फ़िरऔन का एलान
………. ग़रज जब फ़िरऔन और उसके सरदारों को मूसा अलैहि सलाम को हराने में नाकामी हुई तो फ़िरऔन ने अपनी कौम में एलान किया-
………. तर्जुमा- ‘ऐ कौम! क्या मैं मिस्र के ताज व तख़्त का मालिक नहीं हूँ। मेरी हुक़ूमत के क़दमों के नीचे ये नहरें बह रही हैं? क्या तुम (मेरे इस जलाल को) नहीं देखते? (अब बताओ) क्या मैं बुलंद व बाला हूं या जिसको न इज्जत नसीब और जो बात भी साफ न कर सकता हो? (अगरचे अपने खुदा के यहां इज़्ज़त वाला है) तो क्यों उस पर (आसमान से) सोने के कंगन नहीं गिरते या फ़रिश्ते ही उसके सामने पर बांध कर खड़े नहीं होते।’ [अज-जुखरुफ 43:51-53]
मिस्रियों पर अल्लाह का कहर
………. गरज हज़रत मूसा अलैहि सलाम की रुश्द व हिदायत का फ़िरऔन और उसके सरदारों पर मुतलक असर नहीं हुआ और कुछ को छोड़कर आम मिस्रीयों ने भी उन्हीं की पैरवी की और सिर्फ यही नहीं, बल्कि फ़िरऔन के हुक्म से बनी इसराईल की नरीना औलाद यानी लड़के क़त्ल किए जाने लगे। मूसा अलैहि सलाम की तौहीन व तज्लील होने लगी और फ़िरऔन ने अपने रब और माबूद होने की जोर-शोर से तब्लीग़ शुरू कर दी। तब हज़रत मूसा अलैहि सलाम पर वह्य आई कि ‘फिरौन को इत्तेला कर दो कि अगर तुम्हारा यही तौर-तरीक़ा रहा, तो बहुत जल्द तूम पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल होने वाला है।’
………. चुनांचे उन्होंने जब इस पर भी ध्यान न दिया तो अब एक के बाद एक अल्लाह के अज़ाब आने लगे। यह देखकर फ़िरऔन और उसकी क़ौम ने यह तरीका अख्तियार किया कि जब अल्लाह का अज़ाब किसी एक शक्ल जाहिर होता, तो फ़िरऔन और फ़िरऔन की क़ौम हज़रत मूसा से वायदा करने लगती, अच्छा हम ईमान ले आएंगे, तू अपने खुदा से यह दुआ कर कि यह अजाब जाता रहे और जब वह अजाब जाता रहता, तो फिर सरकशी और नाफरमानी पर उतर आते, फिर अजाब जब दूसरी शक्ल में आता तो कहते कि अच्छा हम बनी इसराईल को आजाद करके तेरे साथ रवाना कर देंगे। दुआ कर कि यह अजाब ख़त्म हो जाए और जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम की दुआ से उनको फिर मोहलत मिल जाती और अजाब खत्म हो जाता, तो फिर उसी तरह मुखालफ़त पर उतर आते और इस तरह अल्लाह की ओर से अलग-अलग किस्म के निशान जाहिर हुए और फ़िरऔन और फ़िरऔन की कौम को बार-बार मोहलत दी जाती रही। कुरआन उन सात अज़ाब की निशानियों का इस तरह जिक्र करता है-
………. तर्जुमा- ‘और हमने पकड़ लिया फ़िरऔन वालों को अकालों में और मेवों के नुकसान में ताकि वे नसीहत मानें। फिर हमने भेजा उन पर तूफ़ान और टिडडी चीचड़ी और मेंढक और खून, बहुत-सी निशानियां अलग-अलग दीं।’ [अल आराफ़ 7:130-133]
………. इन आयतों में बयान की गई निशानियों में जूं और मेंढक के बारे में तफ़्सीर लिखने वालों ने लिखा है कि इन चीजों की यह हालत थी कि बनी इसराईल के खाने-पीने, पहनने और बरतने की कोई चीज़ ऐसी न थी, जिनमें ये नज़र न आते हों और खून के बारे में लिखा है कि नील नदी का पानी लहू के रंग का हो गया था और उसके मजे ने उसका पीना मुश्किल कर दिया था और पानी में मछलियां तक मर गई थीं।
………. नोट: ‘कुम्मल‘ डिक्शनरी के एतबार से बहुत मानी रखने वाला लफ़्ज़ है। इन तमाम मानी की जांच-पड़ताल इस तरह हो सकती है कि अल्लाह ने फ़िरऔनियों पर यह अजाब नाज़िल फ़रमाया कि इंसानों पर जुएं मुसल्लत कर दी, खाने-पीने की चीजों में छोटी मक्खियों को फैला दिया। इन जानवरों में हलाक करने वाला कीड़ा पैदा कर दिया, अनाज और ग़ल्ले में सुरसुरी पैदा कर दी। इन सब हलाक करने वाले कीड़ों को कुरआन ने एक लफ़्ज़ कुम्मल से ताबीर किया है।
