इस्लाम का अध्ययन करना, बना सिस्टर जेनी केम्प की हिदायत की वजह

सिस्टर जेनी केम्प की हिदायत की हिदायत की दास्ताँ

पहले मैं सोचती थी कि इस्लाम तो महिलाओं को चूल्हा-चौका करने और घर में कैद रहने के लिए मजबूर करता होगा लेकिन मैंने इसमें ऐसा नहीं पाया बल्कि ये तो अपने समय से ही दूसरों के प्रति उदार और सम्मानपूर्ण व्यवहार की सीख देता है।

– जेनी केम्प (पुलिस सामुदायिक सहायता अधिकारी मैनचेस्टर)

अट्ठाइस वर्षीय पुलिस अधिकारी जेने केम्प ने घरेलू हिंसा से पीडि़त एक मुस्लिम महिला की मदद के दौरान इस्लामिक आस्था और विश्वास के बारे में जानने का निश्चय किया। उन्होंने इस्लाम का अध्ययन किया और फिर इस्लाम अपनाकर मुसलमान बन गईं।

दो बच्चों की मां जेने केम्प ने बताया कि पुलिस अधिकारी के रूप में घरेलू हिंसा से पीडि़त एक मुस्लिम महिला की मदद के दौरान उसने इस्लाम को जाना और फिर इस्लाम से प्रभावित होकर इस्लाम कुबूल कर लिया।

इस्लाम के अध्ययन के दौरान केम्प ट्विटर पर कई मुस्लिमों के सम्पर्क में आईं, उनसे कई बातें जानीं और इस सबके बाद उन्होंने अपना कैथोलिक धर्म छोड़कर एक साल पहले इस्लाम धर्म अपना लिया और अब वे पूरी तरह इस्लाम के मुताबिक अपनी जिंदगी गुजार रही हैं। वे एक जिम्मेदार पुलिस अधिकारी के रूप में गश्त पर निकलती हैं लेकिन वे पूरी तरह इस्लामी हिजाब में होती हैं और अपनी ड्यूटी के समय को एडजेस्ट करके वे नमाज पढऩा नहीं भूलती हैं।

– सात वर्षीय बेटी और नौ वर्षीय बेटे की सिंगल मदर जेने ने साल २०१२ / २०१३ में आधिकारिक रूप से इस्लाम अपना लिया और अपना नाम जेने केम्प से अमीना रख लिया। वे अपना खाना खुद बनाती हैं ताकि वह पूरी तरह हलाल खाना हो। जेने दक्षिण मेनचेस्टर में रहती हैं। वे कहती हैं, जहां मैं रहती हूं वहां एक बड़ी मस्जिद है और काफी तादाद में मुस्लिम रहते हैं। इस्लाम के प्रति दिलचस्पी के दौरान मैंने तय किया कि मुझे इन लोगों और इनके मजहब के बारे में ज्यादा से ज्यादा अध्ययन करना चाहिए।

जेने कहती हैं-

पहले मैं सोचती थी कि इस्लाम तो महिलाओं को चूल्हा-चौका करने और घर में कैद रहने के लिए मजबूर करता होगा लेकिन मैंने इसमें ऐसा नहीं पाया बल्कि ये तो अपने समय से ही दूसरों के प्रति उदार और सम्मानपूर्ण व्यवहार की सीख देता है। मैंने पाया कि इस्लाम अपने पड़ोसियों का खयाल रखने और उनके साथ अच्छे ताल्लुकात रखने को तरजीह देता है, वहीं बच्चों को माता-पिता को पूरा सम्मान देने और उन्हें उफ् तक न कहने की हिदायत देता है। मैंने आज के अन्य धर्मों को इस्लाम जैसा नहीं पाया। इस्लाम में मुझे अपने हर एक सवाल का जवाब मिला। दरअसल अब तो मुझे इस्लाम से बेहद लगाव हो गया।

जेने बताती हैं, ‘जब मैंने अपने सहकर्मियों को बताया कि मैंने इस्लाम अपना लिया और अब मैं कार्यस्थल पर हिजाब पहनना शुरू करना चाहती हूं तो मेरे सहकर्मियों ने मेरा सहयोग किया। पहले मैं चिंतित थी कि मेरे सहकर्मी मेरे इस फैसले पर न जाने क्या सोचेंगे और किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे लेकिन उन्होंने मेरे फैसले का सम्मान किया।’

जेने कहती हैं- ‘मेरे दोनों बच्चे मेरे पर्दा करने और इस्लाम के बारे में बहुत से सवाल करते हैं लेकिन मैं उन पर जबरदस्ती इस्लाम नहीं थोपूंगी। मैं लोगों को बता रही हूं कि एक मुस्लिम महिला भी पुलिस फोर्स में काम कर सकती है और मुझे उम्मीद है कि इस तरह मैं इस्लाम की नकारात्मक छवि को बदलने की कोशिश करूं गी।’

मेनचैस्टर के दक्षिण स्थित जिले विथेनशेवे में पली-बढ़ी जेने बताती हैं, ‘मेरे इस्लाम अपनाने के फैसले का मेरे घर वालों ने मौटे तौर पर स्वागत ही किया। मेरे इस फैसले से मुझे खुश देखकर वे खुश हैं। एक दिन मेरी बहन ने मुझे इस रूप में देखकर उसने भी खुशी व्यक्त की।’

वे कहती हैं, ‘मैंने खुले दिलो-दिमाग के साथ इस्लाम का अध्ययन किया।’

जैने को इस्लाम की राह दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की मुहम्मद मंजूर ने जो स्थानीय मस्जिद से मुस्लिम ट्विट्र अकांउट चलाते हैं।

मुहम्मद मंजूर कहते हैं, ‘मैं जेने का अहसानमंद हूं कि उसने मुझे इस्लाम से जुड़े ऐसे सवाल पूछे जिसकी वजह से मैंने इस्लाम का और अधिक अध्ययन किया और मेरी इस्लामिक नॉलेज में बढ़ोतरी हुई। जैने ने अपने स्तर पर अध्ययन करके सच्चाई रूपी इस्लाम को तलाशा।

इससे यह भी जाहिर होता है कि मुस्लिम इंग्लैंड जैसे समाज में भी बिना अपने मजहब के उसूलों से समझौता किए घुलमिलकर रह सकते हैं।

Leave a Reply