हज़रत मूसा अलैहि सलाम की मिस्र से मदयन के लिए हिजरत
मूसा अलैहि सलाम और मदयन का इलाका
………. हजरत शुऐब अलैहि सलाम के वाक़ियों में मदयन का जिक्र आ चुका है। मदयन की आबादी मिस्र से आठ मंजिल पर वाकए थी। हजरत मूसा अलैहि सलाम सलाम चूंकि फ़िरऔन के डर से भागे थे, इसलिए उनके साथ न कोई रफीक और रहनुमा था और नही रास्ते का ख़र्च और तेज भागने की वजह से नंगे पैर थे। इस परेशान हाली में मूसा अलैहि सलाम मदयन के इलाके में दाखिल हुए।
मदयन का पानी
………. जब मदयन की सरजमीन में कदम रखा तो देखा कि कुएं के सामने पानी के हौज (प्याऊ) पर भीड़ लगी हुई है और जानवरों को पानी पिलाया जा रहा है, मगर इस जमाअत से थोड़ी दूरी पर दो लड़कियां खड़ी हैं और अपने जानवरों को पानी पर जाने से रोक रही हैं।
………. बहरहाल हजरत मूसा अलैहि सलाम से यह हालत न देखी गई और आगे बढ़कर लड़कियों से मालूम किया: ‘तुम क्यों नहीं पानी पिलाती‘, पीछे किस लिए खड़ी हो? दोनों ने जवाब दिया, ‘हम मजबूर हैं, अगर जानवरों को लेकर आगे बढ़ते हैं तो ये ताकतवर जबरदस्त हम को पीछे हटा देते हैं और हमारे वालिद बहुत बूढ़े हैं। अब उनमें यह ताकत नहीं है कि उनके रोक को दूर कर सकें, पस जब ये सब पानी पिलाकर वापस हो जाएंगे, तब हम बचा हुआ पानी पिलाकर लौटेंगे, यही हमारा रोज का दस्तूर है।
………. हजरत मूसा अलैहि सलाम को जोश आ गया और आगे बढ़कर तमाम भीड़ को चीरते हुए कुएं पर जा पहुंचे और कुएं का बड़ा डोल उठाया और तंह खींच कर लड़कियों के मवेशियों को पानी पिला दिया। हजरत मूसा अलैहि सलाम जब भीड़ को चीरते हुए दर्राना घुसने लगे, तो अगरचे लोगों को नागवार गुजरा, लेकिन उनकी जलाली सूरत और जिस्मानी ताकत से मरऊब हो गये और डोल को तंहा खींचते ही देखकर उसी ताकत से हार मान गए जिसके बलबूते पर कमज़ोरों और नातवा को पीछे हटा दिया करते और उनकी जरूरतों को पामाल करते रहते थे।
………. ग़रज जब इन लड़कियों के जानवरों ने पानी पी लिया तो वे घर को वापस चली, घर पहुंची तो आदत के ख़िलाफ़ जल्द वापसी पर उनके बाप को बड़ा ताज्जुब हुआ, पूछने पर लड़कियों ने गुजरा हुआ माजरा कह सुनाया कि किस तरह उनकी एक मिस्री ने मदद की। बाप ने कहा, ‘जाओ और उसको मेरे पास लेकर आओ।’
………. यहां तो बाप बेटी के दर्मियान यह बात-चीत हो रही थी और उधर हजरत मूसा अलैहि सलाम पानी पिलाने के बाद करीब ही एक पेड़ के साए में बैठकर सुस्ताने लगे। मुसाफ़रत, अजनबीपन और भूख-प्यास, इस हालत में उन्होंने दुआ की –
………. तर्जुमा- ‘परवरदिगार! इस वक्त जो भी बेहतर सामान मेरे लिए तू अपनी कुदरत से नाजिल करे, मैं उसका मुहताज हूं।‘ [28:24]
………. लड़की वहां पहुंची तो देखा कि कुएं के क़रीब ही हज़रत मूसा अलैहि सलाम बैठे हुए हैं। शर्म व हया के साथ नज़रें नीचे किए लड़की ने कहा, ‘आप हमारे घर चलिए, वालिद बुलाते हैं। वह आपके इस एहसान का बदला देंगे।‘