बनी इसराईल का मिस्र से लौटना और रवानगी
………. जब मामला इस हद तक पहुंच गया कि अजाब की बातें भी फिरऔन और फ़िरऔन की क़ौम पर असर न डाल सकी, तो अल्लाह ने हजरत मुसा अलैहि सलाम को हुक्म दिया कि अब वक्त आ गया है कि तुम बनी इसराईल को मिस्र से निकाल कर बाप-दादा की सरजमीन की तरफ़ ले जाओ। इसलिए हज़रत मूसा और हारून बनी इसराईल को लेकर रातों रात लाल सागर के रास्ते पर हो लिए और रवाना होने से पहले मिस्री औरतों के जेवरात और कीमती चीजें जो एक त्यौहार में उधार लिए थे, वह भी वापस न कर सके कि कहीं मिस्रियों पर असल हाल न खुल जाए।
फ़िरऔन का डूबना
………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने उनको तसल्ली दी और फ़रमाया: ‘डरो नहीं, अल्लाह का वायदा सच्चा है, वह तुमको नजात देगा और तुम ही कामयाब होंगे और फिर अल्लाह की बारगाह में हाथ फैलाकर दुआ करने लगे। अल्लाह की वस्य ने मूसा को हुक्म दिया कि अपनी लाठी को पानी पर मारो ताकि पानी फटकर बीच में रास्ता निकल आए। चुनांचे मूसा ने ऐसा ही किया, जब उन्होंने समुद्र पर अपना आसा (लाठी) मारा तो पानी फटकर दोनों तरफ़ दो पहाड़ों की तरह खड़ा हो गया और बीच में रास्ता निकल आया और हजरत मूसा अलैहि सलाम के हुक्म से तमाम बनी इसराईल उसमें उतर गए और सूखी जमीन की तरह उससे पार हो गए।
………. फ़िरऔन ने यह देखा तो अपनी कौम से मुखातब होकर कहने लगा, यह मेरी करिश्मासाज़ी है कि बनी इसराईल को तुम जा पकड़ो, इसलिए बढ़े चलो, चुनांचे फ़िरऔन और उसकी पूरी फौज बनी इसराईल के पीछे उसी रास्ते पर चल पड़ी लेकिन अल्लाह तआला की करिश्मासाजी देखिए कि जब बनी इसराईल का हर आदमी दूसरे किनारे पर सलामती के साथ पहुंच गया, तो पानी अल्लाह के हुक्म से फिर अपनी असली हालत पर आ गया और फ़िरऔन और उसकी तमाम फ़ौज जो अभी बीच ही में थी, डूब गयी।
………. जब फ़िरऔन डूबने लगा और अज़ाब के फ़रिश्ते सामने नजर आने लगे, तो पुकार कर कहने लगा, ‘मैं उसी एक ख़ुदा पर जिसका कोई शरीक नहीं, ईमान लाता हूं, जिस पर बनी इसराईल ईमान लाए हैं और मैं फ़रमांबरदारों में से हूं।’ मगर यह ईमान चूकि हकीक़ी इमान न था, बल्कि पिछले फ़रेबकारियों की तरह नजात हासिल करने के लिए यह भी एक डांवाडोल बात थी, इसलिए अल्लाह की तरफ से यह जवाब मिला-
………. तर्जुमा- ‘अब यह कह रहा है, हालांकि इससे पहले जब इकरार का वक्त था, उसमें इंकार और खिलाफ़ ही करता रहा और हकीकत में तू फ़साद पैदा करने वालों में से है।’ [यूनुस 10:91]
………. यानी अल्लाह को खूब मालूम है कि तू ‘मुस्लिमीन’ में से नहीं, बल्कि फसाद पैदा करने वालों में से है।
………. हकीकत में फ़िरऔन की यह पुकार ऐसी पुकार थी जो ईमान लाने और यक़ीन हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि अल्लाह के अज़ाब को देख लेने के बाद इज्तिरारी और बे-अख्तियारी की हालत में निकलती है और अज़ाब के देखने के वक्त ‘ईमान व यकीन‘ की यह सदा हज़रत मूसा अलैहि सलाम की इस दुआ का नतीजा थी, जिसका जिक्र पिछले पार्ट्स में पढ़ चुके हैं।
………. तर्जुमा- ‘पस ये उस वक्त तक ईमान न लाएं जब तक अपनी हलाकत और अजाब को आंखों से देख न लें। अल्लाह ने कहा, बेशक तुम दोनों की दुआ कुबूल कर ली गई। [यूनुस 10:88-89]
………. इस मौके पर फ़िरऔन की पुकार पर अल्लाह की ओर से यह भी जवाब दिया गया-
………. तर्जुमा- ‘आज के दिन हम तेरे जिस्म को उन लोगों के लिए जो तेरे पीछे आने वाले हैं, नजात देंगे कि वह (इबरत का) निशान है।’ [यूनुस 10:92]
