- इस्लामी तारीख: हजरत फ़ातिमा बिन्ते रसूलुल्लाह (ﷺ)
- अल्लाह की कुदरत: रात और दिन का अदलना बदलना
- एक फर्ज के बारे में: बीवी की विरासत में शौहर का हिस्सा
- एक सुन्नत के बारे में: दुआ के खत्म पर चेहरे पर हाथ फेरना
- एक गुनाह के बारे में: सूद खाने वाले का अंजाम
- आख़िरत के बारे में: कयामत के हालात
- तिब्बे नबवी से इलाज: दाढ़ के दर्द का इलाज
- कुरआन की नसीहत: तुम अपने रब से अपने गुनाह माफ़ कराओ
1. इस्लामी तारीख:
हजरत फ़ातिमा बिन्ते रसूलुल्लाह (ﷺ)
. हज़रत फ़ातिमा (र.अ) रसूलुल्लाह (ﷺ) की सबसे छोटी साहबजादी (बेटी) और हजरत अली (र.अ) की ज़ौजा (बीवी) हैं। नुबुव्वत से पाँच साल क़ब्ल बैतुल्लाह (काबा) की तामीर के वक्त उन की पैदाइश हुई, इस्लाम की खातिर मक्की दौर में तकलीफें बर्दाश्त करती रहीं, फिर बाद में हिजरत करके मदीना चली आई।
. सन २ हिजरी में हज़रत अली (र.अ) से उन का निकाह हुआ। उनकी जिंदगी औरतों के लिए एक नमूना है।
. हुजूर की चारों बेटियों में सबसे महबूब और चहेती बेटी होने के बावजूद घर का सारा काम बजाते खुद अंजाम देती थीं, चक्की पीसने की वजह से हाथ में छाले पड़ गए थे, घर में कोई खादिमा नहीं थीं। दुनिया की थोड़ी सी चीजों पर बखुशी राजी रहती और उस पर सब्र करती थीं। इसी वजह से हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया के तुम्हारे लिए दुनिया की तमाम औरतों में मरियम, खदीजा, फ़ातिमा है और आसिया की जिंदगियाँ नमूने (मिसाल) के लिए काफ़ी हैं, सच्चाई और साफ गोई में हजरत फ़ातिमा बेमिसाल थीं।
. रमजान सन ११ हिजरी में हुजूर (ﷺ) की वफ़ात के छ:माह बाद मदीना मुनव्वरा में उन का इन्तेकाल हुआ और जन्नतुल बकी में मदफ़ून हुई।
2. अल्लाह की कुदरत
रात और दिन का अदलना बदलना
जब से दुनिया आबाद है, उस वक्त से लेकर आज तक दिन और रात अपने मुतअय्यना वक्त पर बदलते रहते हैं, कभी ऐसा नहीं हुआ के रात को अचानक सूरज निकला और सुबह हो गई और न ही ऐसा हुआ के दोपहर को सूरज गुरूब हुआ और रात हो गई, बल्के रात न तो अपने वक्त से एक लम्हा पहले आ सकती है और न ही दिन अपने वक्त से एक लम्हा पहले आ सकता है।
यह सारा गैबी निजाम सिर्फ़ अल्लाह ही अपनी कुदरत से चला रहे हैं।
3. एक फर्ज के बारे में:
बीवी की विरासत में शौहर का हिस्सा
कुरआन में अल्लाह ताआला फ़र्माता है :
“तुम्हारे लिए तुम्हारी बीवियों के छोड़े हुए माल में से आधा हिस्सा है, जब के उन को कोई औलाद न हो और अगर उन की औलाद हो, तो तुम्हारी बीवियो के छोड़े हुए माल में चौथाई हिस्सा है (तुम्हें यह हिस्सा) उन की वसिय्यत और कर्ज अदा करने के बाद मिलेगा।”
4. एक सुन्नत के बारे में:
दुआ के खत्म पर चेहरे पर हाथ फेरना
“रसूलल्लाह (ﷺ) जब दुआ के लिए हाथ उठाते तो चेहरे पर हाथ फेरने के बाद ही रखते थे।”
[तिर्मिज़ी:३३८६, अन उमर बिन खत्ताब (र.अ)]
6. एक गुनाह के बारे में:
सूद खाने वाले का अंजाम
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:
“मेराज की रात मेरा गुज़र एक ऐसी कौम पर हुआ जिन के पेट इतने बड़े थे जैसे कोई घर हो, उस में साँप और बिच्छू थे जो बाहर से नजर आ रहे थे। मैंने जिब्रईल (अ०) से पूछा : यह कौन लोग हैं? जिब्रईल ने कहा: यह सूद खाने वाले लोग हैं।”
[इब्ने माजा : २२७३, अन अबी हुरैरह(र.अ)]
8. आख़िरत के बारे में :
कयामत के हालात
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है
“जब सूरज बेनूर हो जाएगा और सितारे टूट कर गिर पड़ेंगे और जब पहाड़ चला दिए जाएँगे और जब दस माह की गाभिन ऊँटनियाँ (कीमती होने के बावजूद आजाद) छोड़ दी जाएँगी और जब जंगली जानवर जमा हो जाएँगे और जब दर्या भड़का दिए जाएंगे।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज:
दाढ़ के दर्द का इलाज
एक मर्तबा हजरत अब्दुल्लाह बिन रवाहा (र.अ) ने हुजूर (ﷺ) से दाढ में शदीद दर्द की शिकायत की, तो आप (ﷺ) ने उन्हें करीब बुला कर दर्द की जगह अपना मुबारक हाथ रखा और सात मर्तबा यह दुआ फ़रमाई :
चुनान्चे फ़ौरन आराम हो गया।
10. कुरआन की नसीहत:
तुम अपने रब से अपने गुनाह माफ़ कराओ
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“तुम अपने रब से अपने गुनाह माफ़ कराओ और उस की जानिब मुतवज्जेह रहा करो।”
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