………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम यह सुनकर उठ खड़े हुए और लड़की की रहनुमाई में चल पड़े और लड़कियों के बाप की खिदमत में हाजिर होकर मुलाकात का शरफ़ हासिल किया। उन बुजुर्ग ने पहले तो खाना खिलाया और उनके हालात सुने। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने ठीक ठीक अपनी पैदाइश और फ़िरऔन के बनी इसराईल पर मज़ालिम से शुरू करके आखिर तक सारी दास्तान कह सुनाई। बुजुर्ग ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को तसल्ली दी और फरमाया कि अल्लाह का शुक्र अदा करो कि अब तुमको जालिमों के पंजे से निजात मिल गई। अब कोई डरने की बात नहीं है। कुरआन करीम ने उन बुजुर्ग को शेखे कबीर कहा है।
शेख की बेटी से निकाह का रिश्ता
ऊपर की बातों के दौरान उस लड़की ने, जो हमारत मूसा अलैहि सलाम को बुलाने गई थी, अपने बाप से कहा –
………. तर्जुमा- ‘ऐ बाप! आप उस मेहमान को अपने मवेशियों के चराने और पानी मुहैया करने के लिए अज्र पर रख लीजिए। अज्र पर किसी बेहतर आदमी को रखा जाए, जो मजबूत भी हो और अमानतदार भी।‘ [अल कसस 28:26]
………. बुजुर्ग बाप ने बेटी की इन बातों को सुना तो बहुत मसरूर हुए और हजरत मूसा अलैहि सलाम से कहा कि अगर तुम आठ साल तक मेरे पास रहो और मेरी बकरियां चराओ तो मैं अपनी इस बेटी को तुमसे शादी करने को तैयार हूं और अगर तुम इस मुद्दत को दो साल बढ़ाकर दस साल कर दो तो और भी बेहतर है।
………. हजरत मूसा अलैहि सलाम ने इस शर्त को मंजूर कर लिया और फरमाया कि यह मेरी ख़ुशी पर छोड़ दीजिए कि मैं इन दोनों महतों में से जिसको चाहूं पूरा कर दूं। आपकी तरफ़ से मुझ पर इस बारे में कोई जब्र न होगा। दोनों तरफ़ की इस आपसी रजामंदी के बाद बुजुर्ग मेज़बान ने मूसा अलैहि सलाम से उस बेटी की शादी कर दी।
………. नोट– हजरत मौलाना स्युहारवी रह० का कहना है कि हजरत मूसा अलैहि सलाम के ससुर जिनको कुरआने मजीद ने ‘शेख कबीर’ कहा है, वह हजरत शुऐब न थे, जबकि बाज़ तारीखी रिवायतों से ये मशहूर कौल है के वह बुजुर्ग हज़रत शुएब अलैहि सलाम ही थे, देखे तफ़्सीर इब्ने कसीर। अल्लाहु आलम।
मुकद्दस वादी
………. शादी के बाद हज़रत मूसा अलैहि सलाम अपने ससुर के यहां मुक़र्रर की हुई मुद्दत पूरै करने, यानी बकरियां चराने के लिए ठहरे रहे। तफसीर लिखने वाले मुस्तनब रिवायतों के पेशेनजर फ़रमाते हैं कि मूसा अलैहि सलाम ने पूरी मुद्दत यानी दस साल के मुद्दत पूरी की। कुरआन मजीद ने यह नहीं बताया कि मुद्दत पूरी होने के किस कदर बाद तक मूसा अलैहि सलाम अपने ससुर के पास ठहरे रहे। बहरहाल हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने मदयन में एक मुहलत तक कियाम किया और इस पूरी मुद्दत में आप ससुर के मवेशियों की देख-भाल करते रहे।
………. इस बीच एक बार हज़रत मूसा अलैहि सलाम अपने घर वालों समेत बकरि चराते-चराते मदयन से बहुत दूर निकल गए। जानवरों के चरने-चराने का काम करने वाले कबीलों के लिए यह बात ताज्जुब की न थी, मगर रात ठंडी थी।
