कुरआन क्या है | कब और कैसे नाज़िल हुआ – जानिए | What is Quran

कुरआन क्या है | What is Quran ?

कुरान का बुनियादी तारुफ, कुरान कहा से आई और किसने लिखी जानीये तारीख की रोशनी में

Aksar logon me ye baat paayi jati hai khas tour se humare Gairmuslim aur Khud Muslim bhaiyo me ke “Quraan Kya Hai ?” isey kisne likha aur kab nazil hua ?. tou aayiye iski talluk se jo Galatfehmi hai uska ijala karne ki koshish karte hai.

अक्सर लोगों में ये बात पाई जाती है, खास तौर से हमारे गैरमुस्लिम और खुद मुस्लिम भाइयों में “कुरान क्या है?” इसे किसने लिखा और कब नाज़िल हुआ? तो आइए इसके तालुक से जो गलतफेहमी है वह दूर करने की कोशिश करता है।

कुरआन कब नाज़िल हुआ?

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरआन ही में फ़रमाया:

"रमजान वो महीना है जिसमे कुरआन को हमने नुज़ूल (reveal) किया।" (क़ुरआन २:१८५)  

अब रमज़ान के महीने में कब नाज़िल हुआ उसके तालुक से सूरह क़द्र में अल्लाह ने फरमाया:

"हमने कुरान को शबे कदर में नाज़िल किया।" (क़ुरआन ९७:१) 

क़ुरआन किस पर नाज़िल हुआ?

अल्लाह तआला ने क़ुरआन अपने आखरी नबी मुहम्मद ﷺ पर नाज़िल किया , इसके बारे में बुखारी की रिवायत में बेशुमार क़ुरआन से मुतालिक अहादीस आती है। अल्लाह के आखरी नबी ﷺ के बारे में अल्लाह क़ुरआन में खुद गवाही देता है के:

"मेरे नबी (ﷺ) इस किताब के नुज़ूल होने से पहले न कुछ पढ़ सकते हैं थे और न लिख सकते थे, अगर इन्हें पढ़ना लिखना आता है तो काफ़िर (disbeliever) कहते के नबी ने खुद कुरान बना लिया।" (क़ुरआन २९:४८) 

तो ये बात वाजेह थी कि नबी (ﷺ) पढ़ना लिखना नहीं जानते थे। Encyclopedia Britannica भी इसकी गवाही देती है के जितनी तारीखी हवाले (ऐतिहासिक साक्ष्य) मिलते हैं उससे यही मालूम होता है के नबी-ए-करीम (ﷺ) को पढ़ना लिखना नहीं आता था।


क़ुरआन कैसे नाज़िल हुआ ?

अल्लाह के नबी (ﷺ) फरमाते हैं ”जिबरईल अलैहि सलाम को अल्लाह तआला जब कभी हुक्म देते तब जिबरईल कुरान की आयतें लेकर मेरे पास आते हैं।” (हदीस)

आज अक्सर हम में एक ग़लतफ़हमी है के क़ुरान 30 पारो में नाज़िल हुआ। याद रखो पारा कोई चीज़ नहीं होती। क्योंकि अरबी में “पा” नहीं आता, ये उर्दू और फ़ारसी लफ़्ज़ है।

तो जो 114 सूरह है, इनको अल्लाह ताला ने 23 साल नबी (ﷺ) की हयात में अलग-अलग मौके पर थोड़ी-थोड़ी आयतें करके नाज़िल फरमाया। जिब्रईल (अलैहि सलाम) आते, आप पर आयतें नाजिल करते हैं, आपको याद करवाते, जिसके बारे में कुरआन में ही अल्लाह ने फरमाया:

"ऐ मेरे नबी! इसकी तिलावत में जल्दीबाजी से अपनी जुबान मत फेरिए, हम आपको इसकी क़िरात कराएंगे, इसके माने समझायेंगे और इसे जमा कर के आपको दे देंगे।" (क़ुरआन ७५:१६-१९)

तो नबी (ﷺ) को जिब्रईल (अलै.) के जरीये अल्लाह रब्बुल इज्जत कुरआन की आयतें सिखाते हैं। फ़िर एक रमज़ान से अगले साल के रमज़ान तक जितना क़ुरान नबी (ﷺ) पर नाज़िल हो जाता उतना पूरा हिसा जिब्रईल (अलै.) आपसे बार-बार सुनते, ताकि हिफ़्ज़ अच्छा हो जाए।

