5. जिल हिज्जा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

5. जिल हिज्जा | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
5. Zil Hijjah | Sirf Paanch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

इमाम अबू दाऊद (रह.)

आप का नाम सुलेमान और वालिद का नाम अशअस था, अबू दाऊद आप का शुरू ही से लकब था, आप की विलादत बा सआदत सन २०२ हिजरी में शहर “सजिस्तान” में हुई।

आपने इल्म हासिल करने के लिए मिस्र, जजीरा, इराक और खुरासान वगैरा के सफ़र किए, आप बड़े बड़े हुफ्फाज़े हदीस और फुकहा में से एक है, लेकिन फ़न्ने हदीस में आप का एक खास मकाम है, आप की शान में यह कहा जाता है के आप के लिये, हदीसे इसी तरह आसान और सहल कर दी गई थीं, जिस तरह हजरत दाऊद के लिए लोहे को नर्म कर दिया गया था और बाज़ उलमा फ़र्माते हैं के इमाम अबू दाऊद दुनिया में हदीस के लिए और आखिरत में जन्नत के लिए पैदा किये गए हैं और हम ने उन से अच्छा और अफ़ज़ल किसी को नहीं देखा।

आप ने बेशमार किताबें लिखी, जिनमें बलंद पाया किताब “सुनन अबी दाऊद” है, जो चार हजार आठ सौ हदीस पर मुश्तमिल है, आप खुद फरमाते है के मैं ने नबी (ﷺ) की पाँच लाख हदीसों में से चार हजार आठ सौ हदीस इस किताब में लिखा है। आप की वफ़ात बसरा में १६ शव्वाल सन ३७५ हिजरी को हुई।

📕 इस्लामी तारीख


2. अल्लाह की कुदरत

बिजली कुंदना

बारिश के आने से पहले आसमान पर तह ब तह बादल जमा होना शुरू हो जाते हैं, लेकिन अल्लाह की कुदरत का नजारा देखिये के इन बादलों में न कोई मशीन फिट होती है और न ही किसी किस का कोई जनरेटर लगा होता है, मगर इन घने बादलों में अल्लाह बिजली की ऐसी चमक और कड़क पैदा कर देता है के रात की तारीकी में भी उजाला फैल जाता है और कभी कभी इतनी सख्त गरज्ती और बिजली कुंदती है के दिलों में घबराहट और सारे माहौल में खौफ तारी हो जाता है।

बेशक यह अल्लाह तआला की कुदरत की दलील है।

📕 अल्लाह की कुदरत


3. एक फर्ज के बारे में

नेकियों का हुक्म देना और बुराइयों से रोकना

रसुलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“कसम है उस ज़ात की जिस के कब्जे में मेरी जान है, के तूम ज़रूर बि ज़रूर भलाइयो का हुक्म करो और बुराइयों से रोको, वरना करीब है के अल्लाह तआला गुनेहगारों के साथ तुम पर अपना अज़ाब भेज दे, उस वक्त तुम अल्लाह तआला से दुआ मांगोगे तो कबूल न होगी।”

📕 तिर्मिज़ी : २१६९, अन हुजैफा (र.अ)

फायदा : नेकियों का हुक्म देना और बूराइयों से रोकना उम्मत के हर फर्द पर अपनी हैसियत और ताकत के मुताबिक़ लाज़िम और ज़रूरी है।


4. एक सुन्नत के बारे में

इमामा का शम्ला छोड़ना

रसूलुल्लाह (ﷺ) जब इमामा बांधते, तो उस का शम्ला अपने दोनों कांधों के दर्मियान छोड़ देते।

📕 तिमिंत्री : १७३६, अन अब्दुल्लाइ बिन उमर (र.अ)


5. एक अहेम अमल की फजीलत

अच्छे अखलाक़ वाले का मर्तबा

रसुलल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:

“यक़ीनन मोमिन अपने अच्छे अखलाक के ज़रिए, नफ़्ल नमाजें पढ़ने वाले रोज़ेदार शख्स के मर्तबे को हासिल कर लेता है।”

📕 अबू दाऊद : ४७९८, अन आयशा (र.अ)


6. एक गुनाह के बारे में

नमाज़ से मुंह मोड़ने का गुनाह

मेअराज की रात रसूलुल्लाह (ﷺ) का गुज़र ऐसे लोगों पर हुआ जिन के सरों को कुचला जा रहा था, जब सर कुचल दिया जाता तो दोबारा फिर अपनी हालत पर लौट आता, फिर कुचल दिया जाता, इस अजाब में जर्रा बराबर कमी नहीं होती थी, हुजूर (ﷺ) ने हज़रत जिब्रईल से पूछा : यह कौन लोग है?

हजरत जिब्रईल ने जवाब में फ़र्माया : यह वह लोग हैं जिन के चेहरे नमाज़ के वक्त भारी हो जाते थे, (यानी नमाज़ से मुंह चुराते थे)।

📕 अत्तरगीब क्त्तरहीब: ७९५, अन अबी हुरैरह (र.अ)


7. दुनिया के बारे में

बद नसीबी की पहचान

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:

“चार चीजें बदनसीबी की पहेचान हैं।

(१) आँखों का खुश्क होना (के अल्लाह के खौफ से किसी वक्त भी आँसू न टपके)
(२) दिल का सख्त होना (के आखिरत के लिये या न किसी दूसरे के लिये किसी वक़्त भी नर्म न पड़े।)
(३) उम्मीदों का लम्बा होना।
(४) दुनिया की हिर्स व लालच का होना।”

📕 तरगीब व तरहीब : ४७४१


8. आख़िरत के बारे में

ईमान वालों का ठिकाना

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“इन (ईमान वालों) के लिए हमेशा रहने वाले बाग़ हैं, जिन में वह दाखिल होंगे और उन के माँ बाप, उन की बीबियों और उन की औलाद में जो (जन्नत) के लायक होंगे, वह भी जन्नत में दाखिल होंगे और हर दरवाजे से फरिश्ते उन के पास यह कहते हए दाखिल होंगे ‘तुम्हारे दीन पर मज़बूत जमे रहने की बदौलत तुम पर सलामती हो, तुम्हारे लिए आखिरत का घर कितना उम्दा है!’”

📕 सूरह रआद:२३ ता २४


9. तिब्बे नबवी से इलाज:

फासिद खून का इलाज

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :

“बेहतरीन दवा हिजामा (पछना लगाना, cupping) है, क्यों कि वह फ़ासिद खून को निकाल देती है, निगाह को रौशन और कमर को हल्का करती है।”

📕 मुस्तदरक : ८२५८, अन इन्ने अब्बास (र.अ)


10. कुरआन की नसीहत

मांगने वाले के साथ नर्मी से पेश आना

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

मांगने वाले को, नर्मी से जवाब दे देना और उस को माफ़ कर देना उस सदका व खैरात से बेहतर है जिस के बाद तकलीफ़ पहुंचाई जाए। अल्लाह तआला बड़ा बेनियाज़ और गैरतमंद है।”

📕 सूरह बकरह : २६३

to be continued …

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