फ़िरऔन की लाश
………. मिस्रवाद (Egyptology) के मिस्री चिड़ियाघर में एक लाश आज तक महफूज है। ऐसा मालूम होता है कि समुद्र में डूबे रहने की वजह से उसकी नाक को मछली ने खा लिया है। कहा जाता है कि यह लाश मूसा के फ़िरऔन (Merneptah या फिर Ramesses II) की है। (अल्लाह बेहतर जाने) बहरहाल यह आम व ख़ास की तामाशागाह है।
इसके बारे में फ़्रांस के मशहूर डॉक्टर मोरिस बुकाय की दिलचस्ब दास्ताँ यहाँ तफ्सील में पढ़े जो डॉक्टर बुकाय के ईमान लाने की वजह भी बनी।
समुद्र का फटना
………. कुरआन मजीद में बनी इसराईल के रवाना होने, फ़िरऔन के डूबने और बनी इसराईल की नजात के वाकिए को बहुत थोड़े में बयान किया है और उसने उसके सिर्फ़ ज़रूरी हिस्सों का ही जिक्र किया है। अलबत्ता इससे मुताल्लिक, इबरत, नसीहत, बसीरत, मौअजत के मामले थोड़ा तफ़्सील के साथ जिक्र किए गए हैं।
चुनांचे अल्लाह तआला फ़रमाता है-
………. तर्जुमा- ‘(और फिर देखो) हमने मूसा पर वह्य भेजी थी कि (अब) मेरे बन्दों को रातों-रात (मिस्र से) निकाल ले जा, फिर समुद्र में उनके गुजरने के लिए खुश्की का रास्ता निकाल ले, तुझे न तो पीछा करने वालों का डर होगा और न किसी तरह का खतरा, फिर (जब मूसा अपनी कौम को लेकर निकल गया तो) फ़िरऔन ने अपने लश्कर के साथ उसका पीछा किया, पस पानी का रेला (जैसा कुछ उन पर छाने वाला था) छा गया (यानी जो कुछ उन पर गुजरनी थी, गुज़र गई) और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम पर (नजात का) रास्ता गुम कर दिया, तो उन्हें सीधा रास्ता न दिखाया।’ [ताहा 20:77-79]
……… तर्जुमा- ‘और इस तरह (ऐ पैग़म्बर) तेरे परवरदिगार का पसन्दीदा फ़रमान बनी इसराईल के हक में पूरा हुआ कि (हिम्मत व सबात के साथ जमे रहे थे) और फ़िरऔन और उसका गिरोह (अपनी ताक़त व शौकत के लिए) जो कुछ बनाता रहा था और जो कुछ (इमारतों की) बुलन्दियां उठाई थीं, वे सब दरहम बरहम कर दी।’ [अल-आराफ 7:137]
…….. तर्जुमा- ‘और बुराई करने लगे वह और उसकी फ़ौज मुल्क में नाहक और समझे कि वे हमारी ओर फिरकर न आएंगे, फिर पकड़ा हमने उसे और उसके लश्करों को, फिर फेंक दिया हमने उनको दरिया में, सो देख ले कैसा अंजाम हुआ गुनाहगारों का।’ [अल-कसस 28:40]
…….. तर्जुमा- ‘बहुत से छोड़ गए बाग़ और चश्मे और खेतियां और घर उम्दा और आराम का सामान जिनमें बातें बनाया करते थे, यों ही हुआ और वह सब हाथ लगा दिया हमने एक दूसरी कौम के, फिर न रोया उन पर आसमान और जमीन और न मिली उनको टील।’ [अद दुखान 44:25-29]
बड़ा मोजज़ा
कुरआन ए मजीद साफ़ कहता है कि लाल सागर में फ़िरऔन के डूबने और मूसा के नजात मिलने का यह वाकिया मूसा की ताईद में एक बड़ा ही शानदार मोजज़ा था, जिसने माद्दी कहरमानियत और सामाने इस्तब्दादियत को एक लम्हे में हरा कर मजलूम क़ौम को जालिम क़ौम के पंजे से नजात दिलाई। ‘वल्लाहु अला कुल्लि शैइन कदीर०’
…….. तर्जुमा- ‘और हमने मूसा और उसके तमाम साथियों को नजात दी, फिर दूसरों को (यानी उनके दुश्मनों को) डुबो दिया। बेशक इस वाकिए में (अल्लाह का जबरदस्त) निशान (मोजजा) है और उनमें अक्सर ईमान नहीं लाते और इकरार नहीं करते और बेशक तेरा रब ही (सब पर) गालिब, रहमत वाला है।’ [अश-शुअरा 26:65-67]
To be continued …
इंशा अल्लाह अगले पार्ट 15.6 में हम देखंगे बनी इसराईल पर मन्न व सलवा की बारिश और उनकी नाशुक्री की वजह से अल्लाह का अजाब।
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