अकीदा क्या होता है ? और इसका महत्त्व

1- प्रश्नः वह कलमा जिसे बोलकर एक आदमी मुसलमान बनता है क्या है और उसका अर्थ क्या होता है ?

उत्तरः वह कलमा जिसे बोलकर एक आदमी मुसलमान बनता है कलमा शहादत ( अश्हदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्न मोहम्मदन रसूलुल्लाह) है। जिसका अर्थ होता है में गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा और कोई सही इबादत (पूजा) के योग्य नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं।

इस मे दो सवालों का जवाब दिया गया है इबादत किसकी? और इबादत किस प्रकार? इबादत किसकी, का जवाब कलमा शहादत के पहले भाग से मिल जाता है कि इबादत अल्लाह की ही हो सकती है, अल्लाह के अलावा किसी अन्य की इबादत नहीं हो सकती और यह इबादत कैसे होगी तो इसका जवाब कलमा शहादत के दूसरे भाग से मिल जाता है कि इबादत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीके के अनुसार ही हो सकती है।


2- प्रश्नः आपने कहा इबादत। इबादत क्या होती है ?

उत्तरः इबादत की परिभाषा इमाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह ने इस प्रकार की हैः
“इबादत नाम है हर परोक्ष और प्रतयक्ष कथनी और करनी का जिसे अल्लाह पसंद करता है।” और इबादत नमाज़,रोज़े, ज़कात और हज ही नहीं हैं बल्कि दुआ, नज़र नियाज़, रुऊअ और सज्दा यह सब इबादत है जिसे अल्लाह के लिए विशेष करना चाहिए। यानी अल्लाह ही से मांगा जाए, उसी से लौ लगाया जाए, उसी को लाभ एवं हानि का मालिक समझा जाए।


3- प्रश्न: अल्लाह कहाँ है?

उत्तर: अल्लाह सातों आकाश के ऊपर अर्श पर है। कुरआन में सात आयतें ऐसी हैं जिन में अल्लाह ने अपने अर्श पर होने का उल्लेख किया है। उदाहरण स्वरूप अल्लाह का आदेश है:
(सूरः अल-आराफ़ 54, सूरः अल-हदीद 4, सूरत अस्सज्दा 4, सूरः अल-फुरक़ान 59, सूरः अल-राद 2, सूरः यूनुस 3) इन छ जगहों पर यही शब्द आए हैं। “फिर वह अर्श पर स्थापित हुआ”

और अल्लाह ने सातवें स्थान पर कहाः “रहमान अर्श पर मुस्तवी है” (सूरः ताहाः 5)

उसी तरह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दासी के ईमान का प्रशिक्षण करने के लिए उससे पूछा कि  अल्लाह कहां है? तो उसने जवाब दिया: अल्लाह आकाश में है, पूछा: मैं कौन हूँ? तो उसने कहा: आप अल्लाह के रसूल हैं, तब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:

“उसे आज़ाद कर दो यह मोमिना है”। (मुस्लिम: 537)

गोया कि अल्लाह हर जगह नहीं और न ही हमारे दिल में है बल्कि अल्लाह अर्श (सिंहासन) पर है लेकिन उसका ज्ञान हर जगह है यानी अर्श पर होते हुए हर चीज़ को वह निगाह में रखे हुए है।


4- प्रश्नः अगर कोई यह समझता है कि हम इबादत तो अल्लाह ही की करते हैं, बड़ों को बस स्रोत और माध्यम मानते हैं, तो क्या ऐसा कहना सही है?

उत्तरः देखें हर ज़माने में लोगों ने अल्लाह को माना है, अल्लाह का इनकार बहुत कम लोगों ने किया है, आज भी हर धर्म के लोग अल्लाह को मानते हैं कि वही बनाने वाला है, वही आजीविका पहुंचाता है, वही मारता है, वही जिलाता है, सारे विश्व पर शासन कर रहा है। अज्ञानता काल में भी लोगों की यही आस्था थी, बल्कि वह दान भी देते थे, हज भी करते थे, उमरा भी करते थे, लेकिन जिस आधार पर वह मुशरिक ठहरे वह यह कि इबादत शुद्ध अल्लाह के लिए साबित नहीं किया। और बुजुर्गों और मनुष्यों को माध्यम समझते रहे: कुरआन ने खुद उनकी इस आस्था का वर्णन किया:

“और जो लोग उस (अल्लाह) के अलावा संत और सिफारशी बना रखे हैं कहते हैं कि हम उनकी पूजा इस लिए करते हैं कि वे हमें अल्लाह के करीब कर दें।” (सूरः अज्ज़ुमर आयत नंबर 3)

यही बात सूरः यूनुस आयत नंबर 18 में भी कही गई हैः
“वे अल्लाह के अलावा उनकी पूजा करते हैं जो न उनको लाभ पहुंचा सकें और न नुकसान और कहते हैं कि वे अल्लाह के पास हमारे सिफारशी हैं।” (सूरः यूनुसः18)


5- प्रश्न: कुछ लोग कहते हैं कि अल्लाह की जात बहुत ऊंची है, उस तक हमारी बात डाइरेक्ट नहीं पहुंच सकती, अल्लाह तक पहुँचने के लिए माध्यम की जरूरत है जैसे राजा से मिलना हो तो पहले उसके वज़ीरों से मिलना पड़ता है?

