पिछली पोस्ट (भाग: १) में हमने इब्राहिम अलैहि सलाम का तारुफ़ देखा। अब इस पोस्ट (भाग: 2) में हम देखेंगे क़ौम की सितारा परस्ती और क़ौम के नसीहत के लिए इब्राहिम अलैहि सलाम की बुतों से बगावत
सितारा परस्ती:
हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की क़ौम बुतपरस्ती के साथ-साथ सितारा-परस्ती भी करती थी और यह अकीदा था कि इंसानों की मौत और हयात, उनकी रोजी, उनका नफा-नुकसान, खुश्कसाली, कहतसाली, जीत और कामियाबी और हार और पस्ती, ग़रज़ दुनिया के तमाम कारखाने का नज़्म व नस्क तारे और उनकी हरकतों की तासीर पर चल रहा है और यह तासीर उनकी जाती। सिफ़तों में से है, इसलिए इनकी ख़ुशनूदी जरूरी है और यह उनकी पूजा के बिना मुम्किन नहीं है।
इस तरह हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम जिस तरह उनको उनकी सिफ़ली, झूठे माबूदों की हक़ीक़त खोल करके हक़ के रास्ते की तरफ़ दावत दी, उसी तरह ज़रूरी समझा कि उनके झूठे बातिल माबूदों की बे-सबाती और फ़ना के मंज़र को पेश करके इस हक़ीक़त से भी आगाह कर दें कि तुम्हारा यह ख्याल बिल्कुल गलत है कि इन चमकते हुए सितारों, चांद और सूरज को ख़ुदाई ताक़त हासिल है। हरगिज़ नहीं, यह बेकार का ख्याल और बातिल अक़ीदा है।
मगर ये बातिल-परस्त जबकि अपने खुद के गढ़े हुए बुतों से इतने डरे हा थे कि उनको बुरा कहने वाले के लिए हर वक़्त यह सोचते थे कि उनके ग़ज़ल में आकर तबाह व बर्बाद हो जाएगा, तो ऐसे तौहाम परस्तों के दिलों में बुलन्द सितारों की पूजा के ख़िलाफ़ जज़्चा पैदा करना कुछ आसान काम न था इसलिए हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने उनके दिमाग के मुनासिब एक अजीब और दिलचस्प तरीका बयान व अख़्तयार किया।
तारों भरी रात थी, एक सितारा खूब रोशन था। हज़रत इब्राहीम अपने उसको देखकर फ़रमाया ‘मेरा रब यह है।’ इसलिए अगर सितारे को रब मान सकते हैं तो यह उनमें सबसे मुमताज़ और रोशन है। लेकिन जब वह अपने तैशुदा वक्त पर नज़र से ओझल हो गया और उसको यह मजाल न हुई कि एक घड़ी और रहनुमाई करा सकता और कायनात के निज़ाम से हट कर अपने पूजने वालों के लिए ज़ियारतगाह बना रहता, तब हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया, मैं छुप जाने वालों को पसंद नहीं करता। यानी जिस चीज़ पर मुझसे भी ज़्यादा तब्दीलियों का असर पड़ता हो और जो जल्द-जल्द इन असरात को कुबूल कर लेता हो, वह मेरा माबूद क्यों हो सकता है?
