरत में काफिर की बदहाली
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“क़यामत के दिन काफिर अपने पसीने में डूब जाएगा, यहाँ तक के वह पुकार उठेगा: ऐ मेरे परवरदिगार! जहन्नम में डालकर मुझे इस (अजाब) से नजात दे दीजिये।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
पागलपन का इलाज तिब्बे नबवी से
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“अजवा (खजूर) जन्नत का फल है और जुनून (पागलपन) का इलाज है।”
10. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत
कद्दू (दूधी) से इलाज
۞ हदीस: हज़रत अनस (र.अ) फर्माते हैं के,
“मैंने खाने के दौरान रसूलुल्लाह (ﷺ) को देखा के
प्याले के चारों तरफ से कद्दू तलाश कर के खा रहे थे,
उसी रोज़ से मेरे दिल में कद्दु की रग़बत पैदा हो गई।”
फायदा : अतिब्बा ने इस के बे शुमार फवायद लिखे हैं और अगर बही के साथ पका कर इस्तेमाल किया जाए तो
बदन को उम्दा ग़िज़ाइयत बख्शता है, गरम मिजाज और बुख़ार जदा लोगों के लिये यह गैर मामूली तौर पर नफा बख्श है।
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