हज़रत युसूफ अलैहि सलाम (भाग: 4)

युसूफ अलैहि सलाम का भाइयों को हकीकत बताना

      बहरहाल हज़रत याकूब अलैहि सलाम ने अपने बेटों से फ़रमाया :
      ‘देखो, एक बार फिर मिस्र जाओ और यूसफ़ और उसके भाई की तलाश करो और अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद और मायूस न हो, इसलिए कि अल्लाह की रहमत से ना उम्मीदी काफिरों का शेवा है।’

      यूसुफ के भाइयों ने तीसरी बार फिर मिस्र का इरादा किया और शाही दरबार में पहुंच कर अपनी परेशानी बयान की और खुसूसी लुक व करम की दरख्वास्त भी की। हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने परेशानी का हल सुना तो दिल भर आया और आपसे जब्त न हो सका कि खुद को छिपाएं और राज़ जाहिर न होने दें। आख़िर फरमाने लगे-क्यों जी, तुम जानते हो कि तुमने यूसफ और उसके भाई के साथ क्या मामला किया, जबकि तुम जिहालत में डूबे हुए थे? यूसुफ़ 12:89

      भाइयों ने यह उम्मीद के ख़िलाफ़ सुनकर कहा –क्या तूम वाकई यूसुफ़ ही हो? यूसुफ 12:98

      हजरत यूसुफ ने जवाब दिया-हां, मैं यूसुफ हूं और यह (बिनयमीन) मेरा मांजाया भाई है। अल्लाह ने हम पर एहसान किया और जो आदमी भी बुराइयों से बचे और (मुसीबतों में) साबित कदम रहे, तो अल्लाह नेक लोगों का अज्र बर्बाद नहीं करता। यूसुफ 12:98

      यूसुफ़ के भाई यह सुनकर कहने लगे – ख़ुदा की कसम, इसमें शक नहीं कि अल्लाह तआला ने तुझको हम पर बरतरी व बुलन्दी बख्शी और बेशक हम पूरी तरह कुसूरवार थे। यूसुफ़ 12:91

      हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम ने अपने सौतले भाइयों की खस्ताहाली और पशेमानी को देखा तो पैगम्बराना रहमत और दरगुज़र के साथ फ़ौरन फ़रमाया-आज के दिन मेरी ओर से तुम पर कोई फटकार नहीं। अल्लाह तुम्हारा कुसूर बख्शे और वह तमाम रहम करने वालों से बढ़कर रहम करने वाला है। यूसुफ़ 12:92

      हज़रत यूसुफ ने यह भी फ़रमाया-अब तुम कनान वापस जाओ और मेरी पैरहन लेते जाओ, यह वालिद की आंखों पर डाल देना, इन्शाअल्लाह यूसुफ की खुश्बू उनकी आँखों को रोशन कर देगी और तमाम खानदान को मिस्र ले आओ। यूसुफ 12:93

      इधर यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों का काफिला कनआन को यूसुफ़ का पैरहन लेकर चला, तो उधर हजरत याकूब को वह्य इलाही ने यूसुफ़ की खुश्बू से महका दिया।

      फ़रमाने लगे, ऐ याकूब के खानदान! अगर तुम यह न समझो कि  बुढ़ापे में उसकी अक्ल मारी गई है, तो मैं यक़ीन के साथ कहता हूं कि मुझको युसूफ की महक आ रही है। वे सब कहने लगे, ‘खुदा की कसम! आप तो अपने पुराने खत में पड़े हो, यानी इस कदर मुद्दत गुजर जाने के बाद भी, जबकि उस का नाम व निशान भी बाक़ी नहीं रहा, तुम्हें यूसुफ़ ही की रट लगी हुई है।’

      कनआन का क़ाफ़िला वापस पहुंचा, तो वही हुआ जिसकी ओर हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने इशारा किया था-फिर जब बशारत देने वाला आ पहुंचा, तो उसने यूसफ़, के परहन को याकूब के चेहरे पर डाल दिया, पस उसकी आंखें रोशन हो गयी, याकूब अलैहि सलाम ने कहा, क्या मैं तुमसे न कहता था कि मैं अल्लाह की ओर से वो बात जानता हूं, जो तुम नहीं जानते। यूसुफ 12:96

