मुसलमानों पर परेशानियो के जिम्मेदार कौन?

मुसलमानों पर परेशानियो के जिम्मेदार कौन?

आज हम दुनिया में यही रोना रोते है ना के – हुकूमत ज़ालिम है, वो हम पर बेतहाशा जुल्म करते है , हमारे मस्जिदों को तक ढा देते है, हमारे हुकुक अदा नहीं करते, हमे न नौकरिया देती है और न ही कोई वजीफा, कभी सोचा हमने के ऐसे लोगों को हुकूमत पर किसने फायेज़ किया है ?

आईये कुरआन की इस आयत पर गौर करते है –

“अल्लाह तमाम आलम के मालिक तू ही जिसको चाहे सल्तनत दे और जिससे चाहे सल्तनत छीन ले और तू ही जिसको चाहे इज्ज़त दे और जिसे चाहे ज़िल्लत दे हर तरह की भलाई तेरे ही हाथ में है बेशक तू ही हर चीज़ पर क़ादिर है”

[ Quran 3:26 ]

तो मेरे अजीजो ! जब हम हकीकी रब पर ईमान का दावा करते है और नबी-ऐ-करीम (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) के तरीको को छोड़ कर किसी और के तरीको को तस्लीम करते है तब जाकर ऐसी परेशानियों का सामना हमे करना पड़ता है।

वरना अगर हम अपने असलाफ़, अपने बुजुर्गाने दींन का मुताअला करे, साहाबा की जिंदगियो पर गौर करे तो पता चलता है के अल्लाह की किताब और रसूलल्लाह (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) की सुन्नत को थाम कर अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की तरफ से उन्हें जो दुनिया में उरूज हासिल हुआ उसपर आज भी दुनिया की हुकूमते रश्क करती है।

अंदाज़ा लगाइए – वो फारस और वो रूमी हुकूमते हजारो सालो की तहज़ीब मानी जाती थी, उस दौर के सुपरपावर कहलाते थे , सहाबा की मुत्तहिद खलील तादात तौहीद के पैगाम और नबी-ऐ-करीम (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) के फरमान को लेकर इन दोनों हुकुमतो को रौंद कर रख देती है, हजारो सालो से गुलामी की जिन्दगिया जी रहे लोगों को उनके ज़ुल्म से आज़ाद कर देते है ,.. क्या हमारे असलाफ की इन तारीखो में हमारे लिए इबरत नहीं ?
क्यूंकि वो थोडे थे मगर किताबो सुन्नत के मुत्तबे थे, इत्तेहाद पर थे लिहाजा अल्लाह ने दुनिया की सल्तनत उनके हवाले कर दी।
हम मुन्तशिर है , जानवरों की तरह आपस में लड़ने में मशगुल है लिहाजा कोई भी ऐरा गैरा आकर हमे जलील कर जाता है।

अफ़सोस की बात है के
– आज हमने किताबो सुन्नत के बजाये अपने आबा-ओ-अजदाद की गुमराहीयों को हिदायत का मरकज़ बना लिया,
– नबी-ऐ-करीम (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) के बताये हुए इस दींन में मनमानी तरीके से नए अकीदे इजाद करने लग गए,
– शिर्क और बिदतो को चोर दरवाज़े से उम्मत में दाखिल करने का काम शुरू कर दिया,
– मस्जिदों में अल्लाह की इबादत के बजाये फिरकावारियत को हवा देने का काम कीया,
– एक जमात से जुड़ कर दुसरे जमात वाले अपने मोमिन भाईयो से बुग्ज करने लग गए,
– और जब कोई मुसलमान हमे आपस में इत्तहाद पर लाने की जद्दो जहद करने लग जाता है तो बाज़ हजरात उनपर फतवों की बारिश कर देते है,
नतीजतन अल्लाह र्रब्बुल इज्ज़त बाहर से दुश्मनों को मुसल्लत करके हमे इत्तेहाद पर लाना चाहता है और हम है के अपनी हलाकत पर गैरो पर इलज़ाम लगा बैठे है।

इसी बात की जिमन में एक आलिम हम सबको प्यारी नसीहत करते हुए कहते है –

“न समझोगे तो मिट जाओगे
ऐ इस दौर के मुसलमानों !

तुम्हारी दास्ताँ भी न रहेगी
दास्तानो में … “

लिहाजा हमे जरुरत है अपने रब के मस्लियत को समझने की, आपस में ग़लतफहमी की बुनियादो पर जो इंतेशार है उन्हें दूर कर इत्तेहाद पर आने की और ये तब तक मुमकिन नहीं होगा जब तक के हम हर मुसलमान को अपने नबी के उम्मती की हैसियत से अपने कलमा-गो मुसलमान भाई के रिश्ते से खैरख्वा न बन जाये।

♥ इंशाल्लाह-उल-अज़ीज़ !
– अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुन’ने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,
– हम सब को एक और नेक बनाये,
– हमे सिरते मुस्तकीम पर चलाये,
– जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर जिन्दा रखे,
– खात्मा हमारा ईमान पर हो,
!!! वा आखिरू दावाना अलाह्म्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन !!!

Leave a Reply