कुरान का जितना हिसा जो नबी (ﷺ) पर नाज़िल होता उतना आप सहाबा को कहते। सहाबा उनके ज़माने में जो कुछ भी लिखने के साधन हुआ करते थे, वे उन पर वो आयते लिख लेते थे, जैसे पत्थर पर, खजूर के दरख्तो के पत्तों पर जिस तरह भी लिख सकते थे वे लिख लेते थे और अपने घरो में महफूज रख देते थे। इस तरह अलग अलग मौको पर कुरआन नाज़िल हुआ।

अल्लाह के नबी (ﷺ) के इस दुनिया से रुखसती के बाद हज़रत अबू बकर सिद्धिक (रज़ि.) मुसलमानो के पहले खलीफा बने। आपकी खिलाफत में “मुसेलिमा कज्जाब” नाम के एक शख्स ने नबूवत का दावा किया। हज़रते अबू बकर सिद्धिक ने उस कज्जाब से जिहाद किया, उस जंग में तकरीबन 70 सहाबा शाहिद हुए जो हुफ्फाज़े कुरान थे।

तो हज़रते उमर (रज़ी.) हज़रते अबू बकर सिद्धिक (रज़ी.) के पास आये और कहा के:

“ऐ अमीर-उल-मोमिनीन! अगर हुफ्फाज इस तरह ख़त्म हो जाएंगे तो कुरान अलग-अलग घरो में अलग-अलग हिस्सों  में रखे हुए हैं जैसे समझने में लोगों के लिए परेशानी होगी, लिहाजा हम एक काम करते हैं - आप सबसे कहिए कि जो भी कुरान का हिस्सा उन्होंने लिखा था वो पूरा लाये, हम हुफ्फाज़े कुरान को बिठाएंगे, पूरे औराक को तरतीब से जमा करेंगे और जमा करके एक जगह सिह देंगे।”

लिहाजा वैसा ही किया गया, एक नुस्खा बनाया गया, तो पहली मर्तबा कुरान ने किताब की शक्ल ली और इसको रखा गया उम्माहा-तुल-मोमिनीन हज़रते आयशा (रज़ी) के घर में, फिर बाद में जब उमर (रज़ी) खलीफा बने तो उस नुस्खे को लाया गया उमर (रज़ी) के घर।


कुरान के कौन से नुस्खे जलाए गए?

हज़रत उमर (रज़ी) की शहादत के बाद हज़रत उस्मान (रज़ी) का दौरे ख़िलाफ़त आया।

उस्मान (रज़ी.) की खिलाफत में इस्लाम अरब से बाहर भी फैल रहा था। ईरान, इंडोनेशिया, अफ़्रीका इसी तरह भारत तक फ़ैल रहा था। इस दौरान जो गैर अरबी लोग वे चूँकि अरब उनकी मादरी ज़ुबान (मातृभाषा) नहीं थी लिहाजा क़िरात करने में गलती कर रहे थे और अपने क़िरात के हिसाब से जैसा चाहे लिख रहे हैं।

लोगों ने उस्मान (रज़ी.) से शिकायत की कि कुरान को अलग-अलग तरीके से लोग पढ़ रहे हैं, लिहाजा आप ने कहा के जिसके पास भी लिखा हुआ कुरआन है वो सब लाया जाए, सारे नए लिखे कुरआन के नुस्खे लाये गए, उन सारे नुस्खों को आग लगा कर जला दिया गया।

आग लगाने का हुक्म इस लिए दिया क्योंकि अल्लाह के नबी (ﷺ) का वाजेह इरशादे मुबारक था के “कही अगर कुरआन लिखी हुई है तो उसे फाड़ो मत, बल्की दफन करो या उसे आग लगा दो।”

लिहाजा उन तमाम नए नुस्खों को जला दिया गया और फिर वो पहला नुस्खा (मास्टर कॉपी) जो हजरत उमर (रज़ी.) के मशवरे पर बनाया गया था उसे हजरते उमर (रज़ी) के घर से लाकर सहाबा से कहकर इस नुस्खे की 7 कॉपी बनाई गई।

क्योंकि आपकी खिलाफत में इस्लामी हुकूमत के 7 राज्य हैं, हर राज्य का एक गवर्नर था, लिहाजा हर राज्य को हज़रत उस्मान (रज़ी.) ने अपने खिलाफत की सील मंगाकर एक ओरिजनल कॉपी रवाना कर दी।

आज दुनिया में हम जितने भी कुरआन के नुस्खे देखते हैं, उसी कुरान मजीद की कॉपी से बने हैं। लेकिन उसपर जेर, जबर नहीं थे।


कुरआन में ज़ेर-ज़बर कहाँ से आये?