उत्तर: अल्लाह की ज़ात के बारे में ऐसी सोच बिल्कुल गलत है, ऐसी ही सोच के आधार पर दुनिया में शिर्क फैला है, अल्लाह को उसकी कमज़ोर सृष्टि से तौला नहीं जा सकता। उदाहरण के तौर पर राजा जहां पर बैठा हुआ है वहां से न अपनी प्रजा को देख सकता है और न बिना साधन के उनकी बात सुन सकता है, और फिर उसे अपनी रक्षा के लिए बडी गार्ड की आवश्यकता है।

लेकिन अल्लाह उन चीज़ों से पाक है और हर स्थिति में अपनी सृष्टि को देखता भी है, और हर किसी की बात को डाइरेक्ट सुनता भी है। दास और अल्लाह के बीच कोई गैप, कोई Distence और कोई दूरी नहीं है, वह तो मनुष्य की गरदन की रग से भी अधिक निकट है, इस लिए अल्लाह को उसकी कमज़ोर सृष्टि से तौलना बिल्कुल उचित नहीं।

“अल्लाह के लिए उदाहरण मत बनाओ, अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।” (सूरः अन्नह्लः 74)


6- प्रश्नः इस्लाम में सबसे बड़ा पाप क्या है?

उत्तरः इस्लाम में सबसे बड़ा पाप शिर्क है कि इंसान अल्लाह की जात, या उसकी विशेषताओं या उसकी इबादत में किसी दूसरे को भागीदार ठहराए। इसी को शिर्क कहते हैं।


7- प्रश्नः शिर्क की खतरनाकी क्या है ?

उत्तरः शिर्क बहुत बड़ा अन्याय है, इस लिए कि यह अल्लाह का अधिकार मारना है, जाहिर है कि अल्लाह का विशेष अधिकार दूसरों को दे देना गलत नहीं तो और क्या है। अल्लाह ने कहा:

“शिर्क बहुत बड़ा अन्याय है।” ( सूरः लुक़मानः 13)

*शिर्क से सारे काम बर्बाद हो जाते हैं। सूरः अज़्ज़ुमर आयत न. 65
“बेशक तुम्हारी ओर भी तुमसे पहले के नबियों की तरफ भी वह्ई(आकाशवाणी) की गई है कि अगर तूमने शिर्क किया तो निस्संदेह तुम्हारे  कर्म नष्ट हो जायेंगे। और निश्चय ही तूम हानि उठाने वालों में से हो जाओगे।”

बल्कि अगर किसी व्यक्ति की मौत शिर्क की हालत में हो गई तो उसकी माफी भी नहीं है। अल्लाह ने कहा: सूरः निसा आयत नंबर 48 में फ़रमाया

“निःसंदेह अल्लाह अपने साथ शिर्क किए जाने को क्षमा नहीं करता और उस के सिवा जिसे चाहे क्षमा कर देता है।”


प्रश्नः शिर्क की कितनी किस्में होती हैं?

उत्तरः शिर्क दो प्रकार का होता है, शिर्क अकबर (बड़ा शिर्क) यानी इंसान अल्लाह की ज़ात या उसके गुण या उसकी इबादत में किसी दूसरे को साझीदार ठहराए, शिर्क की दूसरी क़िस्म शिर्के अस्ग़र अर्थात् छोटा शिर्क है, जैसे के दिखलावा showing off), अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने अनुयायियों से फरमाया:

“तुम्हारे संबंध में मुझे सबसे ज्यादा डर शिर्के अस्गर यानी छोटे शिर्क रियाकारी और दिखलावे से है। अल्लाह क़यामत के दिन जब लोगों को उनके कर्मो का बदला चुकाएगा तो (दिखलावा करने वालों से) फरमाएगाः जाओ उन लोगों के पास जिन को तुम दुनिया में दिखलाते थे, देखों क्या तुम उनके पास उसका बदला पाते हो। (सहीहुल-जामिअ 1555)

ये भी शिर्के अस्ग़र है कि आदमी यह कहे “यदि अल्लाह और फ़लाँ न होता तो ऐसा होता” ‘जो अल्लाह और आप चाहें “,” अगर कुत्ता न होता तो चोर आ जाता।” (जारी)

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