फिर निगाह उठाई तो देखा कि चांद आब व ताब के साथ सामने मौजूद है, उसको देखकर फरमाया, ‘मेरा रब यह है। इसलिए यह खूब रोशन है और अपनी ठंडी रोशनी से सारी दुनिया को नूर का गढ़ बनाए हुए है! पस अगर तारों को रब बनाना ही है तो इसी को क्यों न बनाया जाए, क्योंकि यही इसका ज़्यादा हक़दार नज़र आता है।
फिर जब सुबह का वक्त होने लगा तो चांद के भी हल्के पड़ जाने और छुप जाने का वक्त आ पहुंचा और जितना ही सूरज के उगने का वक्त होता गया, चांद का जिस्म देखने वाले की नजरों से ओझल होने लगा, तो यह देखकर हजरत इब्राहीम ने एक ऐसा जुम्ला फ़रमाया, जिससे चांद के रब होने की मनाही के साथ-साथ एक अल्लाह की हस्ती की तरफ़ क़ौम की तवज्जोह इस ख़ामोशी से फेर दी कि कौम इसका एहसास न कर सके और इस बात-चीत का एक ही मक्सद है यानी ‘सिर्फ एक अल्लाह पर ईमान’, वह उनके दिलों में बगैर कस्द व इरादे के बैठ जाए, फ़रमाया
‘अगर मेरा सच्चा पालनहार मेरी रहनुमाई न करता, तो मैं भी जरूर गुमराह कौम में से ही एक होता।‘
पस इतना फ़रमाया और ख़ामोश हो गए, इसलिए कि इस सिलसिले की अभी एक कड़ी और बाकी है और कौम के पास अभी मुकाबले के लिए एक हथियार मौजूद है इसलिए इससे ज़्यादा कहना मुनासिब नहीं था।
तारों भरी रात ख़त्म हुई, चमकते सितारे और चांद सब नज़रों से ओझल हो गए, क्यों? इसलिए कि अब आफ़ताब आलमताब का रुख्ने रोशन सामने आ रहा है। दिन निकल आया और वह पूरी आब व ताब से चमकने लगा।
हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने उसको देखकर फ़रमायाः यह है मेरा रब क्योंकि यह तारों में सबसे बड़ा है और निजामे फ़लकी में इससे बडा सितारा हमारे सामने दूसरा नहीं है। लेकिन दिन भर चमकने और रोशन रहने और पूरी दुनिया को रोशन करने के बाद मुक़र्रर वक्त पर उसने भी इराक की सरज़मीन से पहलू बचाना शुरू कर दिया और अंधेरी रात धीरे-धीरे सामने आने लगी। आखिरकार वह नजरों से गायब हो गया तो अब वक्त आ पहुंचा कि इब्राहीम अलैहि सलाम असल हक़ीक़त का एलान कर दें और क़ौम को लाजवाब बना दें कि उनके अक़ीदे के मुताबिक अगर इन तारों को रब और माबूद होने का दर्जा हासिल है, तो इसकी क्या वजह कि हमसे भी ज़्यादा इनमें तब्दीलियां नुमायाँ हैं और ये जल्द-जल्द उनके असरों से मुतास्सिर होते हैं और अगर माबूद हैं तो इनमें (उफ़ोल) (चमक कर फिर डूब जाना) क्यों है? जिस तरह चमकते नज़र आते थे उसी तरह क्यों न चमकते रहे, छोटे सितारों की रोशनी को चांद ने क्यों मांद कर दिया और चांद के चमकते रुख को आफ़ताब के नूर ने किस लिए बेनूर बना दिया?
पस ऐ कौम! मैं इन शिर्क भरे अक़ीदों से बरी हूं और शिर्क की जिंदगी से बेज़ार, बेशक मैंने अपना रुख सिर्फ़ उसी एक अल्लाह की ओर कर लिया है जो आसमानों और ज़मीनों का पैदा करने वाला है, मैं ‘हनीफ़’ (एक अल्लाह की इताअत के लिए यक्स) हूं और मुशरिक (शिर्क करने वाला) नहीं हूं।
अब क़ौम समझी कि यह क्या हुआ? इब्राहीम ने हमारे तमाम हथियार बेकार और हमारी तमाम दलीलें पामाल करके रख दीं। अब हम इब्राहीम की इस मज़बूत और खुली दलील को किस तरह रद्द करें और उसकी रोशन दलील का क्या जवाब है? वे इसके लिए बिल्कुल बेबस और पस्त थे और जब कोई बस न चला तो कायल होने और हक़ की आवाज को कुबूल कर लेने के बजाय हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम से झगड़ने लगे और अपने झूठे माबूदों से डराने लगे कि वे तेरी तौहीन का तुझसे ज़रूर बदला लेंगे और तुझको इसकी सजा भुगतनी पड़ेगी।
हजरत इब्राहीम ने फ़रमाया, क्या तुम मुझसे झगड़ते और अपने बुतों से मुझको डराते हो? हालांकि अल्लाह ने मुझ को सही रास्ता दिखा दिया है और तुम्हारे पास गुमराही के सिवा कुछ नहीं, मुझे तुम्हारे बुतों की कतई कोई परवाह नहीं, जो कुछ मेरा रब चाहेगा, वही होगा। तुम्हारे बुत कुछ नहीं कर सकते, क्या तुमको इन बातों से कोई नसीहत हासिल नहीं होती? तुम को तो अल्लाह की नाफ़रानी करने और उसके साथ बुतों को शरीक ठहराने में भी कोई डर नहीं होता? जिसके लिए तुम्हारे पास एक दलील भी नहीं है और मुझसे यह उम्मीद रखते हो कि एक अल्लाह का मानने वाला और दुनिया के अमन का जिम्मेदार होकर मैं तुम्हारे बुतों से डर जाऊंगा, काश कि तुम समझते कि फ़सादी कौन है और कौन है सुलहपसन्द और अमनपसन्द?