क़ुरआने मजीद की उन 7 कॉपी में ज़ेर ज़बर नहीं था, क्योंकि वो अरबियो की मादरी ज़ुबान (मातृभाषा) थी। जैसे के उर्दू हमारे लिए बिल्कुल आम ज़ुबान है लिहाजा हमें भी उर्दू पर ज़ेर ज़बर की ज़रूरत नहीं पड़ती।

लेकिन एक सहाबी हज्जाज बिन यूसुफ ने देखा के गैर अरबो को मुश्किल हो रही बिना जेर जबर के। लिहाजा उन्होंने कहा के जो तज़वीज़ है उसके हिसाब से ज़ेर ज़बर लगाएंगे। लिहाजा उन्होंने जेर जबर लगवाए और फिर वो कॉपियाँ भी मशहूर हो गईं। लेकिन जो तजवीज़ और क़िरात है ये बिलकुल उसी से हु-ब-हू मिलते-जुलते हैं जो हज़रते उस्मान (रज़ी) के ज़माने में थे।


अक्लमंदों के लिए हिदायत है कुरान में:

Alahmdulillah ! ye Qur’an dunia ki ek hi aisi wahid kitab hai jisey 4 saal ke bacche se lekar 100 saal ka bujurg bhi pura Hifz kar leta hai. is me Allah Rabbul Izzat ne nasihate rakhi hai un logon ke liye jo Aqal rakhtey hai. jiske talluk se Allah Rabbul Izzat ne Quran me hi farmaya aur kaha:

अलहम्दुलिल्लाह ! ये कुरान दुनिया की एक ही ऐसी वाहिद किताब है जिसमें 4 साल के बच्चे से लेकर 100 साल का बुजुर्ग भी पूरा हिफ्ज़ कर लेता है। इस में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हिदायते रखी है उन लोगों के लिए जो अक्ल रखते हैं। जिसके ताल्लुक से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने कुरान ही में फरमाया और कहा:

"ऐ नबी (ﷺ) ! ये मुबारक किताब है जिसकी हमने आपकी तरफ इस लिए नाज़िल किया के लोग इसकी आयतों पर गौर करें और अक़लमंद इस से नसीहत हासिल करे।" (सूरह साद ३८:२९)

वज़ाहत :

तो इस पूरी पोस्ट का शेष यही है कि ये कुरआन का नुस्खा न ही कोई शरई बिद्दत (यानी नया अकीदा) थी और न ही इस्मे अल्लाह के कलाम के अलावा कोई और का कलाम है।

अगर कोई शख़्स इसे इंसान की मनामानी लिखी हुई किताब कहता है तो उसे चाहिए कि इसकी तरह एक सूरह बना ला दे या फिर इसमें ऐसी कोई भी 2 ऐसी आयतें दिखा दे जो आपस में टकराती हो।

अलहम्दुलिल्लाह! आज पूरी दुनिया में सबसे तेजी से फैलने वाला कोई दीन है तो वो इस्लाम ही है। क्योंकि लोग सुकुन की तलाश में कुरआन की तरफ आ रहे हैं। अल्लाह के फ़ज़ल से हिदायत पर रहे है।

लिहाजा हमें चाहिए के ये किताब जो इंसानियत के लिए हिदायत के लिए नाज़िल हुई है उसपर हम सब गौर करें, इसपर अमल करें और जितना हो सके इसके पैगाम को लोगों में आम करे।

इंशा अल्लाहुल अज़ीज़ !

– अल्लाह रब्बुल इज्जत हमें कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,
– हम तमाम के लिए क़ुरान मजीद को पढ़ना, समझना और उसपर अमल करना आसान फरमाये,

– जब तक हमें जिंदा रखे इस्लाम और ईमान पर जिंदा रखे,
– खात्मा हमारा ईमान पर हो।

वा आखीरु दवाना अलहम्दुलिल्लाहिल रब्बिल आलमीन।


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