      यूसुफ के भाइयों के लिए यह वक्त बहुत कठिन था, शर्म व नदामत हूवे हुए, सर झुकाये हुए बोले, ऐ बाप! आप अल्लाह की जनाब में हमारे गुनाहों की मगफिरत के लिए दुआ फरमाइए, बेशक हम ख़ताकार और कुसूरवार हैं।

      हज़रत याकूब अलैहि सलाम ने फ़रमाया-बहुत जल्द मैं अपने रब से तुम्हारी मगफिरत की दुआ करूँगा बेशक वह बड़ा बख्शने वाला, रहम करने वाला है। यूसुफ़ 12:98

याकूब अलैहि सलाम का ख़ानदान मिस्र में:

      ग़रज़ हज़रत याकूब अलैहि सलाम अपने सब खानदान को लेकर मिस्र रवाना हो गए। तौरात के मुताबिक मित्र आने वाले सत्तर लोग थे। जब हज़रत युसूफ अलैहि सलाम को इतिला हुई कि उनके वालिद ख़ानदान समेत शहर के करीब पहुंच गए तो वह फौरन इस्तेकबाल के लिए बाहर निकले। हजरत याकूब अलैहि सलाम ने एक लम्बी मुद्दत के बाद बेटे को देखा तो सीने से चिमट लिया। हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने वालिद से अर्ज किया कि अब आप इज्जत व एहतराम और अम्न व हिफाजत के साथ शहर में तशरीफ़ ले चलें।

      हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने वालिद माजिद और तमाम ख़ानदान को शाही सवारियों में बिठा कर शहर और शाही महल में उतारा। इसके बाद एक दरबार सजाया गया। हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम के वालिद को शाही तख़्त पर जगह दी गई। इसके बाद खुद हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम शाही तख्त पर बैठे। उस वक्त दरबारी हुकूमत के दस्तूर के मुताबिक तख्त के सामने ताजीम के लिए सज्दे में गिर पड़े। (ताज़ीम का यह तरीका शायद पिछले नबियों की उम्मत में जायज रहा हो।

      लेकिन नबी अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस किस्म की ताजीम को अपनी उम्मत के लिए हराम करार दिया है और उसको जाते इलाही ही के लिए महसूस बनाया है) यूसुफ़ अलैहि सलाम के तमाम ख़ानदान वालों ने भी यही अमल किया। यह देखकर हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम को अपने बचपन का जमाना याद आ गया और अपने वालिद से कहने लगे – और यूसुफ़ ने कहा, ऐ बाप! यह है तासीर उस ख्वाब की जो मुद्दत हुई, मैंने देखा था, मेरे परवरदिगार ने उसे सच्चा साबित कर दिया। यूसुफ 12:100

      ऊपर के वाक्रियात के अच्छे खात्मे से मुतास्सिर होकर यूसुफ़ अलैहि सलाम बे-अख्तियार हो गए और अल्लाह की जनाब में इस तरह दुआ की – ऐ परवदिगार! तूने मुझे हुकूमत अता फरमाई और बातों का मतलब और नतीजा निकालना तालीम फ़रमाया। ऐ आसमान व जमीन के बनाने वाले! तू ही मेरा कारसाज है, दुनिया में भी और आख़िरत में भी। तो यह भी कीजियो कि दुनिया से जाऊं तो तेरी फ़रमांबरदारी की हालत में जाऊं और उन लोगों में दाखिल हो जाऊं जो तेरे नेक बन्दे हैं। यूसुफ 12:101

      तौरात के मुताबिक इस वाकिए के बाद हजरत यूसुफ़ का तमाम ख़ानदान मिस्र ही में आबाद हो गया।

वफ़ात:

      तारीखी हवालो से कहा जाता है की, हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम ने अपनी जिंदगी के लम्बे अर्से को मिस्र ही में गुजारा और जब उनकी उम्र 110 साल की हुई तो उनकी वफ़ात हो गई तो हुनूत (मम्मी) करके ताबूत में महफूज रख दिया और उनकी वसीयत के मुताबिक जब मूसा के जमाने में बनी-इसराईल मिस्र से निकले तो उस ताबूत को भी साथ ले गए और अपने बाप-दादा की सरज़मीन ही में ले जाकर सुपुर्दे खाक कर दिया। बताया गया है कि इनकी क़ब्र नाबलस के आस-पास है, यह कनआन का इलाका है जिस पर अब इसराईल का कब्जा है। (अल्लाहु आलम)