सही अमन की जिंदगी उसी को हासिल है जो एक अल्लाह पर ईमान रखता और शिर्क से बेज़ार रहता है और वही रास्ते पर है। बहरहाल अल्लाह की यह शानदार हुज्जत थी जो उसने हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की जुबान से बुत-परस्ती के ख़िलाफ़ हिदायत व तब्लीग़ के बाद कवाकिब-परस्ती (तारा-परस्ती) के रद्द में जाहिर फ़रमाई और उनकी क़ौम के मुकाबले में उनको रोशन और खुली दलीलों से सरबुलन्दी अता फरमाई।
ग़रज़ इन तमाम रोशन और खुली दलीलों के बाद भी जब क़ौम ने इस्लाम की दावत कुबूल न की और बुतपरस्ती और कवाकिबपरस्ती में उसी तरह पड़ी रही तो हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम ने एक दिन जम्हूर के सामने जंग का एलान कर दिया कि मैं तुम्हारे बुतों के बारे में एक ऐसी चाल चलूंगा जो तुम को ज़ित कर के ही छोड़ेगी।
इस मामले से मुताल्लिक असल सूरते हाल यह है कि जब इब्राहीम अलैहि सलाम ने आजर और कौम के लोगों को हर तरह बुत-परस्ती के ऐबों को जाहिर कर के उससे बाज रहने की कोशिश कर ली और हर किस्म की नसीहतों के जरिए उनको यह बताने में ताकत लगा ली कि ये बुत न नफ़ा पहुंचा सकते हैं, न नुक्सान और यह कि तुम्हारे काहिनों और पेशवाओं ने उनके बारे में तुम्हारे अक्लो पर खौफ़ बिठा दिया है कि अगर उनके इंकारी हो जाओगे तो ये ग़जबनाक हो कर तुमको तबाह कर डालेंगे, ये तो अपनी आई हुई मुसीबत को भी नहीं टाल सकते, मगर आजर और कौम के दिलों पर मुतलक असर न हुआ और वे अपने देवताओं की खुदाई ताकत के अक़ीदे से किसी तरह बाज़ न आए, बल्कि काहिनों और सरदारों ने उनको और ज़्यादा पक्का कर दिया और इब्राहीम की नसीहत पर कान धरने से सख्ती के साथ रोक दिया, सब हज़रत इब्राहीम ने सोचा कि मुझको रुश्द व हिदायत का ऐसा पहलू अख्तियार करना चाहिए जिससे लोग यह देख लें कि वाक़ई हमारे देवता सिर्फ लकड़ियों और पत्थरों की मूर्तियां हैं, जो गूंगी भी हैं, बहरी भी हैं, और अंधी भी और दिलों में यह यकीन बैठ जाए कि जब तक उनके बारे में हमारे काहिनों और सरदारों ने जो कुछ कहा था वह बिल्कुल गलत और बे सर-पैर की बात थी और इब्राहीम ही की बात सच्ची है। अगर ऐसी कोई शक्ल बन गई तो फिर मेरे लिए हक़ की तब्लीग के लिए आसान राह निकल आएगी। यह सोचकर उन्होंने अमल का एक निजाम तैयार किया, जिसको किसी पर जाहिर नहीं होने दिया और उसकी शुरूआत इस तरह की कि बातों-बातों में अपनी क़ौम के लोगों से यह कह गुज़रे कि, ‘मैं तुम्हारे बुतों के साथ एक खुफिया चाल चलूंगा।‘
क़ौम के नसीहत के लिए बुतों से बगावत :
गोया इस तरह उनको तंबीह करनी थी कि ‘अगर तुम्हारे देवताओं में कुछ कुदरत है, जैसा कि तुम दावा करते हो तो वे मेरी चाल को बातिल और मुझको मजबूर कर दें कि मैं ऐसा न कर सकूँ।‘ मगर चूंकि बात साफ़ न थी, इसलिए क्रौम ने इस ओर कुछ तवज्जोह न दी। इत्तिफ़ाक़ की बात कि करीब ही के जमाने में क़ौम का एक मज़हबी मेला पेश आया। जब सब उसके लिए चलने लगे तो कुछ लोगों ने इब्राहीम से इसरार किया कि वह भी साथ चलें। हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने पहले तो इंकार किया और फिर जब इस तरफ़ से इसरार बढ़ने लगा तो सितारों की तरफ निगाह उठाई और फ़रमाने लगे, ‘मैं आज कुछ बीमार-सा हूं।’ चूंकि इब्राहीम की कौम को कवाकिब-परस्ती की वजह से तारों में कमाल भी था और एतक़ाद भी इसलिए अपने अकीदे के लिहाज से वे यह समझे कि इब्राहीम किसी नहस सितारे के बुरे असर में फंसे हुए हैं और यह सोचकर और किसी तफ्सील को जाने बगैर वे इब्राहीम को छोड़कर मेला चले गए।