………. इसलिए सर्दी आग की खोज के लिए मजबूर कर रही थी, सामने सीना (पहाड़) का सिलसिला नजर आ रहा था, यह सीना का पूर्वी कोना था और मदयन एक दिन के फ़ासले पर लाल सागर की दो शाखाओं के दर्मियान मिस्र जाते हुए वाके था। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने सामने की घाटी (ऐमन की घाटी) में निगाह दौड़ाई तो एक शोला चमकता हुआ नजर पड़ा। बीवी से कहा कि तुम यही ठहरो मैं आग ले आऊ, तापने का भी इन्तिजाम हो जाएगा और अगर वहां को रहबर मिल गया तो भटकी हुई राह का भी पता लग जाएगा।
………. तर्जुमा- ‘फिर मूसा अलैहि सलाम ने अपनी बीवी से कहा, तुम यहां ठहरो, मैंने आग देखी है, शायद उसमें से कोई चिंगारी तुम्हारे लिए ला सकू या वहां अलाव पर किसी रहबर को पा सकूँ।’ [ताहा 20:10]
रसूल बनाए गए
हजरत मूसा अलैहि सलाम ने देखा कि अजब आग है, पेड़ पर रोशनी नज़र आती है, मगर न पेड़ को जलाती है, न गुल ही होती है। यह सोचते हुए आगे बढ़े, ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते जाते थे, आग और दूर होती जाती थी। यह देखकर मूसा अलैहि सलाम को डर-सा पैदा हुआ और उन्होंने इरादा किया कि वापस हो जाएं। ज्यों ही वह पलटने लगे, आग क़रीब आ गई और करीब हुए तो सुना कि यह आवाज़ आ रही है –
………. तर्जुमा- ‘ऐसा मूसा! मैं हूं अल्लाह, परवरदिगार दुनियाओं का।’ [क़सस 28:30]
………. तर्जुमा- ‘पस जब मूसा अलैहि सलाम उस (आग) के करीब आए तो पुकारे गए, ऐ मूसा! मैं हूं तेरा परवरदिगार पस अपनी जूती उतार दे, तू तुवा की मुक़द्दस वादी में खड़ा है और देख! मैंने तुझको अपनी रिसालत के लिए चुन लिया है, पस जो कुछ वह्य की जाती है, उसे कान लगाकर सुन। [ताहा 20:11-18]
………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने जब अल्लाह की उस आवाज़ को सुना और उनको यह मालूम हुआ कि आज उनके नसीब में वह दौलत आ गई है जो इंसानी शराफत की इम्तियाजी शान और अल्लाह की मुहब्बत का आखिरी निशान है, तो फुले न समाए। आखिर फिर उसी तरफ़ से शुरूआत हुई और पूछा गया-
………. तर्जमा- ‘मूसा! तेरे दाहिने हाथ मैं यह क्या है?’ [ताहा 20:11] हालाँकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त बेहतर इल्म रखने वाला है।
मूसा अलैहि सलाम ने जवाब दिया-
………. तर्जुमा- ‘यह मेरी लाठी है। इस पर (बकरियां चराते वक्त) सहारा लिया करता हूँ और अपनी बकरियों के लिए पत्ते झाड़ लेता हूं।’ [ताहा 20:18]
अल्लाह की निशानियां
अब अल्लाह तआला ने इर्शाद फरमाया-
………. तर्जुमा- ‘मूसा! अपनी इस लाठी को जमीन पर डाल दो।’ [ताहा 20:19-20]
और मूसा अलैहि सलाम ने इस इर्शाद की तामील की-
………. तर्जुमा- ‘मूसा अलैहि सलाम ने लाठी को ज़मीन पर डाल दिया, पस यकायक वह अजगर बनकर दौड़ने लगा।’ [ताहा 20:21]
हजरत मूसा अलैहि सलाम ने जब हैरत में डाल देने वाला यह वाकिया देखा, तो घबरा गए और बशर होने के तकाजे का असर लेकर भागने लगे। पीठ फेरते ही ये कि आवाज आई –
………. तर्जुमा- (अल्लाह तआला ने फ़रमाया) ‘मूसा! इसको पकड़ लो, खौफ़ न खाओ, हम इसको इसकी असल हालत पर लौटा देंगे।’ [ताहा 20:21]
………. हज़रत मूसा अलैहि सलाम की लकड़ी दो शाखा थी। अब वही दो शाखा अजगर मुंह नजर आ रहा था। सख्त परेशान थे, मगर अल्लाह की कुर्बत ने तमानियत व सुकून की हालत पैदा कर दी और उन्होंने बे-ख़ौफ़ होकर उसके मुंह पर हाथ डाल दिया। इस अमल के साथ ही फ़ौरन वह दो शाखा फिर लाठी बन गयी।