अहम अख़्लाक़ी बातें:

      1. अगर किसी आदमी का निजी मिजाज उम्दा हो और उसका माहौल भी पाक, मुक़द्दस, और लतीफ़ हो, तो उस आदमी की जिंदगी असलाके करीमाना में नुमायां और अच्छी सिफ़तों में मुम्ताज़ होगी और वह हर किस्म के शरफ व मज्द का हामिल होगा।

      2. अगर किसी आदमी में अल्लाह पर ईमान मजबूत और साफ़-सुथरा हो और उस पर यकीन पक्का और मजबूत हो तो फिर इस राह की तमाम परेशानियां और मुश्किलें उस पर आसान बल्कि आसानतर हो जाती हैं और हक़ देख-समझ लेने के बाद तमाम ख़तरे और मुसीबतें बेकार हो कर रह जाती हैं।

      3. इब्तिला और आजमाइश मुसीबत व हलाकत की शक्ल में हो या दोलत व सरवत और नफ़्सानी अस्वाब की सूरत में, हर हालत में इंसान को अल्लाह की जानिब ही रुजू करना चाहिए और उसी से इल्तिजा करनी चाहिए कि वह हक़ मामले पर साबित कदम रखे।

      4. जब अल्लाह तआला की मुहब्बत दिल की गहराइयों में उतर जाता है, तो फिर इंसान की जिंदगी का तमामतर मक्सद वही बन जाता है और उसके दीन की दावत व तब्लीग का जस्बा हर वक्त रग-रग में दौड़ता रहता है।

      5. दयानत और अमानत एक ऐसी नेमत है कि उसको इंसान को दीनी दुनियावी सआदतों की कुंजी कहना चाहिए।
खुदएतमादी इंसान की बुलन्द सिफ़तों से एक बड़ी सिफत है। अल्लाह ने जिस शख्स को यह दौलत दी है, वहीं दुनिया की मुसीबतों और दुखो से गुजर कर दुनिया और दीन दोनों की बुलन्दियों को हासिल कर सकता है।

      7. सब्र एक शानदार ‘खुल्क’ है और बहुत-सी बुराइयों के लिए सबर और ढाल का काम देता है। कुरआन करीम में सबसे ज़्यादा जगहों पर उसकी फजीलत का एलान किया गया है और अल्लाह तआला ने ऊंचे रुत्बे और बुलंद दर्जे का मदार इसी फजीलत पर रखा है।

      8. तक्लीफ़ पहुंचाने वाले भाइयों की नदामत के वक्त सब्र का अख्तियार करना यानी दिल की युस्अत का सबूत है।

      9. बेहतरीन अख़्लाक में शुक्र भी सबसे बेहतर अख़्लाक़ है, इसलिए यह अल्लाह के अख़्लाक में सबसे बुलन्द है।

      10. हसद (जलन) और बुग्ज़ (द्वेष) का अंजाम हसद करने वाले और बुग्ज़ रखने वाले के हक़ ही में नुक्सानदेह होता है और अगरचे कभी जिससे हसद और बुग्ज़ किया गया है, उसको भी दुनिया का नुक्सान पहुंच जाना मुम्किन है, लेकिन हसद करने वाला किसी हाल में भी फलाह नहीं पाता और वह दुनिया और आख़िरत में घाटा उठाने वाला जैसा हो जाता है, अलावा इसके कि तौबा कर ले और हसद वाली जिंदगी को छोड़ दे।

      11. सदाकत, दयानत, अमानत, सब्र और शुक्र जैसी ऊंची सिफ़तों वाली जिंदगी ही हकीक़ी और कामयाब जिंदगी है और अगर इंसान में ये सिफ़तें नहीं पाई जातीं, तो फिर वह इंसान नहीं, बल्कि हैवान है, बल्कि उससे भी बुरा ।

      हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की पूरी जिंदगी ऊपर लिखे अखलाकी मसलों पर गवाह है और इस दुआ के लिए दावत दे रही है –
      ऐ आसमानों और जमीन के पैदा करने वाले! तू ही दुनिया और आखिरत में मेरा मददगार है, तू मुझे अपनी इताअत पर मौत दीजियो और नेक लोगों के साथ शामिल कीजियो। यूसुफ़ 12:101

To be continued …

      इंशाअल्लाह अगले पार्ट में हम हज़रत शोएब अलैहि सलाम औरक़ौम तज़किरा करेंगे.