अब जबकि सारी कौम, बादशाह, काहिन और मजहबी पेशवा मेले में मसरूफ़ और शराब व कबाब में मशगूल थे, तो हजरत इब्राहीम ने सोचा कि वक्त आ गया है कि अपने अमल के निज़ाम को पूरा करूं और आंखों से दिखाकर सब पर वाजेह कर दूं कि उनके देवताओं की हक़ीक़त क्या है? वह उठे और सबसे बड़े देवता के हैकल (मन्दिर) में पहुंचे। देखा तो वहां देवताओं के सामने किस्म-किस्म के हलवों, फलों, मेवों और मिठाइयों के चढ़ावे रखे थे। इब्राहीम ने तंज भरे लहजे में चुपके-चुपके इन मूर्तियों से खिताब करके कहा कि यह सब कुछ मौजूद है, उनको खाते क्यों नहीं और फिर कहने लगे। मैं बात कर रहा हूं, क्या बात है कि तुम जवाब नहीं देते? और फिर इन सब को तोड़-फोड़ डाला और सबसे बड़े बुत के कांधे पर तीर रखकर वापस चले गए।
जब लोग मेले से वापस आए तो हैकल (मन्दिर) में बुतों का यह हाल पाया, बहुत बिगड़े, और एक दूसरे से पूछने लगे कि यह क्या हुआ और किसने किया? इनमें वे भी थे, जिनके सामने हजरत इब्राहीम ‘तल्लाहि ल त-‘अकीदन-न असनामकुम‘ (अल-अंबिया 21-57) कह चुके थे, उन्होंने फ़ौरन कहा कि यह उस आदमी का काम है, जिसका नाम इब्राहीम है। वहीं हमारे देवताओं का दुश्मन है।
काहिनों और सरदारों ने यह सुना तो ग़म व गुस्से से लाल हो गए और कहने लगे, इसको मज्मे के सामने पकड़ कर लाओ, ताकि सब देखें कि मुजरिम कौन आदमी है?
इब्राहीम अलैहि सलाम सामने लाए गए तो बड़े रौब व दाब से उन्होंने पूछाः क्यों इब्राहीम! तूने हमारे देवताओं के साथ यह सब कुछ किया है? इब्राहीम ने देखा कि अब वह बेहतरीन मौक़ा आ गया है, जिसके लिए मैंने यह तदबीर अखियार की। मज्मा मौजूद है। लोग देख रहे हैं कि उनके देवताओं का क्या हश्र हो गया इसलिए अब काहिनों, मज़हबी पेशकाओं को लोगों की मौजूदगी में उनके बातिल अक़ीदे पर शर्मिंदा कर देने का वक्त है, तो आम लोगों को आंखों देखते मालूम हो जाए कि आज तक इन देवताओं से मुताल्लिक जो कुछ हमसे काहिनों और पुजारियों ने कहा था, यह सब उनका मकर व फ़रेब था। मुझे उनसे कहना चाहिए कि यह सब उस बड़े बुत की कार्रवाई है, उससे मालूम करो? ला महाला वे यही जवाब देंगे कि कहीं बुत भी बोलते और बात करते हैं, तब मेरा मतलब हासिल है और फिर मैं उनके अक़ीदे की पोल लोगों के सामने खोलकर सही अक़ीदे की तलक़ीन कर सकूँगा और बताऊंगा कि किस तरह वे बातिल और गुमराही में मुब्तेला हैं। उस वक्त उन काहिनों और पुजारियों के साथ शर्मिन्दगी के सिवा क्या होगा, इसलिए हज़रत इब्राहीम ने जवाब दिया –
तर्जुमा-‘इब्राहीम ने कहा, बल्कि इनमें से इस बड़े बुत ने यह किया है। पस अगर ये (तुम्हारे देवता) बोलते हों, तो इनसे मालूम कर लो।’ [अल-अम्बिया, 21 : 68]
इब्राहीम अलैहि सलाम की इस यक़ीनी हुज्जत और दलील का काहिनों और पुजारियों के पास क्या जवाब हो सकता था? वह शर्म से डूबे हुए थे, दिलों में जलील व रुस्वा थे और सोचते थे कि क्या जवाब दें?