………. अब मूसा अलैहि सलाम को दोबारा पुकारा गया और हुक्म हुआ कि अपने हाथ गरेबान के अन्दर ले जाकर बग़ल से मस कीजिए और फिर देखिए, वह मरज से पाक बे-दाग़ चमकता हुआ निकलेगा।
………. तर्जुमा- ‘और मिला दे अपने हाथ को अपनी बाल के साथ, निकल आएगा वह रोशन, बगैर किसी मरज के (यानी बर्स से पाक) यह दसरी निशानी है।’ [ताहा 20-22]
मूसा! यह हमारी ओर से तुम्हारी नुबूवत व रिसालत के दो बड़े निशान हैं। ये सच्चाई के तुम्हारे पैग़ाम और हक़ की दलीलों की जबरदस्त ताईद करेंगे, पस जिस तरह हमने तुमको नुबूबत व रिसालत से नवाजा, उसी तरह तुमको ये दो अजीमुश्शान निशान (मोजजे) भी अता किए।
………. तर्जुमा- ‘ताकि हम तुझको अपनी बड़ी निशानियों का मुशाहदा करा दें।’ [ताहा 20-25]
………. तर्जुमा- ‘पस तेरे परवरदिगार की ओर से फिरऔन और उसकी जमानत के मुकाबले में तेरे लिए ये दो बुरहान’ हैं। बेशक वह फ़िरऔन और उसकी जमाअत नाफरमान कौम हैं।’ [ताहा 20-32]
अब जाओ फ़िरऔन और उसकी कौम को हिदायत की राह दिखाओ। उन्होंने बहुत सकरशी और नाफरमानी अख्तियार कर रखी है और अपने गुरुर व तकब्बुर और बेइंतिहा जुल्म के साथ उन्होंने बनी इसराईल को गुलाम बना रखा है। सो उनको गुलामी से नजात दिलाओ।’
हजरत मूसा अलैहि सलाम ने जनाबे बारी तआला में अर्ज किया,
………. ‘परवदिगार! मेरे हाथ से एक मिस्री क़त्ल हो गया था, इसलिए यह ख़ौफ़ है कि कहीं वे मुझको क़त्ल न कर दें। मुझे यह भी ख्याल है कि वे मुझे बहुत जोर से झुठलाएंगे और मुझे झूठा कहेंगे, यह ऊंचा मंसब जब तूने दिया है तो मेरे सीने को फ़रानी और नूर से भर दे और इस अहम खिदमत को मेरे लिए आसान बना दे और जुबान में पड़ी हुई गिरह को खोल दे, ताकि लोगों को मेरी बात समझने में आसानी हो। चूंकि मेरी बातों में रवानी नहीं है और मेरे मुकाबले में मेरा भाई हारून मुझसे ज़्यादा निखरी जुबान में बातें करता है, इसलिए उसको भी अपनी इस नेमत (नबूवत) से नवाज़ कर मेरे कामों में शरीक बना दे।’ [ताहा 20:25-35]
………. अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को इत्मीनान दिलाया कि तुम हमारा पैगाम लेकर जरूर जाओ और उनको हक का रास्ता दिखाओ, वे तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। हमारी मदद तुम्हारे साथ है और जो निशान हमने तुमको दिए हैं, वे तुम्हारी कामियाबी की वजह होंगे और नतीजे के तौर पर तुम्हीं ग़ालिब रहोगे। हम तुम्हारी दरख्वास्त मंजूर करते हैं और तुम्हारे भाई हारून को भी तुम्हारा शरीकेकार बनाते हैं। देखो, तुम दोनों फ़िरऔन और उसकी क़ौम को जब हमारे सही रास्ते की ओर बुलाओ, तो उस पैग़ामे हक्क में नर्मी और मिठास के साथ पेश आना, क्या अजब है कि वे नसीहत कुबूल कर लें और ख़ुदा का ख़ौफ़ करते हुए जुल्म से बाज़ आ जाएं।
To be continued …
इंशा अल्लाह अगले पार्ट 15.3 में हम देखंगे हज़रत मूसा (अ.स.) की एक नबी की हैसियत से मिस्र को वापसी और फ़िरोंन के दरबार में हक़ की दावत।
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