आम लोग भी आज सब कुछ समझ गए और उन्होंने अपनी आंखों से यह मंजर देख लिया जिसके लिए वे तैयार न थे, यहां तक कि छोटे और बड़े सभी को दिल में इक़रार करना पड़ा कि इब्राहीम अलैहि सलाम जालिम नहीं है, बल्कि ज़ालिम हम ख़ुद हैं कि ऐसे बेदलील और बातिल अकीदे पर यकीन रखते हैं, तब शर्म से सिर झुकाकर कहने लगे, ‘इब्राहीम! तू खूब जानता है कि इन देवताओं में बोलने की ताक़त नहीं है, ये तो बेजान मूर्तियां हैं।
इस तरह हजरत इब्राहीम की हुज्जत व दलील कामयाब हुई और दुश्मनों ने मान लिया कि जालिम हम ही हैं और उनको तमाम लोगों के सामने जुबान से इक़रार करना पड़ा कि हमारे ये देवता जवाब देने और बोलने की ताक़त नहीं रखते, नफ़ा व नुक्सान का मालिक होना दूर की बात है, तो अब इब्राहीम अलैहि सलाम ने थोड़े में, मगर जामे लफ़्जों में उनको नसीहत भी की और मलामत भी और बताया कि जब ये देवता न नफ़ा पहुंचा सकते हैं, न नुक्सान, तो फिर ये ख़ुदा और माबूद कैसे हो सकते हैं, अफ़सोस ! तुम इतना भी नहीं समझते या अक्ल से काम नहीं लेते?
फ़रमाने लगे–
‘क्या तुम अल्लाह तआला को छोड़कर उन चीज़ों की पूजा करते हो जो तुमको न कुछ नफ़ा पहुंचा सकते हैं और न नुक्सान दे सकते हैं, तुम पर अफ़सोस है और तुम्हारे इन झूठे माबूदों पर भी, जिनको तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो, क्या तुम अक्ल से काम नहीं लेते। [अल अबिया 21:67]
तर्जुमा-पस वे सब हल्ला करके इब्राहीम के गिर्द जमा हो गए। इब्राहीम ने कहा कि जिन बुतों को हाथ से गढ़ते हो, उन्हीं को फिर पूजते हो और असल यह है कि अल्लाह तआला ही ने तुमको पैदा किया है और उनको भी जिन कामों को तुम करते हो। [अस्साफ्फ्रात, 37:95-96]
हज़रत इब्राहीम के इस वाज व नसीहत का असर यह होना चाहिए था कि तमाम क्रोम अपने बातिल अक़ीदे से तौबा करके सही दींन को इख़्तेयार कर लेती और टेढ़ा रास्ता छोड़कर सीधे रास्ते पर चल पड़ती, लेकिन दिलों का टेढ़, नफ़्स की सरकशी, घमंडी जेहनियत और बातिनी ख़बासत व नीचपन ने इस ओर न आने दिया और इसके खिलाफ़ उन सबने इब्राहीम अलैहि सलाम की अदावत व दुश्मनी का नारा बुलन्द कर दिया और एक दूसरे से कहने लगे कि अगर देवताओं की ख़ुशनूदी चाहते हो तो उसको इस गुस्ताखी और मुज्रिमाना हरकत पर सख्त सजा दो और देहकती आग में जला डालो, ताकि उसकी तब्लीग़ व दावत का किस्सा ही पाक हो जाए।
इंशाअल्लाह! अगले पार्ट ३ में हम देखेंगे बादशाह को इस्लाम की दावत और इब्राहिम अलैहि सलाम को सजा के तौर पर तैयार की हुई दहकती आग का ठंडा हो जाना।
To be continued …
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